SadGuru Nikhil Discourse Essence on Third Eye Activation
अज्ञात भविष्य काल की यात्रा
अज्ञात रहस्यों की खोज
ज्ञान नेत्र जाग्रति
यों तो हमारे बाह्य नेत्र देखते ही हैं परन्तु एक तीसरा नेत्र है जैसा भगवान शिव का होता है जिसके माध्यम से वे श्राप भी दे सकते हैं, वरदान भी दे सकते हैं, और साथ ही साथ भविष्य भी देख सकते हैं। ये तीनों क्रियाएं उस ग्रंथि के माध्यम से संभव हैं जिसे ‘आज्ञा चक्र’ भी कहा जाता है।
– सद्गुरु
दीर्घोसदांवै, परिपूर्ण सिंधुं, नेत्रोद् भवं पूर्ण मदैव तुल्यम्
रुद्रो वतां दिव्य सदैव नेत्रं, भूतो भविष्यत् परिपूर्ण दृष्टि
शिव उपनिषद का यह श्लोक है और इसमें बताया गया है कि मनुष्य इस जीवन को पिछले पचास हजार वर्षों में भी समझ नहीं पाया है। भगवान ने मानव शरीर की इतनी अद्भुत रचना की है और इसका मैकेनिज़्म और निर्माण इतना जटिल है कि न डॉक्टर समझ पा रहे हैं और न ऋषि-मुनि ही समझ पा रहे हैं। भगवान ने इस मानव मस्तिष्क को इतना अधिक कम्प्यूटराइज़्ड किया हुआ है कि इसमें हजारों लाखों घटनाएं अंकित हैं और एक क्षण में वे आपको याद आ जाती हैं। इस तारीख को मेरी शादी हुई, दस वर्ष पहले इस तारीख को मेरी नौकरी लगी, सब आपको याद है।
भूतकाल आपको पूरा याद रहता है, आपके जन्म से लेकर ठीक आज तक, तो आप भविष्य को भी जान सकते हैं और यदि भविष्य ध्यान में आ जाता है, तो फिर तकलीफ जैसी कोई चीज जिंदगी में आ ही नहीं सकती। अगर मैं कार चला रहा हूं और पहले से ही जान लूं कि आगे खड्डा है तो कार को खड्डे से बचाकर आगे बढ़ सकता हूं और अगर पूर्वाभास नहीं है तो पहिया खड्डे में चला जाएगा और कार फंस जाएगी।
तो भविष्य दर्शन भी जीवन की एक लाइट, एक प्रकाश है जिसकेे माध्यम से हम आगे की बाधाओं को देख सकते हैं और उनसे बच सकते हैं। यदि हमें ऐसी कोई विधि ज्ञात हो जाए तो यह संभव है, परन्तु ऐसा हो क्यों नहीं रहा है?
इस श्लोक में बताया गया है कि अगर भूत काल हमें ज्ञात है तो भविष्य काल भी ज्ञात होना चाहिए। काल तो अखंड है, उसका एक छोर हमारे हाथ में है तो दूसरा भी हमारे हाथ में होना चाहिए।
और इस मस्तिष्क में सैकड़ों तरह की ग्रंथियां हैं। एक से ज्यादा नाड़ियां मिलने पर ग्रंथि बनती है। कहीं पांच नाड़ियों का गुच्छा होता है, कहीं छ: और कहीं दस, जैसे मूलाधार है, स्वाधिष्ठान है, मणिपुर है ये ग्रंथियां हैं, जिन्हें चक्र या कमल भी कहा जाता है।
ध्यान से देखेंगे तो पाएंगे कि सभी पशु कान हिला सकते हैं, परन्तु आप प्रयत्न करें तो भी कान नहीं हिला सकते। वह इसलिए क्योंकि मनुष्य को पूरे जीवन आवश्यकता ही नहीं पड़ती कान हिलाने की और जिस ग्रंथि का उपयोग करना आप छोड़ देते हैं वह अपने-आप में निष्क्रिय हो जाती है। हाथों की जरूरत है, वे एक्टिव हैं और बराबर काम कर रहे हैं।
आपने देखा होगा कुछ हठ योगी होते हैं जो हाथ खड़े करके एक साल, दो साल निरंतर खड़े रहते हैं। फिर उनके हाथ नीचे ही नहीं आते क्योंकि जाम हो जाते हैं। उस ग्रंथि का प्रयोग किया ही नहीं और नहीं किया तो बेकार हो गयी।
मस्तिष्क ग्रथियों का समूह –
इसी प्रकार से मस्तिष्क में एक ग्रंथि है जिसे तृतीय नेत्र कहते हैं और उसे जाग्रत करने को भविष्य दर्शन या भविष्य सिद्धि कहते हैं। उस ग्रंथि या नाड़ी के गुच्छे को कभी हमने जाग्रत नहीं किया, क्योंकि उसकी जरूरत पड़ी ही नहीं। सब भगवान के भरोसे छोड़ दिया कि कल क्या होगा भगवान जाने। क्योंकि हमने भविष्य को जानने के लिए उस ग्रंथि का प्रयोग नहीं किया इसलिए वह निष्क्रिय हो गई।
