Dialogue with loved ones – May 2023

अपनों से अपनी बात…

मेरे प्रिय साधकों,

शुभाशीर्वाद,

अगणित उन्मादों के क्षण हैं,
अगणित अवसादों के क्षण हैं,
रजनी की सूनी घड़ियों को किन-किन से आबाद करूँ मैं!
क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं!
याद सुखों की आँसू लाती,
दुख की, दिल भारी कर जाती,
दोष किसे दूँ जब अपने से, अपने दिन बर्बाद करूँ मैं!
क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं!
दोनो करके पछताता हूँ,
सोच नहीं, पर, मैं पाता हूँ,
सुधियों के बंधन से कैसे अपने को आजाद करूं मैं!
क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं!

    यह है हमारी मन स्थिति, जो यह स्पष्ट कहती है कि जीवन में हर बात के, कार्य के, विचार के दो पहलू होते है। पर हमारी दृष्टि संसार चक्र में बहुत एकाकी हो जाती है। अपने बारे में भी विचार करते है तो केवल इसी पहलू से विचार करते है कि मुझे सुख प्राप्त हो और किसी भी प्रकार से उन्नति प्राप्त हो जाये। दूसरों के बारे में विचार करते समय हम एक अवधारणा निश्चित कर विचार करते है।

    विचार उठता है मन से और जैसे-जैसे हम उन विचारों को परिपक्व करते है, वे हमारी भावनाएं बन जाती है और यही भावनाएं हर समय हमारे व्यवहार और कार्य में दिखाई देती है। कभी हम सफलता से प्रसन्न होते है, कभी हम असफलता से अप्रसन्न होते है, कभी हम दूसरों के व्यवहार से व्यथित होते है। पर आवश्यकता इस बात की है कि हम स्वयं एक क्षण के लिये अलग कर निरपेक्ष रूप से आत्म विश्लेषण करें तो हम सही निर्णय पर पहुंच सकते है क्योंकि केवल अवधारणाओं के आधार पर अपने जीवन के सिद्धान्तों को नहीं बनायें, सभी पहलूओं पर मंथन कर क्रियाशील हो।

    सबसे बड़ी बात है कि जीवन में कोई अवधारणा निश्चित नहीं होती है। स्थान, समय, काल के अनुसार परिवर्तित होती है लेकिन हम अपनी अवधारणाओं को एक सिद्धान्त बना देते है। अरे भाई! ईश्वर ने हमें विचार करने की, परखने की शक्ति दी है, उस परखने की शक्ति को तीव्र बनाओं और वह मंथन से ही हो सकती है। किसी भी घटना, किसी भी कार्य के सभी पहलूओं पर विचार कर।

    जैसे-जैसे यह शक्ति तीव्र होती है तो आप स्वयं ‘अहम्‌‍ ब्रह्मास्मि’ भाव से युक्त हो जाते है, स्वयं पारखी बन जाते है। अब आपके सामने हीरा लाकर रख दिया जाये तो आप उसे पहचान थोड़े ही पाओंगे लेकिन यदि नित्य प्रति रत्नों के बारे में अध्ययन करोंगे, परखोंगे तो आप भी एक दिन पारखी बन जाओंगे। फिर अपने जीवन में हीरों को एकत्र करेंगे, जीवन के कंकड़ पत्थरों को दूर फेंक देंगे।

    तो सबसे पहली बात है कि तत्काल कोई अवधारणा नहीं बनाएं। हम अपनी अवधारणाओं के आधार पर किसी को बुरा कह देते है, किसी को भला कह देते है। पर, हर व्यक्ति में गुण-दुर्गुण, अच्छाई-बुराई साथ-साथ चलती है। किसी में अच्छाई का भाव, सच्चाई का भाव ज्यादा होता है तो किसी में कम है।

    आपकी दृष्टि जैसी होगी, आपके विचार जैसे होंगे उसी के अनुसार आप अवलोकन करेंगे और अपनी धारणा बना लेंगे। हर अच्छे व्यक्ति में दो-चार कमी होती है और इसी प्रकार हर बुरे व्यक्ति में दो-चार अच्छाईयां भी होती है।

