Lalithambha Sadhana

सौम्य रसेश्‍वरी देवी
ललिताम्बा
कला, सौन्दर्य, श्रृंगार  की अधिष्ठात्री देवी
ललिताम्बा का अर्थ है ललित+अम्बा, जो श्रृंगार और तेज का संयुक्त स्वरूप हैं।

 

ललिताम्बा आठ शक्तियां – प्रभा, माया, जया, सूक्ष्मा, विशुद्धा, नंदिनी, सुप्रभा एवं विजया साधक को तेजस्विता, पुरुषार्थ एवं सौन्दर्य प्रदान करने वाली हैं।

 

देवी के तो अनेक रूप होते हैं – जगदम्बा, दुर्गा, तारा, काली, किन्तु इन दस महाविद्याओं से भी परे एक और स्वरूप है ‘‘ललिताम्बा’’ जो ब्रह्माण्ड की समस्त सिद्धियों की स्वामिनी हैं, जहां वह अपने प्रेम, स्नेह और करुणा से साधक को अपना आशीर्वाद प्रदान करती हैं, वहीं उसके पूर्व जन्मकृत पाप-दोषों को समाप्त कर, उसके जीवन से समस्त शत्रुओं का विनाश कर उसे एक चिन्तामुक्त जीवन प्रदान करती हैं। …और ये शत्रु हैं – उसके भौतिक और आध्यात्मिक जीवन की समस्त न्यूनताएं।

 


आज के युग में प्रत्येक व्यक्ति सौन्दर्य युक्त, प्रभाव युक्त, शक्तिशाली एवं अद्वितीय जीवन जीना चाहता है और इसके लिए भरसक प्रयत्न भी करता है, किन्तु अपने आप को असफल एवं असमर्थ ही पाता है और इस असमर्थता को दूर करने के लिए वह कोई भी मार्ग, कोई भी उपाय करने के लिए तत्पर रहता है, ऐसे क्षणों में यदि उसको सही मार्गदर्शन प्राप्त हो जाए, तो वह अपने जीवन के उन अभावों को दूर कर एक पूर्ण जीवन जीने का अधिकारी हो जाता है  और ऐसे पूर्ण जीवन की सृष्टि वह कर सकता है ‘ललिताम्बा साधना’ के माध्यम से।

 

सौम्य स्वरूप में देवी आद्या शक्ति, साधक के भीतर एक प्रेम भाव का विकास करती हैं। संस्कृत में ललित शब्द का अर्थ है – वह कला जो नृत्य, संगीत, सौन्दर्य, चित्रकारी इत्यादि से सम्बन्धित हो। यदि मनुष्य में सौन्दर्य भाव ही समाप्त हो जाए, तो वह मनुष्य मरता तो नहीं है लेकिन शुष्क भाव से जीवन घसीटता रहता है। ललिताम्बा शक्ति साधना साधक के भीतर ऐसा ही दिव्य रस जाग्रत करने की क्रिया है जिससे मानव, प्रकृति की हर सौन्दर्यमय वस्तु से प्रेम कर सके उसे अपने जीवन में स्थान दे सके। सामान्य रूप से पुरुष को शुष्क और नारी को रसेश्‍वरी माना गया है। भगवान शिव का सबसे बड़ा, श्रेष्ठतम् स्वरूप अर्द्धनारीश्‍वर स्वरूप ही है जिसमें आधे शरीर में वे पुरुष स्वरूप हैं और आधे शरीर में स्त्री स्वरूप हैं। इसी प्रकार शिवलिंग भी पुरुष रूप तथा स्त्री रूप का संयुक्त परिणाम है जिसमें दोनों तत्व समभाव में हैं।

 

