Dialogue with loved ones – September 2024

अपनों से अपनी बात…

मेरे प्रिय आत्मीय,

शुभाशीर्वाद,

    यह बात बहुत स्पष्ट है कि संसार में प्रत्येक प्राणी शक्तिवान, शक्तिमय होना चाहता है। आपकी भी यही इच्छा और कामना रहती है कि मेरे भीतर शक्ति का भाव सदैव जाग्रत रहे।

    दुर्गा सप्तशती में शक्ति के सम्बन्ध में विशेष वर्णन आया है, इसकी व्याख्या में मैंने एक ग्रंथ ‘या देवी सर्वभूतेषु’ लिखा। जिसमें शक्ति के स्वरूप को समझाने का प्रयास किया। दुर्गा सप्तशती के चतुर्थ अध्याय में शक्ति के स्वरूपों में विष्णु मायेति, चेतना, बुद्धि, निद्रा, क्षुधा, छाया, शक्ति, तृष्णा, क्षांति, जाति, लज्जा, शांति, श्रद्धा, कांति, लक्ष्मी, वृति, स्मृति, दया, तुष्टि, मातृशक्ति, भ्रान्ति और सभी इन्द्रियों की अधिष्ठात्री के रूप में आया है। इसलिये यह सारा जगत शक्ति का ही विस्तार है। शक्ति की ही माया है, शक्ति से ही सारा संसार निरन्तर गतिशील है।

    अब मेरा एक विशेष प्रश्न है कि शक्ति वास्तव में क्या है? क्या शक्ति प्रहार शक्ति है? जिससे आप दूसरों को पराजित कर विजय प्राप्त करें।

    यदि हमारे जीवन का उद्देश्य दूसरों को पराजित करना ही है तो इसके लिये युद्धरत रहना पड़ता है और युद्ध में समय और शक्ति का निरन्तर ह्रास होता है।

    वास्तव में शक्ति क्या है? केवल संहार की शक्ति नहीं है, शक्ति तो रचना की शक्ति है, ज्ञान की शक्ति है। यदि ज्ञान और रचना जीवन में सबसे महत्वपूर्ण है तो शक्ति के संहार तत्व को इतना अधिक महत्व क्यों दिया गया है? आप सारे शास्त्र पढ़ते है रामायण हो, भागवद्‌‍ हो, दुर्गा सप्तशती हो। रामायण में आपको राम-रावण युद्ध, लंका काण्ड आपको सबसे अच्छा लगता है। भागवद्‌‍ में कुरुक्षेत्र युद्ध, महाभारत सबसे अच्छा लगता है और दुर्गा सप्तशती के ज्यादात्तर अध्यायों में युद्ध का ही वर्णन है।

    वास्तव में संहार का मूल उद्देश्य युद्ध नहीं होता है। संहार का उद्देश्य होता है, विपरित स्थितियों बाधाओं को समाप्त करना और नवीन रचना करना। संहार का उद्देश्य है रावण को पराजित कर राम राज्य की स्थापना करना। संहार का उद्देश्य था पाण्डवों को विजित कर धर्म की स्थापना करना। संहार का उद्देश्य था असुरों महिषासुर, रक्तबीज, चण्डमुण्ड, शुम्भ-निशुम्भ की समाप्ति कर सुर अर्थात्‌‍ देवताओं का राज्य पुनः स्थापित करना।

    अब बड़ी विचित्र बात है, देवताओं के पास सब आयुध थे शक्ति भी थी फिर भी उन्होंने आद्याशक्ति का आह्‌‍वान किया और देवताओं की सम्मिलित शक्ति ने युद्ध किया। असुर पराजित हुए।

    मनुष्य अपने जीवन में आक्रमणकारी कब बन जाता है, जब मनुष्य के जीवन में हताशा, निराशा आ जाती है कोई और मार्ग नहीं मिलता है तब वह आक्रमक बन जाता है और उसके साथ क्रोध तत्व जुड़ जाता है। निरन्तर आक्रमक और क्रोध भाव रखने से होता क्या है? शरीर और मन को क्षति पहुंचती है। आक्रमक भाव, आक्रमक विचार और क्रोध रक्तबीज की तरह निरन्तर बढ़ते रहते है।

