Dialogue with loved ones – June 2023
अपनों से अपनी बात…
मेरे प्रिय साधकों,
शुभाशीर्वाद,
निखिल जन्मोत्सव अमृत महोत्सव के रूप में आप सभी ने सम्पन्न किया। पूरे भारतवर्ष में आप सभी निखिल शिष्यों ने गुरु पूजा, साधना सम्पन्न की। व्यक्तिगत रूप से मैं कोरबा (छ.ग.) में तीन दिन के आयोजन में सम्मिलित हुआ। पहले दिन नृत्यमय विशाल शोभा यात्रा और दो दिन विशेष साधनाएं – ज्वालामालिनी यज्ञ सम्पन्न किया। शिविर में आप सभी शिष्यों का प्रेम देखकर मैं अभिभूत हूं। इस विशाल आयोजन के लिये छत्तीसगढ़ के सभी साधकों को, शिष्यों को मेरा विशेष आशीर्वाद। जहां संगठन होता है और प्रत्येक शिष्य कार्यकर्त्ता बनकर कार्य करता है वह आयोजन अपने आपमें प्रेममय, भव्य और गुरु गरिमा से युक्त हो जाता है। संगठन में ही शक्ति है। आपका प्रेम विशिष्ट है, गुरु को आपने हृदय में आत्मसात् किया है।
दो दिन में कई साधक मुझसे मिलने आये और उनके साथ परिवार के सदस्य भी थे। कई साधक अपने पौते, नाती के साथ मिलने आये और शिविर में भाग लिया। एक 60-65 साल के साधक के साथ उनका पौत्र भी था। जब उन साधक ने प्रणाम किया तो उस बच्चे ने भी चरण स्पर्श किया और तत्काल बोल पड़ा, अरे! दादा, दादा ये तो वहो ही है, जिनका चित्र हमारे घर के मन्दिर में लगा हुआ है, सचमुच में यही है ना। मैंने बच्चे को आशीर्वाद दिया।
इसमें महत्वपूर्ण बात क्या है? विशेष बात यह है कि मैं 30 साल से छत्तीसगढ़ आ रहा हूं और जिन साधकों ने उस समय गुरु दीक्षा ली, उनके बच्चे बड़े हो गये और उन बच्चों के भी बच्चे हो गये है। वे साधक स्वयं दादा-नाना बन गये है। उस बच्चे के कथन से यह स्पष्ट हो जाता है कि आपके घरों में 30-40 साल से गुरु पूजन, साधना, आरती सम्पन्न होती है।
देखा जाये तो मैं तीन पीढ़ी का गुरु हूं और मैं तो आपको आपके बच्चों को और उनके बच्चों को भी अपना मित्र ही समझता हूं और मित्रवत् व्यवहार ही करता हूं। मेरे सामने आप एक शिष्य है, साधक है, उम्र चाहे कोई भी हो।
जिस घर में तीन पीढ़ी से गुरु का पूजन सम्पन्न हो रहा है उस परिवार में अभिवृद्धि तो निश्चित रूप से होती ही है। आपने अपने घरों में जो संस्कारमय, गुरुमय वातावरण दिया है उसी से आपका परिवार निरन्तर उन्नतिशील है, सृजनशील हैं ओर जब मैं आपके मुख से सुनता हूं कि हमारे बच्चे अब महानगरों में, विदेश में विभिन्न-विभिन्न क्षेत्रों में कार्यशील है और वहां भी वे नियमित रूप से गुरु पूजन, साधना अवश्य करते है। यह शिक्षा के साथ-साथ गुरु दीक्षा का प्रभाव है और आपकी प्रखर चेतना शक्ति का प्रभाव है। आप गृहस्थ जीवन की जिम्मेदारियां भी सम्पन्न कर रहे है, परिवार भी उन्नति कर रहा है क्योंकि आपने गुरु को अपनी आधार शक्ति बनाया है।
श्रेष्ठ शिष्य के जीवन में गुरु के प्रति भक्ति, प्रीति, आस्था और विश्वास आधार स्तम्भ है। जिस घर में यह आधार स्तम्भ होता है वहां कभी मतिभ्रम नहीं होता, बुद्धि विचलित नहीं होती, वह साधक सदैव सद्कार्यों में, वैराग्य भाव से क्रियाशील रहता है।
