Dialogue with loved ones – March 2025

अपनों से अपनी बात…

मेरे प्रिय आत्मीय,

शुभाशीर्वाद,

    एक अति महत्वपूर्ण प्रश्न आज आपसे कर रहा हूं, इस प्रश्न पर विचार करना, मंथन करना कि वास्तव में हमारा जीवन क्या है?

    हर कोई अपने जीवन में सुख-शांति, आनन्द और अपने लक्ष्य प्राप्त करना चाहता है। इस लक्ष्य प्राप्ति के लिये वह निरन्तर प्रयत्नशील रहता है, पर हर समय उसके मन में एक भाव रहता है कि मेरा जीवन सुरक्षित हो, मेरे जीवन में निश्चितता हो, मेरे जीवन में मेरी इच्छानुसार ही कार्य होते रहे। सब कोई अपने जीवन में पूर्ण सुरक्षा चाहता है और जीवन को सुरक्षित बनाने के लिये प्रयत्नशील भी रहता है।

    तो यह बात निश्चित हो गई कि जीवन का हर पल, हर क्षण महत्वपूर्ण है। किसी दूसरे क्षण से न तो ज्यादा है न ही कम है। भूत-भविष्य एवं वर्तमान में केवल वर्तमान ही हमारे पास रहता है। वर्तमान पल के हाथ से निकल जाने के पश्चात्‌‍ वह अतीत का क्षण बन जाता है और अभी के बाद का जो क्षण है वह आगत है हमारी पहुंच से बाहर है। इसका सीदा अर्थ हुआ जो आगत का क्षण है वह अनिश्चित है। उसमें क्या क्रिया होगी, क्या स्थिति बनेगी वह किसी को भी मालूम नहीं।

    रामायण में महर्षि वशिष्ट स्वयं कहते है –

सुनहु भरत भावी प्रबल, बिलखि कहेहुं मुनिनाथ।
हानि-लाभ, जीवन-मरण, यश-अपयश विधि हांथ॥

    भावी प्रबल है, अनिश्चित है हानि-लाभ, जीवन-मरण, यश-अपयश ये सब विधाता के हाथ है, अनिश्चतता ही जीवन का क्रम है।

    ज्ञानी वशिष्ट की इस बात में बहुत बड़ा सार है। इसीलिये जीवन को क्षणभंगुर और निरन्तर परिवर्तनशाली कहा गया है। प्रकृति भी निरन्तर परिवर्तनशील है।

    साधक मन को यह सोचना चाहिये कि सुरक्षा में यह आनन्द है या अनिश्चितता में आनन्द है। यदि सबकुछ समान गति से चलता रहे और आपको मालूम हो कि अब यह होगा, आगे यह होगा और उससे आगे यह होगा तो क्या आपको जीवन में आनन्द आयेगा? आपके जीवन का कर्म सिद्धान्त तो व्यर्थ हो जायेगा क्योंकि आपको मालूम है कि भविष्य के काल में यह छुपा है।

    यदि विधाता ने आपके जीवन का एक नक्शा बना दिया है और आप उस नक्शे पर चल रहे है तो इसका क्या अर्थ है? एक निश्चित तैयार दिशा निर्देश के साथ जीवन जीना। तब तो जीवन एक मशीन की तरह, रोबोट की तरह हो जायेगा, जिसमें एक प्रोग्राम सेट कर दिया है और आप उसी के अनुसार जीवन जी रहे है।

    अब जो आगत क्षण है, आने वाला क्षण है वह सबसे अधिक विचार देने वाला है। इसी विचार के अनुसार तो आप आगे बढ़ोंगे। तभी तो आप प्रयत्न करोगे, तभी तो आप भूतकाल को भूलोंगे।

    तो ध्रुव सत्य यह है कि असुरक्षा और अनिश्चिता में ही आनन्द है।

    असुरक्षा और अनिश्चिता हमें और अधिक कर्म करने की प्ररेणा देता है, हमें अपनी शक्तियों में वृद्धि करने का संदेश देता है। हम अपने शक्ति का समन्वय करते है और यह तब होगा जब जीवन में असुरक्षा और अनिश्चितता को भाव होगा अन्यथा जीवन केवल मशीनी और ज्यादा से ज्यादा पशुतुल्य हो जायेगा। एक खोह मिल गई, सुबह-शाम भोजन मिल गया, बस ऐसा ही जीवन हो जायेगा।

