Dialogue with loved ones – December 2024

अपनों से अपनी बात…

मेरे प्रिय आत्मीय,

शुभाशीर्वाद,

    बचपन में सुनी एक कहानी याद आती है कि मोर बहुत सुन्दर प्राणी होता है और अपने पंखों को फैलाकर मोरनी को आकर्षित करता है, बहुत नयनाभिराम नृत्य करता है और यह मोर पंख भगवान कृष्ण की कंलगी पर शोभा पाता है और कहा जाता है कि मोर इतना सुन्दर होते हुए भी वसन्त ॠतु, बरसात ॠतु में नृत्य करते समय उसकी आंखों से अश्रुकण निरन्तर बहते रहते है।

    यह बात पूर्णतय सच है। मोर बहुत सुन्दर पक्षी होता है, बहुत अच्छा पंख फैलाता है, आंसु भी बहाता है और उन क्षणों में ही मोरनी उससे आकर्षित होकर उसके निकट आती है और दोनों में सहयोग होता है।

    हर कवि ने, हर लेखक ने अपनी-अपनी व्याख्या की। मुझे एक ही व्याख्या अच्छी लगती है कि मोर का सुन्दर नृत्य देखकर दुनिया तो प्रसन्न होती ही है पर मोर अपने स्वयं के पैर जिन पर इतना वजन उठाकर कर नृत्य करता है उन्हें टुकर टुकर देखता हुआ रोता है और शायद प्रार्थना करता है कि हे भगवान आपने मुझे सतरंगी देह प्रदान की, सब गुण प्रदान किये वर्षा आने की सूचना मैं जगत्‌‍ को देता हूं और आपके सिर पर भी शोभा पाता हूं। बस! मेरे पैर इतने असुन्दर क्यों?

    हम मनुष्य को भी मोर की भांति भगवान हमें दस गुण प्रदान करता है। यदि एकाध गुण की कमी रह गई तो हम क्या करते है अपने सारे श्रेष्ठ गुणों के भूल जाते है और अपने अवगुणों की ओर ही ध्यान देने लगते है और रुदन भी करते है। मोर के रुदन में तो मोरनी आकर्षित हो जाती है लेकिन मनुष्य के रुदन में कोई आकर्षित नहीं होता। जो आकर्षित है वह भी विकर्षित हो जाता है।

    तो सबसे पहले जीवन में क्या आवश्यक है? यह मानना कि आपका व्यक्तित्व आकर्षित है, आपमें सम्मोहन की कला है, आपमें आकर्षण और वशीकरण की भी कला है। बस एक अवगुण छोटा सा आ गया है कि आपमें आत्मविश्वास की कमी है। अब ये थोड़ी सी आत्मविश्वास की कमी आपके सम्मोहन, वशीकरण, आकर्षण सब गुणों को ढक देती है।

    ईश्वर वास्तव में भी ईश्वर ही है। उसके जैसा महान्‌‍ कलाकर, जनक कोई हो ही नहीं सकता है। उसने आपके चेहरे के 6 x 6 इंच रचना में विविधता ला दी है कि प्रत्येक प्राणी अलग दिखता है और इस चेहरे पर क्या है? – ललाट है, आंखे है, मुख है, कर्ण है, नासिका है। और इसीलिये ॠषियों ने ईश्वर की रचना को समझते हुए कहा –

ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः। भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ।
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवाग्ँसस्तनूभिः। व्यशेम देवहितं यदायुः ।

    हम अपने कर्णों (कानों) से शुभ वचन सुनें, हम अपनी आँखों से शुभ ही देखें। अपने रूप, तन, मन और वचनों द्वारा प्रार्थना करते हुए, ईश्वर द्वारा प्राप्त हुई आयु (जीवन) पूर्णता के साथ, आनन्द के साथ व्यतीत हो। जैसे भाव और विचार हम अपने भीतर डालेंगे वे ही शुभविचार, शुभ भाव हमारे भीतर सौ गुना वृद्धि करेंगे।

स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः। स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः। स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः।
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

