Haridra Ganapti Sadhana

एकदन्तं महाकायं लम्बोदरं गजाननम्
विघ्ननाशकरं देवं हेरम्बम् प्रणमाम्यहम्
जो एक दांत से सुशोभित हैं, विशाल शरीर वाले लम्बोदर हैं गजानन हैं तथा जो विघ्नों के विनाशकर्ता हैं, उन गणपति को प्रणाम है।

 

विघ्न और शत्रु बाधा निवारक तीव्र

तंत्र साधना

हरिद्रा गणपति साधना


गणपति शिव के समस्त गणों के स्वामी हैं एवं उनकी पूजा के बगैर कोई भी शुभ कार्य शुरू नहीं होता है क्योंकि वे विघ्नहर्त्ता हैं। उनकी आराधना के बिना किसी भी कार्य का बिना दोष (विघ्न) के सम्पन्न होना दुर्लभ होता है, ऐसा चाणक्य का मानना है।

 

विघ्न या बाधाएं सबसे अधिक गुप्त शत्रुओं के द्वारा रची जाती हैं और इन शत्रुओं से रक्षा विघ्नहर्त्ता करते हैं।

 

गणपति की उत्पति की कथा तो आपको ज्ञात ही है। अपने शरीर पर लेपे गए हल्दी मिश्रित उबटन से देवी पार्वती ने गणपति को रचा और उन्हें अपने स्नान के दौरान आने वाले विघ्नों को दूर रखने की आज्ञा दी। हल्दी मिश्रित उबटन से उत्पन्न होने के कारण उनका रंग हल्दी की तरह पीला हुआ और वे विघ्नहर्त्ता हैं।

 

गणपति के इस प्रसंग में अनेक प्रतीक हैं। किसी भी कार्य के सम्पूर्ण होने में लॉजिक या बुद्धि आपको अनेक प्रश्‍नों पर अटकाते हैं, जैसे-
1. अगर मैं सफल नहीं हो पाया तो?
2. मेरी कार्यक्षमता कम तो नहीं है?
3. क्या शत्रु मुझ पर हावी हो जाएंगे?
4. लोग मेरे बारे में क्या सोचते हैं?
बुद्धि का काम अति-विश्‍लेषण करना है, जिसके फलस्वरूप आप द्वन्द्व में उलझे रहते हैं। शिव ने गणपति का सिर अलग किया क्योंकि शिव पारमेष्ठि गुरु हैं और हमें द्वन्द्वों से परे ले जाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

 

प्रथम पूज्य गणपति हमारा सूत्र पशुपति शिव से जोड़ते हैं जिसके बाद समस्त कार्य निर्द्वन्द्व सम्पन्न हो जाते हैं। द्वन्द्व हमारे कार्यों की सिद्धि में सबसे बड़े विघ्न हैं। इन विघ्नों के कारण ही हम कई कार्यों को आरम्भ ही नहीं करते हैं इसे टालमटोल भी कहते हैं।

 

दूसरा विघ्न हमारे मन में छुपा अहंकार है। इस बात का अहसास कि यह कार्य मेरे लिए छोटा है, या मेरे लायक नहीं है, दरअसल हमें छोटा बना रहा है।

 

गणपति का सिर हाथी का है जो पशुओं में सबसे बड़ा है। उनकी साधना हमें विराटता की ओर ले जाती है। विराटता के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा शत्रु हैं जिनका अन्त हरिद्रा गणपति साधना द्वारा सम्भव है।

 

जीवन में जिसके पास आकर्षण-शक्ति है, उसमें अपने शत्रुओं को स्तम्भित करने की क्षमता होती है और ऐसे व्यक्ति ही पूर्ण सफल रहते हैं। तंत्र शक्ति युक्त हरिद्रा गणपति, गणपति साधना का सर्व श्रेष्ठ स्वरूप है।

 

साधक जब भी अपने जीवन में शत्रु बाधा से ग्रसित हो या शत्रु पक्ष उस पर हावी होने का प्रयास कर रहा हो तो भगवान गणपति के हरिद्रा स्वरूप की साधना अवश्य सम्पन्न करनी चाहिए। भगवान गणपति विघ्नहर्त्ता हैं और जीवन में नित्य प्रति के विघ्न तो भगवान गणपति के स्मरण मात्र से समाप्त हो जाते हैं।

 

