Dialogue with loved ones – November 2022
अपनों से अपनी बात…
मेरे प्रिय साधकों,
शुभाशीर्वाद,
शक्तिपर्व नवरात्रि और लक्ष्मी पर्व दीपावली आपने बहुत उत्साह से सम्पन्न किया। घर में दीपक जलाने के साथ-साथ आपने अपने मन में भी गुरु ज्ञान का दीपक प्रज्ज्वलित किया। उस दीपक में साधना का प्रवाह निरन्तर करते रहना। जिससे आत्म ज्योति, ज्ञान ज्योति और कर्म ज्योति कभी मन्द न पड़े। हर समय आप तेजस्वी हो, रोम-रोम में शक्ति का अवगाहन हो और उत्साह से कर्मशील हो।
साधक जब मेरे पास आते है तो उनके सामने कई प्रकार के प्रश्न होते है। कई साधक तरह-तरह की विद्याओं के सम्बन्ध में पुस्तकें पढ़ कर आते है और मुझसे कहते है कि गुरुदेव अग्नि विद्या का ज्ञान चाहिये, मुझे हादी-कादी विद्या का ज्ञान चाहिये, भूगर्भ सिद्धि विद्या चाहिये, मुझे ब्रह्मत्व विद्या का ज्ञान चाहिये। मैं मुस्कुरा देता हूं। फिर कहता हूं क्या तुम्हें वास्तव में इन सब विद्याओं की चाहत है या तुम वशीकरण विद्या जानना चाहते हो।
वे कहते है, गुरुदेव! पुस्तकों में तो बहुत पढ़ा है। तरह-तरह की विद्याओं के बारे में बहुत पढ़ा है। किस तरह हमारे ॠषियों ने सूर्य विज्ञान सिद्धान्त द्वारा पारे से स्वर्ण बना दिया। किस प्रकार उन्होंने विद्या द्वारा हजारों वर्षों की आयु प्राप्त कर ली, पर वास्तव में तो मैं वशीकरण विद्या ही जानना चाहता हूं।
आप भी अपने अन्तर्मन से पूछना आप चाहते क्या हो? अन्तर्मन यही कहेगा, कि हे गुरुदेव! हे ईश्वर, हे देवताओं आप मुझे वशीकरण विद्या प्रदान कर दो। जिससे मैं जिसे चाहूं उसे वशीभूत कर सकूं। अपना कार्य सिद्ध कर सकूं। अपना अधिकार, अपना प्रभाव जमा सकूं, लोग मेरे अधीन हो, मेरे कार्य सरलता से पूर्ण हो जाये।
ठीक है, आज मैं वशीकरण विद्या का महासूत्र आप सबको प्रदान कर देता हूं। इस विद्या हेतु न तो कोई साधना करनी है, न कोई कठोर तप करना है और न हिमालय की किसी कन्दरा में जाकर बैठना है। आप तो जहां हो, वहां अपना कार्य करते हुए इन पांच गुरु सूत्रों को अपने जीवन में उतार लो। बस यह पांच सूत्र कभी भी खण्डित नहीं होने चाहिये। पांच सूत्र सदैव ही सदैव साथ चलेंगे। तब वशीकरण विद्या क्या संसार की और सारी विद्याएं भी आपको सिद्ध होने लग जायेगी।
पहला सूत्र – स्वास्थ्य – देखों भाई, शरीर निरोग है तो रक्त प्रवाह श्रेष्ठ रहेगा। शुद्ध रक्त से उत्तम सौन्दर्य प्रकट होगा। आप ही देख लो, यदि कोई व्यक्ति रंग, बनावट से तो सुन्दर है लेकिन स्वास्थ्यहीन है, पीला पड़ा चेहरा है, नेत्रों में दीनता है, पीड़ा और असमर्थता झलक रही है तो फिर रूपवान होने का क्या अर्थ है? यह ध्यान रखों कि शरीर का रंग चाहे गोरा हो या काला हो, नाटे हो या लम्बे हो, सुन्दरता अंगों से नहीं होती है। सुन्दरता होती है उस तेज से जो शुद्ध रक्त के द्वारा प्रकट होता है। इसी तेज को आकर्षण शक्ति कहते है। बस, तुम्हारे चेहरे पर तेज है तो सब आपकी ओर आकर्षित हो जायेंगे। स्वास्थ्य की रक्षा नहीं की तो दूसरे क्या तुम्हारे आश्रित भी तुमसे वशीभूत नहीं होंगे।
दूसरा सूत्र – प्रसन्न रहना – प्रसन्न तो रहना ही है, कहते है जो हंसता है वह पुष्प समान खिल जाता है और खिले हुए पुष्प पर ही मधुमक्खियां, भंवरें मण्डराते है तो आपके चेहरे पर जब मुस्कुराहट नृत्य करती है तो फिर आपके शरीर से ईर्ष्या, द्वेष, चिन्ता को जगह ही नहीं मिलती।
