Dialog with loved ones – June 2020

अपनों से अपनी बात…

प्रिय आत्मन्,

शुभाशीर्वाद,

सबकुछ ठीक है और आगे अच्छा ही होगा। हर संक्रमण काल में मानव दैवीय शक्तियों के सहयोग से विजयी हुआ है और हमारी यह सृष्टि और अधिक मजबूत होकर आगे बढ़ी है।

अभी आपको यह लग रहा है कि मैं घर में कैद हो गया हूं। यह विचार आपको किसने दिया है? कहां है आप कैद? आपने तो समय का सदुपयोग किया है, आपने आत्मज्ञान अभिषेक सम्पन्न किया है। अपने भीतर की शक्तियों को उजागर किया है। आप अपने अन्तर्मन में हमारों बार उतरे है और आपने स्वयं के बारे में, जीवन के लक्ष्य के बारे में और अपनी भावनओं के बारे में विचार किया है अन्यथा एक मशीन का हिस्सा बन गये थे। दिनभर काम-काम और काम से थक कर आराम। अपने बारे में सोचने का अवसर ही कब मिलता था?

आप सब ने इस बार घर में बैठे-बैठे समय का उपयोग करते हुए तीन मंत्र विशेष रूप से जपे, पहला गुरु मंत्र, दूसरा शक्ति मंत्र और तीसरा शिव मंत्र। यह तो स्पष्ट हो गया कि आप अपने गुरु को बहुत प्रेम करते हो। आपकी देवाधिदेव शिव में अगाध श्रद्धा है और शक्ति के उपासक है। आप के इष्ट गुरु, शिव और शक्ति है।

मंत्र-साधना के माध्यम से आपने अपनी श्रद्धा और भक्ति को प्रगट किया। समर्पण का भाव दिखाया, अपने मन की शक्तियों को समायोजित किया। इसलिये इस विपरित समय में भी आप धैर्यशाली रहे और विचलित नहीं हुए। मन और तन से स्वस्थ रहे, दोनों का संयोजन गुरु, शक्ति और शिव के माध्यम से किया।

मनुष्य के पास सबसे बड़ी शक्ति विचार शक्ति है, भावनात्मक शक्ति है, बुद्धि की शक्ति है। मैंने थोड़े दिन पहले आपको यही कहा कि आप अपनी शारीरिक क्षमता, मानसिक क्षमता और भावनात्मक क्षमता का विकास करो। 

इनका विस्तार करना है। जब मनुष्य अपने आपको संकीर्ण विचारों का मन में लॉकडाउन कर देता है तो उस मन में भय, निराशा और आशंका आ जाती है। अनायास क्रोध आता रहता है, ये विचार आसुरी विचार है और इन आसुरी विचारों को अपने मन से पूरी तरह से निकाल ही देना है। क्यों व्यर्थ की आशंका, चिन्ता और निराशा रखते हो? इन तीनों से क्षमता और प्रसन्नता कितनी क्षीण हो जाती है। तुम्हें हर समय प्रसन्न रहना है, आनन्द के साथ अपनी जीवन यात्रा करो।

तुम साधक हो और साधक का अर्थ है सात्विक गुणों को धारण करने वाला, सत्य मार्ग पर चलने वाला, कर्म साधना में रत रहने वाला। साधक होना, साधु होना एक स्वभाव है और जिसने अपने स्वभाव में परिवर्तन लाकर सात्विक गुणों को धारण कर लिया, वह साधक है। अपने मन से आसुरी भावों को पूरी तरह से समाप्त करना है अन्यथा जीवन में बार-बार पश्‍चाताप ही होता रहेगा।

मैं तुम्हें किसी भी रुप में हताश-निराश देख ही नहीं सकता हूं।

तुम वास्तव में एक साधक हो, साधु हो। साधु और साधक में कोई भेद नहीं है। हर साधक साधु ही है क्योंकि वह समाज में कार्य कर रहा है और कार्य भी ऐसा जिसके द्वारा वह अपने जीवन मूल्यों की रक्षा करते हुए सत्मार्ग पर सतत गतिशील रहता है। साधक सदैव उच्च विचारों से युक्त होता है।

साधक वह है जिसमें न व्यग्रता हो, न चंचलता हो, धीर-गंभीर हो। सदैव याद रखों कि तुम साधक हो जीवन साधना तुम्हें प्रिय है। तुम जीवन में श्रेष्ठ कार्य कर रहे हो। साधक न तो व्यर्थ का विवाद करता है और न किसी से ईर्ष्या। वह तो स्वयं का कार्य करता रहता है, अपने आप में लीन।

