Dialogue with loved ones – June 2022

अपनों से अपनी बात…

मेरे प्रिय आत्मन् शिष्य,

शुभाशीर्वाद,

आप सभी अपने-अपने क्षेत्रों में कार्य कर रहे है, अपनी व्यक्तिगत जिन्दगी और सामाजिक जिन्दगी, व्यापार-व्यवसाय-नौकरी की जिन्दगी भी भलीभांति जी रहे है। ये सब आपके भीतर की आन्तरिक शक्ति का प्रभाव है। इसी शक्ति के कारण जीवन को युद्ध नहीं समझ कर एक खेल और उत्सव मान रहे है।

एक बात मैं विशेष रूप से कह दूं कि गुरु अपने शिष्यों को उपदेश नहीं देता। गुरु अपने शिष्यों के समक्ष अपने मन की बात कह देते है, कहते है। यही गुरु और शिष्य के बीच में संवाद है।

उपदेशक तो बहुत है, हर तीसरा व्यक्ति उपदेशक बना हुआ है और उपदेश प्रवचन दे रहा है। अरे जीवन में सफल होने के लिये अपनी कार्यक्षमता बढ़ाओं, शांत रहने का प्रयास करो, कार्य करते रहो, इस प्रकार जीओं, उस प्रकार जीओं, रचनात्मक कार्य करते रहो, रचनात्मक कार्य करने से ही तुम्हें जीवन की सार्थकता का अनुभव होगा।

अरे भाई हम सब अपने जीवन में रचनात्मक कार्य ही कर रहे है। क्या घर-परिवार को पालना अपने परिवार का ध्यान रखना, अपने परिवार की उन्नति के लिये सहयोग देना, रचनात्मक कार्य नहीं है क्या? व्यक्ति का पहला कर्त्तव्य तो अपने घर-परिवार की ओर ही होता है। घर-परिवार में आनन्द तो वास्तविक आनन्द का अनुभव होता है।

शास्त्र बहुत है, ज्ञानी बहुत है, उपदेश बहुत है, प्रवचन कर्त्ता भी बहुत है किसी की बात मानें? क्या कोई एक सूत्र है?

दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार।
तरूवर ज्यों पत्ती झड़े, बहुरि न लागे डार॥

इस संसार में मनुष्य जन्म बहुत मुश्किल से मिलता है। यह मानव शरीर उसी तरह बार-बार नहीं मिलता जैसे वृक्ष से पत्ता झड़ जाए तो दोबारा डाल पर नहीं लगता।

वेद वचन है कि जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसकी स्वयं रक्षा करता है – धर्मो रक्षति रक्षितः

और भगवान श्रीकृष्ण कहते है – श्रेयान्स्वधर्मों विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।

दूसरे के धर्म से अपना धर्म श्रेष्ठ है।

तो अब यक्ष प्रश्‍न है कि हमारा अपना धर्म क्या है? जिसके आधार पर हम अपना जीवन जीये। हर व्यक्ति अलग-अलग परिभाषा दे रहा है। हर व्यक्ति अपने विचार दूसरों पर थोपना चाहता है। हर कोई आपको मोटिवेट करने में लगा हुआ है। पर ये मोटिवेशन आता कहां से है, उस बिन्दु पर पहुंचे। किसी किताब को पढ़कर, किसी को देखकर, किसी को सुनकर तो मोटिवेशन आ नहीं सकता। प्ररेणा का सबसे बड़ा स्रोत तो आप स्वयं हो…, आप स्वयं हो।

ज्ञान तो विश्‍वामित्र ने भी दिया, पातंजलि ने भी दिया, याज्ञवल्क्य, ने भी दिया, अत्रेय, कणाद सबने दिया। शंकराचार्य ने भी अपने सूत्र दिये, रामानुजाचार्य ने भी अपने सूत्र दिये। किस का सूत्र माने? अपने से बड़ों का सूत्र माने, अपने सहयोगियों का सूत्र माने, उलझा दिया है सबने।

