Karthik Month

कार्तिक माह
06 अक्टूबर 2017 से 04 नवम्बर 2017

 

कार्तिक मास के आप सभी को अग्रिम शुभकामनाएं

 

न कार्तिकसमो मासो न कृतेन समं युगम्
ने वेद सदृशम् शास्त्रं न तीर्थम् गंगा समम्
– स्कन्दपुराण

 

कुमार कार्तिकेय ने भगवान शिव से पूछा कि कार्तिक मास को सबसे पुण्यदायी मास क्यों कहा जाता है? इस पर भगवान शिव ने कहा -उसी प्रकार जैसे न सतयुग के समान युग, न वेदों के सदृश शास्त्र हैं और न गंगा के समान तीर्थ, कार्तिक मास के समान दूसरा कोई भी महीना नहीं है। धर्मशास्त्रों में कार्तिक मास को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाला बताया गया है।

 

साल के बारह महीनों में धार्मिक दृष्टिकोण से कार्तिक महीने का सर्वाधिक महत्त्व है। इस महीने में कई महत्त्वपूर्ण त्यौहार आते हैं, जैसे करवाचौथ, अहोई अष्टमी, तुलसी एकादशी, धन त्रयोदशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा, भाईदूज, डाला छठ, अक्षय नवमी, देवउठनी एकादशी, तुलसी विवाह, कार्तिक पूर्णिमा आदि, कार्तिक मास शरद पूर्णिमा की रात से शुरू हो जाता है। कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात को ही श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ रास रचाया था। जरूर उस रात अमृत की वर्षा हुई होगी चांद से और तबसे आज तक परम्परा कायम है कि शरद-पूर्णिमा की रात को धरती पर अमृत की वर्षा होती है, तभी तो आज भी खीर बनाकर उसे चांद की चांदनी में नहाने के लिए छोड़ दिया जाता है, जिससे वह अमृत में बदल जाए।

 

अर्थ प्राप्ति का मास

 

कार्तिक का महीना आरोग्य और अर्थ प्राप्ति का महीना है। भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी को भी यह महीना अतिप्रिय है। शास्त्रानुसार इसी मास में भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था और मां लक्ष्मी तो शरद पूर्णिमा की रात से ही गृहस्थों और संन्यासियों से प्रश्‍न करना शुरू कर देती हैं,‘को जाग री?’ अर्थात् कौन जग रहा है? किसने जड़ता (Procastrination) या टाल-मटोल, आलस्य, अज्ञानता का त्याग कर दिया है?

 

कार्तिक मास को लक्ष्मी मास भी कहा गया है, क्योंकि इस महीने में देवी लक्ष्मी धरती पर विचरण करती हैं और अपने साधकों को अभय वर देती हैं। लक्ष्मी साधना के लिए कार्तिक मास से उपर्युक्त अन्य कोई मास नहीं है और इस मास में साधक को अधिक से अधिक साधनाएं सम्पन्न करनी चाहिए।

 

धर्म का मास

 

कार्तिक मास में तुलसी पूजन का विशेष महत्व है। इस महीने में स्वयं भगवान श्रीकृष्णतुलसी की पूजा निम्नलिखित मंत्र से करते हैं-

 

वृंदावनी, वृंदा, विश्‍वपूजिता, पुष्पसार
नंदिनी, कृष्णजीवनी, विश्‍वपावनी, तुलसी

 

ऐसी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा को जो भी श्रद्धालु तुलसी की पूजा करते हैं, वो वृन्दावन जाने के अधिकारी हो जाते हैं। इस मास में प्रातः और सांयकाल तुलसी के समक्ष दीप जलाना चाहिए।

 

पद्म पुराण में श्रीकृष्ण और सत्यभामा के बीच हुए संवाद में दीपदान की अद्भुत महिमा का पता चलता है। कहा जाता है कि दीपदान करने से अश्‍वमेघ यज्ञ से भी अधिक फल मिलता है। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को श्रीविष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं और फिर चार माह बाद तुला राशि में सूर्य के जाने के बाद उन्हें उठाया जाता है। इस दिन को देवोत्थानी एकादशी(देव उठनी एकादशी) कहा जाता है। पूरे कार्तिक मास दीपदान द्वारा भक्त अपने भगवान को जागने का संकेत भेजते हैं।

