Yudhrat Ucchist Ganapati Sadhana

गणेश चतुर्थी – 13 सितम्बर 2018
अनन्त चतुर्दशी – 23 सितम्बर 2018

 

तंत्र के साक्षात् स्वरूप
एकदन्त गणपति

युद्धरत उच्छिष्ट गणपति साधना

जहां विरुद्ध तंत्र सम्पूर्ण रुप से समाप्त हो जाता है
गणपति को सामान्य जनमानस में प्रथम देव, शान्त देव, लम्बोदर, गणकर्ण, प्रसन्न देव माना जाता है। पर यही गणपति अपने प्रबल रुप विकट विघ्नहर्ता धूम्रकेतु और गणाध्यक्ष हैं जो साधक के जीवन की हर बाधा विघ्न का हरण कर लेते है। खड़े होकर उच्छिष्ट स्वरूप में वे अपने अस्त्र-शस्त्र सहित युद्ध में प्रवृत्त हो जाते है और उनके समक्ष उग्र परशुराम भी नमन हो जाते हैं।

 

गणपति सभी देवताओं में प्रथम पूज्य हैं। कोई भी शुभ कार्य बिना गणपति का स्मरण और आह्वान किए आरम्भ नहीं किया जाता। शिव और गौरी के पुत्र का स्वरूप अन्य देवी-देवताओं से भिन्न है। गणपति गौरी पुत्र हैं, विनायक हैं क्योंकि इनका जन्म गौरी के शिव से संयुक्त हुए बिना हुआ है। शिव महायोगी हैं, तटस्थ हैं, पर शक्ति को तो संसार के नियमों का भान है। सन्तान के द्वारा जीवन की नश्‍वरता के पार जाया जा सकता है, क्योंकि सन्तान आपका अंश है और आपके बाद भी जीवित है। शिव की उदासीनता से ऊब कर गौरी अपने उबटन से एक बालक का निर्माण करती हैं और उसमें प्राण फूंक देती हैं। उस बालक को द्वारपाल के रूप में स्थापित करके गौरी स्नान करने लगती हैं और उस समय शिव आ जाते हैं।

 

शिव के शक्ति से मेल में विघ्नहर्ता विघ्न बनकर खड़े हो जाते हैं, क्योंकि माता का आदेश है कि किसी को अन्दर आने नहीं देना है। (वि+नायक) बिना नायक (शिव) के उत्पन्न हुए विनायक से शिव अनजान थे और शक्ति से उनकी भेंट में कोई विघ्न आ जाए, यह उन्हें स्वीकार नहीं है। शिव गणपति का सिर धड़ से अलग कर देते हैं। पुत्र की यह दशा देख शक्ति क्रोध से भर जाती हैं और शिव के गण उत्तर दिशा की ओर भागते हैं, जहां उन्हें हाथी दिखता है। हाथी का सिर गौरी पुत्र के सिर पर स्थापित किया जाता है और वह बालक शिव के विविध गणों का प्रधान, उनका मुखिया गणपति है।

 

शिव के गणों का चित्रण गोस्वामी तुलसी दास ने इन शब्दों में किया है-

 

कोउ मुख हीन बिपुल मुख काहू।
बिनु पद कर कोउ बहु पद बाहू॥
बिपुल नयन कोउ नयन बिहीना।
हष्टपुष्ट कोउ अति तन हीना॥
शिव के गणों से सजी विचित्र बारात को देखकर ही देवी पार्वती की मां घबरा गईं थीं, पर इन गणों के नायक गणनायक, गणपति, मंगलमूर्त्ति गणेश के मुख पर एक मोहक स्मित है। उनका उदर विशाल है और कई अर्थों में शक्ति पुत्र की सम्पन्नता के परिचायक हैं।

 

दीपावली पर शक्ति पुत्र गणेश, धन की देवी, विष्णु पत्नी लक्ष्मी के साथ पूजे जाते हैं, क्योंकि अर्थ कार्यों की पूर्णता से जुड़ा हुआ है और कोई भी उद्योग, कोई भी कार्य निर्विघ्न तब तक पूर्ण नहीं होता है, जब तक उसे गणपति का आशीर्वाद प्राप्त नहीं होता है।