हमारे ऋषियों को इसके प्रयोग का ज्ञान था और तब शिष्य अपने गुरुओं के माध्यम से उस ग्रंथि को जाग्रत कर लेते थे। मगर हमें यह भी मालूम नहीं है कि हमारे मस्तिष्क में यह ग्रंथि किस स्थान पर है, इसे किस प्रकार जाग्रत कर सकते हैं। उसे छोड़ दिया तो वह ज्ञान हमारे हाथ से छूट गया, काल का दूसरा छोर हमारे हाथ से फिसल गया। भूतकाल तो देखना हमारी शक्ति में रहा परन्तु भविष्य काल देखना हम भूल गए।
यह हमारे जीवन का सबसे बड़ा दुर्भाग्य बन गया, और हम आशंकित हो गए कि भगवान जाने कल क्या होगा, बुढ़ापा कैसे गुजरेगा, बेटा-जाने मेरा रहेगा या नहीं रहेगा, बेटी की शादी होगी कि नहीं, कब होगी, हमारे जीवन में कोई तकलीफ तो नहीं आ जाएगी आदि।
हमें अपने स्वयं के भविष्य के बारे में कुछ ज्ञात नहीं है। हम एक अंधेरे रास्ते पर गतिशील हैं और इसीलिए भयभीत हैं कि न जाने कल क्या हो जाएगा।
और ऋषि ने तो श्लोक में यह बताया है कि सब हमारे हाथ में है। उन ऋषियों को तो सब ज्ञात होता था कि आगे क्या होगा? भृगु संहिता में प्रत्येक मनुष्य का भविष्य लिखा हुआ है। वे योगी भूतकाल बता देते थे तो वहीं भविष्य काल भी बता देते थे। इस प्रकार की साधना को ‘त्रिनेत्र साधना’ कहा गया है।
यों तो हमारे बाह्य नेत्र (चर्म-चक्षु) देखते ही हैं परन्तु एक तीसरा नेत्र है जैसा भगवान शिव का होता है जिसके माध्यम से वे श्राप भी दे सकते हैं, वरदान भी दे सकते हैं, और साथ ही साथ भविष्य भी देख सकते हैं। ये तीनों क्रियाएं उस ग्रंथि के माध्यम से संभव है जिसे ‘आज्ञा चक्र’ कहा जाता है।
और जब तक उस ग्रंथि, उस चक्र को हम जाग्रत नहीं करेंगे, चैतन्य नहीं करेंगे तब तक उसका उपयोग नहीं हो सकेगा। ढोलक आपके घर में पड़ी है तो जब तक उसे बजाएं नहीं यों ही पड़ी रहेगी और दो हाथ मारेंगे तो बज उठेगी। टी.वी. आपके घर पर पड़ा है और आपको पता नहीं कौन सा बटन दबाकर उसे चलाया जा सकता है तो कोई उपयोग नहीं उसका और जिस दिन ठीक बटन दबा देंगे वह चलचित्र दिखाना शुरू कर देगा।
तो जिस दिन आपका तीसरा नेत्र जाग्रत हो जाएगा आपको आगे का सब कुछ अपने आप स्पष्ट होने लग जाएगा, अंतिम क्षण तक और साथ ही ज्ञात हो जाएगा कि कहां-कहां कौन सी समस्याएं आएंगी और समय पर आप सावधान हो जाएंगे कि यह समस्या आ रही है और इसका समाधान यह है फिर यह भय आपके मन में नहीं रहेगा कि न जाने आगे क्या होगा और यह आपके जीवन का सबसे बड़ा सौभाग्य होगा।
भविष्य की कुंजी
यह बहुत बड़ी कुंजी है जीवन की। अगर भविष्य ज्ञात हो जाए, तो मनुष्य भय रहित हो जाएगा, निर्द्वंद्व हो जाएगा, निश्चिंत हो जाएगा। तब वह जीवन में सब कुछ प्राप्त कर पाएगा। सामान्यत: हर व्यक्ति के मन में एक तनाव सा रहता है, वह तो समाप्त ही हो जाएगा क्योंकि वह पहले ही जान जाएगा कि महीने भर बाद यह घटना घटेगी, बारह महीने बाद यह खुशी आएगी, इस उम्र में यह घटना घटेगी, अस्सी साल की उम्र में यह होगा और इस तारीख को इस समय मैं मर जाऊंगा। अब मृत्यु का जो वह क्षण है उसे हटा दीजिए, उससे बच निकलिए और आयु भी बढ़ जाएगी आपकी।
आप एक चलती सड़क के बीच जाकर अचानक खड़े हो जाएं तो कोई गाड़ी आएगी और आपको कुचल देगी और आप पूछते रह जाएंगे, कि गुरुजी आपने तो मेरी आयु 72 साल बताई थी।
वह इसलिए हुआ क्योंकि आप जाकर उस जगह जा खड़े हुए जहां मृत्यु गुजर रही थी। आपको मालूम पड़ जाए कि कार आ रही है और आप बस एक मीटर हटकर खड़े हों जाएं तो कार निकल जाएगी और आप बच जाएंगे।
