Dialogue with loved ones – October 2022

अपनों से अपनी बात…

मेरे प्रिय साधकों,

शुभाशीर्वाद,

मेरे पास मिलने एक साधक आया और कहा कि गुरुदेव मैंने जीवन में संघर्ष कर यह-यह प्राप्त कर लिया है। आपका क्या आदेश है? मैंने कहा सीखों, और अधिक सीखों।

एक ओर साधक आया, उसने कहा कि गुरुदेव मैं जो भी कार्य करता हूं उसमें असफलता ही मिलती है। 10 साल हो गये कार्य करते-करते कुछ भी नहीं हो पाया। मैंने जोर से कहा, ‘‘और अधिक सीखों’’।

दोनों को बड़ा आश्‍चर्य हुआ, यह क्या गुरुदेव की शिक्षा है। सफल को भी कह रहे है और अधिक सीखों, और असफल को भी कह रहे है कि और सीखों।

यदि तुम जीवन को नापना चाहते हो, जीवन को सार्थक करना चाहते हो, जीवन को अनुभव करना चाहते हो, जीवन को जीना चाहते हो तो इन सबका एक ही अर्थ है – ‘सीखना।’

सीखने का अर्थ है, शिष्यता का भाव। जो शिष्य बना रहता है वह कौन है? जो जीवन भर सीखता रहता है। जिस दिन तुम्हें यह लग जाये कि अब मेरे भीतर सीखने की क्षमता नहीं है, उस दिन तुम समझ जाना कि तुम्हारे अन्दर शक्ति ही समाप्त हो गई है, तुमने अपनी शक्ति को अलग कर दिया है। इस कारण मन में यह भावना पनप गई है कि मैंने बहुत सीख लिया है या अब सीखने से क्या लाभ?

सीखना इसलिये है कि अपने जीवन को पूर्णमद पूर्णमिदं… के भाव को सम्पूर्ण रूप से अपनाना है। जब तक मन में अपूर्णता का भाव है तब तक अपने आपको यह स्पष्ट कहना चाहिये कि अभी मुझे और सीखना है।

सीखने का एक अर्थ शिक्षा है, सीखने का अर्थ है, शिक्षा द्वारा ज्ञान की प्राप्ति। इस संसार में विद्यजनों द्वारा ज्ञानियों द्वारा, मोटीवेशनल गुरुओं द्वारा लाखों-लाखों बात कहीं गई है लेकिन अपनाते कोई-कोई ही है।

ज्ञान को जानना और ज्ञान को धारण करना दो अलग-अलग बातें है। जानते तो सभी है पर अपनाते सभी नहीं है, क्योंकि ज्यादात्तर मनुष्य अपनी बुद्धि का द्वार तो खुला रखते है पर अपने अन्तर्मन का द्वार बंद कर देते है। उनकी भावनाएं मन से नहीं बुद्धि से उपजती है और बुद्धि की भावनाएं जीवन को किस ओर ले जाये यह निश्‍चित नहीं होता है। बुद्धि की भावना ने एक व्यक्ति को अंगुलीमाल बना दिया और अन्तर्मन की भावना ने उसी व्यक्ति को वाल्मिकी बना दिया इसलिये संसार में सबसे बड़ा संघर्ष मन और बुद्धि का है।

श्रेयश्च प्रेयश्च मनुष्यमेतस्तौ सम्परीत्य विविनक्ति धीरेः।

आपके सामने है, श्रेय का मार्ग ओर प्रेय का मार्ग। ज्ञान से चयन करे क्या चाहिये? केवल लौकिक आनन्द या लौकिक आनन्द के साथ-साथ श्रेय का मार्ग।

श्रेय शब्द की विशेष चर्चा इसलिये कर रहा हूं कि कार्तिक मास को लक्ष्मी अर्थात् श्री का मास कहा गया है। इस मास में आप लक्ष्मी की भरपूर साधनाएं करते है और आपकी बुद्धि में यह भाव तो आ ही जाता है कि येन-केन प्रकारेण मुझे लक्ष्मी प्राप्त हो जाये, धन प्राप्त हो जाये तो मैं धन के माध्यम से संसार के सारे सुखों को खरीद लूंगा।

