Dialogue with loved ones – October 2021
अपनों से अपनी बात…
मेरे प्रिय आत्मन् शिष्य,
शुभाशीर्वाद,
शक्ति का महापर्व आश्विन नवरात्रि आ रहा है। शक्तिपर्व का बहुत जोश है आप सबमें। निखिल मंत्र विज्ञान साधक परिवार का प्रत्येक शिष्य इस नवरात्रि पर्व में साधना के लिये प्रतिबद्ध है, इस बात का मुझे गर्व है। नवरात्रि शक्तिपर्व तो है ही अपने अन्तर्मन की पीड़ाओं को समाप्त करने का और लग जाओं पुनः नये जोश के साथ संकल्पों को साधने में।
एक प्रश्न है तुम्हारे साथ हर समय। मैं घटनाओं की बात नहीं कह रहा हूं, तुम्हें जीवन का रहस्य समझा रहा हूं – सबसे पहले तो तुम अपने वर्तमान में थोड़े ‘असहज’ हो, बंधे-बंधे हो। खुले हुए उन्मुक्त स्वतंत्र नहीं हो, क्यों?
क्या तुमने बीते हुए कल में जो गलतियां हुई, भूलें हुई इसके लिये स्वयं को भी पूरी तरह से माफ किया है? नहीं, इस कारण वह बीता कल भूत बनकर बार-बार तुम्हारे सामने खड़ा हो जाता है, तुम्हें भयभीत करता है, उद्विग्न करता है, भय भरे सपनें आते है।
तुम्हारे सामने तुम्हारा भविष्य है और इस भविष्य में ही सब आशाओं की पूर्ति है। सुन्दर कल्पनाएं है, खुशनुमा पलों का वास है और यह आशा ही तुम्हारी ताकत है। फिर तुम किस बात के लिये डर रहे हो? क्या बीता हुआ कल और आने वाला कल दोनों मिलकर तुम्हें डरा रहे है। ये तुम्हारे वर्तमान के आनन्द में खटास डाल रहे है।
अब बीता हुआ काल तो वापिस आ नहीं सकता।
मैं तुम्हारे मन की एक व्यथा को स्पष्ट सुन रहा हूं, बीते हुए कल से कैसे अलग करुं? क्या मुझे फिर से नई शुरुआत करनी है?
तुम सोचते हो कि जो मैं हूं, मेरी पहचान है, जो मेरी खुद से अपेक्षाएं है, जो मेरी दूसरों से और दूसरों की मुझसे उम्मीदें है ये सब बीते हुए कल की बुनियाद पर ही तो टिकी है।
सही है, सारी मानवता कल से आज को और आज से आने वाले कल को बेहतर बनाने में लगी हुई हैं लेकिन तुम नये रूप में सोचों।
मेरी बात को ध्यान से सुनना चार युग होते है – सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग। कलियुग समाप्त होगा तो फिर पुनः सतयुग आयेगा। ऐसा ही पढ़ा है ना, सुना है ना। हम सबके जीवन में चारों युग चलते है। जीवन के प्रथम पांच वर्ष – सतयुग। पांच से दस वर्ष – त्रेतायुग। दस से सोलह वर्ष – द्वापर युग और सोलह से आगे – कलियुग।
देखते हो ना, बचपन के पहले पांच वर्ष एकदम सतयुग के समान होते है। बच्चा हर समय खुश, जरूरतें पूरी हो जाये। कोई इच्छा नहीं।
पांच से दस त्रेतायुग में कुछ विकार, दुनियादारी की समझ जगनी शुरु होती है, इच्छाएं पनपती है। कुछ पूरी होती है, कुछ पूरी नहीं होती है। लेकिन बच्चा इस असंतोष, क्रोध, तमस से झूंझना, सीखना शुरु करता है। ये तीन ही तो हमारे मन के शत्रु है।
अब आया द्वापर, दस से सोलह वर्ष और ये तीनों शत्रु प्रबल हो जाते है। तिकड़म लगाना सीखना शुरु करते है।
अब सोलह के बाद आया कलियुग तब आप सोचते हो कि कुछ भी हो जाये, मुझे कुछ भी करना पड़े मुझे तो बस इस जीवन युद्ध में जीतना है और जीतना है। सबकुछ प्राप्त करना है और प्राप्त करने के लिये कुछ भी करने को तैयार हो जाते हो, रोज युद्ध करने लगते हो। अपने आपसे, दूसरों से, अपने काम से, अपने सम्बन्धों से, घात-प्रतिघात।
लेकिन सोचों युद्ध में कोई विजय हुआ है। युद्ध में तो हर कोई जीत कर भी हार जाता है। महाभारत के युद्ध के बाद युधिष्ठर का विषाद देख लों, कृष्ण का पश्चाताप् देख लो।
तो फिर क्या करें? जीवन में युद्ध करें ही नहीं? अपनी कामनाओं को पूरी करने के लिये लड़े ही नहीं? चुपचाप बैठे रहें? कामनाओं और इच्छापूर्ति के बिना जीवन का मतलब ही क्या है?
यह भी ठीक है। युद्ध करने की ठान ली है तो करो युद्ध। पर एक बात का ध्यान रखों –
लोग क्या सोचेंगे? यह भी यदि हम ही सोचेंगे, तो फिर लोग क्या करेंगे?
करना है तो दिल से कर, नहीं तो छोड़ दे।
युद्ध भी सच्चाई के साथ करो –
अगर आप सही हो तो कुछ भी साबित करने की कोशिश मत करो,
बस आप सही बनें रहो, एक दिन वक्त खुद गवाही दे देगा।
इसीलिये जीवन में सत्य के साथ, प्रेम के साथ जीओं, शिव भाव के साथ जीओं।
तो इस नवरात्रि में शक्ति की आराधना करनी है, अपने सत्य के लिये। शक्ति का श्रृंगार लाल रंग से किया जाता है और यह लाल रज अर्थात् ऊर्जा का प्रतीक है और इस जीवन में अक्षुण्ण यौवन स्थापित करना है रजो गुण स्थापित करना है। इसका निर्माण शक्ति और शिव मिलकर ही करते है।
शिव सत्य है, इसलिये सुन्दर है और जीवन की सुन्दरता, जीवन का यौवन सत्य को अपनाने में है। अपने आज को, अपने वर्तमान को गले लगाने में है क्योंकि जीवन युद्ध है तो निश्चित रूप से धारा के विपरीत तैर रहे हो। कोशिश तो ओर अधिक करनी ही पड़ेगी।
दुनिया का डर नहीं, जो तुझे उड़ने से रोके है।
कैद है तो अपने ही नजरिये के पिंजरे में।
सत्य को स्थापित करन का अर्थ है, आज को अंगीकार करना। आज का पर्व बहुत खास है। पूरे प्रेम के साथ शक्ति साधना करो, अपने रज में वृद्धि करो, अपनी कामनाओं को खुलने दो।
जीवन में प्रेम का आधार विश्वास है…
और ध्यान रहे – विश्वास का कपड़ा बुनने के लिये सच्चाई का ही धागा लगता है।
खोलों अपने हृदय का अमृत कलश… खुश रहो…।
-नन्द किशोर श्रीमाली
Coming soon…
Nand Kishore Shrimali