देखों सूत्र का सीधा-सादा अर्थ है फॉमूर्ला जिसके माध्यम से प्रश्‍न को सुलझाया जा सकता है।

पर गौर करने वाली बात यह है कि जीवन में हजार प्रकार की परिस्थितियां आती है, हजार प्रकार के प्रश्‍न आते है किसी एक सूत्र से सबको सुलझाया नहीं जा सकता है। हर बार अलग-अलग प्रकार से निर्णय लेना पड़ता है, क्या करें? विचार किसका होना चाहिये?

सबसे उत्तम सूत्र है – आपका स्वयं का विचार। जब आपका स्वयं का विचार होगा तब आप स्पष्ट निर्णय ले सकोगे। किसी दूसरे के विचार लेकर, अपने जीवन की दिशा को निर्धारित नहीं कर सकते है। स्वयं का विचार, स्वयं का निर्णय ही सबसे बड़ी स्वतंत्रता है, जो ईश्‍वर ने आपको प्रदान की है।

धन्य है वे महापुरुष जिन्होंने अपने ज्ञान के अनुसार सूत्र दिये। लेकिन एक बात है हर सूत्र आपके लिये सर्व कालिक नहीं हो सकता। आप लकीर के फकीर नहीं हो सकते। आपको अपना स्वयं का स्वतंत्र विचार बनाना पड़ेगा, तब आप उसे अपने पूरे जीवन निभा सकोगे, अपनी क्रिया कर सकोगे। आपका विचार जितना मजबूत होगा उतनी ही मजबूत आपकी कार्यक्षमता होगी, आपकी गुणवत्ता होगी, आपका स्वयं का व्यक्तित्व बनेगा।

एक बात अपने मन से स्पष्ट रूप से कहो कि मैं शक्तिमान हूं, मैं श्रेष्ठ हूं, मैं सुपात्र हूं, मैं योग्य हूं, मैं संसार की सर्वश्रेष्ठ योनि में उत्पन्न हुआ मानव हूं। मेरे जैसा न पहले कोई हुआ था, न कोई होगा।

और ईश्‍वर ने आपको पांच शक्तियां खुले हाथ से प्रदान की है – मन, बुद्धि, विचार, क्रिया और इच्छा।

यह तो निश्‍चित रूप से आपके पास है। अब निर्णय आपको लेना है कि आप इन पांच शक्तियों का संयोजन किस प्रकार करते हो। इन पंच धाराओं को एक साथ जोड़ दोगे तो मन में आनन्द गंगा का प्रवाह हो जायेगा और मैं स्पष्ट कहता हूं कि जिन भौतिक सुखों की आपकी कामनाएं है वे भी अवश्य पूर्ण हो जायेगी। जिन आध्यात्मिक सुखों की कामनाएं है वे भी इन पांच शक्तियों मन, बुद्धि, विचार, क्रिया और इच्छा के संयोजन से अवश्य प्राप्त हो जाती है। जीवन में प्राप्ति का एक ही मार्ग है, अपनी पांचों शक्तियों का संयोजन करना। जीवन में जो प्राप्त नहीं है, उसे प्राप्त करने का उपाय भी एक ही है इन पांच शक्तियों का संयोजन।

यही बात वेद कह रहे है, यही बात उपनिषद् कह रहे है, यही बात गीता में श्रीकृष्ण कह रहे है। तीनों में सार भूत रूप से एक ही बात लिखी हुई है। आपके जीवन का कोई भी क्षेत्र हो, कोई भी व्यवसाय हो, विद्यार्थी हो, शिक्षार्थी हो, कर्मार्थी हो, अर्थार्थी हो सफलता का मार्ग तो इन पांच शक्तियों का संयोजन ही है। पंच शक्ति संयोजन ही ईश्‍वरीय आराधना है।

आशीर्वाद,

-नन्द किशोर श्रीमाली

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