    अब ऐसा कोई उपाय है कि मनुष्य हर समय आक्रमक भाव में नहीं रहे, हर समय डर में नहीं रहे कि मुझ पर आक्रमण हो जायेगा तो उसे क्या करना चाहिये? एक ही उपाय है, अपनी शक्ति को बलवती बनाये रखना।

    देवताओं ने भी शक्ति को आक्रमण के लिये आह्‌‍वान नहीं किया था, देवताओं ने ‘पराक्रम’ के लिये शक्ति का आह्‌‍वान किया था। किसी भी युद्ध में, संघर्ष में सबसे अधिक आवश्यक है पराक्रम।

    जहां पराक्रम है वहां आक्रमण की आवश्यकता नहीं पड़ती क्योंकि पराक्रम आभावान तेजस्वी होता है, जिसके आगे सब बाधा, शत्रु निस्तेज हो जाते है। साधक में पराक्रम जीवन्त होना चाहिये, तो उसे किसी पर आक्रमण करने की आवश्यकता ही नहीं रहती है। जहां पराक्रम है वहां शक्ति हैं। जहां पराक्रम है वहां तेज के साथ शांति है। जहां पराक्रम का भाव है वहां आत्मविश्वास है इसीलिये पराक्रमी व्यक्ति अपने सभी कार्यों को पूर्ण करता है। सबसे महत्वपूर्ण बात क्या है? पराक्रम तत्व से मनुष्य शांत रहता है और केवल बल और युद्ध का उपयोग करने वाला व्यक्ति हर समय अशांत और क्रोधि रहता है।

    जीवन में युद्ध की शक्ति का विकास नहीं करना है, पराक्रम की शक्ति का विकास करना है।

उद्यमः साहसं धैर्यं बुद्धिः शक्तिः पराक्रमः। षडेते यत्र वर्तन्ते तत्र दैवं सहायकृत्‌‍॥

    उद्यम (जोखिम लेने वाला व्यक्ति), साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति और पराक्रम – यह 6 गुण जिस भी व्यक्ति के पास होते हैं, भगवान भी उसकी सहायता करते है।

    कुछ सूत्र दे रहा हूं, आपकी पराक्रम शक्ति के विकास के लिये इन्हें विचार करना, समझना और इन्हें अपने जीवन में अमल में लाना।

* सदैव याद रखों, वर्तमान में आपके मित्र कितने ही करीबी हो समय के प्रभाव में सब चले जाते है।

* इस जगत में सबसे महत्वपूर्ण सम्बन्ध आपका अपने स्वयं से है।

* आपके निर्णय आपके जीवन को परिभाषित करते है, भाग्य का क्या है, निर्णय लेना महत्वपूर्ण है।

* आपके पास जो समय है, वह महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण है कि आप अपने समय को कैसे व्यतीत करते है।

* आपका स्वास्थ्य आपके सम्पूर्ण जीवन का आधार है।

* दिल का टूटना और असफलताएं जीवन का हिस्सा है। इसके बारे में ज्यादा विचार नहीं करें।

* आप कितनी कड़ी मेहनत कर रहे है, इसकी किसी को परावाह नहीं है। दूसरे सिर्फ परिणाम देखते है पर आपको ध्यान अपनी मेहनत, अपने कार्य पर ही देना है।

* परिवर्तन को अपनाईये, परिवर्तन होता रहेगा उसे अनुकूल करना, सीखना आवश्यक है।

* आप जो है, उसे स्वीकार करने से ही आन्तरिक शांति प्राप्त होती है।

* छोड़िये पिछली गलती, शिकायतों को ये आपकी प्रगति में बाधक है।

* निरन्तर सीखते रहिये, इसी से पराक्रम आयेगा, विकास आयेगा। जीवन रोचक और सार्थक बनेगा।

* आपके अनुभव भौतिक सम्पत्ति की तुलना में आपको अधिक सन्तुष्टि प्रदान करते है। अपने अनुभवों के आधार पर निर्णय लें।

* जो काम शुरु कर रहे है, उसे पूरा करना ही है यही पराक्रम भाव का आधार है।

-नन्द किशोर श्रीमाली 

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