Dialogue with loved ones – November 2023

अपनों से अपनी बात…

मेरे प्रिय साधकों,

शुभाशीर्वाद,

    दीपावली महापर्व की बहुत-बहुत शुभकामनाएं, आशीर्वाद।

    ज्योति से आलोकित यह दीपावली पर्व आपके लिये शिव समान प्रकाशमय हो। उस शिव की तरह आप क्रियाशील हो, जिनकी प्रार्थना में कहा गया है –

जटा कटाह सम्भ्रम भ्रमन्‌‍ निलिम्प निर्झरी,
विलोल वीचि वल्लरी विराज-मान मूर्धनि।
धगद्‌‍ धगद्‌‍ धगज्‌‍ ज्वलल्‌‍ ललाट पट्ट पावके
किशोर चन्द्र शेखरे रतिः प्रति क्षणं मम ॥

    जिस शिव के शीश पर गंगा वेगपूर्वक घूमती हुई लहरा रही है, तथा जिनके ललाट में धक्‌‍-धक्‌‍ ज्वालायें जल रही हैं, जिनके सिर पर उदीयमान बाल चन्द्रमा विराजमान है, उन्हीं भगवान शंकर में मेरा अनुराग निरन्तर बढ़े।

    ललाट में निकलती ज्वालाएं और उसके साथ गंगा और चन्द्रमा का सहयोग तो बड़ा ही विरोधाभास सा लगता है। एक तरफ अग्नि है और दूसरी तरफ गंगा भी है और ऊपर से चन्द्रमा की शीतलता भी है। यह कैसे संभव है? हम हैं इस संसार में शिव का प्रतिरूप

    बिल्कुल संभव है, यही मनुष्य जीवन की स्थिति है जिसमें ज्वाला भी है, सरसता भी है और शीतलता भी है। उस तीव्र ज्वाला के प्रकाश को अपने भीतर स्थापित करने का पर्व है दीपावली। केवल ज्वाला ही नहीं शीतलता भी है और सरसता भी। ज्वाला है कर्म का प्रतीक, जल है सरसता का प्रतीक और चन्द्र है शीतलता का प्रतीक।

    मनुष्य के शरीर में, मन में उठ रही ज्वाला सबसे पहले मस्तिष्क को अर्थात्‌‍ बुद्धि को क्रियाशील करती है। ज्वाला केवल विध्वंस का प्रतीक नहीं है, ज्वाला तो ज्योति है जो आधारभूता शक्ति का स्वरूप है। जब यह ज्वाला आज्ञा चक्र में जाकर मस्तिष्क को चैतन्य करती है तो मनुष्य की सोच तीव्र होती है। नये विचारों का उत्पादन होता है और जब उसे सरसता और शीतलता का सान्निध्य प्राप्त होता है तो उसकी सोच सकारात्मक हो जाती है।

    दीपावली की शुभकामना संदेश में हम सब एक-दूसरे को यह संदेश भेजते है –

दीपज्योतिः परंब्रह्म दीपज्योतिर्जनार्दनः।
दीपो हरतु मे पापं दीपज्योतिर्नमोऽस्तु ते॥

    दीपक की रोशनी सर्वोच्च ब्रह्माण्ड का प्रतिनिधित्व करती है, दीपक की रोशनी हमारे मन में स्थित ब्रह्माण्ड स्वामी जनार्दन का स्वरूप है, इस हेतु प्रार्थना है कि इस दीपक का प्रकाश हमारे दोषों का हरण करें। मैं इस जीवनदाता प्रकाश को अभिवादन करता हूं।

    यह प्रार्थना केवल एक दूसरे को आदान-प्रदान करने के लिये ही नहीं है यह स्वयं के प्रति कही गई एक विशेष प्रार्थना है, मेरे जीवन में सदैव प्रकाशमान स्थिति रहे, आत्मप्रकाश और आत्मज्ञान के द्वारा ही मैं अपने जीवन को जीवन्त भाव से, सरस भाव से जीऊं और सदैव आलोकित रहूं।

