Dialogue with loved ones – January 2025
अपनों से अपनी बात…
मेरे प्रिय आत्मीय,
शुभाशीर्वाद,
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं, प्रत्येक नववर्ष और अधिक नूतन हो, नवीनता को हृदय से लगाएं और प्रत्येक रक्त बिन्दु में नवीनता का संचार अनुभव करें।
सबसे बड़ी बात आपके अनुभव की ही है। आप अपने मन को जिस प्रकार से अनुभव कराना चाहते है, उसी दिशा में मन मुड़ जाता है।
नित्य शाम को मैं भ्रमण करने जाता हूं और भ्रमण करने के लिये सबसे अच्छी जगह तो कोई बाग-बगीचा ही होता है। बच्चे खेल रहे होते है, कोई व्यायाम कर रहा होता है, कोई योग और भ्रमण।
वहां बगीचे के एक कोने में कुछ बूढ़े लोग घेरा बनाकर खड़े होते है और दोनों हाथों को जोर-जोर से हिलाते हुए जोर-जोर से हंसते है। अपना पूरा प्रयास करते है और दो-तीन मिनट करने के पश्चात् कुछ देर विश्राम कर, फिर हंसने की प्रक्रिया शुरु करते है। पांच-सात बार शायद यह प्रक्रिया करते है।
एक दिन मैंने एक व्यक्ति से पूछ लिया कि आप ये क्या कर रहे हो? बोलें, यह ‘लॉफ्टर थैरेपी’ है, इसको करने के पश्चात् मन एकदम हल्का हो जाता है। मैंने कहा ये तो बहुत अच्छी बात है। मनुष्य जीवन में सबसे बड़ी बात मन को हल्का करना ही तो है।
मैंने उत्सुकता पूर्वक पूछा कि 15-20 मिनट लाफ्टर थैरेपी करने के बाद आप जब घर के लिये रवाना होते हो तो गंभीर क्यों हो जाते हो? 5 मिनट पहले जोर-जोर हंसे थे और 5 मिनट बाद वापिस गंभीर हो गये। यदि हंसने को ही अपना स्वभाव बनाना है तो 10 मिनट प्रयास से तो नहीं होगा।
अब आपसे पूछ रहा हूं, आप अपने मन से अपने आप बताओं कि आप वास्तव में कब खुलकर हंसे थे या कब खुलकर रोये थे।
देखों भाई! हंसना, रोना, मुस्कुराना हम सब की एक स्वभाविक प्रवृति है। इस प्रवृति को ईश्वर ने हमें खुले हाथों से प्रदान किया है।
हमारे घर में जब कोई छोटा बच्चा रोता है तो हम उसे तरह-तरह की शक्लें बनाकर, खिलौना हिलाकर, खिलौना बजाकर उसे हंसाने का प्रयास करते है।
अब आप सोचों कि आप एक बच्चें हो, आप किसी दुःख और पीड़ा के कारण भीतर ही भीतर रो रहे हो। आपको हंसाने के लिये कौन आयेगा? कोई दूसरा तो आयेगा नहीं, दस मिनट की लॉफ्टर थैरेपी से आप पूरे दिन हंसना मुस्कुराना नहीं कर सकते हो क्योंकि आप स्वाभाविक रूप से अपने अन्तर्मन से हंस नहीं रहे थे, मुस्कुरा नहीं रहे थे। जबरदस्ती का प्रयास कर रहे थे। यह प्रयास उसी तरह का था कि गले में कोई चीज अटक जाये और आप जोर-जारे से खांसी कर उसे बाहर निकालने का प्रयास कर रहे हो।
आप हंसते हो, मुस्कुराते हो पर कब? किसी की निन्दा कर, चुगली कर, दूसरों पर छींटा कसी कर, अपनों से नीचे वाले व्यक्तियों पर अकारण क्रोध कर आप खुश होते हो। जैसे आपने बहुत बड़ा किला जीत लिया।
क्या ऐसा नहीं हो सकता है कि आप खुद ही खुद अपने ऊपर ही मजाक कर खुश हो, प्रसन्न हो, जो खुद पर मजाक कर प्रसन्न होता है मैं कहता हूं कि वह किसी भी स्थिति में प्रसन्न रह सकता है।
