Dialogue with loved ones – May 2022

अपनों से अपनी बात…

मेरे प्रिय आत्मन् शिष्य,

शुभाशीर्वाद,

शक्ति के क्षेत्र पृथ्वी, आकाश, जल, नभ में हजारों-हजारों चमत्कारिक स्थान है। जिन्हें आधुनिक विज्ञान भी समझ नहीं पाया है। यही शक्ति का रहस्यमयी लीला विस्तार है।

हिमालय की घाटी में घोर बर्फिले क्षेत्र में हजारों पुष्प खिलते है और इन पुष्पों में पुष्पराज है ‘ब्रह्मकमल’। यह ब्रह्मकमल श्‍वेत शुभ्र पुष्प वर्ष में एक रात्रि ही खिलता है। उस रात्रि में यह प्रस्फुटित होकर करीब आठ ईंच का हो जाता है और केवल कुछ घण्टे ही खिला रहता है। ब्रह्मकमल भगवान शिव को अर्पित किया जाता है, शिव और शक्ति का मिलन।

रामेश्‍वरम् में एक स्थान है विलुन्दी तीर्थ यहां त्र्यम्बकेश्‍वर शिवलिंग स्थापित है और एक गहरा कुंआ है, समुद्र के बीच, अथाह गहरा और विशेष बात यह है कि इसमें से मीठा जल निकलता है। चारों ओर खारा ही खारा पानी और बीच में यह मधुर जल स्रोत।

इस सम्बन्ध में कथा है कि जब भगवान राम लंका विजय कर रामेश्‍वरम् आये और वहां उन्होंने शिवलिंग को स्थापित कर अभिषेक किया, पूजन किया। जब पूजन पूर्ण हुआ तो मां सीता ने कहा मुझे प्यास लगी है, तब भगवान राम ने अपने तरकश से एक बाण समुद्र में छोड़ा और यह बाण जिस स्थान पर छोड़ा वहां से मीठे मधुर पानी का फव्वारा फुट पड़ा, यही है विलुन्दी तीर्थम्।

प्रिय साधक, आपके भीतर भी ब्रह्मकमल है, आपके भीतर भी अमृत कुण्ड है, आपके भीतर का ब्रह्मकमल भी खिलना चाहता है। यह कब खिलेगा, यह आपको नहीं मालूम लेकिन साधक के जीवन में यह ब्रह्मकमल अवश्य ही खिलता है। जिसे ॠषियों ने कुण्डलिनी स्रोत कहा है, शक्ति का उद्गम स्थान कहा है, जिसे अमृत कुण्ड कहा है। हम सबमें है ब्रह्मकमल, सबमें है अमृतकुण्ड।

अमृत कुण्ड के चारों ओर खारा पानी। जीवन की कड़वी सच्चाईयें, जीवन के राग-द्वेष, जरा-पीड़ा, मोह-माया सब तत्व है उन सब तत्वों के होते हुए भी याद रखें आपके भीतर एक अमृत कुण्ड है, जिसे तीव्र शक्ति से भेदना है। इस भेदने की कला को ‘साधना’ कहा गया है, ‘तपस्या’ कहा गया है, ‘एकाग्रता’ कहा गया है, ‘शक्ति संधान’ कहा गया है।

शक्ति संधान के लिये किसी बाह्य शक्ति की आवश्यकता नहीं है। वह तो आपके रोम-रोम में फैली हुई है। बस उसे एकाग्र कर अपने जीवन के लक्ष्य जहां चिदानन्द है, ब्रह्मानन्द है, परमसुख है, ईश्‍वरीय साक्षात्कार है आनन्द अनुभूति है उस लक्ष्य तक पहुंचना है।

खिलेगा, कमल अवश्य खिलेगा। आपके उस ब्रह्मकमल के लिये आवश्यकता है उचित मानसिक वातावरण की, आवश्यकता है भावनाओं को एकाग्र करने की, आवश्यकता है एक चाह की कि मुझे मेरे जीवन में आनन्द का अमृत प्राप्त हो। मैं अपने जीवन के रहस्यों को समझ सकूं, उन्हें आत्मसात् कर सकूं और एक-एक चक्र को जाग्रत करता हुआ अपनी अनुभूति को उस सहस्रार में ले जाऊं जहां परमानन्द शिव है, जहां विश्राम है।

