Dialogue with loved ones – March 2024
अपनों से अपनी बात…
मेरे प्रिय आत्मीय,
शुभाशीर्वाद,
राम रामेति रामेति, रमे रामे मनोरमे।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने॥
22 जनवरी 2024 का दिन मेरे जीवन का सबसे सौभाग्यशाली क्षण था, जिन क्षणों में निखिल कृपा से आप सबके प्रतिनिधि के रूप में मुझे रामलला प्राण प्रतिष्ठा समारोह में सशरीर उपस्थित होने का अवसर प्राप्त हुआ। ज्ञान चक्षुओं से तो राम की अनुभूति प्रत्येक भारतवासी के मन में व्याप्त रहती है पर चर्म चक्षुओं के माध्यम से उस परमेश्वर स्वरूप श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा को देखने का सौभाग्य अद्भुत था। यह क्षण मेरे जीवन की सबसे महत्वपूर्ण पूंजी है। इन क्षणों को, इन आनन्द को ही मैं अपने शिष्यों में जीवन भर विस्तारित करता रहूंगा।
यह बात मुझे अच्छी तरह से मालूम है कि हमारा प्रत्येक साधक-शिष्य ईश्वरीय अनुभूति को क्षण-क्षण अनुभव करता है और देव कृपा से उसके भीतर शक्ति का जागरण होता है और वह किसी अन्य भरोसे कार्य नहीं करता, उसे सदैव अपने गुरु पर, अपने इष्ट पर और दैवीय शक्तियों पर अटूट विश्वास रहता है, इस कारण वह संसार चक्र में कभी भी अपने आपको अकेला अनुभव नहीं करता है। दैवीय शक्तियां सदैव उसके साथ रहती है।
प्रत्येक शिष्य-साधक साधना के पथ पर चल रहा है और सबसे बड़ी बात है कि इस पथ का चयन आपने स्वयं किया है। किसी के कहने पर नहीं और जब अर्न्तात्मा से, मन से शब्द निकलते है तो वे मंत्र बन जाते है और मंत्र अपना प्रभाव साधक को देव कृपा के रूप में, ईश कृपा के रूप में, गुरु कृपा के रूप में प्रदान करते है।
विशेष हर्ष की बात यह है कि इस बार शिवरात्रि का आयोजन त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग क्षेत्र में हो रहा है। द्वादश ज्योतिर्लिंग है – सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ओंकारेश्वर, केदारेश्वर, भीमाशंकर, विश्वेश्वर, त्र्यम्बकेश्वर, वैद्यनाथ, नागेश्वर, रामेश्वर और घुष्मेश्वर।
हम जा रहे है शिव की आराधना करने, शिव साधना और अभिषेक तो प्रत्येक साधक-शिष्य अवश्य ही करेगा। चाहे वह मेरे साथ त्र्यम्बकेश्वर में करे अथवा अपने घर में करें। आपका घर भी शिव क्षेत्र है, बस इतना जान लेना कि साधना-अभिषेक अवश्य ही सम्पन्न करना है।
राम आ गये, शिव भी आपके जीवन में पहले से ही स्थापित है। शिव के बिना सबकुछ शून्य है। शिव है तो संसार है। संसार है तो संसार को चलाने वाले शिव है। शिव की कृपा से ही उत्पति, पालन, संहार की स्थिति निर्मित होती है। जो जगत में होता है वही जीवन में भी होता है। संरचना, पालना और संहार यही जीवन का भी क्रम है। इस क्रम से कौन बच सकता है?