हरिद्रा गणपति का स्वरूप साधक को स्तम्भन शक्ति से युक्त कर देता है जिससे शत्रु पक्ष शांत हो जाते हैं और उनके द्वारा उत्पन्न किये हुए विघ्न भी समाप्त हो जाते हैं। हरिद्रा गणपति साधना की पूर्णता होते-होते शत्रु पक्ष आपके अनुकूल होकर आपके पक्ष में हो जाता है।

 

साधना विधान

 

किसी भी बुधवार अथवा शुभ मुहूर्त में हरिद्रा गणपति साधना प्रारम्भ की जा सकती है। यह साधना प्रातः अथवा रात्रि किसी भी समय की जा सकती है। हरिद्रा गणपति साधना में समय की बाध्यता नहीं है। इस साधना को साधक अपने समय अनुकूल सम्पन्न कर सकता है।

 

हरिद्रा गणपति साधना में सवा लाख मंत्र जप का विधान है। परन्तु साधकों की सुविधा हेतु गुरुदेव द्वारा विशेष ‘प्राण प्रतिष्ठित हरिद्रा गणपति यंत्र’ एवं ‘पीठ माला’ का निर्माण करवाया गया है, जिससे साधक 21 दिन तक नित्य 21 माला जप करके ही इस साधना की पूर्णता प्राप्त कर सकता है। 21 दिवसीय साधना क्रम में साधक नित्य गुरु पूजन, संकल्प, विनियोग, अंग न्यास, ध्यान के पश्‍चात् ही मंत्र जप करें।

 

साधना दिवस पर साधक स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें और अपने पूजा स्थान में पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठें। अपने सामने एक बाजोट पर लाल वस्त्र बिछा लें और स्वयं भी एक लाल या पीले ऊनी आसन पर बैठ जाएं।

 

सर्वप्रथम बाजोट पर गुरुदेव का चित्र, विग्रह स्थापित कर धूप और दीप जला लें और गुरुदेव का पंचोपचार पूजन सम्पन्न कर लें। किसी भी साधना-पूजन की पूर्णता गुरुदेव निखिल के आशीर्वाद के बिना संभव ही नहीं है। गुरुदेव से साधना की सफलता का आशीर्वाद प्राप्त कर हरिद्रा गणपति साधना पूजन प्रारम्भ करें।

 

गुरु पूजन के पश्‍चात् गुरु चित्र के सामने ही एक प्लेट में कुंकुम से स्वस्तिक चिन्ह बनाकर उस पर ‘हरिद्रा गणपति यंत्र’ को स्थापित करें। यंत्र के सामने ही ‘पीठ माला’ को स्थापित कर लें। दोनों का पंचोपचार पूजन – कुंकुम, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप से करें। इसके पश्‍चात् दाहिने हाथ में जल लेकर अपनी शत्रु बाधा शांत होने और शत्रु पक्ष को अपने अनुकूल करने का संकल्प लें।

 

संकल्प

 

ॐ विष्णु र्विष्णु र्विष्णुः अमुक गोत्रीयः (अपना गोत्र बोलें) अमुक शर्माऽहं (नाम बोलें) सर्व बाधा निवारणाय, सर्व शत्रु स्तम्भय निमित्तं मन वचन कर्मणा साधना अहं सम्पर्ददे।

 

उसके पश्‍चात् जल जमीन पर छोड़ दें।

 

विनियोग

 

संकल्प के पश्‍चात् पुनः दाहिने हाथ में अक्षत के दाने और जल लेकर साधना विनियोग मंत्र का जप करें –
ॐ अस्य श्री हरिद्रागणनायक मन्त्रस्य मदन ॠषिः अनुष्टुप् छन्दः हरिद्रागणनायको देवता ममाभीष्टसिद्धये जपे विनियोगः।

 

विनियोग मंत्र की पूर्णता के पश्‍चात् जल को जमीन पर छोड़ दें तथा अपने हाथ धो कर स्वच्छ वस्त्र से पौंछ लें।

 

अंगन्यास

 

यंत्र की ऊर्जा से साधक का सामंजस्य करने हेतु अंगन्यास सम्पन्न किया जाता है। इस हेतु साधक निम्न मंत्रों का जप करते हुए अपने दाहिने हाथ से मंत्रानुसार अपने शरीर के अंगों को स्पर्श करें –

 

ॐ हुं गं ग्लौं हृदयाय नमः।  – हृदय
हरिद्रागणपतये शिरसे स्वाहा।  – शिखा
वरवरद शिखायै वषट्।  – शिखा
सर्वजनहृदयं कवचाय हुं।  – शिखा
स्तम्भय स्तम्भय नेत्रयाय वौषट्। – नेत्र
स्वाहा अस्त्राय फट्। – शिखा
ध्यान