आपने अपने मन को एक घेरे में बांध दिया है, उस पर किसी दूसरे का प्रहार आपको सहन होता नहीं है और खुद प्रहार कर मन को खुला करना नहीं चाहते।
यह सब घुट-घुट कर जीने की आदत आपने क्यों डाल दी है। अरे भाई! सबकी जिन्दगी में दुःख है, दर्द है, पीड़ा है, तनाव है और इन सब बातों से भीतर ही भीतर गुबार भर गया है।
अब इस गुबार को बाहर तो निकालना ही है या तो क्रोध करके निकाल लो या स्वयं मन से हंस कर निकाल लो। मेरे विचार से हंस कर निकालना ही आपके स्वास्थ्य के लिये, मन के लिये अच्छा है।
यह मन को जो गुबार है, यह विष है और विष को निकालना ही पड़ता है, नहीं तो विष पूरे मन में फैल जायेगा और तो और शरीर को भी बीमारी से ग्रसित कर देगा।
वेद वचन है – मनुष्य अमृत का पुत्र है, अमृत ही उसका स्वरूप है, अमृत से ही उसका जन्म हुआ है। अमृत से ही उसकी स्थिति, गति श्री और वृद्धि है। अमृत-स्वरूप में स्थिति प्राप्त करने में ही उसके जीवन की सार्थकता है तथा अमृत स्वरूप में प्रतिष्ठा प्राप्त करने का उसको जन्मसिद्ध अधिकार है।
मनुष्य अमृत पुत्र है और अमृत सदैव प्रसन्नता देने वाला ही होता है। मनुष्य जीवन की सार्थकता यही है कि वह सदैव प्रसन्न रहें।
देखो भाई, कोई भी विष को लम्बे समय तक नहीं रखा जा सकता है। अब निकालना है तो उसकी अभिव्यक्ति क्या है? उसकी अभिव्यक्ति क्रोध, अवसाद, चिन्ता, घुटन नहीं है। ये सब तो भीतर के विष को और अधिक बलवान करने वाले उसके साथी है।
आप स्वयं अच्छी तरह से जानते है कि आप मन्दिर क्यों जाते है? वहां जाकर प्रभु के सामने अपने मन का गुबार निकालकर प्रसन्न हो जाते हो और प्रभु की मूरत देखकर आपके चेहरे पर स्वभाविक मुस्कान और नेत्रों में आनन्द अश्रु अपने आप आ जाते है। गुरु के पास भी इसीलिये आते हो। शिव-पार्वती की नृत्य मुद्रा देखकर प्रसन्न होते हो, राधाकृष्ण की रासलीला देखकर प्रसन्न होते हो। क्योंकि वहां आपके मन का तार भगवान से जुड़ रहा है और भगवान है अमृत के प्रदाता, आनन्द के प्रदाता। जब आनन्द आयेगा, तो मन से अवसाद, घुटन, बाहर चले जायेंगे।
आप सब लोग सिनेमा देखते हो, टीवी देखते हो, आपको अच्छे से मालूम है कि यह दो घण्टे का सिनेमा है फिर भी आप प्रसन्न हो जाते हो। हमारी जिन्दगी भी इसी तहर का एक बड़ा सिनेमा है और सब तरह की घटनाएं हमारे जीवन में घटित होगी।
होंगी तो होंगी, हम हमारा ईश्वर द्वारा प्रदत्त स्वभाविक गुण हंसना, मुस्कुराना कैसे छोड़ सकते है?
जिसने हंसना, मुस्कुराना और स्वयं में प्रसन्न रहना सीख लिया तो यह निश्चित है ईश्वर सदैव उसी के पास रहते है, उसके हृदय में वास करते है क्योंकि उस समय आप अपने मन्दिर में अर्थात् मन के अन्दर जाकर हंसते, मुस्कुराते, प्रसन्न होते है।
दीर्घायु, आरोग्वान और तो और लक्ष्मीवान होने का सूत्र एक ही सूत्र है – अपने जीवन के सब कर्म हंसते, मुस्कुराते हुए करते रहिये। किसी भी कर्म को बोझ समझ कर कर्म मत कीजिये। करना तो आपको है और आप बहुत सुन्दर तरीके से कर रहे है।
मेरे प्रिय शिष्य हंसों, मुस्कुराओं, प्रसन्न रहो…
-नन्द किशोर श्रीमाली
Coming soon…
Nand Kishore Shrimali