Vijayadashami and Brahmastra Sadhana
आपके भीतर ब्रह्म है
आपके पास ब्रह्मास्त्र है
विजयादशमी और ब्रह्मास्त्र साधना
शत्रु बाधा नाश
ब्रह्मास्त्र आपके मन के अन्तरतम धरातल पर स्थित ऊर्जा का प्रबल पुञ्ज है जिसमें कोई सन्देह या संशय नहीं होता है। ऐसी दशा में सफलता, शत्रु-विजय निश्चित है।
ब्रह्मास्त्र विजय का भाव है और जीवन में विजयी रहने का तात्पर्य है, प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त करना, अपनी क्षमता तथा सामर्थ्य के अनुसार जो काम हाथ में लें, उसमें लक्ष्य सिद्धि अवश्य प्राप्त हो जाय।
ब्रह्मास्त्र तेहि सांधा कपि मन कीन्ह विचार
जो न ब्रह्मास्त्र मानऊं महिमा मिटई अपार
शास्त्रों में वर्णन आता है कि भगवान ब्रह्मा ने दैत्यों के नाश हेतु ब्रह्मास्त्र की उत्पत्ति की। शाब्दिक तौर पर ब्रह्मास्त्र का अर्थ है, ईश्वर का अस्त्र। महर्षि वेद व्यास लिखते हैं जहां ब्रह्मास्त्र छोड़ा जाता है वहां 12 वर्ष तक जीव-जन्तु, पेड़-पौधों की उत्पत्ति नहीं हो सकती।
रामचरितमानस में मेघनाद ने रामभक्त हनुमान को पाश में जकड़ने के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया और पवन-पुत्र उसमें बंध गए। यह है ब्रह्मास्त्र जिसमें हनुमान जैसे बली भी बंधने को विवश हो गए।
शत्रु बाधा जीवन का दुःख
युग बदला, समय बदला लेकिन मनुष्य की शत्रु बाधा यथावत् रही। प्रत्यक्ष शत्रु पर विजय तो फिर भी सहज है, पर गुप्त शत्रुओं पर विजय कैसे प्राप्त की जाए?
शत्रु बाधा के सम्बन्ध में आचार्य चाणक्य लिखते हैं।
अनुलोमेन बलिनं प्रतिलोमेन दुर्जनम्
आत्मतुल्य बलं शत्रु विनयेन बलेन वा
यदि कोई शत्रु आपसे अधिक शक्तिशाली है तो उसके अनुकूल चलकर, दुष्ट स्वभाव के शत्रु को उसके विरुद्ध चलकर, समान बल वाले शत्रु को विनय और बल से नीचा दिखाया जा सकता है।
शत्रु पर विजय प्राप्त करने के लिए चाणक्य नीति में बल पर विशेष जोर दिया गया है।
क्या है बल?
बल को शरीर से जोड़ा गया है पर वह बल की बहुत सीमित व्याख्या है। वास्तव में, बल मानसिक होता है और जब आपकी समग्र शक्तियां एकत्रित होकर एक तीव्र मानसिक ज्वालापुंज का रूप ले लेती हैं, उस समय आप की विचार तरंगें ही पर्याप्त हैं शत्रु पर विजय प्राप्त करने के लिए।
दरअसल, बल आपके मन का दृढ़ संकल्प है क्योंकि आपका मन एक कल्पवृक्ष है। यहां फलित वही होता है, जो आप चाहते हैं। पर समस्या यह है कि आप चाहते क्या हैं?
