Mahamrityunjay Diksha
इस जगत में जो आत्मा कार्य कर रही है, उस असीम सत्ता को परमात्मा कहा गया है, और उन्हें ही तंत्र ‘शिव’ कहता है। वही शिव मृत्यु पर विजयी होकर महामृत्युंजय कहलाते हैं। मार्कण्डेय ऋषि की तरह जिस व्यक्ति का मन महामृत्युंजय में रमा हुआ है, उसके लिए अकाल मृत्यु, रोग और व्याधि पर शिव का अंकुश स्थापित हो जाता है, यानी जब तक वह जीवन को पूर्णता में नहीं जी लेता, यम भी उसका बाल बांका नहीं कर सकते हैं।
ॐ ह्रौं जू सः।
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
महामृत्युंजय मंत्र में तीन नेत्रों वाले शिव की पूजा की जा रही है, क्योंकि उनकी आराधना से जीवन में सुगंध, आरोग्य और संपन्नता प्राप्त होती है। तीन नेत्रों वाले शिव ने काल के तीनों चरण भूत, वर्तमान और भविष्य पर नियंत्रण स्थापित किया हुआ है और साधक को धर्म, अर्थ और काम तीनों प्रदान करते हैं ।
य शिव सः गुरु, सः गुरु सः शिव
शिव ही गुरु हैं और गुरु ही शिव हैं।
सद्गुरु अपने शक्तिपात द्वारा शिष्य के मस्तक पर हाथ रखकर उसके दोषों का हरण करते हैं और उसे जीवन में निर्भय, अभय बनाते हैं। जिससे वह मृत्यु तो क्या किसी भी प्रकार के भय से मुक्त होकर अपने जीवन की नीरसता को समाप्त कर सरस भाव से जीवन जीता है।
शिव की साक्षात् कृपा सद्गुरु के माध्यम से ही शिष्य को प्राप्त होती है। जब शिष्य सद्गुरुदेव में शिव का स्वरूप देखता है तो सद्गुरु शिष्य को मार्कण्डेय की भांति अपनी शरण में लेकर उसे यम पाश से, यम बाधा से मुक्त कर देते हैं।
* महामृत्युंजय दीक्षा से दीर्घायु, यश और वैभव प्राप्त होता है।
* महामृत्युंजय दीक्षा से कैसी भी बीमारी हो, उस बीमारी से लड़ने और उसे समाप्त करने की शक्ति साधक के भीतर स्वयं उत्पन्न हो जाती है और वह भय व्याधि को समाप्त कर देता हे।
* महामृत्युंजय दीक्षा से ग्रहदोष समाप्त होते हैं।
* महामृत्युंजय दीक्षा से भीतर ही भीतर सकारात्मक ऊर्जा तीव्र गति से वृद्धि करती है, इससे जीवन के तनाव समाप्त हो जाते हैं।
* महामृत्युंजय दीक्षा से साधक को अपने भीतर ओजस्विता, तेजस्विता, शौर्य और भरपूर पौरुष का अनुभव होने लगता है।
* सद्गुरु से महामृत्युंजय दीक्षा प्राप्त करने के पश्चात् ही शिव साधना, मंत्र जप, अनुष्ठान आदि में शीघ्र सफलता प्राप्त होती है।
केवल व्यक्ति का स्वयं स्वस्थ एवं निरोगी रहना ही पर्याप्त नहीं है अपितु उसके परिवार के प्रत्येक सदस्य पत्नी, बच्चे आदि भी स्वस्थ रहें, आकस्मिक दुर्घटना की आशंका न रहे, अकाल मृत्यु का भय न हो।
इस हेतु शिव स्वरूप सद्गुरु से महामृत्युंजय शक्तिपात दीक्षा सात चरणों में प्राप्त करें एवं महामृत्युञ्जय साधना को सम्पन्न करें। जब भी गुरु कृपा प्राप्त हो उस समय पूर्ण समर्पण भाव से यह महामृत्युंजय दीक्षा प्राप्त करनी चाहिए और नियमित रूप से महामृत्युंजय मंत्र का जप अवश्य करना चाहिये।
महामृत्युंजय दीक्षा प्रति चरण – 3100/-
Mahamrityunjay Mantra is an extremely powerful mantra, also known as Tryambak mantra. This mantra comes within the Rudra chapter of the Yajurveda. Mahamrityunjay Mantra can redeem the person from the fear of premature death, diseases and illnesses.