जीवन में कभी-कभी संकट के बादल भी आते है पर गुरु का शिष्य कभी भी विचलित नहीं होता। कभी व्यर्थ का युद्ध नहीं करता, कभी अनर्गल विवाद नहीं करता। वह अपने कार्य को अर्जुन की भांति निरन्तर करता रहता है।
शिष्य के मन में एक विशेष चेतना विद्यमान रहती हैं जिस कारण वह हर समय निश्चिन्त रहता है। वह जानता है कि मैंने अपने हृदय में गुरु को धारण किया हुआ है और मेरे गुरु ने मुझे कर्मशील होने की दीक्षा प्रदान की है इसलिये मैं कर्मपथ से कभी विचलित नहीं होऊंगा।
गुरु कृपा से मुझे उत्तम फलों की प्राप्ति अवश्य होती रहेगी।
एक बात कहूं, संसार में सबसे मुश्किल कार्य है, निश्चिन्त भाव से कर्म करना, क्योंकि चिन्ताएं तो चारों ओर से प्रहार करती रहती है पर जो निखिल शिष्य है वह नि+अचिन्त अर्थात् निखिल भाव, निश्चिन्त भाव से क्रियाशील रहता है। जब मेरे ऊपर सद्गुरु हाथ है तो मैं क्यों व्यर्थ की चिन्ता करूं – “अब सौंप दिया इस जीवन का सब भार तुम्हारे हाथों में।” के भाव से कर्मशील रहता है।
एक विशेष बात कहूं, संसार में कोई भी मनुष्य कायर और डरपोक नहीं होता है। उसे हर परिस्थिति में संघर्ष करना आता है लेकिन उसकी बुद्धि उसे कभी-कभी डरपोक बना देती है क्योंकि वह मन की नहीं सुनता, बुद्धि की सुनता है। इसीलिये वह संसार में बार-बार अनावश्यक समझौते करता है और हर बार, हर एक से निभाने के चक्कर में एक कायरता उसके स्वभाव में आ जाती है। ध्यान रहे, मन कभी भी नफा नुकसान के बारे में नहीं सोचता। आपकी बुद्धि केवल इन्हीं दो बातों के बारे में हर समय सोचती रहती है, उसी दिशा में क्रियाशील रहती है। फिर धीरे-धीरे क्या होता है, कायरता उसके स्वभाव में आ जाती है। आपकी उसकी क्रियाशीलता में कमी आज जाती है।
केवल बुद्धि से कार्य करने वाला हमेशा विपरित परिस्थितियों के बारे में, अनहोनी बातों के बारे में आशंका भरे विचार ही सोचता है क्योंकि बुद्धि मन को बार-बार ऐसे ही विचार भेजती रहती है और वह सोचता रहता है कि मेरे ऊपर कितना भार है मेरा तो कोई सहयोगी नहीं है। कब तक संघर्ष करता रहूंगा?
याद रखना, मनुष्य का सबसे बड़ा सहयोगी मन ही होता है। कायर बुद्धि हमेशा नकारात्मक पक्ष, अंधकार पक्ष को ही देखती है और मन सदैव सकारात्मक पक्ष को देखता है। इसलिये मन का स्वभाव तो विशुद्ध है, आपने अपनी बुद्धि द्वारा मन के ऊपर बहुत बड़ा भार डालकर अपना स्वभाव ही चिन्तामय बना दिया है।
मन तो सदैव शांत और प्रसन्न ही रहना चाहता है तो उस मन की निरन्तर और निरन्तर सुनों। उस मन के तार गुरु से जुड़े है, ईश्वर से जुड़े है उन तारों को मजबूत करते रहो।
मन तो सदैव शिव का स्थान है, गुरु का स्थान है। गुरु और शिव आपको भ्रम से निकाल कर आनन्द भाव की ओर ले जाते है जहां आप अपने आप में पूर्णता से भरे रहे अपना कार्य शांत भाव से करते रहे।
साधक वही है जो मन के ऊपर बुद्धि को नहीं हावी होने दे। इसलिये सकारात्मक चिन्तन के साथ कार्य करो। 3 जुलाई को गुरु पूर्णिमा है, शिविर अयोध्या में है, आने का प्रयास अवश्य करना…। अपने घर में गुरु पूर्णिमा महोत्सव प्रेम और आनन्द से अवश्य सम्पन्न करना।
-नन्द किशोर श्रीमाली
Coming soon…
Nand Kishore Shrimali