रमाशंकर शास्त्री एक बार बहुत दूर टहलने के बाद अचानक स्वर्ग में घुस गए। काफी दूर चलने की वजह से उन्हें गजब की भूख लग रही थी। बदन थककर चूर हो रहा था। एक वृक्ष के नीचे बैठ गए, जिस वृक्ष के नीचे वह बैठा वह वांछित फल देने वाला कल्पवृक्ष था। रमाशंकर शास्त्री को इसका पता नहीं था। सहज रूप से उसने सोचा, ‘अभी भरपेट भोजन मिल जाता तो कितना अच्छा होता’।
अगले ही क्षण उनकी पसंद के सारे भोज्य पदार्थ सोने की थाली में सजकर सामने आ गए। प्यालों में पसंदीदा फलों का रस भी।
पेट भर गया तो नींद आई। रमाशंकर ने सोचा, ‘काश, अच्छा-सा पलंग मिल जाता।’ फौरन मुलायम गद्दों और तकियों के साथ पलंग हाजिर, अब रमाशंकर के मन में भय छा गया।
‘विचार उठते ही यह सब कैसे मिल रहा है? यह भूत-प्रेतों का स्थान तो नहीं है?’ अगले ही क्षण भूत-प्रेतों ने आकर उन्हें घेर लिया।
और उन्हें देखते ही सोचने लगा ‘हाय! ये प्रेत-पिशाच कहीं मुझे मार डाले तो…?’ सोचने की देर थी कि पिशाचों ने उन्हें चीर कर समाप्त कर दिया।
देखा, रमाशंकर शास्त्री का क्या हश्र हुआ? यदि आपके विचार नकारात्मक हों तो फल यही होगा।
भय के आगे जीत है –
डर मनुष्य की स्वाभाविक वृत्ति है। मन में उठ रहा भय या संशय कई बार निम्नलिखित कथनों में अभिव्यक्त होता है –
1. मैं हार का मुंह ना देखूं
2. व्यापार में नुकसान ना हो
3. मेरे हाथ से अधिकार ना चले जाएं
4. किसी भी सूरत में मैं उस चीज को गवाऊं नहीं
आपके मन में उठ रहे संदेह, आपकी सफलता को संदिग्ध कर देते हैं। ये जो संशय हैं, वे आपके मन की हीनता है। आपके मन का भाव है कि ‘मैं इस लायक नहीं हूं।’
जहां आपके मन ने ऐसा सोचा, शत्रु आप पर हावी हो जाते हैं।
रामायण का ही प्रसंग लेते हैं। रावण परम पराक्रमी था। नवग्रह उसके महल में बन्दी थे तथा वह उड्डीश तंत्र का ज्ञाता था, शिव का शिष्य था। पर रावण की युद्ध में हार क्यों हुई और वानर-रीछों की सेना लेकर श्रीराम कैसे विजयी हुए?
रावण का सीताहरण दुराचार था और जिसने भी रावण से भेंट की उसने उसे बार-बार इस दुराचार का स्मरण कराया और साथ ही कहा कि बिना सीता को वापिस किए युद्ध में उनकी विजय संभव नहीं है। मंदोदरी ने तो यहां तक कह दिया-
सुनहु नाथ सीता बिनु दीन्हें
हित न तुम्हार शम्भू अज कीन्हें।
हे नाथ रावण, आपके इष्ट शिव भी आपका हित-कल्याण नहीं कर सकते, जब तक आप सीता को वापस राम के पास नहीं भेज देते।
अन्त समय में रावण पर श्रीराम ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। रावण का मनोबल पहले ही तोड़ा जा चुका था, सगे-सम्बन्धियों के द्वारा और श्रीराम के ब्रह्मास्त्र के आगे रावण धराशयी हो गया।
ब्रह्मास्त्र आपके मन के अन्तरतम धरातल पर स्थित ऊर्जा का प्रबल पुञ्ज है जिसमें कोई सन्देह या संशय नहीं होता है। ऐसी दशा में सफलता, शत्रु-विजय निश्चित है।
कैसे करें शत्रु पर विजय सुनिश्चित?