ललिताम्बा साधना श्रृंगार तत्व और तेज तत्व का संयुक्त रूप है। ललित + अम्बा से बना है ललिताम्बा जिसके स्तोत्र की रचना स्वयं शंकराचार्य ने की। ललिता की आठ शक्तियां – प्रभा, माया, जया, सूक्ष्मा, विशुद्धा, नंदिनी, सुप्रभा एवं विजया साधक को तेजस्विता, पुरुषार्थ एवं सौन्दर्य प्रदान करने वाली हैं। भारत के कई प्राचीन मन्दिरों में ललिताम्बा कवच और स्तोत्र प्रमुख रूप से अंकित किए गए हैं। सभी साधनाओं में श्रृंगार और प्रेम ही आधार सत्य हैं।

 

मातृस्वरूपा – ललिताम्बा

 

मां कोई भी कार्य क्यों न कर रही हो, किसी भी प्रकार से व्यस्त क्यों न हो उसका सम्पूर्ण ध्यान केवल अपने बच्चे में ही लगा रहता है। हाथ कार्य में व्यस्त रहते हैं और आंखें उचक-उचक कर प्रतिक्षण अपने शिशु को निहारने में! बच्चे की कोई भी भाषा नहीं होती फिर भी मां उससे बात कर ही लेती है और भाषा का ज्ञान भी तो उसे मातृ-सुख से ही होता है। इसी से ‘मातृभाषा’ की संज्ञा प्रचलित हुई। वह केवल अपने हृदय का रक्त अपना दुग्धपान कराकर ही उसका पोषण नहीं करती, मां अपने शिशु में अपनी शक्ति, प्राण, चैतन्यता सब कुछ प्रवाहित कर देती हैं। इसी कारण से प्रत्येक व्यक्ति जीवन में अपने मातृत्व के प्रति विशेष आग्रह, प्रेम, ललक और सम्मान रखता है।

 

साधक भी यथार्थतः एक शिशु ही होता है। कोई इस शिशुत्व को सहज स्वीकार कर लेता है और किसी को आगे चलकर स्वीकार करना पड़ता है। जिसे हम अपनी साधना का बल कहते हैं क्या वह वास्तव में उसी मातृस्वरूपा भगवती जगदम्बा द्वारा दिये गये भाषा-ज्ञान के समान ही नहीं है? समस्त ज्ञान-विज्ञान, साधना और तप उसी दिव्य पुंज से ही निकलकर तो सूर्य के प्रकाश की तरह प्रत्येक व्यक्ति तक आ रहा है। जीवन की और इस युग की आपाधापी के मध्य यह बात जिनती जल्दी स्वीकार कर लें, उतना ही हितकर होगा, न केवल आध्यात्मिक रूप से वरन् भौतिक रूप से भी।

 

यों तो किसी भी देवी की पूजा व साधना की जाए, शीघ्र सफलता मिलती ही है, क्योंकि मां का हृदय तो होता ही करुणामय है, ममतामय है, अपने इसी विशालतम करुणामयी स्वरूप के कारण ही वह ‘देवी स्वरूपा’ कहलाती हैंै, और दे देती हैं वह सब कुछ, जो उसके पास है, जिससे उसके पुत्र अथवा आत्मीय को किसी भी प्रकार का कोई कष्ट न झेलना पड़े, फिर उसके जीवन में किसी भी प्रकार की बाधाएं एवं अड़चनें नहीं आतीं, वह उसके जीवन की प्रत्येक समस्याओं को दूर कर, जो उसके जीवन की उन्नति में बाधक सिद्ध हो रही होती हैं, स्वच्छ एवं सरल मार्ग प्रशस्त करती हैं, जिस पर चलकर उसका जीवन सुखमय बन जाता है, उसकी समस्त त्रुटियों की ओर ध्यान न देकर उसे सम्पन्नता युक्त जीवन प्रदान करती हैं।

 