अरे भाई! सुखों को तुम खरीदना चाहोंगे तो मृग तृष्णा के समान होगा। कितना भी कर लो, आज तक कोई सारे सांसारिक सुखों को खरीद नहीं पाया है।

जो अपने अन्तर्मन में सीखने को, शिष्यता को, स्थान देता है और सदैव यह समझता है कि ईश्‍वर की सृष्टि में में एक सतत् क्रियाशील व्यक्तित्व रहूंगा उसके जीवन में लक्ष्मी अपने सम्पूर्ण गुणों के साथ आ जाती है। याद है ना, लक्ष्मी की कलाएं – विभूति, नम्रता, कांति, पुष्टि, कीर्ति, उन्नति, पुष्टि, उत्कृष्टि और ॠद्धि।

आप साधक है और बहुत पुस्तकें भी पढ़ते है, बहुत प्रवचनों को भी सुनते है लेकिन मेरी एक बात भी सुन लो। इस जीवन में धर्म, अर्थ और काम सदैव साथ रहते है। तीनों को अलग-अलग नहीं किया जा सकता है। पर याद रखना, जीवन के किसी क्षण तुम्हारा धर्म, किसी ओर मार्ग पर जा रहा है और अर्थ और काम दूसरे मार्ग पर जा रहे है तो अर्थ और काम छोड़कर धर्म, सत्य और ज्ञान के मार्ग पर चलना।

क्योंकि तुम्हारा धर्म ही तुम्हारे जीवन का आधार है, तुम्हारे विचार ही तुम्हारे जीवन के आधार है, तुम्हारी भावना ही तुम्हारे जीवन का आधार है। तुम्हारा विश्‍वास और तुम्हारी श्रद्धा ही तुम्हारे जीवन का आधार है, यही तुम्हारा धर्म हैं। इस धर्म से ही तुम्हारे अर्थ और काम अपने आप सिद्ध हो जायेंगे। इसलिये जीवन के किसी भी क्षण विचलन की आवश्यकता नहीं है।

अभी तो तुमने सीखना प्रारम्भ किया है, शिष्य बनें हो। तुम्हारी यह सीखने की प्रक्रिया का शुभारम्भ पूर्ण रूप से तब होगा जब बाहरी सहारों को छोड़कर अपने अन्तर्मन की अनन्तता की ओर ध्यान देना। उस समय तुम्हारा मौलिक ज्ञान शक्ति का एक स्वभाविक स्रोत बन जाता है।

शक्ति के इस स्वभाविक स्रोत को जाग्रत करना है तब जीवन में अप्राप्ति की भी प्राप्ति हो जायेगी और जो प्राप्त है वह चिरकाल तक संरक्षित हो जायेगा।

लक्ष्मी का पर्व है, जब तुम कहते हो मेरे जीवन में संघर्ष ही संघर्ष है तो मेरी बात को ध्यान से सुनना।

जो सहज प्राप्त हो जाती है वह कभी टिकती नहीं है
जो टिकती है वह कभी सहज प्राप्त नहीं होती है

इसलिये जीवन के संघर्षों को अपने पसीने के मोतियों से गिनना की तुमने अपने जीवन में संघर्षों के लिये कितना पसीना बहाया है, परिश्रम किया है, उद्योग किया है। तब जो बल प्राप्त होगा, वह बल विद्या और लक्ष्मी चिरकाल तक तुम्हारे साथ स्थाई रहेंगे।

धन की अधिष्ठात्री विष्णु की शक्ति लक्ष्मी का नमन करो, जो जीवन को निरन्तर चला रही है।

स्वयं अपना सम्मान करो, और अपने कार्यों को ओर अधिक श्रेष्ठ से श्रेष्ठतर बनाते रहो, जीवन में परमानन्द हो, परम ज्ञान हो, परम तत्व हो…

-नन्द किशोर श्रीमाली

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