    पर जीवन तो प्रसन्नता के लिये है, संसार का सबसे बड़ा सुख प्रसन्नता ही है। जो प्रसन्न है वह सुखी है और जो सुखी है वह प्रसन्न अवश्य रहेगा। प्रसन्न मन ही आत्मा को देख सकता है, प्रसन्न मन ही परमात्मा का साक्षात्कार कर सकता है। जीवन के समस्त श्रेयों को प्राप्त कर सकता है। जीवन को हर प्रकार से सफल बनाने के लिये प्रसन्न रहना आवश्यक है।

    यदि आपका जीवन बिल्कुल सुरक्षित है तो आप जीवन के प्रति उदासीन रहोंगे। न मन में कोई आवेश आयेगा, न कोई शौर्य का भाव आयेगा, जोश भी नहीं होगा। बस निश्चित रूप से जीवन में घिसट रहे है।

    कभी आपने अपने आपसे यह सवाल किया है कि मैंने अपने जीवन में क्या किया? आपने अपने जीवन में जो कुछ भी किया है, वह तब कर पाये हो जब आप निश्चितता और असुरक्षित जीवन की गुफा में घुस गये हो और आपको उस गुफा से आगे प्रकाश की ओर जाना है। हर आने वाला क्षण अनिश्चित है तो फिर अनिश्चितता से क्यों घबराते है, क्यों चाहिये सुरक्षित जीवन? जीवन के चार आधार – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष निश्चित जीवन में स्थापित नहीं हो सकते है। इसे पाने के लिये अनिश्चित और असुरक्षा के चक्र में प्रवेश करना ही पड़ता है।

    सब जानते है जीवन क्षण भंगुर है। फिर भी हम योजनाएं तो बनाते है, लक्ष्य निर्धारित करते है और उसकी प्राप्ति के लिये कर्म करते है।

    ईश्वर ने जीवन अनिश्चित बनाया है, यही जीवन जीने का सही तरीका है। जिस दिन आपके मन में यह विचार आयेगा कि जो ‘होगा सो देखा जायेगा’ और जो घटित हो रहा है, उसे घटित होने दूंगा तो आप हल्के हो जाते हो। बार-बार जीवन के तोड़ने,, मोड़ने का प्रयास करते-करते, भीतर ही भीतर टूट जाते हो। आप ईश्वर की अद्वितीय रचना हो तो फिर हर समय अपने जीवन को एक ढांचे में, एक अनुशासन में, एक व्यवस्था में बांधकर क्यों रखते हो? हर स्थान पर व्यवस्था के बांध अपने जीवन में मत बनाओं। जितनी व्यवस्था करोगे, उतने ही बंधन बढ़ते जायेंगे।

    जीवन मिला है, सहज भाव से जीने के लिये और हम कोशिश करते है एक निश्चित दायरे में जीवन जीने की। उससे जीवन प्रवाह असहज हो जायेगा। सारी ऊर्जा भी उस प्रयास में क्षीण हो जायगी, समाप्त हो जायेगी।

    आप जीवन पर सवार रहना चाहते है या जीवन को अपने ऊपर आरोपित करना चाहते है। यदि जीवन को अपने ऊपर आरोपित कर दिया तो मशीन बन जाओंगे और यदि आप जीवन पर सवार रहे तो जीवन को सहज गति से चलने दोंगे। सहज भाव ही आनन्द का भाव है। बार-बार नई-नई रूप रेखाएं बनाते हो। लम्बे-लम्बे प्लान बनाते हो और सोचते हो कि मेरा यह प्लान कम्पलिट हो जायेगा तो आनन्द को प्राप्त करूंगा। अरे भाई! तब तक तो जीवन बीत जायेगा। जो चल रहा है, अपने प्रयत्नों से उसे ओर अधिक ‘सत्यंम्‌‍ शिवम्‌‍, सुन्दर बनाना है।बहुत रूप रेखाएं बना ली, जब तक सबकुछ अनिश्चत है तब ही जीवन का आनन्द है, कर्म की प्रेरणा है, शौर्य ओर धैर्य की परीक्षा है। कर्म, शौर्य और धैर्य के साथ सहज भाव से जीवन में गतिशील रहो, तब तो नित्यप्रति आनन्द आयेगा और मैं आपको नित्य प्रति का आनन्द प्रदान करना चाहता हूं। जिससे नित्यप्रति आप अपने भीतर सत्‌‍चित्‌‍ आनन्द स्वरूप परमात्म से वार्तालाप कर सको।

-नन्द किशोर श्रीमाली 

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