All of us have an element of the supreme soul, whom the Tantra terms as Shiva who is also called Mahamrityunjaya because he has conquered death.
The story goes sage Markendaya had a very short life. Since his childhood, the sage Markendaya was an ardent devotee of Lord Shiva. However, when it was the time for him to leave the world, the messengers of Yama threw his noose on him.
The young Markendaya went and hugged the Shivalinga on which he would worship every day. Lord Shiva sent his army of ganas to protect Markendaya.
Just like Shiva delivered Markendaya from the noose of Yama any person, who seeks Lord Shiva’s blessings like sage Markendaya gets protected against premature death, diseases and illness. In other words, even Yama cannot cause any trivial harm on such individuals and they live a fulfilling life.
Om Hroum Joom SaH |
Trayambakam Yajaamahe Sugandhim Pushtivardhanam |
Urvaarukamiva Bandhanaan Mrityormukshiya Maamritaat ||
Three-Eyed Lord Shiva is worshipped within the Mahamrityunjaya Mantra, as His worship bestows divine fragrance, healing, and prosperity to life. The Three-Eyed Lord Shiva controls the three phases of the time- past, present, and future, while bestowing Righteousness, Wealth and Desires to the Sadhak.
Ya Shiv SaH Guru, SaH Guru SaH Shiv
Shiva is the Guru and Guru is the Shiva.
Sadguru, through His Shaktipaat, puts His hand on the forehead of the disciple and removes his shortcomings, and thereby, makes him fearless and courageous in life. The Guru makes him radiant and courageous and he fears nothing, not even death. That banishes his lethargy, procrastination, fears and makes him complete.
The disciple attains divine blessings of Lord Shiva only through SadGuru. When the disciple sees the form of Lord Shiva within Sadguru, then the Sadguru takes the disciple under His wings like Markandeya, while liberating him from the Yama (death) loop or worries about death.
Benefits of Mahamrityunjaya Diksha
* Mahamrityunjaya Diksha bestows longevity, fame, and prosperity.
* Mahamrityunjaya Diksha bestows inner power within the Sadhak to fight and eliminate any kind of disease, however dreadful it is. The Sadhak attains the capability to get rid of the disease.
* Mahamrityunjaya Diksha terminates the malefic effects of bad planetary combinations.
* Mahamrityunjaya Diksha drives the rapid growth of positive energy within the Sadhak, thereby eliminating the stresses of life.
* The Sadhak starts to experience a strong aura, radiant intensity, strong courage and full strength with Mahamrityunjaya Diksha.
* One obtains quick success in Shiva Sadhana, Mantra chanting, anusthan rituals, etc.; after receiving Mahamrityunjaya Diksha from Sadguru.
It is not enough for a person alone to be healthy and disease-free, rather each member of his family, wife, children, etc. should also stay healthy, without any worry of accident or fear of premature death.
For this, obtain Mahamrityunjaya Shaktipaat Diksha in seven steps from Shiva form Sadguru and accomplish Mahamrityunjaya Sadhana. This Mahamrityunjaya Diksha should be obtained with full sincerity-dedication, upon blossoming of Gurudev’s blessings; and one should chant the Mahamrityunjaya Mantra regularly.
To receive Gurudev’s blessings of Maha Mrityunjay Diksha your contribution to Nikhil Mantra Vigyan – 3100 / -(Every step)