Dialogue with loved ones – November 2021

अपनों से अपनी बात…

मेरे प्रिय आत्मन् शिष्य,

शुभाशीर्वाद,

दो सालों में पहली बार आप आनन्द से खुलकर दीपावली पर्व सम्पन्न कर रहे हैं। निश्‍चित रूप से आनन्द आ रहा है क्योंकि एक ऐसे कालचक्र को हमने पार किया है जिसमें हर समय आशंका, भय मन में व्याप्त था। शिष्य के रूप में आपने बहुत हिम्मत रखी और आप अपना कार्य करते रहे। नित्य प्रति अपने भाव गुरु को समर्पित करते रहे। एक बात मैंने देखी है कि पिछले डेढ़ साल में आपने मुझे बहुत पत्र, संदेश भेजे। अब मुझे लगता है कि आप मुझे परिवार के मुखिया के रूप में देख रहे हो इसीलिये मुझसे सलाह लेते हो, परामर्श करते हो और चिन्ता आने पर अपनी बात कह देते हो।

अब मैं जो आज आपको बात कहने जा रहा हूं वह बहुत महत्वपूर्ण है। अब तक तुमने यह सीखा है कि मुझे जीवन में जीतना है, मुझे किसी भी हालत में हारना नहीं है। जीत और हार के बीच में निरन्तर झूलते रहते हो लेकिन जीत और हार को जोड़ने वाली कड़ी तो कर्म ही है।

तुम अपने जीवन में हर समय जीत को इतना महत्व क्यों देते हो?

किससे जीतना है और क्या जीतना है? क्या इस प्रश्‍न पर भी विचार किया है शांत मन से इन प्रश्‍नों पर विचार करो और यह विचार उस समय करना जब तुम गुरु पूजन कर रहे हो। उस समय ही आपका मन सबसे अधिक शांत रहता है, बाकी समय तो क्रिया और प्रतिक्रिया के झूले में झूलते रहते हो।

क्या तुम्हारे जीवन में विश्राम है, शांति है? यदि तुमने विश्राम लेने की कला नहीं सीखी तो चाहे कितनी भी शक्ति हो तुम्हारे भीतर, शक्ति का क्षय होता ही रहेगा, नवीन शक्ति का सृजन नहीं होगा।

मेरा एक सिद्धान्त है, जीवन एक लम्बी यात्रा है। 80 साल 100 साल का जीवन तो क्या, 100 साल तक भागते ही रहे अथवा अपने जीवन में विश्राम के साथ, शांति के साथ जीयें। यदि विश्राम नहीं तो फिर केवल भाग-दौड़ ही रहेगी। ईश्‍वर ने तुम्हारे लिये निद्रा  बनाई –

या देवी सर्व भुतेषु निद्रा रूपेण संस्थिता

तुम कुछ आराम कर सको। 6-7 घण्टे चैन की नींद ले सको और पुनः तरोताजा होकर नया दिन, नये जोश के साथ प्रारम्भ कर सको। लेकिन हर समय संग्राम की तरह ही कार्य करते रहोंगे तो चैन कहां? विश्राम कहां?

मैं तुम्हारे मस्तक पर हाथ इसीलिये रखता हूं कि तुम्हारे मन की उथल-पुथल शांत हो सके।

लेकिन यह भी सत्य है कि हर क्षण कर्म करना है और यह भी याद रखना कि कर्म सिद्धि प्रयत्न से होती है। एक सुन्दर कथा तुमने भी पढ़ी होगी, उसको वापिस पढ़ो –

इन्द्र एक बार धरती के लोगों से कुपित हो गये कि मेरी पूजा नहीं होती है, मैं देव राजा हूं। वैसे इन्द्र तुम्हारी इन्द्रियों के भाव को ही प्रकट करता है तो इन्द्र ने सोचा कि पृथ्वी निवासियों को सबक सिखाना चाहिये। वरुण देव के पास गये कि 12 वर्ष तक तुम वर्षा ही नहीं करोगे। अब वरुण ने कहा कि मैं तो प्रकृति के नियमों से बंधा हूं, मुझे तो अपना कार्य करना ही है। प्रकृति जैसा मुझसे कराती है मैं वही करता हूं।