    ईश्वर ने हमारे जीवन में केवल एकदम शुभ्र श्वेत और एकदम स्याह काला नहीं बनाया है। एक बीच की स्थिति दी है। जिसे ग्रे भाव कह सकते है, श्याम भाव कह सकते है और विशेष बात क्या है? कि हमारे विचारों का प्रवाह किसी भी दिशा में जा सकता है। गुणों की दिशा में भी जा सकता है, कभी बदला लेने की स्थिति में जा सकता है, तो कभी हम अवसाद के क्षणों में अपने आप ही आत्म पीड़ित होते है। डिप्रेशन में आते है और सब बाधाओं के लिये अपने आपको ही दोषी ठहराते है और कभी भाग्य को दोष देने लगते हे।

    ऐसी स्थिति में निश्चित रूप से हर मनुष्य को एक मार्गदर्शक की आवश्यकता अवश्य रहती है। सबसे बड़ा मार्गदर्शक तो आपका मन ही है और मन का मार्गदर्शन सदैव स्पष्ट रहता है क्योंकि मन का स्थान शिव का स्थान है। जो निर्देशन इस आत्म भाव से, शिव भाव से आते है वो कहीं और से नहीं आ सकते है। इसके लिये एक परम सत्ता के प्रति समर्पण का भाव चाहिये। यह परम सत्ता गुरू हो सकते है, शिव हो सकते है, निराकार ब्रह्म हो सकते है। जब आप अपने मन में स्थित परम सत्ता स्वरूप शिव गुरु से अपने मन को जोड़ देते है तो धीरे-धीरे एक ऐसी स्थिति आ जाती है कि आप अपने निर्णय अपने मन से लेते है ना कि दूसरों की देखा-देखी।

    आज एक बात विचार करो, आज तक आपने स्वयं कितने निर्णय लिये? स्वयं तो आपने दो-चार ही निर्णय लिये है और उन निर्णयों ने ही आपके जीवन को एक सही दिशा दी है। आपको अपने मन के अनुसार जीने का शुभ अवसर प्रदान किया है।

    इसलिये गुरु का वचन है प्रिय शिष्य मंथन करते रहो, परखते रहो। मंथन करने से ही तो विष दूर होगा और अमृत निकलेगा और अमृत का स्रोत एक बार फूट गया तो आपके स्वः निर्णय लेने की क्षमता का निरन्तर विकास होता रहेगा।

    एक बात जान लो, सब मनुष्य समान है और जो मनुष्य अपनी क्षमता का जितना विस्तार करता है वही उसके जीवन को उन्नत बनाती है, पुष्ट बनाती है, श्रेष्ठ बनाती है, शांत बनाती है और यह सब शक्ति आपके भीतर है। अपने मन का मंथन करते समय किसी भी प्रकार का भावनात्मक उद्वेग नहीं रखें। निष्पक्ष होकर परखें, तब अपने कार्य के गुण-दोष, अपने व्यक्तित्व के गुण-दोष, अपने विचारों के गुण-दोष सब स्पष्ट हो जाते है। फिर आप स्पष्ट निर्णय कर सकते है कि मुझे किस बात को बढ़ाना है, किस बात को घटाना है?

    कई बातें बहुत छोटी होती है, जैसे समय से उठना, समय से भोजन, समय से कार्य, समय से साधना, समय से संयम इन छोटी-छोटी बातों से आपके मन की शक्ति प्रबल हो जाती है।

कर्मणा मनसा वाचा यदभीक्षणं निषेवते।
तदेवापहरत्येनं तस्मात्कल्याणमाचरेत्‌‍।

    मन, वचन और कर्म से हम लगातार जिन बातों के बारे में सोचते हैं, वही हमें अपनी ओर आकर्षित कर लेती है। अतः हमें सदा शुभ बातों का चिंतन करना चाहिये।

-नन्द किशोर श्रीमाली 

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