Sanyas Pancharatna

ॠषि पाराशर के मंत्रों से प्राण प्रतिष्ठित
संकल्प सिद्धि के रत्न
संन्यास सिद्ध
पंचरत्न

1. सिद्ध कंकण

 

यह अंगूठी के आकार का कंकण महत्वपूर्ण माना गया है जिसे संन्यासी अपनी उंगली में धारण किये रहते हैं, इसके माध्यम से उन्हें अपने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती रहती है, एक प्रकार से देखा जाय तो उनके जीवन में कठिन या असंभव नाम की कोई चीज नहीं होती। प्राचीन समय से ही संन्यासियों को सिद्ध कंकण पहनने की सलाह दी गई है, जिससे कि वे अपने जीवन में निश्‍चिन्त और निर्भीक हो सकें, वे अपने जीवन में आगे बढ़ सकें और सफलता प्राप्त कर सकें।

 

इसके निर्माण में रांगा, शीशा, जस्ता, चुम्बक पत्थर अथवा सिद्ध धातु में से किसी एक धातु को कूट पीस कर कपड़े से छान कर उसकी पिस्टी बना लेनी चाहिए और फिर इसे गूलर के दूध में घोट कर खूब कूटना चाहिए, कूटते कूटते जब इसमें से तार निकलने लगे, तब उसे अग्नि में जारण कर उसे चिकना और कठोर बना देना चाहिए और उस गर्म तार की मुद्रिका बनाकर जब वह लाल सुर्ख हो, तब उसे जाग्रत पारे में डुबो कर सिद्ध बना लेनी चाहिए, इसी को ग्रन्थों में ‘सिद्ध कंकण’ कहा गया है, यह अपने आप में अद्वितीय और दुर्लभ होती है, और प्रत्येक संन्यासी के लिए तो एक प्रकार से अनिवार्य है ही, प्रत्येक साधक के लिए भी जरूरी है।

 

किसी भी शुभ दिन इस कंकण को अपनी उंगली में धारण कर लेना चाहिए जिससे कि साधना के क्षेत्र में उसे निरन्तर सफलता प्राप्त हो सके, ऐसा कंकण निरन्तर शरीर को स्पर्श किये रहता है जिससे शरीर में बराबर विद्युत प्रवाह बना रहता है, जिससे शरीर रोग रहित, सुन्दर, आकर्षक और अद्वितीय बन जाता हैऔर यदि श्रद्धापूर्वक उसे धारण किये रहें, तो उसके जीवन के प्रत्येक कार्य सफल होते रहते हैं। एक प्रकार से देखा जाय तो साधना और सिद्धि के लिए यह अत्यन्त महत्वपूर्ण और दुर्लभ कंकण कहा जाता है।

 

तंत्र ग्रंथों में यह बताया गया है कि गृहस्थ को यदि अपने  प्राण प्रिय हैं, अपना शरीर प्रिय है तो उसे यह कंकण भी उतना ही प्रिय होना चाहिए क्योंकि इसी के द्वारा वह प्रत्येक कार्य में सिद्धि और सफलता प्राप्त करने में समर्थ एवं सफल हो पाता है।

 

न्यौछावर – 450/-

 


2. सिद्ध जल कड़ा

 

हकीकत में देखा जाय तो इसको ‘योगी कड़ा’ या ‘संन्यासी कड़ा’ कहा जाता है। गोरखनाथ ने इसे जल कड़ा या जलमुद्रा कहा है। अपने हाथ की कलाई में संन्यासी लोग इस प्रकार का कड़ा धारण किये रहते हैं।

 

संन्यासियों के लिए या गृहस्थ व्यक्तियों के लिए यह कड़ा पूर्ण सौभाग्यशाली माना गया है। ऐसे कड़े को वे हृदय की सात परतों में छिपा कर रखते हैं, कुछ योगी इसे अपने हाथ में धारण भी कर लेते हैं।

 

इसके माध्यम से उन पर किसी प्रकार का मारण मोहन या वशीकरण नहीं हो पाता। एक प्रकार से वह निर्भय और निश्‍चिन्त होता है। यदि गृहस्थ भी इस कड़े को धारण करता है, तो उस पर किसी प्रकार की तांत्रिक क्रिया सम्पन्न नहीं हो पाती। भूत-प्रेत पिशाच आदि उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते। वह जहां कहीं भी रहता है, शत्रुओं से पूर्णतः सुरक्षित रहता है। शत्रु अपने आप परास्त होते रहते हैं और किसी भी प्रकार से शत्रु ऐसे व्यक्ति पर न हावी हो सकते हैं और न उसके शरीर को नुकसान पहुंचा सकते हैं। ऐसे व्यक्ति को किसी प्रकार की बाधा या अड़चन नहीं आ सकती है।