वैसे तो व्यक्ति किसी भी देवी देवता की साधना सम्पन्न कर जीवन की बाधाओं एवं कष्टों को दूर करने में सफल हो सकता है, किन्तु जो कि शीघ्र ही प्रसन्न हो अपनी विशेष कृपा-दृष्टि साधक को प्रदान करती हैं, और वह हैं ललिताम्बा जिनके माध्यम से व्यक्ति अपने पूर्व जन्म एवं इस जन्म के दोषों को जानकर, उनमें रह गई त्रुटियों का निराकरण कर अभाव मुक्त जीवन जी सकता है। ललिताम्बा जो कि ब्रह्माण्ड की भी स्वामिनी हैं, साधक को वह सब कुछ जो उसके विचारों एवं कल्पना से भी परे हों, प्रदान करने में समर्थ हैं।

 

भगवती महाकाली – ललिताम्बा

 

कलियुग पर अर्थात् ‘कलि’ पर नियंत्रण करने का रहस्य भक्ति, आराधना या निरन्तर तोते की तरह दोहराए जा रहे धार्मिक प्रवचनों में नहीं अपितु साधनाओं में छुपा है, और वह भी तांत्रोक्त साधनाओं में साक्षात् मां भगवती जगदम्बा द्वारा उद्भूत ज्ञान की सत्यता में। ‘कलि’ पर केवल ‘काली’ ही विजय प्राप्त करने में सक्षम हैं और काली का तात्पर्य ही है तांत्रोक्त साधना। मां भगवती जगदम्बा के मूल स्वरूप महाकाली की साधना के विधान तो अथ से इति तक केवल तांत्रोक्त ही हैं, कोई भी साधना ग्रंथ उठाकर देखा जा सकता है। इन्हीं महाकाली की सर्व सौभाग्यदायक साधना प्राचीनकाल से ही ललिताम्बा साधना के नाम से विख्यात रही हैं। ललिताम्बा कोई पृथक महादेवी नहीं, वास्तव में महाकाली का ही एक विशेषण है, महाकाली के तेजस्वी व सौन्दर्यमयी स्वरूप का ही नाम ललिता है –

 

ललितं श्रृंगार भावजन्या क्रिया

विशेषः तद्वती ललिता

 

ललिता ही सम्पूर्ण तंत्र-शास्त्र की मूल देवी एवं आराध्या मानी गई हैं और यह विद्या इतनी अधिक तीव्र, गोपनीय और दुर्लभ मानी गई है कि इसको गुरु पुत्र तक को भी बताना निषिद्ध कर दिया गया था इसी से यह विद्या या साधना लुप्त एवं अप्रचलित हो गई। ललिता देवी के नाम से शक्तिपीठ अवश्य विद्यमान हैं लेकिन ललिता साधना सर्व साधारण के बीच में रहस्यमयी ही बनी रही। इसका कारण मात्र इतना ही था कि इनकी जो साधना विधि उपलब्ध थी वह इतनी अधिक तीव्र थी कि सामान्य साधक उनकी तेजस्विता सहन ही नहीं कर सकता था। प्राचीन काल में जब शिष्य, गुरु के सामीप्य में रहते थे तब गुरु सेवा के दौरान गुरु धीमे-धीमे शिष्यों का शक्तिपात करते हुए उसे इस योग्य बना देते थे कि वे कालान्तर में ललिता के मूल रहस्य एवं साधना को आत्मसात् कर सकें।

 

जगदम्बा का विराट् स्वरूप – ललिताम्बा

 

ललिताम्बा जगदम्बा का विराट स्वरूप हैं, वे ही अलग-अलग रूपों में अलग-अलग माध्यमों से हमारे जीवन का कल्याण करने वाली हमें प्रतिक्षण रंजित करने वाली इससे भी अधिक यह कि वे ही प्रतिक्षण हमारे सुख-दुःख से कातर होने वाली भी हैं।

 

