Dialogue with loved ones – October 2024
अपनों से अपनी बात…
मेरे प्रिय आत्मीय,
शुभाशीर्वाद,
नवरात्रि पर्व की बहुत-बहुत शुभकामनाएं, आशीर्वाद। शारदीय नवरात्रि में निश्चित रूप से आप उत्साह के साथ साधनारत रहेंगे। नवरात्रि पर्व ही शक्ति पर्व है और प्रत्येक व्यक्ति की यही कामना रहती है कि मैं शक्ति सम्पन्न बनूं। शक्ति सदैव मेरे साथ रहे। शक्ति के माध्यम से मैं निरन्तर उन्नति प्राप्त करूं।
अभी एक साधक मुझसे मिला और कहा गुरुजी, अब मैं रिटायर हो गया हूं। अब विश्राम करूंगा, बहुत साल काम कर लिया, थक गया हूं अब कोई जिम्मेदारी नहीं केवल आराम और आराम।
मैंने हंसते हुए पूछा कि इतने साल में क्या कभी विश्राम नहीं किया? विश्राम नहीं किया तो तुमने इतने साल कर्म कैसे किया?
ईश्वर तो इस संसार में किसी भी मनुष्य को रिटायर होने के लिये भेजता नहीं है? अभी भी तुम्हारे हाथ, पैर, आंखें, हृदय, फेफड़े, पेट सब तो काम कर रहे है तुम रिटायर हो जाओंगे तो क्या ये सारे अंग, प्रत्यंग भी रिटायर हो जायेंगे क्या?
तत्काल बोला, नहीं-नहीं गुरुजी। इन्होंने काम करना बंद कर दिया तो मैं मर जाऊंगा। मैं तो चाहता हूं कि में दीर्घायु प्राप्त करूं और पूर्ण स्वस्थ रहूं।
मैंने कहा, मेरी बात समझों जब ईश्वर द्वारा दी गई तुम्हारी इस शरीर रचना में सारे अंग कार्य कर रहे है तो तुम रिटायर कैसे? ये रिटायर होना, नहीं होना एक मन का भाव है। रिटायर तो वह व्यक्ति है जो जीवन में पूर्णता निराश हो गया है। जिसके जीवन का कोई उद्देश्य नहीं है, लक्ष्य नहीं है।
अब मेरी गंभीर बात सुनों। सारे शास्त्र कहते है कि मनुष्य अकेला आता है और अकेला जाता है और यह ध्रुव सत्य भी है।
अब मेरा आप सभी से प्रश्न है कि यह ध्रुव सत्य है तो मनुष्य अपने पूरे जीवन कर्म क्यों करता रहता है? वह कर्म से तो कभी रिटायर नहीं होता।
इसका कारण यह है ईश्वर ने मनुष्य को सबसे बड़ी शक्ति ‘भावना शक्ति’ प्रदान की है। उसे भावों से युक्त बनाया है और यह भावना शक्ति सदैव विस्तार करना चाहती है। एक स्थान पर टिके नहीं रहना चाहती। यह शक्ति कभी नहीं कहती कि अब और नहीं चाहिये, अब बस हो गया।
भावना शक्ति के इस विस्तार प्रक्रिया में मनुष्य सदैव बैचेन होता रहता है क्योंकि बिना बैचेनी मनुष्य और अधिक क्रियाशील, ओर अधिक विस्तारित नहीं हो सकता है क्योंकि वह जानता है कि और अधिक क्रियाशीलता उसे फल की ओर ले जायेंगी।
ये बैचेन होना, बिना चैन होना नहीं है। ये बैचेन होना, भय नहीं है।
मनुष्य की बैचेनी उसकी इच्छा शक्ति और भावना शक्ति का ज्वलंतशील स्वरूप है। जितने अधिक हम क्रियाशील होंगे, उतनी ही तीव्रता से हम फल को प्राप्त करेंगे।
यह मत समझलेना कि जीवन में फल की प्राप्ति मृग मरिचिका है। फल तो अवश्य प्राप्त होते है, फल के द्वारा ही और अधिक कामनाओं का उदय होता है।
स्वयं के प्रयत्नों से कार्य सिद्ध होते है तो बैचेन मन को चैन मिलता है और यह भी सत्य है कि चैन से पुनः बैचेन की यात्रा, यही जीवन क्रम है और वास्तविक जीवन का मर्म है निरन्तर कर्म साधना।
अब सबसे आवश्यक क्या है? सबसे आवश्यक है हमारे भीतर शक्ति का प्रवाह निरन्तर होता रहे। एक बाती कितनी देर जलती है, जितनी देर दीपक में घी या तेल होता है। घी और तेल के प्रभाव से बाती जलती है।
मनुष्य जीवन में यह घी, तेल है कर्म, ज्ञान, प्रवीणता, नवीन रूप से कार्य करने की इच्छा और आकांशा।
जब इस भाव के साथ कर्म करते है तो फल प्राप्त होता है और हमारा रूखा-सुखा मन हराभरा हो जाता है।
अब मन को हर समय हराभरा रखना है तो शक्ति के प्रवाह को सदैव तीव्र रखना पड़ेगा।
होता क्या है? जब हमारे भीतर शक्ति का प्रवाह मंद हो जाता है तो विचार भी मंद हो जाते है, यह सोच बन जाती है कि कार्य अपने आप हो जाये और उसे फल मिल जाये।
विशेष बात क्या है फल को कर्मफल कहा गया है। प्रत्येक फल कर्म पर आधारित है और कर्म का आधार है शक्ति।
हम साधना, पूजा, मंत्रजप, वास्तव में कर्मफल को प्राप्त करने के लिये ही करते है।
शांति और प्रसन्नता भी कर्मफल का ही स्वरूप है। कर्म और फल का योग है।
हारा हुआ निराश व्यक्ति कभी संतोषी, शांतिवान नहीं हो सकता है। बैचेन होना अच्छी बात है लेकिन निराश होना हार का लक्षण है।
यह गुरु वचन गांठ बांध लो कि जीवन में शांति का आधार है कर्म। अपने विवेक और बुद्धि से यह निर्णय करो कि कहां रुकना है, कहां विश्राम करना है और कहां पूरी गति से चलना है।
यही है दुर्गा का वास्तविक स्वरूप, लक्ष्मी का वास्तविक स्वरूप।
इसलिये मुझे कभी मत कहना कि गुरुजी मैं रिटायर हो गया हूं। बस अब कर्म की इच्छा नहीं है, आप कर्मयौद्धा है और जीवन में बहुत सारे श्रेष्ठ कर्म किये है। उन कर्मों का फल भी मिला है और आगे बहुत सारे कर्म करने है। रुकना नहीं है। रुक गये, ठहर गये तो मन एकाकी हो जायेगा। मन तो सदैव चंचल ही रहना चाहिये और इसमें शक्ति का प्रवाह निरन्तर करते रहिए। ईश्वर ने खुले हाथों से शारीरिक बल, मानसिक बल प्रदान किया है उसे चैतन्य रखने का मार्ग है – शक्ति का प्रवाह।
हे आद्या शक्ति! आप हमारे जीवन में हमें निरन्तर गतिशील रखें, हम उच्चता की ओर, श्रेष्ठता की ओर, आनन्द की ओर गतिशील रहेंगे। आप हमें कर्म करने की शक्ति प्रदान करते रहे। यही भाव नवार्ण मंत्र में भी आया है।
पुनः नवरात्रि पर्व और दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं…
-नन्द किशोर श्रीमाली
Coming soon…
Nand Kishore Shrimali