 

कड़े के निर्माण में तीन धातुओं को परस्पर मिला कर उसके ऊपर चैतन्य पारे का लेप किया जाता है, और फिर उसे जल मुद्रा में बांधा जाता है क्योंकि धातु पर पारे का लेप करना अत्यन्त कठिन है। इस प्रकार से जल बन्धन कर फिर उसे अग्नि ताप देकर कड़े को पूर्ण सक्षम बनाया जाता है। यदि इसके निर्माण में थोड़ी सी भी गलती होती है तो सारा रसायन चौपट हो जाता है और वह कड़ा किसी लायक नहीं रहता, यह सारी क्रिया कठिन है, और इस प्रकार का कड़ा निर्माण करने पर काफी व्यय आ जाता है। मगर इतना व्यय करने के बावजूद भी यह कड़ा बन जाय तो सौभाग्य ही समझना चाहिए।

 

संन्यासी इस कड़े को धारण करते हैं या झोली में रख देते हैं। गृहस्थ इस कड़े को पहन सकते हैं या सुरक्षित रख सकते हैं। वास्तव में ही यह जल कड़ा सौभाग्यदायक और श्रेष्ठ माना गया है।

 

न्यौछावर – 600/-

3. सिद्ध वज्रदण्ड

 

यह ताबीज के आकार का अत्यन्त दुर्लभ रसायन प्रयोग होता है, जिसे प्रत्येक संन्यासी अपने गले में धारण किये रहता है। आगे के योगियों ने इसको गन्डा भी कहा है। इसके माध्यम से संन्यासी को कई प्रकार की सिद्धियां स्वतः प्राप्त हो जाती हैं। इसको धारण करने के बाद जब साधक थोड़ी तांत्रिक साधना सम्पन्न करे, तो उसे निश्‍चय ही शीघ्र सिद्धि प्राप्त होती है।

 

अनुभव में आया है कि वज्रदण्ड जहां साधक को पूर्ण सुरक्षा प्रदान करता है, सैकड़ों शत्रु मिलकर के भी उसका किसी प्रकार से कोई अहित नहीं कर सकते, किसी भी क्षेत्र में शत्रु परास्त रहते हैं। साथ ही साथ इस वज्रदण्ड की यह विशेषता होती है कि कुछ सिद्धियां तो उसे स्वतः प्राप्त हो जाती हैं। भूत-प्रेत सिद्धि या भूतों को वश में करना, उनसे मनचाहा कार्य करवा लेना, तीव्र और उग्र साधनाओं को सिद्ध करना, योगिनियों को वश में करके उनसे मनचाहा द्रव्य प्राप्त करना, आदि साधनाएं थोड़े से प्रयत्न से ही सिद्ध हो जाती हैं।

 

इस वज्रदण्ड के द्वारा ही संन्यासी अपने भक्तों के कई कार्य सम्पन्न कर लेता है और वह सिद्ध माना जाता है। इस प्रकार के वज्रदण्ड के निर्माण के लिए निवडग तथा थूहर को मिलाकर एक गोल गोली बनाई जाती है और अश्‍वत्थ के सफेद दूध में इस गोली को घोट कर उसे वज्रदण्ड के रूप में सिद्ध किया जाता है। फिर इसे ताबीज में भर कर धारण किया जाता है। इस सारी क्रिया पर भी काफी अधिक व्यय हो जाता है, ऐसा वज्रदण्ड कोई भी पुरुष या स्त्री धारण कर सकती है, जो जीवन में पूर्ण सफलता चाहते हैं, उन्हें इस प्रकार का वज्रदण्ड अवश्य ही धारण करना चाहिए।

 

न्यौछावर – 450/-

4. विश्‍वबेधी सुदण्ड – वशीकरण सिद्धि

 

संन्यासियों में यह इसी नाम से पुकारा जाता है और यह अंगूठी के आकार का होता है, परन्तु गुरु गोरखनाथ ने कहा है, कि जो पूरे संसार पर विजय प्राप्त करना चाहते हैं, जो पूरे संसार पर राज्य करना चाहते हैं उनको यह विश्‍वबेधी  सुदण्ड धारण करना चाहिए।

 

इसमें वशीकरण की अन्यतम विशेषता होती है। उच्चकोटि के गृहस्थ साधक या संन्यासी इसे अंगूठी में धारण किये रहते हैं। इसकी विशेषता यह है कि सामने वाले किसी स्त्री पुरुष की नजर इस मुद्रिका पर पड़ती है तो वह पुरुष स्वतः वश में हो जाता है, या यदि इस अंगूठी का स्पर्श जिससे भी हो जाता है, वह वश में बना रहता है और जीवन भर उस संन्यासी या धारण करने वाले व्यक्ति की आज्ञा मानता रहता है।