यह मनुष्य का सौभाग्य ही है कि वह भगवती ललिताम्बा सिद्धि की ओर प्रवृत्त हो पाए, क्योंकि अन्य देवीयों की अपेक्षा भगवती ललिताम्बा की साधना अपने आप में उत्कृष्ट और श्रेयस्कर मानी जाती है, और अन्य ग्रन्थों जैसे शंकर भाष्य, तंत्रसार, रस तंत्र, विश्‍वामित्र संहिता आदि के अनुसार इनकी सिद्धि से प्राप्त फलों का सर्वथा उल्लेख मिलता है। वास्तव में यह साधना गोपनीय एवं दिव्य है ‘गोरक्ष संहिता’ के अनुसार यह साधना गोपनीय ही नहीं महागोपनीय है। इसे सम्पन्न कर साधक को विभिन्न लाभ प्राप्त होते हैं –

 

1. ‘शंकर भाष्य’ में कहा गया है, कि ललिताम्बा साधना सिद्ध करने के बाद साधक पूरे संसार में विजयी होता है और ‘ललिताम्बा यंत्र’ को धारण करने के बाद वह जिस व्यक्ति से भी मिलता है, उसको प्रभावित करता है और उस पर विजय प्राप्त करता है।

 

2. ‘तंत्रसार’ में बताया गया है, कि सौभाग्यशाली साधक ही ‘ललिताम्बा यंत्र’ को प्राप्त कर सकते हैं, इसे सिद्ध करने पर उनके शत्रु स्वतः ही समाप्त हो जाते हैं और जीवन में उन्हें किसी भी प्रकार का कोई भय नहीं रहता।

 

3. ‘रसतंत्र’ में बताया है, कि ‘ललिताम्बा साधना’ एक प्रकार की ‘कायाकल्प साधना’ भी है, इसके मंत्र जप से नपुंसक व्यक्ति भी पूर्ण यौवनमय एवं कामदेव के समान सौन्दर्यवान बन जाता है। यह साधना बुढ़ापे को समाप्त कर पुनः यौवन प्रदान करने में समर्थ है।

 

4. ‘मंत्र विज्ञान’ ग्रंथ में स्पष्ट रूप से कहा गया है, कि एक तो ललिताम्बा यंत्र और उससे सम्बन्धित मंत्र गोपनीय और सर्वथा दुर्लभ हैं पर यदि किसी को यह प्राप्त हो जाए, तो उसे ‘शून्य सिद्धि’ स्वतः प्राप्त हो जाती है और साधना सिद्धि होने पर वह वायु में से कोई भी पदार्थ प्राप्त करने में सफल हो जाता है और ऐसा व्यक्ति सिद्ध योगी कहलाता है।

 

5. ‘विश्‍वामित्र संहिता’ में ललिताम्बा साधना की प्रशंसा करते हुए बताया है, कि गुरु अपनी तेजस्विता से ‘ललिताम्बा यंत्र’ को सिद्ध कर शिष्य को प्रदान करें और जब शिष्य ऐसा यंत्र धारण कर साधना सम्पन्न करता है, तो उसका तृतीय नेत्र स्वतः ही स्पन्दित हो जाता है।

 

6. ‘व्यास समुच्चय’ ग्रंथ में बताया गया है, कि हजार काम छोड़ करके भी साधक को यह साधना सम्पन्न कर लेनी चाहिए, क्योंकि अन्य साधनाएं तो फिर भी प्राप्त हो सकती हैं, पर यह साधना तो कई-कई जन्मों के पुण्यों से ही प्राप्त हो सकती है।

 

साधना विधान

 

10 फरवरी 2017, शुक्रवार माघ पूर्णिमा ललिताम्बा सिद्धि दिवस है, ललिताम्बा सिद्धि दिवस के अतिरिक्त यह साधना गुरुपुष्य, रविपुष्य योग में अथवा कृष्ण पक्ष की चतुर्थी जिसे गणपति साधना दिवस कहा जाता है, उस दिन से प्रारम्भ कर सकते हैं।

 