 

ॐ नमो विघ्नराजाय

 

विघ्न, बाधाएं, रोक-टोक, दुविधा हर शुभ कार्य को दूषित कर देते हैं और उनके सम्पन्न होने में विलम्ब डाल देते हैं। गणेशजी मूषक पर विराजमान हैं, वह मूषक जो साधारणतया घरों में, खेतों में छोटे-मोटे विघ्न उत्पन्न करते रहते हैं। गणेशजी की मूषक की सवारी का अर्थ है कि विघ्नहर्ता का आह्वान हमारी चेतना को झकझोरता है और उसके उपरान्त ही हम सही और गलत निर्णय के मध्य अन्तर कर पाते हैं।

 

मूलतः विघ्न, कार्यों में हमारे प्रमादवश लिए गए गलत निर्णयों का परिणाम है। कई बार विघ्न अहंकार जनित भी होते हैं। यहां भी गूढ़ बात छिपी है। गणपति का सिर शिव ने अलग कर दिया था, क्योंकि माता की आज्ञा को मानने की जिद में उन्होंने शिव को रोक दिया था। इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि शिव उनके पिता हैं। गणपति की आराधना हमें नम्रता की ओर मोड़ती है और अहंकार जनित विघ्नों से दूर करती है।

 

क्यों गणपति प्रथम पूज्य हैं?

 

प्रथम पूज्य होने के लिए सभी देवी-देवताओं को संसार की परिक्रमा तीन बार करनी थी और जो सबसे पहले परिक्रमा सम्पन्न करता, वही प्रथम पूज्य बनता। गणपति का वाहन मूषक था और उस पर सवार होकर तो प्रथम आने में आशंका थी। गणपति ने माता-पिता की परिक्रमा कैलाश पर्वत पर तीन बार सम्पन्न की और प्रथम पूज्य बन गए, क्योंकि माता-पिता ही सन्तान का संसार होते हैं।

 

पर, इन मान्यताओं के अतिरिक्त अगर आप ध्यान दें तो पाएंगे कि गणपति का स्वरूप स्वयं प्रणव या (ॐ) का साकार रूप है। गणपति का मस्तक ‘ॐ’ का ऊपरी भाग है, नीचे का भाग ‘उदर’, ‘चंद्रबिन्दू’ लड्डू और मात्रा सूंड है।

 

गणपति अजन्मा हैं, अयोनिजा हैं (गौरी पुत्र हैं), पिता शिव की तरह निराकार हैं और उस चेतना के प्रतीक हैं जो सर्वव्यापी है, सभी प्राणियों में हैं और उन सभी प्राणियों के समूह (गण) के जो स्वामी (पति) हैं, वे गणपति प्रथम पूज्य कैसे नहीं होंगे?

 

एकदन्त, दयावन्त, चारभुजाधारी

 

गणपति का एकदन्त खण्डित है। विविध कथाएं हैं इस सन्दर्भ में एक ओर मान्यता है कि गणपति का महर्षि परशुराम से युद्ध हुआ था। परशुराम अपने आराध्य शिव से भेंट करने कैलाश गए थे, पर गणपति ने उन्हें जाने से रोका। अपने आराध्य से भेंट में विघ्नहर्ता द्वारा उत्पन्न किये गये विघ्न ने तत्काल महर्षि को क्रोधित कर दिया और उन दोनों में युद्ध हुआ। उस युद्ध में गणपति जीत रहे थे, पर जब परशुराम ने परशु फेंका तब गणपति ने उस वार को अपने दांत पर ले लिया क्योंकि परशु शिव-प्रदत्त था।

 

गणपति के खंडित दन्त से महाभारत की कथा लिखी गई है। पर, अगर आप थोड़ी विवेचना करें तो पाएंगें कि परशुराम को अपने शिव-प्रदत्त परशु की प्रत्येक परिस्थिति  में पूर्ण सफलता पर श्रद्धा थी और इस कारण गणपति ने जानते-बूझते, उस श्रद्धा को कायम रखने के लिए उस वार को अपने दंत पर ले लिया।