 

देखा जाए तो जैसे-जैसे जाड़ा समीप आता है, रातें अंधेरी होती जाती हैं। इस कारण दीपदान का महत्व बढ़ जाता है। सूर्योदय के पूर्व जगकर स्नान करने का विशेष लाभ है। वैसे भी जब महालक्ष्मी प्रश्‍न कर रही हों कि, को जाग री? तो जो सचेत हैं उनको जगना तो पड़ेगा न, क्योंकि प्रातःकाल स्नान, ध्यान अनिवार्य है।

 

पद्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति कार्तिक मास में नियमित रूप से सूर्योदय से पूर्व स्नान करके धूप, दीप सहित भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, वे भगवान विष्णु को प्रिय होते हैं।

 

कार्तिक मास को आरोग्य का महीना भी कहा गया है। जहां बारिश के मौसम में सौ तरह की बीमारियां हमें प्रताड़ित करती हैं, वहीं कार्तिक माह में सूर्य और चन्द्रमा की किरणों का मनुष्य के स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इस कारण से मनुष्य के मन और मस्तिष्क में आनन्द का संचार होता है।

 

कैसे चंचला लक्ष्मी को अचल किया जाए?

 

सदियों से गृहस्थों को यह प्रश्‍न सालता रहा है। हमेशा लक्ष्मी के साथ चंचला विशेषण एक भय का भाव जगा देता है। क्या पता कल धन रहे या ना रहे? फिर तो डरा मन उस धन की पहरेदारी शुरू कर देता है, पर अगर लक्ष्मी ने मन बना लिया है तो फिर उन्हें कोई रोक सकता है क्या? दरअसल, लक्ष्मी को अचल करने का सिद्धान्त तो शास्त्रों में स्पष्ट रूप से वर्णित है।

 

मां लक्ष्मी का वहां निवास होता है, जहां सत्य हो, धर्म के अनुसार कार्य होते हों, व्रत और दान देने के कार्य होते हों, जहां गुरु का आदर होता हो, स्त्रियों का सम्मान होता हो, दुर्बलों की रक्षा की जाती हो और अहंकार से दूरी हो, वहां पर मां लक्ष्मी का स्थायी वास होता ही है। मां लक्ष्मी को स्वच्छता से विशेष प्रेम है, तभी तो दीपावली पर घर को साफ और स्वच्छ रखने की परम्परा शुरू हुई है। अब अगर लक्ष्मी को अचल करना है तो स्वच्छता नित्य होनी चाहिए, तन की भी, मन की भी और आपके घर की भी। तन की और घर की स्वच्छता कैसे रखी जा सकती है, यह तो आप सब अच्छी तरह जानते ही हैं।

 

मन की स्वच्छता के लिए मन को शुद्ध और विकार रहित होना चाहिए। उसमें सद्भावना, संस्कार और सौहार्द्र का वास होना चाहिए। जहां ये गुण आपसे रूठे, कोई उपाय लक्ष्मी को जाने से रोक नहीं पाएगा। तंत्र विशारद रावण की सोने की लंका भी तो खाक हो गई थी, जब उसके मन में दुर्भावना और अहंकार का साम्राज्य फैल गया।

 

लक्ष्मी का अर्थ जन-साधारण ने ‘धन’ मान लिया है। धन, लक्ष्मी की एक अभिव्यक्ति है, पर उनका सम्पूर्ण रूप नहीं है। सोचकर देखिए आज तक कोई अपने बच्चे का नाम कंस, जरासंध, रावण या शूर्पनखा क्यों नहीं रखता है? ये सारे लोग राजघराने से थे, अत्यंत अमीर थे फिर इनके नाम पर तो बच्चों का नाम रखा जाना चाहिए था, पर ऐसा हुआ नहीं क्योंकि ये सब लोग ‘श्री-विहीन’ थे। इनके पास धन तो था, पर ये धर्म से विमुख थे। धन तो लूट-खसोट कर, चोरी-डकैती करके भी अर्जित कर लिया जाता है, पर उसके साथ आंसू भरी सिसकियां और आहें भी साथ आती हैं। इसलिए मां लक्ष्मी का पथ कर्त्तव्य का मार्ग है, उत्तरदायित्त्वों के निर्वाह की ओर जाने वाला रास्ता है और यह धर्म से होकर जाता है।