यह विशिष्ट साधना रात्रिकालीन, तीन दिन की साधना है। साधना से पूर्व साधक स्नान आदि से परिशुद्ध होकर, पीले वस्त्र धारण कर पीले आसन पर पूर्व या उत्तराभिमुख होकर बैठ जायें।

 

अपने सामने चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर उस पर गुरु चित्र/विग्रह/यंत्र/पादुका स्थापित कर लें और दोनों हाथ जोड़कर सर्वप्रथम निखिल पूजन हेतु ध्यान करें –

 

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्‍वरः।
गुरुः साक्षात् पर ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥

 

निखिल ध्यान के पश्‍चात् गुरु चित्र/विग्रह/यंत्र/पादुका को जल से स्नान करावें –

 

ॐ निखिलम् स्नानम् समर्पयामि॥

 

इसके पश्‍चात् स्वच्छ वस्त्र से पौंछ लें निम्न मंत्रों का उच्चारण करते हुए कुंकुम, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, धूप-दीप से पंचोपचार पूजन करें –

 

ॐ निखिलम् कुंकुम समर्पयामि।
ॐ निखिलम् अक्षतान समर्पयामि।
ॐ निखिलम्  पुष्पम् समर्पयामि।
ॐ निखिलम् नैवेद्यम् निवेदयामि।
ॐ निखिलम् धूपम् आघ्रापयामि, दीपम् दर्शयामि।                               (धूप, दीप दिखाएं)

 

अब तीन आचमनी जल गुरु चित्र/विग्रह/यंत्र/पादुका पर घुमाकर छोड़ दें। इसके पश्‍चात् गुरु माला से गुरु मंत्र की एक माला मंत्र जप करें –

 

ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः

 

निखिल पूजन के पश्‍चात् बाजोट पर ही तांबे की एक प्लेट में कुंकुम से ‘ह्रीं’ लिखकर ‘ललिताम्बा यंत्र’ को उस पर स्थापित कर दें। फिर यंत्र के आगे आठ सुपारी रखकर आठ शक्तियों का पूजन कुंकुम, अक्षत से करें।

 

ॐ प्रभायै नमः, ॐ मायायै नमः
ॐ जयायै नमः, ॐ सूक्ष्मायै नमः
ॐ विशुद्धायै नमः ॐ नन्दिनीयै नमः
ॐ सुप्रभायै नमः ॐ विजयायै नमः

 

इसके पश्‍चात् यंत्र का अक्षत, धूप, दीप, चन्दन, पुष्पादि से यथा विधि पूजन करके, अपने दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प करें, कि मैं अमुक गोत्र, अमुक नाम का साधक भगवती ललिताम्बा की कृपा प्राप्ति हेतु तथा सकल मनोरथ सिद्धि और भूत भविष्य जानने हेतु इस मंत्र जप को सम्पन्न कर रहा हूं। ऐसा कहकर फिर उस जल को जमीन पर छोड़ दें, तथा 35 मिनट तक मूंगा माला से निम्न मंत्र जप सम्पन्न करें, ऐसा तीन दिन तक करें।

 

मंत्र
ॐ ह्रीं ह्रीं ललिताम्बायै फट्

 

साधना के पश्‍चात् साधक ललिताम्बा कवच का पाठ भी अवश्य सम्पन्न करें और इस कवच को एक कागज पर लिखकर सदैव अपनी जेब में अथवा बटुए में रखें, जब भी इच्छा हो एक बार कवच का पाठ अवश्य करें।
तीन दिन तक पूर्ण विधि-विधान से साधना सम्पन्न करने के पश्‍चात् अगले दिन सम्पूर्ण साधना सामग्री को जल में विसर्जित कर दें।

 

साधना सामग्री – 480/-

Lalitamba Siddhi Diwas

10 February 2017

Gentle Raseshwari Goddess

Lalitamba

The Diety of Art, Beauty and Personality

Lalitamba means Lalit (Arts) + Amba (Mother), which combines the arts and intensity.