 

कुछ ऐसा ही हमारे जीवन में होता है और बार-बार होता है। कई बार जीवन युद्ध में बुद्धि हावी हो जाती है और श्रद्धा डगमगाने लगती है। पर, ऐसे समय में बुद्धि पर श्रद्धा का साम्राज्य स्थापित करना ही गणपति पूजन का मर्म है। श्रद्धा तर्क-वितर्क के परे है, तोल-मोल से दूर है, उसे तो बस अपने गुरु पर आस्था है कि वे उसके जीवन के विघ्न हर लेंगे। बुद्धि जरूरी है, बहुत जरूरी पर, श्रद्धा जीवन का आधार है। गणपति की चार भुजाएं चारों दिशाओं में उनकी सर्वव्यापकता की सूचक हैं। गणपति दयावान हैं, क्योंकि सभी प्राणियों की चेतना के स्वामी होने के कारण उन्हें प्राणी मात्र की दुर्बलता का ज्ञान है और वे उसके प्रति संवेदनशील हैं। उन्हें मालूम है कि व्यक्ति गलतियों का पुतला है और उसके जीवन में मोह व्याप्त है। ये मोह उसे मुग्ध करता है और विघ्नहर्ता उसे विघ्नों से दूर करके उसके प्रयासों को सम्पूर्ण करते हैं, क्योंकि बिना उद्योग, बिना परिश्रम के कार्य सिद्ध नहीं होते – उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः। मन के रथ पर सवार कामनाओं की पूर्ति हेतु शुरू किए गए कार्य निर्विघ्न गणपति की आशीष से सम्पन्न होते हैं।

 

गणपति और तंत्र

 

गणपति मूलाधार चक्र के स्वामी हैं। मूल अर्थात् प्राणियों के उत्पत्ति का कारण एवं उस चक्र के स्वामी गणपति जीवन में जो भी मूल्यवान है – सम्बन्ध, सफलता उसे स्थायित्व प्रदान करते हैं। जीवन अभिशाप बन जाता है, जब हंसती-खेलती जिन्दगी में निराशा घर कर जाती है। यह निराशा दुःख जनित हो सकती है, तंत्र बाधा के कारण हो सकती है या फिर किसी की कुदृष्टि के कारण हो सकती है। कारण चाहे कुछ भी हो, पर निवारण गणपति के पास है।

 

गणपति चेतना हैं। प्राणियों में जो ऊर्जा निहित है वह गणपति है और उनकी पैनी दृष्टि प्रत्येक अवसर को भांपती है, परखती है, क्योंकि उनके बड़े कर्ण ग्रहण करने के लिए उत्सुक हैं।

 

किसी घर या किसी व्यक्ति के ऊपर जब भी तंत्र बाधा या प्रयोग होता है, तो उस व्यक्ति के जीवन में सर्वनाशकीय दशा सामने आती है। उससे प्रभावित व्यक्ति, चाहे वह कभी लखपति या करोड़पति रहा हो, दीन-हीन और दरिद्र बन जाता है। घर में तनाव, कलह, विवाद और अशान्ति का वातावरण बना रहता है। मान-प्रतिष्ठा, यश धूल में मिल जाता है। आज के युग में आपके स्वस्थ जीवन में ईर्ष्या करने वाले शत्रु, मित्र या आस-पास के रहने वाले लोग कभी भी थोड़े से मन-मुटाव को कारण बना कर आप पर तंत्र प्रयोग कर सकते हैं। ये तांत्रिक प्रयोग आपके जीवन को तहस-नहस कर देने के लिए पर्याप्त होते हैं और आपका हंसता-खेलता जीवन बरबाद होकर रह जाता है।

 

इसके निवारण के लिए आप उच्छिष्ट गणपति साधना का प्रयोग करें। इस प्रयोग के माध्यम से आप तंत्र-बाधा से बच सकते हैं।

 

आप प्रातः स्नान आदि नित्य क्रिया के बाद अपने पूजा स्थान में पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठें। धूप और दीप जला लें। अपने सामने पंचपात्र में जल भी ले लें। इन सभी सामग्रियों को आप चौकी पर रखें जिस पर लाल वस्त्र बिछा हुआ हो।