 

एक प्रकार से देखा जाय तो यह सम्मोहन अथवा वशीकरण मुद्रिका है इसके निर्माण में बड़ के दूध में पारद को बांध कर फिर उसमें धातु का जारण किया जाता है और उसे अग्नि वेध कर उसे मुद्रिका का आकार दिया जाता है। इस प्रकार यह मुद्रिका सिद्ध हो जाती है और इसमें दूसरों को सम्मोहित करने या वशीकरण करने की अद्भुत क्षमता आ जाती है।

 

ऐसा साधक विश्‍व में कहीं पर भी असफल नहीं होता और सम्पूर्ण विश्‍व को अपने वश में करने की शक्ति प्राप्त कर लेता है। साधक स्वयं इस प्रकार की मुद्रिका तैयार कर अथवा कहीं से भी प्राप्त कर इस दिवस को धारण कर जीवन में पूर्ण सफलता प्राप्त कर सकता हैं।

 

न्यौछावर – 450/-

5. समुद्र सिद्ध कायाकल्प कंकण

 

इसे ‘गोरख कंकण’ भी कहा जाता है, किसी पात्र में समुद्र का जल भर कर आंच पर रख कर उसमें धीरे-धीरे मधु का जारण किया जाता है। जब यह मोम बन जाये तो उसमें पारे का संस्कार कर उस मोम को त्रिधातु पर लपेट कर चौबीस घण्टे उसे समुद्र जल में ही पकाया जाता है, इससे इस प्रकार का कायाकल्प कंकण तैयार हो जाता है।

 

इसके धारण करने से स्वतः पूरे शरीर में परिवर्तन होता रहता है और यदि संन्यासी को या साधक को किसी प्रकार का रोग हो, तो वह रोग निश्‍चित ही समाप्त हो जाता है।

 

शास्त्रों में यह बताया गया है कि इस कंकण में रोग मुक्त करने की अद्भुत क्षमता है, यदि इस कंकण को रात भर साफ पानी में रख कर सुबह वह पानी रोगी को पिला दें तो रोगी का रोग दूर होना शुरू हो जाता है।

 

इसमें तो कोई दो राय नहीं कि इसे धारण करने वाले व्यक्ति के शरीर के रोग तो समाप्त होते ही हैं, उसकी वृद्धावस्था समाप्त होने लगती है, सिर पर काले और घने बाल आने लगते हैं, आंखों की रोशनी और शरीर में पूर्ण पौरुष के साथ-साथ वह एक ऐसा व्यक्तित्व बन जाता है, कि सामने वाला देखता ही रह जाता है।

 

एक प्रकार से धीरे-धीरे पूरे शरीर का कायाकल्प हो जाता है। वास्तव में ही यह अपने आप में दुर्लभ और सिद्ध  ‘कायाकल्प कंकण’ कहा जाता है। इसे गृहस्थ साधक अथवा संन्यासी धारण किये रहते हैं, जिससे उनका शरीर दर्शनीय चमत्कारिक और आश्‍चर्यजनक हो जाता है।

 

न्यौछावर – 450/-

Consecrated with the Mantras of Sage Parashar

Gems of Resolution Accomplishment

Sanyaas Siddh Panchratna


 

  1. Siddh Kankan

This ring-shaped kankan is  considered highly significant. The ascetics wear it on their fingers and this enables them to achieve success in all spheres of  life. Nothing is difficult or impossible in their life. Since the ancient age, the sages have been advised to wear the kankan, to inculcate confidence and fearlessness in  their lives, so that they can progress ahead and achieve  success in their lives.

To construct kankan, we select any one metal from tin, lead, zinc, magnet stone or a Siddh-metals. It  is grinded, filtered and converted into a paste. Then it is tempered-grinded in the milk of sycamore, till it becomes ductile and wires start getting stretched. These wires should be made smoother and hard by cooking in fire. Then these hot wires should be moulded into ring shape. This ring should be cooked red-hot in fire, and then dipped into a pot of enlivened mercury. Such a ring is termed as “Siddh Kankan” in our scriptures. It is unique and rare in itself. It is mandatory not only for an ascetic, but also for every Sadhak.

You should wear this kankan in your finger on any auspicious day to achieve success in Sadhanas. Such a kankan continuously touches the body, transmitting electricity into it, and this makes the body  disease-free, beautiful, attractive and unique. Continuing to wear it with full faith helps one to succeed in all spheres. This is an extremely important and rare Kankan to achieve accomplishments in Sadhana practices.

The Tantrik texts stipulate that one should love this kankan with the same dedication as one has towards one’s life and body. This kankan will enable him to attain capability and succeed everywhere.