The eight powers of Mother Lalitamba – Prabha, Maya, Jaya, Sukshma, Visuddha, Nandini, Suprabha and Vijaya bestow glory, honour and beauty to the Sadhak.

There are multiple forms of Goddess – Jagdamba, Durga, Tara, Kali, etc., but there is one more discrete form “Lalitamba” who owns all Siddhis of the universe. She nurtures-blesses the Sadhak through Her love, affection and compassion, apart from bestowing him a worry-free life by annihilating the sins of his past lives and destroying all his enemies… And these enemies are – all the inadequacies of his material and spiritual life.


Every person is this age wishes to lead a life full of beauty, impact, power and unique; and tries many endeavours to attain it. However, he encounters failure at each step, and he is ever-ready to follow any path, to do anything, to remove this failure. If he obtains proper guidance during such moments, then he is able to lead a complete life by eliminating those inadequacies. He can create such a complete life only through Lalitamba Sadhana.

Goddess Aadya Shakti in Her benign form nurtures the love feelings in the Sadhak. The literal meaning of word Lalit in Sanskrit means – the fine art related to dance, music, beauty, painting, etc. If the aesthetic sense dies in a person, then that person does not perish, however his life becomes dry and dreadful. The Lalitamba Shakti Sadhana is the process to awaken such a divine juice within the Sadhak, to infuse him to love every beautiful object in the nature, and give them a place in his life. Generally the man has been considered dry and woman has been considered as full of sweet juices. The mightiest, soundest form of Lord Shiva is the Ardhanareeswara form, in which his half-body is male and another half is female. Similarly the Shivling is also a combination of both male and female forms, in which both elements are in complete harmony. The Lalitamba Sadhana is a combination of both beauty and intensity elements. The word Lalitamba is made of Lalit + Amba, whose stotra was composed by Shankaracharya himself. The eight powers of Lalitamba –  Prabha, Maya, Jaya, Sukshma, Visuddha, Nandini, Suprabha and Vijaya bestow glory, honour and beauty-personality to the Sadhak. The Lalitamba Kavach and Stotra has been prominently displayed at many ancient temples of India. The basic foundation of all Sadhanas is beauty and love.

 

Matraswaroopa (Maternal Form) – Lalitamba

A mother might be doing any work, she might be busy in performing any task, but her full focus is always concentrated on her child. The hands are engaged in performing the tasks, and the eyes are busy in monitoring her child at every moment. A baby does not have any language, however, the mother manages to communicate with her. A baby learns the language also from her mother’s mouth. Hence the term “Matrabhasha” (Mother-tongue) originated. Not only does she nurture the baby through her milk from the blood of her heart, rather she pours her entire strength, vitality and consciousness into her baby. Therefore every person maintains a special feeling, love, deference and respect towards his mother.

A Sadhak is also similar to a child. Some automatically accept this childhood, while others accept it later on. What we term as spiritual Sadhana energy, isn’t is similar to the linguistic knowledge imparted by maternal Bhagwati Jagdamba? The entire knowledge-wisdom, sciences, Sadhana and penances emanate from that Divine source to each person, in a similar fashion as rays emanating from the Sun. The quicker we accept this fact in the rat-race of our life, the better it will be; both from the material and spiritual perspective.

One always obtains success in any Sadhana or worship of mother Goddess, because the heart of mother is always full of compassion and maternal love. She is called “Devi Swaroopa” due to this compassionate nature, and she bestows whatever she has, to her child; to prevent any harm or suffering to her child. Then the Sadhak does not face any problem or trouble in his life, the mother Goddess eradicates all obstacles and hurdles in his life,  and paves a smooth and pure path for his life. This enriches his life, and mother Goddess provides all kinds of prosperities to him ignoring all his faults and omissions.