गति और विश्राम एक दूसरे के विरोधाभास नहीं है। गति शक्ति जीवन में निरन्तर क्रियाशीलता है, उस गति को श्रेष्ठता की ओर ले जाने की क्रिया साधक साधना द्वारा करता है। जब आन्तरिक क्रियाकलाप विशुद्ध होने लगते है तो ब्रह्मकमल खिल जाता है, अमृतकुण्ड का झरना उमड़ पड़ता है।

बस उतरना है अपने भीतर, बाह्य संसार की सारी गतिविधियां अवश्य संचालित करनी है और उनका संचालन आप कर भी रहे है। सदैव याद रखना, इन सब का मूल स्रोत अमृत कुण्ड ब्रह्मकमल आपके भीतर ही है और जिस दिन ईश्‍वर ने आपको जन्म दिया, उसी दिन आपके भीतर इन्हें स्थापित भी कर दिया।

अब अपने अमृत कुण्ड को भेदने की क्रिया आपको ही करनी है। यह शरीर के सप्त चक्रों में स्थित है और शक्ति के साथ जब यह जाग्रत होता है तो इसे कुण्डलिनी चक्र कहा जाता है। मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्ध, आज्ञा से सहस्रार तक की इसकी यात्रा जैसे-जैसे साधक का मानसिक स्तर, साधनात्मक स्तर बढ़ता है वैसे-वैसे आन्तरिक ज्ञान में, आन्तरिक आनन्द में अभिवृद्धि होने लगती है। दिखोगे आप 5-6 फुट के व्यक्ति ही पर जब अमृत कुण्ड का प्रवाह होता है, भीतर का ब्रह्म कमल खिलता है तो रोम-रोम में ओज आता है, आभा आती है। जिसे ज्ञानी आत्म प्रकाश कहते है, यह है आत्मा का प्रकाश, आत्म ज्ञान।

फिर आप संसार के क्रिया कलाप में विचलित नहीं होंगे। संसार के उतार-चढ़ाव में विचलित नहीं होंगे। संसार चक्र अपने स्थान पर है उसे दिन और रात की तरह देखते रहो। शुभ की यात्रा है उस यात्रा में आयेंगे कुछ अवरोध और होंगे समाज के कुछ विरोध।

तोड़ेगे आप कुछ पुरानी मान्यताएं, कुछ पुरानी परम्पराएं, और तभी स्वयं का नवनिर्माण कर सकोगे।

सदैव याद रखना जीवन का उद्देश्य है, जीवन का लक्ष्य है परम आनन्द को प्राप्त करना, आत्म सन्तुष्ट होना और अपनी ही आत्मरति सुख में लीन होना। जिसे ज्ञानी कुण्डलिनी जागरण, शिव और शक्ति का मिलन कहते है।

अभी उथल-पुथल की क्रिया चलेगी। कई जन्मों के पड़े हुए मल-पाक का विक्षेप करना है, अपने भीतर गहरी खुदाई करनी है तो यह तीव्र शक्ति से भी संभव हो सकेगा। यह श्रम आनन्द की ओर ले जाने वाला है। विश्राम की ओर ले जाने वाला है।

जिस क्षण आप अपने स्वयं के पास बैठे हो, आनन्द से परिपूर्ण हो, सन्तुष्ट हो, वह क्षण आपके लिये अमृत सुधा का समय है।

हमारा शरीर तो उर्वर भूमि है, चैतन्य भूमि है। एकाग्रचित्त होकर समर्पण भाव से निरन्तर इष्ट को ध्यान रखते हुए यह भाव व्यक्त करें कि जीवन के दल-दल में मैं बाहर निकलूंगा और अपने ब्रह्मकमल का रस आस्वादन करूंगा, अपने अमृत कुण्ड में परमानन्दित अवश्य होऊंगा।

बस आनन्द भाव से अपनी यात्रा करते रहिये…, गुरु और इष्ट का सहयोग तो आपके साथ हर समय है। उस अनुभूति को पकड़ने का प्रयास करो। अपने ध्यान में गुरु और इष्ट के साथ एकाकार हो जाओं, कुछ क्षणों के लिये ही सही एकाकार अवश्य होना है और सौंप देना है अपना पूरा जीवन…।

-नन्द किशोर श्रीमाली

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