तो कामयाबी तो खुशमिजाज लोगों को ही मिलेगी। दुनिया में किसे फुरसत है कि आप अपने दुर्भाग्य, दुःख और निराशा का रोना रोये, लोग आपके प्रति आकर्षित होने की बजाय विकर्षित हो जायेंगे। आप हंसोंगे तो लोग आपके साथ हंसेंगे, मुस्कुराएंगें अवश्य।
अरे भाई! कोई मुसीबत आ गई है तो हंसते-हंसते उसका सामना करियें ना। रोने से कोई ज्यादा ताकत आती है। ताकत तो हंसने से ही आती है। कई बार मैं देखता हूं कि आप हंसना तो भूल ही गये। गंभीर चेहरा लटका कर बैठे रहते हो। हंसना तो एक कला है और यह कला आपके भीतर ही है। इसे चेहरे तक लाईये। बस आपका जीवन सरस, स्निग्ध हो जायेगा।
जब आपने अपने चेहरे पर हंसी की मधुर रेखा खींची है, सब आकर्षित होंगे। भगवान बालकों को ये गुण उपहार में देता है और आप अपने इस गुण को विस्तार से, गंभीरता से ढंक देते हो। यह तो आत्मा का गुण है। यह दूसरों को वश में कर सकता है और आपको भी शांत और मुक्त बना देता है।
तीसरा सूत्र – श्रेष्ठ विचार – श्रेष्ठ विचार, विचार तो सदैव शुद्ध ही होने चाहिये और निस्वार्थ होने चाहिये। सबसे बड़ी शक्ति भावना में ही है। इससे आपके चारों ओर एक विशेष वातावरण बनता है। जिसमें वशीकरण पूर्ण प्रभाव होता है। प्रेम और पवित्रता के विचार रखोंगे तो संसार की सारी सद्भावनाएं आपके पास उमड़-उमड़ कर आयेगी। प्रसन्नता की छाया आपको ढंक देगी। विचार अच्छे तो कर्म अच्छे। कर्म अच्छे तो कभी किसी के सामने शर्म भी नहीं आयेगी। आप निश्चिन्त, निर्द्वंद्व होकर कार्य करेंगे। आपके श्रीमुख पर वैभव की वास्तविक आभा दैदीप्यमान होगी।
चौथा सूत्र – मधुर वचन – बोलिये सदैव मीठा, वाणी वशीकरण का आधार है। क्यों हम किसी को कड़वे वचन बोलें, तज दे वचन कठोर…।
क्रोध और कटुता पूर्ण वचनों में विनय और विनम्रता नहीं होती। मधुर वचनों में विनय और विनम्रता दोनों होते है और विनम्र वचनों से तो मनुष्य क्या देवता भी आपके वश में हो जाते है। प्रेम पूर्वक गाये, गये भजनों, वचनों से क्या देवता आपके वशीभूत नहीं होते, अवश्य होते है।
पांचवा सूत्र – मन रे तू उदार बन – किसी आदमी का दिल रुपये-पैसे से नहीं खरीदा जा सकता। उदार भाव और प्रेम भाव से उसे अपना बना सकते है। जिन्हें आप अपना प्रेम पात्र बनाना चाहते है उनके साथ कुछ अहसान कीजिये। उनके काम में सहयोग कीजिये। बस इस कीमत में सब आपके वश में हो जायेंगे। जहां केवल लेन-देन का व्यवहार होता है वहां वशीकरण की शक्ति नहीं होती। जहां स्वभाव उदार होता है, वहां आपकी वशीकरण की शक्ति हजार गुणा बढ़ जाती है। प्रेमी हृदय रखिये। प्रेमी हृदय सदैव देने का ही भाव रखता है। जिस प्रकार प्रेम में लेन-देन नहीं होता है और जो प्रेमी हृदय वाला होता है, उसमें वशीकरण की शक्ति अपने आप उत्पन्न हो जाती है।
इस वशीकरण की शक्ति से मनुष्य तो क्या ईश्वर और देव को भी आप वशीभूत कर सकते है। तीव्र इच्छा शक्ति होनी चाहिये। विशुद्ध आकांक्षा होनी चाहिये। प्रेम की भक्ति का बंधन तो अटूट है। वहां परमात्मा, गुरु, देव सब आपके सहचर बन जाते है।
प्रसन्न रहो और अपने श्रेष्ठ विचारों पर गतिशील रहो…
-नन्द किशोर श्रीमाली
Coming soon…
Nand Kishore Shrimali