Generally a person can successfully remove troubles and obstacles in his life by performing Sadhana of any deity. However if he wishes to obtain this compassion and love quickly; then Lalitamba Sadhana is the only way to analyse the sins of current and past lives, and lead a fulfilling flawless life. Goddess Lalitamba is the owner of the universe, and can bestow everything to the Sadhak, even beyond his imagination and thinking.

 

Bhagwati Mahakali – Lalitamba

The secret to gain control over Kaliyuga or rather “Kali” is not within the devotion, worship or religious discourses being repeated in parrot-like fashion. This mystery is hidden within the Tantrik Sadhana practices, and that too, within the truth of the knowledge bestowed by Mother Bhagwati Jagdamba. Only “Kaali” is capable to vanquish “Kali”, and Kaali implies Tantrokt Sadhanas. The complete Sadhana process of Mahakaali Sadhana (the basic form of Mother Bhagwati Jagdamba) is just Tantrik, this fact can be verified by studying any Sadhana scripture. The ever-fortune-bestowing Sadhana of Mother Mahakaali, has always been known as Lalitamba Sadhana from times immemorial. Lalitamba is not a separate Mahadevi Goddess, rather, She is a form of Mahakali. In reality, the intense beautiful form of Mahakaali is called Lalita –

Lalitam Shringaar Bhaavajanyaa Kriyaa

VisheshaH Tadvatee Lalitaa

Lalita is the basic foundation Goddess of entire Tantra-science. This practice has been considered so intense, secret and rare, that even the children of Guru were not taught this Sadhana unless they attained capability and proved their worth. Gradually this knowledge became lost and unknown. A Shaktipeeth exists in Lalita Goddess name, however the Lalita Sadhana has been generally considered mysterious within the society. The only reason for this confidentiality was that a normal Sadhak could not withstand the intensity of the Sadhana performed according to the available scriptures. The disciples used to stay with Guru in the ancient times, and the Guru used to make the disciple worthy and capable by gradually imparting Shaktipaat over a long period. This enabled the disciples to attain and assimilate the intense power of Lalita Sadhana.

 

Viraata form of Jagdamba – Lalitamba

Lalitamba is the gigantic form of Jagdamba. She cares and nurtures us at each moment through different medium in multiple forms. She is always concerned about our joys and sorrows.

It is a person’s good fortune to be inclined towards accomplishment of Bhagwati Lalitamba Sadhana, because this Sadhana is the most excellent and extremely beneficial Sadhana. Multiple scriptures like Shankar Bhaashya, Tantrasaar, Rasa Tantra, Vishwamitra Sanhita etc. comment on the benefits after accomplishment of this Sadhana. This Sadhana is indeed confidential and divine. Goraksh Sanhita terms this Sadhana as ultra-confidential. A Sadhak obtain multiple benefits after accomplishing this Sadhana –

  1. Shankar Bhashya” comments that the Sadhak becomes victorious throughout the world after accomplishing this Sadhana. He influences and wins over any person whom he meets after wearing “Lalitamba Yantra“.
  2. Tantrasaar” states that only fortunate persons can obtain “Lalitamba Yantra“. This leads to complete annihilation of the enemies, and removes fear of any kind from the life.
  3. Rasa Tantra” explains that Lalitamba Sadhana is also a kind of “Kayakalp Sadhana“. Even a eunuch can become fully potent and Kaamdev-like handsome through this Mantra chanting.This Sadhana has the capability to remove geriatric-effects and attain youthful rejuvenation.
  4. The “Mantra Vigyan” text clearly states the secret-confidential nature of Lalitamba Yantra and Mantra. An accomplished Sadhak easily attains “Sunya Siddhi” and he can easily fetch any substance from the air. Such a person is called Siddha-Yogi.
  5. Vishwamitra Sanhita” while praising Lalitamba Sadhana tells the Guru to bestow a consecrated sanctified “Lalitamba Yantra” to the disciple. The third-eye of the Sadhak automatically awakens after performing Sadhana wearing such a Yantra.