 

इसके पश्‍चात् साधक दोनों हाथ जोड़कर भगवान गणपति के हरिद्रा स्वरूप का ध्यान करें –

 

पाशांकुशी मोदकमेकदन्तं
करैर्दधानं कनकासनस्थम्।
हरिद्र खण्डप्रतिमं त्रिनेत्रं
पीतांकुशं रात्रिगणेश मीडे॥
अर्थात् दाहिने हाथों में अंकुश एवं मोदक तथा बाएं हाथों में पाश एवं दन्त धारण किये हुए, सोने के सिंहासन पर स्थित, हल्दी जैसी आभा वाले, तीन नेत्र वाले, पीत वस्त्र धारण करने वाले हरिद्रा गणपति की वन्दना करता हूं।

 

इसके पश्‍चात् साधक प्राण प्रतिष्ठित पीठ माला से 21 माला निम्न मंत्र का जप करें –

 

मंत्र

 

॥ ॐ हुुं गं ग्लौं हरिद्रागणपतये वरवरद सर्वजनहृदयं स्तम्भय स्तम्भय स्वाहा॥

 

21 दिन तक नित्य साधना के पश्‍चात् साधक ‘हरिद्रा गणपति यंत्र’ एवं ‘पीठ माला’ को जल में विसर्जित कर दें। साधना की पूर्णता होने होने तक ही साधक को आश्‍चर्यजनक परिणाम देखने को मिल जाते हैं। इस साधना से अद्भुत आकर्षण शक्ति प्राप्त होती है। जिससे शत्रु पक्ष आपके अनुकूल होकर आपके अनुसार कार्य करने लगता है।

Ekadantam Mahaakaayam Lambodaram Gajaananam

Vighnanaashakaram Devam Herambam Pranamaamyaham

 

I reverentially pray to Lord Ganapati, one who is adorned with one tooth, whose huge body frame makes Him Lambodar, who is Gajaanana and is the slayer of all woes.

 

Disruption and Enemy

Obstacle Destroyer Intense Tantra Sadhana

Haridra Ganapati Sadhana


Lord Ganapati is the lord of all Ganas of Lord Shiva and no auspicious task can be initiated without His worship. He is the destroyer of all woes and disruptions. Even Chanakya has stated that it is impossible to successfully complete any task uninterrupted in absence of prayers onto Him.

The disruptions or obstacles are mostly created by the hidden enemies and Lord Vighnahartaa protects against such foes.

You must be already knowing the story of origin of Lord Ganapati. Goddess Parvati composed Ganapati from the turmeric paste smeared on Her skin and ordered Him to guard Her from any obstacle during Her bath. His complexion is Yellow due to His origin from the turmeric paste, and He is the slayer of all disruptions.

There are many symbolism within this particular context of Lord Ganapati. Your logical or intellectual mind poses various questions during execution of any task like-

  1. If I do not achieve success, then?
  2. Is my productivity less than what is needed?
  3. Will the enemies dominate me?
  4. What do people think about me?

 

The core function of the  intellectual mind is to over-analyze, and therefore we remain trapped within these entanglements. Lord Shiva cut off the head of Lord Ganapati, as He is the authoritative Paarameshthi Guru, and  is committed to pushing us away from these arguments.

The Primary-First-to-be-Worshiped Deity Lord Ganapati connects us to Lord Pashupati Shiva, leading to a smooth uninterrupted execution of all our tasks. These argumentative contentions are the biggest obstacle to accomplishment of our tasks. We do not even initiate many tasks in our lives due to these disruptions. It is also generally known as procrastination.

The second hurdle is the ego hidden within our mind. We generally get into silly arguments like ” this task is beneath me”, or “this is trivial for me”. Such trivialities actually diminish our stature.

Ganapati’s head is of the elephant. Elephant is the largest animal. His Sadhana takes us to greatness. Enmity is the biggest obstacle on the path to greatness, and it is definitely possible to destroy these enemies through Haridra Ganapati Sadhana.

The inherent Attraction-Captivation power of a person provides a good ability to counter the enemies. Such people are generally highly successful in life. The Tantra Shakti conjoined Haridra Ganapati Sadhana is the best form of Ganapati Sadhana.

Whenever a Sadhak is struck in life with enmity problems, or if the enemy side is trying to dominate him, he should definitely perform the Lord Ganapati Haridra form Sadhana. Lord Ganapati is the Vighnhartaa i.e destroyer of the disruptions. Just chanting Lord Ganapati’s name is enough to remove obstacles of the daily life.