 

महालक्ष्म्यै च विद्महे सर्वशक्त्यै च
धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात।

 

सर्वशक्तिमान लक्ष्मी अपनी कृपा से हमें सत्प्रेरणा देकर सत्कर्मों की ओर प्रवृत्त करें, यही हमारी प्रार्थना होनी चाहिए भगवती लक्ष्मी से।

 

कामना-कार्य-कर्त्तव्य

 

धन के साथ सबसे बड़ी समस्या क्या है? कामना, जितनी  कामनाएं मन में उठती हैं, उन्हें पूरा करने के लिए धन कम पड़ जाता है। अब कामना भी जायज है और धनाभाव एक द्वन्द्व खड़ा कर देता है, कि कैसे धन की कमी को दूर किया जाए? मार्ग तो सामने है, उसे कर्म कहते हैं और उस कर्म पथ पर जब आप आगे बढ़ते हैं तब आपके मन का भय और आशंकाएं स्वतः ध्वस्त हो जाती हैं। जिन्दगी में सौ सवाल और आशंकाएं इसलिए हैं, क्योंकि हम पहल करने से डरते हैं। पहले आप, पहले आप की तर्ज पर जिन्दगी की गाड़ी छूट जाती है। इसलिए आप गांठ बांधिए इन बातों को करने की –

 

किसी से बात करनी हो – फोन करें
मन में कुछ विचार चल रहा हो – प्रश्‍न करें
काम करने में आशंका लगे – पहल करें
कर्त्तव्य के पथिक को महालक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता ही है।

Kartik month

06 October 2017 to 04 November 2017

 

Best wishes to all of you for the Kartik month

 

Na Kaartikasamo Maaso Na Kriten Samam Yugam

Ne Veda Sadrisham Shaastram Na Teertham Gangaa Samam

-Skandapoorana

 

Kumar Kartikeya asked Lord Shiva the reason for considering the Kartik month as the most virtuous month? Lord Shiva answered- No other month is as pious and virtuous as the Kartik month, as no other age is as golden as the Satyuga, no other Shastra is as perfect as the Vedas, and no other place is as sacred as the holy Ganga. The holy scriptures consider Kartik month as the bestower of Righteousness, Wealth, Desires and Salvation.

The Kartik month has the highest religious significance out of the twelve months of the year. Many important festivals like Karva Chouth, Ahoi Ashtami, Tulsi Ekadashi, Dhan Trayodashi, Deepawali, Govardhan Pooja, Bhaidooj, Dala Chhatt, Akshaya Navami, Devauthani Ekadashi, Tulsi Vivah, Kartik Poornima etc. occur during the Kartik month. The Kartik month starts from the night of the Sharad Poornima. It is said that Lord Krishna performed Rasa-Leela with the Gopis on the night of the Sharad Poornima. Nectar would have certainly rained from the Moon that night. The tradition continues to this day. Even now, Kheer is left to bathe in the moon-light, to transform into the divine elixir.

 

The Month of Attaining Wealth

The month of Kartik is the month to obtain health and wealth. This month is also very dear to Lord Vishnu and Goddess Mother Lakshmi. According to the scriptures, Lord Vishnu incarnated in the Fish form in this month. Mother Lakshmi starts questioning the householders and ascetics from the night of Sharad Poornima – “Ko Jaag Ri?”, or “Who is awake?” Who has renounced the inertia, procrastination, laziness and ignorance?

The Kartik month is also called as the month of Mother Lakshmi, because Goddess Lakshmi roams on the earth in this month and bestows invincibility-protection to Her Sadhaks. No other month is as appropriate as the Kartik month for the Lakshmi Sadhana, and the Sadhak should perform as many Sadhanas as possible during this month.

 

The Month of Religion

Tulsi worship is of particular importance in the Kartik month. Lord Krishna Himself worships Tulsi during this month through the following Mantra –

 

Vrindaavani, Vrindaa, Vishvapoojitaa, Pushpasaar

Nandini, Krishnajeewanee, Vishvapaavanee, Tulasee.