तब इन्द्र प्रकृति के पुरुष शिव के पास गये और शिव से प्रेम के द्वारा, तपस्या के द्वारा वचन ले लिया आप प्रकृति द्वारा निर्देश दे दें, और यही हुआ, पृथ्वी पर अकाल पड़ गया।

अब 1 साल हुआ, 2 साल हुआ किसानों ने अपने खेतों में काम बंद कर दिया। अपने औजार रख दिये। उन औजारों पर जंग पड़ने लगा। पृथ्वी पर खर पतवार हो गई। खेत सूने हो गये, जल कम हो गया।

प्रकृति यह सब लीला देख रही थी, सब समझ में आ रहा था प्रकृति अर्थात् शक्ति को।

एक बार प्रकृति और पुुरुष यानि शिव और पार्वती भ्रमण कर रहे थे तो देखा कि सारे किसान तो आराम से बैठे है लेकिन एक किसान अपने खेत की रोज गुढ़ाई कर रहा है।

उस किसान के सामने, शिव गये और कहा कि क्यों कर रहे हो? वर्षा तो होगी नहीं। जब तक शिव का शंख नहीं बजेगा तब तक वरुण देव कृपा नहीं करेंगे। तुम्हारा प्रयत्न व्यर्थ है।

प्रकृति रूपा पार्वती ने मुस्कुराते हुए भगवान शिव से पूछा कि प्रभु आप भी तो नित्य प्रति शंख बजाते हो, जीवों में चेतना देते हो, कभी देव रूप में, कभी गुरु रूप में, कभी विचारक रूप में। आप तो अपना कार्य निरन्तर करते हो, कही ऐसा न हो कि आप भी अभ्यास के बिना, प्रयत्न के बिना शंख ही नहीं बजा पाओं। कहीं आपके शंख में भी जंग तो नहीं लग गया है।

भोले भण्डारी प्रकृति की बात के भाव को समझ नहीं पाये और उन्हें लगा कि कहीं वास्तव में ऐसा हो गया तो क्या होगा? मेरा काम शंख द्वारा जाग्रत करना है और उन्होंने देखने के लिये कि शंख बजता है या नहीं बजता है, शंख निकाला और पूरी शक्ति के साथ प्रयत्न किया शंख बज गया।

इधर शंख का बजना था और वरुण देव बरस पड़े। धरती पर वर्षा ही वर्षा पुनः हो गई। इन्द्र का मान मर्दन हो गया।

आगे की कथा आप जानते हो। पर ध्यान देना सबसे महत्वपूर्ण बात क्या है – प्रयत्न और अभ्यास। तुम जीतना चाहते हो अपने जीवन में, अवश्य जीतोंगे। निरन्तर प्रयत्न तो आवश्यक है। क्या प्रयत्न के बिना जीवन में जीत हो सकती है?

अभ्यास वैराग्याभ्यां तन्निरोधः॥
तत्र स्थितौ यत्नोऽभ्यासः॥
स तु दीर्घकालनैरन्तर्यसत्कारासेवितो दृढ़भूमिः॥

अभ्यास, वैराग्य और आनन्द के साथ कर्म करे, करते रहे जीवन में प्रयत्न, सिद्धियां आपके द्वार खड़ी है। प्रयत्नों की सफलता के लिये, प्रयत्नों की सिद्धि के लिये ‘निखिल संन्यास पूर्णिमा’ पर सम्पन्न करेंगे – ‘गुरु कृपा भगीरथ प्रयत्न सिद्धि साधना – महोत्सव’।

-नन्द किशोर श्रीमाली

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