6 “Vyaas Samuchchaya” scripture explains that the Sadhak should leave everything else to focus on this Sadhana. One can accomplish other Sadhanas at any other time, but accomplishment in this Sadhana can be obtained only through the virtues of many-many lives.

 

Sadhana Procedure

10 February 2017, Friday, Magh Poornima is Lalitamba Siddhi Diwas. This Sadhana can also be started on Gurupushya or Ravipushya Yogas, or on the Fourth day of Krishna (dark) fortnight, which is also called as Ganpati  Sadhana Diwas.

This special Sadhana is a three-day, nocturnal Sadhana.  The Sadhak should purify himself after taking a bath, and adorning yellow garments should sit facing East or North direction on a Yellow asana seat.

 

Spread a yellow cloth on a wooden board in front and set up Guru Picture/ Guru Statue/ Guru Paaduka/ Guru Yantra. Meditate on the divine form of Gurudev Nikhil with folded hands to pray for success and blessings in the Kinnari Sadhana-

GururBrahmaa GururVishnuH Gururdevo MaheshwaraH |

GuruH Saakshaat Par Brahmaa Tasmei Shree Guruve NamaH ||

 

Bathe the Guru Picture / Statue/ Yantra / Paduka with water after Nikhil meditation –

Om Nikhilam Snaanam Samarpayaami ||

 

Then wipe with a clean cloth. Perform Panchopchaar worship-poojan with Kumkum (Vermilion), Akshat (Unbroken rice), Pushpa (Flowers), Neivedh (Sweets/Fruit offering), Dhoop (Incense) – Deep (Lamp); chanting following mantras –

Om Nikhilam Kumkum Samarpayaami |

Om Nikhilam Akshtaan Samarpayaami |

Om Nikhilam Pushpam Samarpayaami |

Om Nikhilam Neivedhyam Nivedayaami |

Om Nikhilam Dhoopam Aardhyaapayaami, Deepam Darshayaami |

(Show Dhoop, Deep)

 

Now rotate three Achmaani (spoonful) water around the  Guru Picture / Statue/ Yantra / Paduka and drop it on ground. Then chant 1 rosary-round of Guru Mantra with Guru Mala –

Om Param Tatvaaya Naaraayanaaya Gurubhayo Namah

 

After completing Panchopchaar Guru poojan, place a copper plate on the yellow cloth near Guru picture.  Write “Hreem” on this plate with Kumkum and setup “Lalitamba Yantra” on this plate. Thereafter, setting-up eight Supaari (Betel-nut) in front of the Yantra, perform worship of Eight Shaktis through Kumkum and rice-Akshat –

Om Prabhaayei NamaH ; Om Maayaayei NamaH

Om Jayaayei NamaH ; Om Sukshamaayei NamaH

Om Vishuddhaayei NamaH ; Om Nandineeyei NamaH

Om Suprabhaayei NamaH ; Om Vijayaayei NamaH

 

Then complete the Yantra worship with Akshat, Dhoop-incense, Deep-lamp, Chandan-sandalwood etc. Thereafter, taking water in right palm pledge that, I, a Sadhak of <> Gotra and <> name am performing this Mantra-chanting to obtain divine blessings of Bhagwati Lalitamba, to accomplish all my wishes and to gain knowledge about my past-future. Then let the water flow on ground. Chant following Mantra for 35 minutes with Moonga mala-rosary. Perform this for three days.

Mantra

Om Hreem Hreem Lalitaambaayei Phat

After accomplishing the Sadhana, the Sadhak should also chant the Lalitamba Kavach. Write the Kavach on a piece of paper, and the Sadhak should always keep this paper with him in pocket or a purse. Chant the Kavach whenever the Sadhak feels a desire to do so.

After accomplishing this Sadhana with full procedure-practice for three days, the entire Sadhana-materials should be dropped in a running stream of water the next day.

Sadhana Materials – 480 /-

error: Jai Gurudev!