जो शिव को समर्पित है वह एक दृष्टा का भांति संसार चक्र में अपना जीवन देखता है और उस अनुसार सत्य पथ पर गतिशील होते हुए संसार के सारे कार्य, गृहस्थी के सारे कार्य सम्पन्न करता है। वह अपने साधना मार्ग से कभी भी विचलित नहीं होता है। अपनी साधना, भक्ति, श्रद्धा और प्रेम को सदैव और सदैव जीवन्त रखता है।
अब शिव क्या है? इसे कुछ शब्दों में कहना संभव नहीं है। पूरी शिव पुराण भी लिख दी जाये तो भी शिव की व्याख्या करने में शब्द तो कम पड़ ही जायेंगे, संभव ही नहीं होगा।
एक बात मैं समझ पाया हूं, कि शिवत्व और शक्ति तत्व दोनों मनुष्य के भीतर ही है। इन दोनों के बिना जीवन एक क्षण भी नहीं चल सकता है। पर विचित्र बात यह है कि कई लोग शिव और शक्ति में भेद करते है।
यह मैंने विचित्र बात देखी है कि इस जगत में सभी अपनी ऊर्जा को तीव्र से तीव्रतम रूप में संचारित करने में लगे हुए है। मैं शक्तिमान हो जाऊं, मैं शक्ति से परिपूर्ण रहूं, हर एक के मन में एक अग्नि धधक रही है और वह उस ऊर्जा को और अधिक तीव्र इसलिये बनाना चाहता है कि जगत में उसके सारे कार्य मनचाहे रूप में तत्काल सम्पन्न हो जाये। मैं शक्ति सम्पन्न होऊं पर यह ज्ञान नहीं है कि शक्ति का परम लक्ष्य क्या है?
लेकिन एक बात विशेष ध्यान रखने की है कि यह ऊर्जा रौद्र रुपा है। मूल रूप से इसे रूद्राणी कहा गया है जो तीव्र है, रौद्र भाव प्रकट करती है।
आपके भीतर भी एक महायज्ञ चल रहा है और उसमें आप भावों की, अपने कर्मों की आहूति देते है, निरन्तर देते रहते हैं। एक क्षण भी आप शांत नहीं बैठ सकते है। घमासान मचा हुआ है मन में विचारों का, भावनाओं का, कार्यों का अधिक से अधिक प्राप्त करने का।
विचार करो मेरी शक्ति का, ऊर्जा का परम लक्ष्य क्या है?
यदि परम लक्ष्य, मंजिल ही मालूम नहीं है तो भीतर ही भीतर चलती हुई, यह ऊर्जा की क्रिया विचलित कर देने वाली बन जाती है। इसी में सबसे बड़ा खतरा है, इसी में शरीर की व्याधियों का, मन की व्याधियों का रहस्य छुपा हुआ है। यह ऊर्जा का प्रवाह तेज बहती हुई नदी के समान है। कब यह बाढ़ का रूप ले लें, किनारों को तोड़ दे और जीवन में प्रलय की स्थिति आ जायें, यह सबसे बड़ा खतरा है, ऊर्जा का परम लक्ष्य जानो।
चल तो सभी रहे है, लेकिन ऊर्जा का, शक्ति का सही उपयोग और सही संचालन करना बहुत कम को आता है। जब आप अपनी ऊर्जा का लक्ष्य अपने सांसासारिक कार्यों, भौतिक जीवन की पूर्णता और जीवन के समस्त संभावनाओं की पूर्ति के लिये करते है तो यह ऊर्जा शक्ति भी विस्मित होकर आपको निहारती है।
बिल्कुल सही बात है प्रत्येक व्यक्ति को कर्मशील होना चाहिये कर्म के लिये शक्ति चाहिये और शक्ति का अवगाहन भीतर से ही होता है। गुरु शक्तिपात के माध्यम से इस शक्ति को ऊपर उठाते है। पर लक्ष्य सदैव याद रखना – त्र्यम्बक यजामहे सुगन्धिम् पुष्टिवर्द्धन, मेरी शक्ति का संचरण शिव भाव को प्राप्त करने के लिये है। जीवन सुगन्धमय हो, पुष्टिमय हो, व्यर्थ के बंधन नहीं हो। मुक्त भाव से जीवन जीना है। यह भाव आते ही आपकी शक्ति ऊर्जा नियन्त्रित हो जाती है, उसे एक विशुद्ध मार्ग मिल जाता है और वह मार्ग है शक्ति का शिव से मिलन।
बहुत-बहुत आशीर्वाद…
-नन्द किशोर श्रीमाली
Coming soon…
Nand Kishore Shrimali