    महती कीर्ति वाले ऐश्वर्यशाली इन्द्र हमारा कल्याण करें, जिसको संसार का विज्ञान और जिसका सब पदार्थों में स्मरण है, सबके पोषणकर्ता वे पूषा (सूर्य) हमारा कल्याण करें। जिनकी चक्रधारा के समान गति को कोई रोक नहीं सकता, वे गरुड़देव हमारा कल्याण करें। वेदवाणी के स्वामी बृहस्पति हमारा कल्याण करें।

    श्रेष्ठता प्राप्त करने का और कोई सरल सूत्र नहीं है। क्या हम अपनी छोटी सी कमियों के कारण से निरन्तर दुःखी होते रहे अथवा अपने गुणों के कारण निरन्तर प्रसन्न होते रहे? हम अपने आंख, नाक, कान, मुख द्वारा अपने गुणों का विस्तार करें जिससे हमारा व्यक्तित्व सम्मोहित, वशीकरण युक्त हो सके।

    नववर्ष का शुभारम्भ हो रहा है, आज आपको यह विचार करना है कि आप जीवन में केवल धनवान बनना चाहते है अथवा श्रेष्ठ व्यक्तित्ववान बनना चाहते है। धन की दौड़ में दौड़ते-दौड़ते कहीं ऐसा न हो कि ईश्वर ने जो आपको स्वभाविक गुण प्रदान किये है उनका ही विकास न कर सको। केवल लक्ष्मी के दास होकर रह जाओं। आपको बनना है श्रेष्ठ व्यक्ति और व्यक्तित्व का आधार है आपका व्यवहार, आपके विचार, आपकी स्थिर भावनाएं, आपकी आत्म अवधारणा और आपका भावनात्मक स्वरूप।

    एक बात अच्छी तरह से जान लो, आपका व्यक्तित्व ही आपको दूसरे से अलग बनाता है। आपका व्यक्तित्व आपके जीवन के प्रति समायोजन को दर्शाता है।

    श्रेष्ठ व्यक्तित्व की चार विशेषताएं है – 1. हंसमुख होना, 2. आत्मविश्वासी होना, 3. उत्साहित होना, 4. अपने सिद्धान्तों अडिग रहना।

    यदि आपके जीवन में ये चार गुण है तो धन सम्पत्ति तो अपने आप ही आ जायेगी, सबसे बड़ी बात यह होगी कि आपको अपने आप पर गर्व अनुभव होगा। आपका यश, आपकी कांति चारों ओर फैलेगी।

    जीवन की पूर्णता क्या है? जीवन की पूर्णता है – यश प्राप्ति और इसीलिये शक्ति प्रार्थना में भी हम बार-बार यही कहते है – रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।

    क्या समझे आप इस बात से? क्या अर्थ आपने निकाला? आपको केवल धनवान बनना है या सम्मोहन युक्त व्यक्तित्व बनना है।

    आपकी क्या कामना है? लोग आपके धन को देखकर आपसे प्रेम या ईर्ष्या करें या आपके मनोहारी व्यक्तित्व, आपके बातचीत करने का तरीका, आपके देखने-सुनने-समझने की कला से प्रभावित होकर आपके आकर्षण में युक्त हो जाये और मन ही मन कामना करे कि काश मेरा भी ऐसा श्रेष्ठ व्यक्तित्व हो।

    जीवन के चार पक्ष – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष में समायोजन हो। वे आपके व्यक्तित्व का आधार बनें। गुरु आपके अवगुणों का शमन कर आपके गुणों को उभार की क्रिया करते है। आपमें कर्त्तापन का भाव देते है, जिससे आपमें सबसे बड़ा गुण – आत्म गौरव आ सके।

    इस जीवन में गौरव की प्राप्ति और गौरव यात्रा ही जीवन का श्रेष्ठतम्‌‍ नियम है। आपके गौरव का चहुंमुखी विकास हो, गुरु तुम्हें सदैव जीवन्त, खुशनुमा, हंसता, खेलता, बाल सुलभ व्यक्तितत्व बनाना चाहता हूं। सदैव प्रसन्न रहो। Happy New Year…

-नन्द किशोर श्रीमाली 

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