 

किसी भी साधना-पूजन की पूर्णता गुरुदेव निखिल के आशीर्वाद के बिना संभव ही नहीं है। अतः सर्वप्रथम गुरुदेव निखिल का विधिवत् पूजन अवश्य ही सम्पन्न कर लेना चाहिए। आप अपने दैनिक पूजन में गुरुदेव के जिस चित्र, पादुका, यंत्र अथवा विग्रह का पूजन करते हैं उसे स्वच्छ कर अपने सामने स्थापित कर लें। दोनों हाथ जोड़कर गुरुदेव निखिल का ध्यान करें –

 

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्‍वरः।
गुरुः साक्षात् पर ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥
निखिल ध्यान के पश्‍चात् गुरु चित्र/विग्रह/यंत्र/पादुका को जल से स्नान करावें –

 

ॐ निखिलम् स्नानम् समर्पयामि॥

 

इसके पश्‍चात् स्वच्छ वस्त्र से पौंछ लें निम्न मंत्रों का उच्चारण करते हुए कुंकुम, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, धूप-दीप से पंचोपचार पूजन करें –

 

ॐ निखिलम् कुंकुमं समर्पयामि।
ॐ निखिलम् अक्षतान् समर्पयामि।
ॐ निखिलम् पुष्पम् समर्पयामि।
ॐ निखिलम् नैवेद्यम् निवेदयामि।
ॐ निखिलम् धूपम् आघ्रापयामि, दीपम् दर्शयामि। (धूप, दीप दिखायें)
अब तीन आचमनी जल गुरु चित्र/विग्रह/यंत्र/पादुका पर घुमाकर छोड़ दें।

 

इसके पश्‍चात् गुरु माला से गुरु मंत्र की एक माला मंत्र जप करें –

 

ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः॥

 

गुरु पूजन के पश्‍चात् मूल साधना-पूजन निम्न प्रकार सम्पन्न करें –

 

गणपति पूजन

 

फिर गुरु चित्र के सामने किसी प्लेट पर कुंकुम या केसर से स्वस्तिक चिन्ह बनाकर ‘उच्छिष्ट गणपति यंत्र’ को स्थापित करें।

 

दोनों हाथ जोड़कर प्रार्थना करें –

 

ॐ गजाननं भूत गणाधिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारु भक्षणं।
उमासुतं शोकविनाशकारकंनमामि विघ्नेश्‍वर पाद पंङ्कजम॥
फिर निम्न मंत्रों का उच्चारण करते हुए पूजन करें –

 

ॐ गं मंगलमूर्तये नमः स्नानं समर्पयामि।
ॐ गं एकदन्ताय नमः तिलकं समर्पयामि।
ॐ गं सुमुखाय नमः अक्षतान् समर्पयामि।
ॐ गं लम्बोदराय नमः धूपं दीपं आघ्रापयामि, दर्शयामि।
ॐ गं विघ्ननाशाय नमः पुष्पं समर्पयामि।
इसके बाद अक्षत और कुंकुम से निम्न मंत्र बोलते हुए यंत्र पर चढ़ाएं –

 

ॐ लं नमस्ते नमः।
ॐ त्वमेव तत्वमसि।
ॐ त्वमेव केवलं कर्त्तासि।
ॐ त्वमेव केवलं भर्तासि।
ॐ त्वमेव केवलं हर्तासि।
ॐ गणाधिपतये नमः’ बोलकर एक आचमनी जल यंत्र पर चढ़ाएं। गणपति पूजन के बाद निम्न मंत्र का ‘मूंगा माला’ से 5 माला जप करें –
॥ ॐ गं हुं तंत्रबाधा निवारणाय श्री गणेशाय स्वाहा॥

 

जो साधक अपने घर-प्रांगण में गणपति विग्रह भी स्थापित करना चाहते है, उन्हें गणपति यंत्र स्थापित कर उसके ऊपर ही गणपति विग्रह को स्थापित कर देना चाहिए और संकल्पानुसार पूजन कर विग्रह के साथ ही साथ यंत्र को भी विसर्जित कर देना चाहिए।
Ganesh Chaturthi – 13 September 2018
Anant Chaturdashi – 23 September 2018

