Dialogue with loved ones – March 2023

अपनों से अपनी बात…

मेरे प्रिय साधकों,

शुभाशीर्वाद,

    आप सबकी चाहत है मेरे जीवन में आराम हो, मेरे जीवन में प्रसन्नता हो, मेरा शरीर स्वस्थ रहे, मेरे मन में सदैव उत्साह हो। आपके सारे क्रियाकलाप इन्हीं चार कामनाओं के लिये है। जिनके लिये संसार चक्र में आप निरन्तर और निरन्तर भाग-दौड़ कर रहे हो। इतनी भाग-दौड़ कर रहे हो फिर भी न मन में शांति है और न ही पूरा उत्साह। शरीर में है थकान और आराम तो दूर-दूर नहीं है। यदि ऐसी स्थिति है तो इस पर विचार करना चाहिये। आपको स्वयं विचार करना चाहिये। आपका जन्म प्रभु का आशीर्वाद है तो फिर आपके जीवन में ये चारों बातें अवश्य होनी चाहिये।

    आपका मन है संसार चक्र का स्वरूप। संसार चक्र में एक गति से चक्र चलता है और यह चक्र 28 दिन में, चार सप्ताह में पूरा होता है। ठीक वैसे ही जैसे चन्द्रमा जो मन का प्रतीक है पृथ्वी का परिभ्रमण चार सप्ताह में पूरा करता है।

    ठीक ऐसे ही आपका मन भी, वह भी एक गोल वर्तुल में निरन्तर और निरन्तर परिभ्रमण कर रहा है।

    संसार चक्र में सबका मन यही कह रहा है। अब बताओं और आप करना चाहते हो कुछ नया, यह ठीक है कि आपके जीवन में कुछ घटनाएं घटित हुई है, आपके द्वारा ही घटित हुई है। कभी आपने प्रेम कर लिया, कभी घृणा कर ली, कभी क्रोध कर लिया और आप सोचते हो कि मैं ससार का पहला व्यक्ति हूं। मैंने अपने जीवन में इतने सालों में यह-यह नवीन कार्य किये। आपसे पहले भी हजारों साल से, करोड़ों-करोड़ों लोगों ने यही किया। आपने नया क्या किया?

    नया इसलिये नहीं किया है कि आपका मन तो एक गोल घेरे में वर्तुल में घूम रहा है। यह आपने मन को आदत दे दी। बहुत अभ्यास किया है आपने मन को गोल घेरे में घुमाने की। अब वह इसी रूप से निरन्तर घूम रहा है।

    आज सोचों, क्या अपने मन को किसी खास स्थान पर ठहराया है, टिकाया है। अब मन को ठहराना है, टिकाना है तो सबसे पहले इसकी गति को गोल-गोल घुमने की बजाय, कहीं जमाना तो पड़ेगा। इसे शांत तो करना पड़ेगा। इसे विश्राम तो देना होगा।

  आजतक आपने यही जाना है, कि मन का नाम है – भटकाव।

    जो अपनी मनमर्जी करता रहता है। मन अपनी मनमर्जी नहीं कर रहा है, आप उसे गोल-गोल घूमने की आदत डाल दी है इसलिये जल्दी से प्रसन्न हो जाते हो, जल्दी से क्रोध में भर जाते हो। छोटी सी बात आपके मन को विचलित कर देती है।

    क्यों हो रहा है यह सब? क्योंकि आपक मन में विश्राम का भाव नहीं है। आपने अपने मन को विश्राम तो दिया ही नहीं है।

    ‘विश्राम’ बहुत बड़ा शब्द है और इसका बहुत गहरा अर्थ है। विश्राम अर्थात्‌‍ जहां कोई श्रम न हो, असीम शांति हो।