साधक इस संसार में रहते हुए सांसारिक नियमों का पालन करते हुए घर-परिवार के प्रति अपने कर्त्तव्यों का पूरी तरह से पालन करता है। उन्नति के लिये निरन्तर प्रयत्नशील होता हुआ सदैव अपना लक्ष्य ध्यान में रखता है। साधक को अन्तर्प्रेरणा और ऊर्जा उसके मन में स्थापित गुरु, शिव और शक्ति से निरन्तर प्राप्त होती रहती है।

साधक का लक्ष्य अपने जीवन में ही संतमय, गुरुमय होना है और सन्त कौन? जो किसी भी प्रकार के बाह्य दिखावे और दबाव से मुक्त हो तथा सामाजिक हितार्थ में निरन्तर क्रियाशील हो। स्वतंत्र भाव से निर्णय लेता है और अपने जीवन में भय से मुक्त रहता है क्योंकि उसे किसी भी प्रकार की लालसा नहीं होती, वह तृष्णा के सागर से अपने आपको ऊपर उठा लेता है। साधक ही सन्त है।

अनाश्रित: कर्म फलं कार्यं कर्म करोति य:

स सन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चा क्रिया।

साधक, संन्यासी, संत कौन? जो कर्मफल की इच्छा का त्याग कर सदैव शुभकर्म करता रहता है। परोपकार ही जीवन का ध्येय हो जाता है। संन्यास कर्मों का त्याग नहीं अपितु अशुभ कर्मों का त्याग है। संन्यास दुनिया का त्याग का नहीं, दुनिया के लिये त्याग है।

साधक-संत वह है जिसके विचार शांत हो, जिसने अपने मन के लॉकडाउन को खोल दिया है। उसे जीवन में किसी भी स्थिति में न कोई पश्‍चाताप होता है और न ही कोई अपराध बोध।

साधक, साधु और सन्त वही है जो जीवन के प्रवाह में बहना सीख गया है। देखो, कृष्ण का जन्म जेल में हुआ लेकिन उत्पन्न होते ही कैद से बाहर हो गये। क्योंकि कृष्ण का जन्म ही मानवता को मुक्त करने के लिये हुआ था, समाज को स्वतंत्र करने के लिये हुआ था इसलिये कृष्ण को जगद्गुरु कहा जाता है।

गुरु और सन्त वह है जो प्रकृति के नियमों और सिद्धान्तों का आदर करता हो, जो बाह्य दिखाओं, दबावों से मुक्त हो, जो सामाजिक हितार्थ, निरन्तर कार्य करता हो, स्वतंत्र भाव से निर्णय ले, भयमुक्त हो।

गुरु तुम्हारे जीवन के संत है, जो अपने प्रेरक वचनों और ज्ञान के माध्यम से तुम्हें भीतर के लॉकडाउन से मुक्त करने के लिये बार-बार आह्वान करते है। जिससे मन में बसा भय समाप्त हो सके। मन में व्याप्त आशंकाओं से मुक्त होकर साधक आशा और आनन्द से परिपूर्ण, शांत, सत्यनिष्ठ व्यक्तित्व बन सके।

तुम्हारी सारी क्रियाएं सही मार्ग पर जा रही है। इसमें विचलित मत होना, कभी मन में दुविधा आ जाये तो अपने मन में स्थित गुरु, इष्ट शिव से पूछ लेना। तुम्हारी शक्ति भी संयुक्त हो जायेगी और तुम्हें घने से घने अंधकार में भी सत्य का श्रेष्ठ मार्ग मिल जायेगा।

तुम सब साधना के द्वारा, तपस्या के द्वारा, ज्ञान के द्वारा उस मार्ग पर बढ़ रहे हो जिस मार्ग पर निखिल चले है, जिस मार्ग पर तुम्हारे साथ तुम्हारा गुरु चल रहा है। सदैव खुश रहो…

नन्द किशोर श्रीमाली

 
 

Dialogue with loved ones

My dear disciple, 

Divine blessings!

So far we have handled Coronavirus bravely and we’ll emerge victorious in this fight! Mankind has dealt with epidemics before. With little help from Mother Nature we are going to win the fight against Coronavirus. There is nothing to worry about as long as we follow the precautions. 

Since this  virus spreads from person-to-person contact to contain its spread, the government had to impose a lockdown, so that we stay within the safety net of our homes. 