शत्रु सिर्फ बाह्य ही नहीं होते हैं, आन्तरिक भी होते हैं। बाह्य शत्रुओं पर विजय प्राप्ति के लिए संकल्प शक्ति और मनोबल चाहिए और इन्हीं गुणों के आधार पर आप आन्तरिक शत्रुओं को भी परास्त कर पाएंगे।
शुरूआत में, जब हम छोटे होते हैं तब से हमारा चिन्तन दुःख और निराशा के इर्द-गिर्द केन्द्रित होता है। बच्चा जब मस्ती में खेल रहा होता है तब किसी को फिक्र नहीं होती है, पर बच्चे को जरा सा बुखार आ जाए तो सारा परिवार परेशान हो जाता है।
हमारा सारा फोकस संशयों पर है। हमारे ध्यान का केन्द्रबिन्दु दुःख और तकलीफें हैं। जिस विषय पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है वही जीवन में अभिव्यक्त होता है, बार-बार होता है।
ब्रह्मास्त्र साधना आपको हीनता की अधीनता से मुक्ति दिलाती है। जब आप उत्साह, ऊर्जा, आशा से लबालब भरे होते हैं, कोई भी बाधा, कोई शत्रु बहुत छोटा हो जाता है, क्योंकि उस समय आप बड़े हो जाते हैं।
ब्रह्मास्त्र विजय का भाव है और जीवन में विजयी रहने का तात्पर्य है, प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त करना, अपनी क्षमता तथा सामर्थ्य के अनुसार जो काम हाथ में लें, उसमें लक्ष्य सिद्धि अवश्य प्राप्त हो जाए।
विजयादशमी एक ऐसा सिद्ध मुहूर्त है, जो आपके प्राणों में ऐसी शक्ति भर सकता है, कि आप स्वयं पूर्ण चैतन्यमय होकर क्रियाशील हो सकते हैं। विजयादशमी विजय का आह्वान करने का दिवस है, जिससे आपको अपने प्रत्येक कार्य में विजय ही प्राप्त हो, शत्रुओं पर आपका ऐसा तेजस्वी प्रभाव पड़े, कि वे आपके सामने झुके ही रहें, पूरे वर्ष के लिए स्तम्भन, शत्रु बाधा निवारण।
सही समय पर सही कार्य किये जाने पर उसका फल निश्चय ही शीघ्र प्राप्त होता है। प्रत्येक पर्व अपने आप में एक विशेष रहस्य लिये हुए रहता है और विजयादशमी पर्व तांत्रोक्त साधना सिद्धि पर्व है। विजयादशमी केवल एक पर्व नहीं है, यह विजय सिद्धि दिवस है।
साधना विधान
ब्रह्मास्त्र साधना हेतु मंत्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठायुक्त ‘ब्रह्मास्त्र यंत्र’ और ‘परशु खड्ग माला’ साधना दिवस से पूर्व ही प्राप्त कर सुरक्षित स्थान पर रख दें। यह रात्रिकालीन साधना है। ब्रह्मास्त्र साधना को सम्पन्न करने का अद्वितीय मुहूर्त विजयादशमी है। इसके अतिरिक्त इस साधना को किसी भी माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी, अमावस्या अथवा कृष्ण पक्ष के मंगलवार को भी सम्पन्न किया जा सकता है। ब्रह्मास्त्र साधना रात्रि में 10 बजे के बाद ही प्रारम्भ करें।
रात्रि में हाथ मुंह धोकर, स्वच्छ वस्त्र धारण कर, अपने ऊपर गुरु चादर डाल लें और दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर बैठ जाएं। अपने सामने एक बाजोट पर गहरे नीले रंग का वस्त्र बिछाकर उस पर गुरु चित्र/विग्रह/यंत्र/पादुका स्थापित कर, दोनों हाथ जोड़कर गुरुदेव निखिल का ध्यान करें –
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् पर ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥
निखिल ध्यान के पश्चात् गुरु चित्र/विग्रह/यंत्र/पादुका को जल से स्नान करावें –
ॐ निखिलम् स्नानम् समर्पयामि॥