 

The Innate Form of Tantra

Ekadanta Ganapati

Yudhrat Uchchist

Ganapati Sadhana

Where opposing Tantra gets completely eliminated

 

General public understands Ganapati as the Foremost-God, God of Peace, Lambodara (Large Stomach), Gajkarna (Elephant Ears),  or Prasanaa (Ever Joyful) God. However this same Ganapati is the strongest, extremely brutal, Destroyer of obstacles and is the Leader of Ganas. He demolishes each and every obstacle occurring in the life of the Sadhaks. He immediately assumes infuriated form with His weapons to give battle. Even  fierce Parashuram also bows before Him.

 

Lord Ganapati is worshipped first among all the deities. No auspicious task gets initiated without invoking and praying Ganapati. The nature of the son of Lord Shiva and Mother Gauri is very different from other Gods and Goddesses. Ganapati is the son of Mother Gauri and Lord Shiva. Lord Shiva is a Mahayogi and is detached from everything. However Mother Shakti understands the worldly rules.  Progeny is the medium to overcome mortality, because the child is a miniature form of the parents, and is able to surpass their lifespan. age.  Mother Gauri creates a child from Her cleanser and breathes life into it. She appoints Him as gatekeeper and goes inside to take bath. Lord Shiva arrived at that moment.

The destroyer of obstacles, creates hurdle in the meeting between Lord Shiva and Mother Shakti. Lord Ganapati obeys Mother’s command to prevent anyone from getting in. Vinayak (created without father) was unaware of Lord Shiva. Lord Shiva cannot tolerate anyone coming between Him and Mother Shakti, and He cuts off Ganapati’s head. Mother Shakti becomes enraged upon seeing this, and the Ganas of Lord Shiva run towards North direction. They find an elephant there, and installs the head of elephant on the son of Mother Gauri. This child is Ganapati,  the leader and head of all Ganas of Lord Shiva.

 

Goswami Tulsidas has portrayed Ganas of Lord Shiva in following words:

Kou Mukh Heen Bipul Mukh Kaahoo | (Some are without a head, while others have multiple heads)

Binu Pada Kara Kou Bahu Pada Baahu || (Some have no limbs (hands or feet), while others have multiple limbs)

Bipul Nayan Kou Nayan Biheenaa |  (Some have many eyes, while others have no eye)

Hastpushta Kou Ati Tan Heena || (Some have very large body, while others have no body)

 

Even Goddess Parvati’s mother had got frightened upon witnessing the strange wedding procession full of Ganas of Lord Shiva. However, a sweet hypnotic smile plays upon the face of  the head leader of these Ganas – Gananayak, Ganapati, Mangalamurti Ganesha. His stomach is extremely large, and symbolizes His prosperity in multiple ways.

 

Son of Mother Shakti, Ganesha is worshipped on Deepawali along with Mother Lakshmi, Goddess of Wealth and consort of Lord Vishnu. Wealth is linked to accomplishment of every task and any task or action cannot be truly  accomplished uninterruptedly in absence of blessings from Lord Ganapati.

 

Om Namo Vighnaraajaaya

Disturbances, obstacles, interruptions, and dilemmas pollute every kind of auspicious task and causes delays in completion. Ganeshji rides Mushak (mouse), the common mouse which constantly produces mild disturbances in homes and fields. The ride of Lord Ganesha on Mushak symbolizes that invocation of Vighnhartaa shakes our inner conscious, leading us to correctly distinguish between right and wrong decisions.

Basically, disruptions arise due to wrong decisions taken by us in lazy conditions. Sometimes ego is the root cause for these interruptions. A mysterious thought lurks here. Lord Shiva cut off Lord Ganapati’s head because He barred entry of Lord Shiva due to insistence of obeying His Mother’s orders. He ignored the basic fact that Lord Shiva is His Father. Worship of Lord Ganapati turns us towards humility and erodes ego generated disturbances.