While some of you may think that lockdown had imprisoned you inside the house, I don’t agree with it. Yes, you had been indoors but certainly not in confinement.

Before lockdown, you would work relentlessly throughout the week to snatch a few hours of rest on the weekend. After lockdown, there was an opportunity to slow down, to take a breath, pause, reflect on your journeys, and think more mindfully about what you want from your future and take ownership of your past. 

Many times this soul searching happened. Unknowingly you have performed Atma Gyaan Abhishek, all this while because you sat down and reflected on your life so far.  

Any such introspection requires mindfulness. The three mantras that have particularly helped reach a peaceful mind during the lockdown are Guru, Shiva and Shakti mantra. Obviously, your choice of mantra demonstrates your unflinching faith in Shiva, Shakti and the Guru.

Many of you would have realised by now that mantras effectively quieten the endless chatter of your mind. After that, it becomes easier for you to access your inner strength required to remain calm and composed during these turbulent times.

Human beings have the ability to think and dissect facts. Our thinking ability distinguishes us from other animals.  A few days ago I had asked all of you to work on your physical strength, emotional quotient and mental abilities. Here is the reason for this ask:

Human beings have an uncanny habit of imprisoning themselves in their negative thoughts. Gradually, these negative thoughts think stunt creative thinking, give rise to fears, doubts, apprehensions. Consequently, you will become increasingly impatient, and can fly in rage for no obvious reason.

This negativity fuels your inner demons, diminishes your vitality and energy. The pursuit of happiness should be your goal in this life. Relinquish all thoughts of guilt because they are detrimental to your happiness. 

You have chosen to become a disciple. Being a disciple means embracing the virtues of truth and piety, performing duties selflessly. Gradually, a disciple achieves sainthood. He becomes pure.

As a Guru, I cannot see you disappointed at any point. There is no difference between a saint and a disciple. Just like a saint, a disciple thinks for the greater good. All my disciples are saints in making. 

They are cultivating patience and equanimity. They have dedicated their life to perform bigger goals. Please remember a disciple does not get perturbed nor he argues for the heck of it. He is above jealousy and is focussed towards his goals. Like a saint, he lives in his zen. 

That doesn’t mean a disciple renounces his family’s duties, or is above social norms. He trapezes the fine line of balance between his personal life and his spiritual progress. The trio of Guru, Shiva and Shakti continue to inspire the disciple to achieve the ultimate goal of metamorphosing into a saint. 

Most of you tend to associate a saint with saffron robes. However, that description is superficial. Actually, a saint is someone who doesn’t care about external appearances.  He has conquered his fears and desires. Social pressures no longer intimidate him and he wants to give back to the society. In a nutshell, a disciple is a saint. He has chosen the less trodden path and that will make all the difference to the society. 

In the words of Lord Krishna, a disciple, a saint, a monk is someone:

Who acts because it is his duty, not thinking of the consequences, is really spiritual and a true ascetic; and not he who merely observes rituals or who shuns all action.

Going by this definition a saint, a monk is someone who is not obsessed with the results. For him performing an action with utmost dedication matters more. He has quit all those negative habits and has found the fountain of joy. Thus, such a person will not wallow in self-pity, will be beyond guilt and doubts. 

A disciple or a saint has quietened his inner turmoil. He is no longer locked inside the prison of negative thoughts. He has risen above guilt, anger and jealousy without retreating to the woods. 

It is a fascinating thought that Krishna was born inside a prison but as soon as he was born he became free. Because Krishna was born to emancipate mankind. Just like Krishna, a Guru enters the life of the disciple to liberate him from the lockdown of negative thoughts. If you think about a 

 Guru or saint is in perfect sync with nature. He doesn’t succumb to pretensions and takes decisions with an open mind. 

The Guru is the saint in your life. He will inspire you to the right path. He holds the key to unlock you from your mental prison.  As the Guru coaxes you out from your mental prison, your fears and apprehensions evaporate and you choose the right path with conviction. 

As I see today, I feel that all my disciples are following the path of Nikhil. You are almost half-way there, just don’t get impatient. If doubts ever cloud your mind, chant Guru, Shiva and Shakti mantra. They will answer your queries. You will feel invigorated and even in extreme darkness you will be able to choose the right path. 

All of you are on the same path as Nikhil. Our paths are not different. Keep going on. Stay happy. 

Nand Kishore Shrimali





error: Jai Gurudev!