 

It is believed that every devotee who worships Tulsi on Sharad Poornima earns the capability to go to Vrindavan. One should light a lamp to Tulsi on mornings and evenings during this month.

In the Padma Poorana, the interaction between Shree Krishna and Satyabhama reveals the wonderful glory of the Deepdaan. It is said that Deepdaan bestows better fruits compared to even Ashwamedha Yagya. Shree Vishnu takes rest in Ksheer-sagar on the Shukla Paksh Ekadashi of Aashaad month, and He is woken up after four months at the entry of Sun into the Tula (Libra) constellation. This day is termed as Devotthaani Ekadashi (Deva Uthani Ekadashi). The devotee sends wake-up message to His Lord during the Kartik month through Deepdaan.

Another perspective is, as the winter approaches, the nights start getting longer and more darker. This enhances the significance of Deepdaan. There is a special advantage in bathing before sunrise. Anyway, when Mahalaxmi is questioning that, Who is awake? Those who are alert-conscious have to certainly get up because the bathing-meditation is mandatory in the morning.

According to Padma Purana, those who worship Lord Vishnu through Dhoop (Incense) and Deep (Lamp) regularly during Kartik month after bathing before sunrise, they become very  dear to Lord Vishnu.

Kartik month has also been termed as the month of health. While hundreds of different kinds of diseases torment us during the rainy season, the rays of Sun and Moon cast a positive effect on our health during the Kartik month. This transmits joy into the mind and intellect of the men and women.

 

How to make Chanchala Lakshmi stationary?

This question has been asked by the householders over the centuries. This adjective of Chanchala (always on the move) associated with Lakshmi gives rise to fear. Will this wealth remain with us tomorrow or not? The fearful mind starts guarding this wealth. However, can anyone stop Lakshmi if She has decided to move away? Actually, the principle of stabilizing Lakshmi is clearly described in the scriptures.

Mother Lakshmi resides wherever Truth is present, where actions occur in accordance with the religion, where fasting and charitable-donations occur, where Guru is revered, where women are respected, where weak people are protected and ego is kept at an arm’s length. Mother Lakshmi has special love with cleanliness, and this started the tradition of cleaning the house at Deepawali. This cleanliness of your body, your mind and your home should be permanent to make Lakshmi stable. You are well aware of how to maintain cleanliness of the physical body and of your house.

The mind should be pure and unblemished to be cleansed. It should have a sense of goodwill, rituals and harmony. You will not be able to prevent departure of Lakshmi in absence of any of these qualities. Even Lanka, the city of gold, owned by Ravana, the master of Tantra got burnt to ashes, upon entry of malice and ego into his mind.

The common people consider “wealth” as the meaning of Lakshmi. Wealth is an expression of Lakshmi, but this is not Her complete form. Have you ever thought why nobody names their children as Kansa, Jaraasangha, Ravan or Suparnakha? All of them hailed from royal families and were extremely rich. We do not name our children after them because all of them were “Shree-vihin” (without-Shree). They had wealth but they lacked righteousness.  One can earn wealth by robbery and theft also, but  tears and dreadful sighs accompany such wealth. Therefore, the path of Mother Lakshmi is the path of duty, it is the path towards  performing our duties and it goes through righteous religion.

 

Mahaalakshmyei Cha Viddmahe Sarvashaktayei Cha

Dheemahi Tanno Devee Prachodayaat |

 

May Almighty Lakshmi, in Her eternal grace, inspire us towards righteous good deeds; this should be our prayer to Mother Bhagwati Lakshmi

 

Desire-Action-Duty

What is the biggest problem with money? Desires, whatever wishes arise in the mind, the money becomes insufficient to fulfill them. Now having desires is fully justified and the paucity of wealth creates a quandary about how to remove this lack of money? The path in front is called Karma and when you tread on that Karma path of action, then the fears-apprehensions within your mind automatically vanish. We get into hundreds of questions and apprehensions in life, because we are afraid to take the initiative of taking the first step. Our habit of letting others take the initiative, makes us miss the golden opportunity. Therefore you should make a note to always –

Need to talk to someone – Phone them

A thought pervading the mind – Ask question

Apprehension in doing a task – Take initiative

 

The one treading the path of duty always receives divine blessings of Mahalakshmi.

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