 

Price –  450 / –


  1. Siddh Jal Kada

This is practically called as “Yogi Kada” or “Sanyaasi Kada“. Gorakhnath has termed it as Jal Kada or Jal Mudra. The ascetics wear it on their wrists.

This Kada is considered as extremely fortunate for the ascetics or normal householders. They hide this kada in the seven layers of their heart. Some yogis even wear it in their hands.

This protects them from any maaran (destructive) or hypnotic black-magic. He becomes fearless and confident. A family householder wearing it stays protected from any kind of black-magic. The ghosts-ghouls-vampires cannot hurt him. He remains completely protected from his enemies, where-ever he is.  The enemies get defeated themselves. The enemy can neither overpower him nor harm him. Such a person does not have any kind of obstruction or trouble.

Three metals are merged together and then plated with activated mercury, to construct such a kada. This is then solidified in jal mudra because it is extremely difficult to coagulate any metal with mercury. This is then cooked in fire after jal bandhan, to make the kada strong and durable. Any slight mistake in this chemical process renders it waste. This is in fact, a very difficult and costly process.  However, one should thank one’s fortune if one is able to obtain it.

The ascetics either wear this kada or keep it in their bag. The householders can either wear this kada or keep it in a safe. This Jal Kada is really an excellent fortune-enhancer.

Price – 600 / –


  1. Siddh Vajradand

This talisman sized article is prepared through an extremely rare chemical process. All ascetics wear it around their neck.  The further Yogis have also termed it as Ganda. The ascetics obtain various types of Siddhi accomplishments  automatically through this medium. Even a little amount of Sadhana performed by a Sadhak wearing this article, leads him to quick accomplishment.

We have also experienced that Vajradand provides complete security to the ascetic. Even hundreds of enemies cannot harm the wearer, even if they attack together. The enemies get vanquished in each sphere. This Vajradand also has a unique feature of bestowing some accomplishments automatically to the wearer. Sadhanas like Bhoot-Pret Siddhi, captivating-controlling bhoot-pret (ghosts-ghouls), getting them to follow your order, obtaining desired wealth from the Yoginis after captivating them etc. get accomplished easily with a little effort. Even the strongly intense aggressive Sadhana practices get accomplished.

The ascetic is able to complete many tasks of his devotees through this Vajradand, and they consider him to be an accomplished learned one. This is constructed by first mixing Nivdag and Shuhar, and making a small pill. This pill is then tempered within the  white milk of Ashvattha, and made Siddha in the Vajradand form. Then it is filled within a talisman and worn. Such a process is very expensive. Any male or female person can wear such a Vajradand. Those desirous of complete success in life, must certainly wear such a Vajradand.

Price – 450 / –


  1. Vishwabedhi Sudaand – Vashikaran (Hypnotism) Siddhi

The ascetics call it by the same name and this is available in the form of a ring. Guru Gorakhnath has stated that anyone desirous of  conquering the entire world,  on one who wants to rule over the whole world,  should certainly wear this Vishwabedhi Sudand.

It has very strong captivation power. The householder or ascetic Sadhaks of higher order wear it in their ring. Its specialty is that  any person who gazes this ring, gets captivated. Anyone who gets touched by this ring, gets hypnotized and stays under the control of that ascetic or wearer for the entire life.

From this perspective, it is a hypnotizing attractive ring. It is made by tying mercury in the milk of Bad. Then the metal is activated, and the next step is to mould it in to the shape of ring by heating over burning fire. Thus this ring gets Siddha accomplished, and it acquires the capability to captivate and hypnotize others.

Such a Sadhak does not encounter failure anywhere in the world and obtains the power to subdue the entire world. The seekers can prepare such a ring themselves, or obtain it from anywhere. He can achieve complete success in life by wearing it on this special day.

Price – 450 / –


  1. Samudra Siddha Kayakalp Kankan

It is also called as “‘Gorakh Kankan“.  A vessel is filled with sea water and cooked  by gradually adding honey into it. When it attains a waxy state, then after completing the mercury processes, the wax is wrapped around tri-metals. It is then cooked for 24 hours in sea water. Thus such a Kayakalp Kankan gets prepared.

Wearing this transforms the entire body automatically. One gets rid of any illness that one was afflicted with earlier.

The scriptures state that this Kankan has the  amazing ability to destroy the  diseases. The patient’s disease gets cured if he drinks the water, in which this was immersed overnight.

The simple fact is that the wearer becomes free from the diseases. His body stops aging, black-dense hairs start growing on the head, and his eyesight improves. The body attains perfection. Others gets awed by his personality.

In a way, gradually the whole body gets rejuvenated. This is truly called as an extremely rare accomplished “Kayakalp Kankan“. The householder-Sadhaks and ascetics wear it on their person. It makes  their body spectacular and amazing.

Price — 450 / –

 

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