The Haridra form of Lord Ganapati bestows suppression powers to the Sadhak, enabling him to dominate over the enemies and eradicating obstacles created by them. The enemies start becoming favorable to you, as the Sadhana progresses towards completion.

 

Sadhana Procedure

The Haridra Ganapati can be started on any Wednesday or at any other auspicious time. This sadhana can be performed either in the morning or at any time of the night. There is no limitation of a particular time in Haridra Ganapati sadhana. Any Sadhak can accomplish this Sadhana at the time convenient to him or her.

The Haridra Ganapati Sadhana has a rule to complete 1.25 lakh Mantra chantings. However we have specially prepared unique  “Prana Pratishthit Haridra Ganapati Yantra” and “Peeth Mala“, to enable a Sadhak to accomplish this Sadhana by chanting 21 mala Mantra chantings for 21 days. The Sadhak should start daily Mantra chantings after completing daily Guru worship, Resolution (Sankalp), Viniyoga, Ang-Nyaasa and Meditation (Dhyaan).

 

The Sadhak should wear fresh clothes after taking a bath on the Sadhana day, and sit facing East or North direction in his worship place. Spread red cloth on a wooden board and sit on a red or yellow colored woollen asana-seat yourself.

 

First set up Gurudev picture or statue on the wooden board and light incense (dhoop) and lamp (deepak). Perform Panchopchaar poojan of revered Gurudev. You simply cannot attain success in any Sadhana-worship in absence of divine blessings from Gurudev Nikhil. Start Haridra Ganapati Sadhana after obtaining blessings for success from Gurudev.

After Guru Poojan, draw a Swastika symbol using Kumkum on a plate in front of the Guru picture. Setup “Haridra  Ganapati Yantra” on it. Setup “Peeth Mala” in front of the Yantra. Perform Panchopchaar poojan of both articles with – Kumkum (Vermilion) , Akshat (Unbroken Rice), Pushp (Flowers), Dhoop (Incense) and Deep (Lamp). Thereafter take pledge for resolving of your enmity problem and alignment of enemies in your favor taking water in right palm.

 

Sankalp

 

Om Vishnu Virshnu VirshnuH Amooka GotriyaH (Your Gotra) Amooka Sarmaaham (Your Name) Sarva Baadhaa Nivaaranaaya, Sarva Shatru Stambhaya Nimittam Mana Vachana Karmanaa Saadhanaa Aham Sampardade |

Let the water flow onto the ground.

 

Viniyoga

After completion of Sankalp, again take water and Akshat grains in your right palm and chant Viniyoga Mantra –

 

Om Asya Shree Haridraagananaayaka Mantrasya Madana RishiH Anushtup ChandaH Haridraagananaayako Devataa Mamaabhishtasiddhaye Jape ViniyogaH |

After completion of Viniyoga Mantra, let the water flow onto the ground. Wash your hands and wipe with a clean cloth.

 

Anganyaasa

The Anganyaasa is performed to connect the Sadhak with the divine energy of the Yantra. The Sadhak should touch the various parts of his body with his right hand whilest chanting the below Mantras-

Om Hoom Gam Gloum Hradayaaya NamaH |  – Heart

Haridraaganapataye Shirase Swaahaa | – Crown of Head

Varavarada Shikhaayei Vashat | – Crown of Head

Sarvajanahradyam Kavachaaya Hoom | – Crown of Head

Stambhaya Stambhaya Netratraaya Voushat – Eyes

Swaahaa Astraaya Phat | – Crown of Head

 

Dhyaan (Meditation)

Thereafter Sadhak  should meditate on the divine Haridra form of Lord Ganapati with folded hands –

 

Paashaankushee Modakamekadantam

Kareirdadhaanam Kanakaasanastham |

Haridra Khandapratimam Trinetram

Peetaankusham Raatriganesh Meede |

 

i.e. I reverentially pray to Three-Eyed, yellow attired, Haridra Ganapati whose right hands hold  Bullhook and Modak, the left hands hold Noose and Tooth,  seated on a gold throne, radiating with turmeric like aura.

Thereafter the Sadhak should chant 21 malas of following Mantra using Praana Pratishthi Peetha Mala –

 

Mantra

 

|| Om Hoom Gam Gloum Haridraaganapataye Varavarada Sarvajanahradayam Stambbhaya Stambhaya Swaahaa ||

error: Jai Gurudev!