 

Why Lord Ganapati is the Foremost God

All Gods-Goddesses participated in a competition to attain status of becoming foremost God. The goal of competition was to win the race to orbit around the universe three times. A mouse was Ganapati’s vehicle and victory in the competition was doubtful through the mouse. Lord Ganapati rotated around His Parents on Mount Kailash three times. Parents are the entire universe for a child, and, therefore Lord Ganapati became the foremost God.

Moreover if you focus carefully, you will notice that the very form of Lord Ganapati itself is the real form of Pranav (OM). The head of Ganapati is the upper part of  “OM”, while stomach constitutes the lower part. “Chandra-Bindu” (diacritic)  symbolizes the laddu while the  “Maatra” (accent) is represented by the trunk.

Lord Ganapati is unborn, is Ayonija  (Gauri’s son born outside of womb), is formless like His Father Lord Shiva, and symbolizes the omnipresent consciousness, which is present in all beings. Lord Ganapati, the Lord (Pati) of the group (Gana) of all these beings, will obviously be the foremost God to be worshipped first.

 

Ekadanta, Dayavant, Chaarbhujhaadhaari

One tusk of Lord Ganapati is broken. There are many diverse stories in this context. There is a belief that Lord Ganapati fought a battle against  Maharishi Parshuram. Sage Parashuram went to Kailash to meet his adorable Lord Shiva, but Lord Ganapati stopped him from entering. The Maharishi became enraged at the interruption in meeting His adorable Lord by the Vighnhartaa, and both fought a big battle. Lord Ganapati was winning that battle, when Sage Parshuram attacked Him with the Parsu (War-axe). Lord Ganapati deliberately let it hit His tusk, because that Parshu was a gift from Lord Shiva.

The entire story of Mahabharata has been written using that fragmented tusk of Lord Ganapati. However if you analyze a bit deeply, you will realize that Sage Parashuram had full faith on the Parsu gifted by Lord Shiva. Lord Ganapati deliberately took the blow on His tusk, to maintain that trust and faith.

Something similar also occurs in our lives and happens repeatedly. Sometimes the intellect starts dominating in life, leading to a wavering of the faith. The essence of Ganapati worship is to re-establish the dominance of faith over the intellect. The faith is beyond any logic, debate or analysis.  The simple faith states that Guru will eliminate all obstacles of life. There is no doubt that the  intellect is necessary and important. However faith forms the basis of life. The four arms of Lord Ganapati indicates His presence in all four directions. Lord Ganapati is merciful and  compassionate, because as Lord of consciousness of all creatures of consciousness, He is sensitive to the weakness of every being. He knows that a person is a manifestation of multiple mistakes and spends his entire life within various illusions. The illusion fascinates and enchants every person, and Lord Vighnhartaa removes his obstacles to enable him to achieve success. Success cannot be achieved in absence of hard-work and labor – “Uddhmena Hi Sidhyanti Kaaryaani Na ManoratheiH” The works started to fulfill various mental desires get completed through the blessings of the Nirvighna Lord Ganapati.

 

Ganapati and Tantra

Ganapati is the Lord of the Muladhaar Chakra.  Mula refers to the origin of all beings. Lord of Muladhar Chakra, Lord Ganapati bestows stable relations and success, whatever is of value within life. Despair turns a happy life into a curse. This despair may originate from sorrows, Black-Magic or someone’s malefic influence. Lord Ganapati has the solution, regardless of the origin.

Lord Ganapati is consciousness .The energy contained in the living beings is Ganapati. His sharp vision identifies and analyzes every opportunity, because His big ears desire to imbibe.

Black-magic performed on any house or person results in all round wretchedness in the life of that person. It turns a millionaire into a gloomy pauper. An atmosphere of tensions, discord,   conflict and unrest prevails in the house. It reduces all reputation and status to dust. In today’s era, enemies, friends or neighbors envious of your healthy life can perform black-magic against you. These Tantrik black-magic spells are enough to ruin your life.

 

You should perform Uchchist Ganapati Sadhana to resolve these problems. This technique can also protect you from Tantra-badhaa black-magic spells.