    दीपावली पर्व इस बात की आपको सूचना देता है कि हे मनुष्य! तुम अपने मन के किसी भी कोने में अंधेरा मत रखना और ऐसा कोई काम मत करना जिसे तुम्हें स्वयं से स्वयं को छुपाना पड़े और तुम्हारे मन में ग्लानि का भाव उत्पन्न हो। आत्मग्लानि से दूर स्वयं के अन्तर्मन के प्रकाश में अपने आपको पूर्ण सत्य रूप से देखना ही दीपावली पर्व का मूल है।

    प्रिय शिष्य, बाहर का प्रकाश तो अर्द्धसत्य है। इस प्रकाश को तुम अपने चर्म चक्षुओं से ही देख सकते हो लेकिन मन का प्रकाश ही तो पूर्ण सत्य परब्रह्म है।

    अपने मन के भीतर दीप जलाने का अर्थ है, अपने कार्यों और उसके परिणाम की स्वयं जिम्मेदारी लेना। जब कर्म के प्रति स्वयं प्रतिबद्ध होकर कर्म की अधिष्ठात्री लक्ष्मी की आराधना की जाती है, प्रार्थना की जाती है तो यह स्पष्ट कहा जाता है कि हे कर्मफल प्रदान करने वाली अधिष्ठात्री, आप मुझे कर्मशक्ति प्रदान करे।

    जब केवल कर्म शक्ति का भाव होगा तब फल तो निश्चित रूप से प्राप्त होगा और यदि कोई कार्य पूर्ण नहीं भी हुआ तो मन में इस भाव से सांत्वना रहेगी कि मैंने अपनी पूरी शक्ति और जिम्मेदारी से कार्य किया है और फल प्राप्ति में आ रही बाधा ने मुझे कुछ न कुछ सिखाया है, मुझे ओर अधिक मजबूत, दृढ़ बनाया है।

    दीपावली आत्मज्ञान, आत्मप्रकाश का पर्व है और अपने भीतर के आत्मप्रकाश से चलोगे तो कभी कोई ठोकर नहीं लगेगी क्योंकि आप सबकुछ स्पष्ट सोचकर अपने भीतर के प्रकाश में अपने कदमों को, कार्यों को आगे बढ़ाओंगे और यदि कभी बाधाएं आ भी जाये तो अपने आपसे कहो ‘मैं अभी हूं’।

इस दीपावली एक दीप जलाओं अपने लिये
जलने को तत्पर हो हाथ उठाओ अपने लिये
कर्म अग्नि से जीवन दीप शिखा जलाओ अपने लिये
सरस स्निग्ध भावों का शुद्ध घृत हो अपने लिये
ज्ञान-विज्ञान का समन्वय हो अपने लिये
वाणी-विलास का मिठास भरा सौन्दर्य हो अपने लिये
त्वरित बुद्धि, निर्णय क्षमता, विकास हो अपने लिये
विपत्तियों रूपी दुश्मन को मारने का शौर्य हो अपने लिये
प्रेम रूपी अमृत का आत्म आह्‌‍वान हो अपने लिये
स्व अलोकित स्वप्रकाश की तीव्र ज्योति हो अपने लिये
इस दीपावली एक दीप जलाओं अपने लिये…
जिम्मेदारियों के व्यर्थ बोझ में मत जियो
मन का बोझ उतार कर, कुछ जियो अपने लिये
आशा और ज्ञान का दीपक जलाओ अपने लिये
व्यर्थ के प्रपंच को छोड़कर ऊर्ध्वगामी बनो अपने लिये

    सबसे महत्वपूर्ण तुम हो अपने जीवन के प्राथमिक, प्रदान करो अपने को प्राथमिकता। तुम हो तो है ये अखिल सकल विश्व तुम्हारे लिये। सदैव अपना ध्यान रखना, तुम हो सबसे आवश्यक…

-नन्द किशोर श्रीमाली 

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