इसके पश्चात् इनको स्वच्छ वस्त्र से पौंछ लें निम्न मंत्रों का उच्चारण करते हुए कुंकुम, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, धूप-दीप से पंचोपचार पूजन करें –
ॐ निखिलम् कुंकुम समर्पयामि।
ॐ निखिलम् अक्षतान् समर्पयामि।
ॐ निखिलम् पुष्पम् समर्पयामि।
ॐ निखिलम् नैवेद्यम् निवेदयामि।
ॐ निखिलम् धूपम् आघ्रापयामि, दीपम् दर्शयामि। (धूप, दीप दिखाएं)
अब तीन आचमनी जल गुरु चित्र/विग्रह/यंत्र/पादुका पर घुमाकर छोड़ दें। इसके पश्चात् गुरु माला से गुरु मंत्र की एक माला मंत्र जप करें –
ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः
गुरु-पूजन के पश्चात् बाजोट पर बिछे वस्त्र पर रक्त चन्दन से त्रिशूल बनाकर उस पर ‘ब्रह्मास्त्र यंत्र’ को स्थापित कर दें, यंत्र का कुंकुम, अक्षत से पूजन करें, फिर धूप और दीप जलाकर यंत्र के ठीक सामने रखें, दीपक सरसों या तिल के तेल का होना चाहिए, इसके पश्चात् हाथ में जल लेकर संकल्प लें, कि –
मैं अमुक (अपना नाम लें) साधक, अमुक (शत्रु का नाम लें) शत्रुबाधा के विनाश हेतु ब्रह्मास्त्र साधना को सम्पन्न कर रहा हूं।
ऐसा कह कर उस जल को जमीन पर छोड़ दें और हाथ को एक बार जल से धो लें।
इसके पश्चात् ‘परशु खड्ग माला’ से निम्न ब्रह्मास्त्र सिद्धि मंत्र की 8 माला मंत्र जप करें –
मंत्र
॥ ॐ हुं हुं हुंकार रूपिण्यै ब्रह्मास्त्र ब्रह्माण्ड भेदय फट् ॥
मंत्र जप के पश्चात् गुरु आरती सम्पन्न करें। इस प्रकार ब्रह्मास्त्र साधना को तीन बार प्रत्येक मंगलवार को करें।
तीन बार साधना सम्पन्न करने के पश्चात् यंत्र एवं माला को उस बाजोट पर बिछे कपड़े में लपेट कर नदी या बहते जल में विसर्जित कर दें।
प्राण प्रतिष्ठा न्यौ. – 410/-
आप ईश्वर से प्रार्थना करते हैं, क्षमता अनुसार परिश्रम करते हैं पर फिर भी शत्रु आप पर हावी हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में बाधाओं पर विजय पाने का सिर्फ एक ही तरीका है, आप बड़े बन जाइए।आप बड़े बन सकते हैं, ईश्वर की साधना-उपासना से। ब्रह्मास्त्र साधना आपको ब्रह्म की ऊर्जा से जोड़ देती है और फिर आप ब्रह्माण्ड विजय पर निकल पड़ते हैं।
– सद्गुरुदेव नन्द किशोर जी श्रीमाली
विजय का तात्पर्य है, कि जो भी जीवन में कांटे हैं, जो भी जीवन में कंकड़ हैं, जो भी जीवन में न्यूनताएं हैं, जो भी जीवन में शत्रु हैं, उन सब पर पार पाना और उन सबको समाप्त कर देना और इस प्रकार की विजय प्राप्त करने का एक अस्त्र है – ‘ब्रह्मास्त्र’।
ब्रह्मास्त्र का अर्थ होता है, ब्रह्म (ईश्वर का अस्त्र)। यह एक दिव्य अस्त्र है जिसका आविष्कार, सृजन ब्रह्मा ने स्वयं किया। यह अस्त्र शास्त्रों में सबसे अधिक विनाशक अस्त्र माना जाता है और एक बार इसके चलने से सम्पूर्ण विपक्ष के साथ-साथ उसके सहयोगियों का भी विनाश हो जाता है।
शक्तिवान बनना कोई बुराई नहीं है, अपितु जीवन का सौन्दर्य है। शक्तिवान का तात्पर्य शारीरिक क्षमता से नहीं, शारीरिक मापदण्ड से नहीं, शक्तिवान का तात्पर्य, जो वह चाहे उसे प्राप्त करें… पूरी क्षमता के साथ… तेजस्विता के साथ… रोते गिड़गिड़ाते हुए नहीं…
…और यह सम्भव है, साधना द्वारा वह शक्ति प्राप्त कर शक्तिवान बनें, क्षमतावान बनें और आने वाली आपदाएं, चाहें वे सामाजिक हों, पारिवारिक हों या राजनैतिक… इसके द्वारा जीवन की छोटी-बड़ी समस्याओं का निराकरण किया जा सकता है।