 

You should sit facing East or North direction in your worship place after purification through morning bath and other routine tasks. Light incense and lamp. Pour water in the panch-paatra. Place all these articles on a wooden board in front of you, which has been covered with a Red cloth.

It is impossible to achieve success in any Sadhana-worship without divine blessings of Gurudev Nikhil. Therefore, you should first perform complete worship of Gurudev Nikhil. Clean the Gurudev’s photo, Paaduka, Yantra or Statue which you routinely use in your daily worship. Set it up in front of you. Meditate on divine form of Gurudev Nikhil with folded hands –

 

GuruBrahmaa GururVishnuH Gururdevo MaheshwaraH |

GuruH Saakshaat Par Brahma Tasmeyi Shree Guruve NamaH ||

 

After Nikhil Dhyaan, bathe Guru Picture / Statue / Yantra / Paduka with pure water –

 

Om Nikhilam Snaanam Samarpayaami ||

 

Then wipe with a clean cloth. Perform Panchopchaar poojan with Kumkum (Vermilion), Akshat (Unbroken Rice), Pushpa (Flowers), Neivedh (Fruits-Sweets) and Dhoop-Deep (incense-lamp) through chanting following mantras –

 

Om Nikhilam Kumkum Samarpayaami |

Om Nikhilam Akshataan Samarpayaami |

Om Nikhilam Pushpam Samarpayaami |

Om Nikhilam Neivedhyam Samarpayaami |

Om Nikhilam Dhoopam Aaghrapayaami, Deepam Darshaayami |

(Show Dhoop, Deep)

 

Now rotate three Aachmani (spoonful) water around the Guru Picture / Statue / Yantra / Paduka and drop on ground. Then chant one mala (rosary-round) of Guru Mantra with Guru Mala –

 

Om Param Tatvaaye Narayanaaye Gurubhayo Namah ||

 

After Guru Poojan, perform Sadhana in the following way –

 

Ganapati Poojan

Draw “Swastik” symbol on a plate using Kumkum or Saffron,  set it in front of Guru-picture and establish “Uchchisht Ganapati Yantra” on it.

 

Pray with folded hands –

Om Gajaananam Bhoota Ganaadhisevitam Kapittha Jamboo Falachaaru Bhakshanam |

Umaasootam Shokvinaashakaarakamanamaami Vighneshvar Paada Pankajam ||

Thereafter perform worship chanting following Mantras-

Om Gam Mangalamoortaye NamaH Snaanam Samarpayaami |

Om Gam Ekadantaaya NamaH Tilakam Samarpayaami |

Om Gam Sumukhaaya NamaH Akshataan Samarpayaami |

Om Gam Lambodaraaya NamaH Dhoopam Deepam Aaghrapayaami, Darshaayami |

Om Gam Vighnanaashaaya NamaH Pushpam Samarpayaami |

 

Thereafter offer Akshat and Kumukm chanting following Mantras –

Om Lam Namaste NamaH |

Om Twameva Tatwamasi |

Om Twameva Kevalam Kartaasi |

Om Twameva Kevalam Bhartaasi |

Om Twameva Kevalam Hartaasi |

Offer one Aachmani water on Yantra chanting “Om Ganaadhipataye NamaH“. After Ganapati worship, chant 5 malas of following Mantra with “Moonga Mala“-

 

||Om Gam Hoom Tantrabaadhaa Nivaranaaya Shree Ganeshaaya Swahaa ||

 

Sadhaks desirous of setting up Ganapati statue at their home, should first setup Ganapati Yantra and then setup Ganapati statue upon the Ganapati Yantra. They should immerse both Statue and Yantra into running water according to the sankalp (resolution) during worship.

 

Praana Pratishthaa Ganapati Yantra : Rs. 310

Praana Pratishthaa Moonga Mala : Rs. 150

Note: Special days of Ganapati Sadhana are 11 days from Ganesh Chaturthi 13 September 2018 to Anant Chaturdasi 23 September 2018. The Sadhak should make a Sankalp (resolution) of either 1, 2, 5, 7, 9 or 11 days to perform this Sadhana. After completion of the Sadhana as per the Sankalp, immerse Uchchishta Ganapati Yantra in running stream of water.
error: Jai Gurudev!