    आपने तो सोने को विश्राम का नाम दे दिया और जागने को क्रिया का नाम दे दिया। आज एक बात और सोचों, आपने कब भरपूर नींद का, विश्राम का आनन्द लिया है। बहुत परिश्रम कर शरीर को थका दिया है और नींद आ गई इसे विश्राम नहीं कहते क्योंकि नींद में जाते हुए आपने अपने मन को किसी चिन्ता में, कल की चिन्ता में, आने वाले 10 साल की चिन्ता में लगा दिया। अब मन बेचारा क्या करें? वह तो अविरल घूम ही रहा है। इसीलिये कभी आपकी नींद उचाट हो जाती है और कभी दुस्वप्न आते है।

    सीधी-सादी बात है, शरीर और मन का समन्वय नहीं है। अब समन्वय नहीं है तो विश्राम कैसे होगा? देखों, शक्ति का नाम है क्रिया ओर विश्राम का नाम है शिव। यदि मन में विश्राम ही नहीं है तो इस मन से नवीन शक्ति का उद्भव कैसे होगा? दोनों में सामंजस्य होना ही चाहिये। भरपूर विश्राम होगा तो भरपूर शक्ति का भी उद्भव होगा।

    आप अपने आपको कई बार समझाते हो और कहते हो कि मैं विश्राम कर रहा हूं, कभी आप अपने कामों को टालते रहते हो और अभी तो विश्राम कर लूं। कभी आप भविष्य की प्रतिक्षा करते रहते हो और सोचते हो कि अभी तो मैं विश्राम कर लूं। आगे भरपूर क्रिया करूंगा।

    यह कोई विश्राम थोड़े ही है, शिव भाव थोड़े ही है। मन को दे दिया खिलौना व्यस्त करने के लिये और मन को निरन्तर व्यस्त कर रखा है। व्यर्थ की बातों के लिये आपका मन गतिशील है। कहां है विश्राम?

    विश्राम पर स्थिति है जहां आपका मन भी शांत हो जाये। आपका मन घूमने की बजाय किसी एक स्थान पर टिक जाये। मन की गति रूक जाये।

    अब आप सोचों की आप अपने जीवन में सफल होना चाहते हो या व्यस्त होना चाहते हो।

    केवल व्यस्त रहने से और चोबीसौ घण्टे अपने मन को क्रियाशील रखने से आप सफल तो नहीं हो सकते। निरन्तर व्यस्त रहे तो आपकी जिन्दगी जुनून बन जायेगी और यह सोचने लगोंगे कि बस ये सारे काम निपटा दूं फिर मैं विश्राम ही विश्राम करूगा। आप बहुत Busy है और अपने आपको बहुत क्रियाशील, कर्मशील समझते हो तो अपने आपसे पूछो कि ऐसे ही Busy रहोंगे या कर्मशील होओंगे।

    सफल होना और कामना पूर्ति एक ही भाव है। इसके लिये आवश्यक है कि दिन में, सप्ताह में, महीने में कोई दिन ऐसा हो जिस दिन आप काम ही नहीं करो। जानते हो संसार में सबसे मुश्किल कार्य है “Doing Nothing” कुछ नहीं करना। चुपचाप बैठे रहना और अपने मन की गति को देखना, चलने दो विचारों का प्रवाह धीरे-धीरे वह एक स्थान पर टिक जायेगा। मन को किसी एक स्थान पर टिकाने को ही कहा गया है – ध्यान।

    ध्यान है, विश्राम की स्थिति। यही आपकी शक्तियों को जीवन्त बनाती है। इसके लिये भी अभ्यास करना पड़ता है। क्या आप ऐसी स्थिति सप्ताह में १-२ बार, महीने में १-२ बार ला सकते हो। जब न आपके पास कोई किताब है, न कोई संगीत, न कोई फिल्म, न कोई मोबाईल, बस आप चुपचाप शांत भाव से बैठे हो, अपने मन को टिका रहे हो, अपने गुरु पर मन को टिकाओं, अपने इष्ट पर मन को टिकाओं और अपने आपको सौंप दों।

    बस यह क्रिया ही आपको शिवमय कर देगी, आपको आनन्द से परिपूर्ण कर देगी।

-नन्द किशोर श्रीमाली 

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