ऐसी स्थिति यानी दुर्घटना, हादसा आदि अकाल मृत्यु है। अकाल का अर्थ है समय से पहले और समय से पहले का हमेशा भय होता है कि क्या होगा। जैसा कि मैंने बताया दुर्घटना से स्वयं को बचा सकते हैं, उसी प्रकार समस्या से भी बचाव हो सकता है।
परन्तु यह तब संभव है जब हमारा तृतीय नेत्र जाग्रत हो, क्येांकि भूत और भविष्य तभी स्पष्ट हो पाएगा, अपना भी और सामने वाले का भी। यह आदमी बुरा है, यह मुझे धोखा देगा, यह बीमार हो सकता है, यह अच्छा मित्र रहेगा फिर ऐसे तथ्य बिना दूसरे के बताए आपको स्वतः स्पष्ट हो जाएंगे।
इससे बड़ी और कोई साधना जीवन की हो ही नहीं सकती। किसी व्यक्ति को देखकर उसके जीवन की संभावना को बता देना, उसे उसकी समस्याओं से सावधान कर देना, जिन्दगी को पूर्णत: खुशहाल बना देना यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं है, अद्भुत और आश्चर्यजनक चीज है।
यदि आपको मार्ग पता है और कार चलानी आती है तो चंडीगढ़ भी पहुंच जाएंगे और नहीं चलानी आती तो कहीं भी नहीं पहुंच सकते। मैं वह मार्ग, वह तरीका स्पष्ट कर रहा हूं जिसके माध्यम से वह ज्ञान, वह स्थिति आप प्राप्त कर सकते हैं जिसे तीसरा नेत्र जागरण कहा जाता है। परन्तु प्रयत्न आपको ही करना होगा। मैं केवल मार्ग दिखला सकता हूं, आपको तालाब तक ले जा सकता हूं, आपको बता सकता हूं कि पानी ठंडा और निर्मल है। अब आप नहीं पीओ तो मैं जबरदस्ती नहीं कर सकता। कुछ प्रयत्न तो आपको भी करना पड़ेगा, झुकना पड़ेगा और पानी पीना पड़ेगा।
नमन्ति फलिनोवृक्षा: नमन्ति गुणिनो जना:
शुष्क काष्ठं च मूर्खं च, न नमन्ति कदाचन।
अर्थात फलदार पेड़ झुका रहता है, गुणी व्यक्ति भी झुकता है, परन्तु सूखी लकड़ी और मूर्ख नहीं झुकता। वे अकड़कर खड़े रहते हैं। जो जितना नम्र होगा उतना ही झुकेगा, गाली देने पर भी शालीन रहेगा। मूर्ख एकदम वापस गाली देगा।
जीवन की पूर्णता की ओर अग्रसर होने का मार्ग समर्पण है। आपको विश्वास नहीं है तो उसका मूल कारण यही है कि मानव-मस्तिष्क की अधिकतम ग्रंथियां सुप्त हैं, उनका हमें ज्ञान ही नहीं। आइंस्टाइन से बड़ा वैज्ञानिक इस युग में नहीं हुआ और उसके जैसा विद्वान व्यक्ति भी अपने मस्तिष्क का केवल 5% ही प्रयोग कर पाया। 95% दिमाग तो हम समझ ही नहीं पाए हैं और जिस दिन आप उस सुप्त शक्ति को जान लेंगे तब अनन्त संभावनाओं का उदय होगा।
यह त्रिनेत्र जागरण साधना तो मात्र 5% से 6% पर ले जाने की प्रक्रिया है। जरा सोचें मात्र 1% से इतनी प्रज्ञा शक्ति उदय हो जाएगी! और यह कोई आज की बनी साधना नहीं है हजारों ऋषियों, योगियों ने इसको साधा है, इसे श्रीराम ने किया, श्रीकृष्ण ने किया और बुद्ध जैसे व्यक्तितव ने भी त्रिनेत्र जागरण साधना की।
यह साधना आपके जीवन को संवार सकती है, उसको जगमगाहट से भर सकती है, एक रोशनी पैदा कर सकती है। आपको मालूम हो जाएगा कि क्या घटना घटेगी और उसका क्या समाधान है और फिर समय से पहले ही आप समाधान कर लेंगे।
यह तथ्य ठीक वैसा ही है कि आप अंधकार में खड़े हैं और कोई आपको रोशनी दे रहा है, जिसके माध्यम से आपका सम्पूर्ण जीवन जगमगा सकता है।
आप चिंता न कीजिए, जीवन में कठिनाइयां तो आएंगी ही, पर अपने निश्चय पर दृढ़ रहिए। इस साधना को पूर्ण क्षमता के साथ करेंगे तो समस्याएं भी चैलेंज का रूप ले लेंगी और आपको आनन्द आएगा उनसे जूझने में, उनका समाधान करने में। यह साधना भविष्य को देख लेने की स्थिति है, जिससे एक मनुष्य देव हो सकता है, आदमी भव सागर में छलांग लगा सकता है, और उससे पार उतर सकता है और अपने जीवन को प्रफुल्लित कर सकता है।
– सद्गुरु निखिल प्रवचनांश