Dialogue with loved ones – January 2024

अपनों से अपनी बात…

मेरे प्रिय आत्मीय,

शुभाशीर्वाद,

    नया वर्ष, नई उमंगें, नया उत्साह, नई मनोकामनाएं, नये लक्ष्य, ये सब आपके मन में आ रहा है, इस नये वर्ष में तो मैं अपने इतने सारे काम सम्पन्न कर दूंगा, ऐसे विचारों का तीव्र प्रवाह आपके मन में चल रहा है। बार-बार आप अपने आपको कहोंगे कि हां मुझसे पिछले वर्ष कुछ गलतियां हुई है। मेरे काम में कुछ कमियां रही है, मुझे जो मिलना था वह मुझे मिला नहीं, जो मेरा अधिकार था वह दूसरों ने छीन लिया। इस कारण कुछ क्रोध, कुछ क्षुब्धता, कुछ आक्रोश का भाव भी आपके मन में मंथन कर रहा है।

    यह ठीक है, सभी अपने जीवन में लक्ष्य प्राप्ति चाहते है, सभी अपने जीवन में मनोकामना पूर्ति चाहते है, सभी अपने जीवन में विजेता होना चाहते है, सभी यह चाहते है कि मेरे जीवन में अपार धन हो, सभी चाहते है कि हम शौर्यवान हो, सभी चाहते है कि मेरे जीवन में सब संसाधन हो।

    निश्चित है, आपने विचार किया है और उस पर सही रूप से अमल करेंगे तो यह सब अवश्य ही प्राप्त होगा लेकिन इस दौड़ में एक महत्वपूर्ण बात मत भूल जाना।

    सबसे महत्वपूर्ण बात है कि मैं सदेव प्रसन्न कैसे रहूं?

    यदि आपका शरीर आपका व्यक्तित्व है, आपका मन उसका आधार है तो लक्ष्य, मनोकामना, विजय, धन-संसाधन सब आभूषण समान है, इनसे आपके व्यक्तित्व का निर्धारण नहीं किया सकता। आपके व्यक्तित्व का निर्धारण दूसरे चाहे कुछ भी करें, मूल निर्धारण तो आपको ही करना है कि मैं सदैव प्रसन्न कैसे रहूं? प्रसन्नता जीवन की वह स्थिति है जो सदैव आपको तरोताजा, उत्साह से युक्त रखती है। मानसिसक प्रसन्नता आपके जीवन का मूल आधार है जिस पर आपके जीवन के अन्य सारे फूल, पत्ते, फल धन-सम्पति, विजयभाव, शोभायमान होते है।

    सोचों वह जीवन कैसा होगा जिसमें सब संसाधन है, लक्ष्य भी सिद्ध हो रहे है, सबकी कामनाएं भी पूर्ण हो रही है लेकिन आन्तरिक भाव में प्रसन्नता नहीं है तो कैसा लगेगा?

    यह सही है कि हमारी प्रकृति है, हमारा स्वभाव है कामनाओं की पूर्ति करना और अपनी प्रकृति के अनुसार चलना। कामनाओं की पूर्ति हेतु अपनी प्रकृति, अपने स्वधर्म और अपनी प्रसन्नता को कभी मत भूल जाना।

    एक बीज की क्या कामना होती है, वह वृक्ष बनें, एक कली की कामना होती है वह पुष्प बनें, एक नदी की कामना होती है वह सागर से मिलें, एक मनुष्य की कामना होती है की वह अपने जीवन में ही इस जीवन को सार्थक करें।

    यह सब आनन्द प्राप्त के माध्यम है। आनन्द प्राप्ति अर्थात्‌‍ अमृत। अमृत को आधार चाहिये, आन्तरिक मन में प्रसन्नता।

    समुद्र मंथन में अमृत घट अपने आप प्रकट नहीं हुआ था। उसे धन्वन्तरि अपने हाथों में लेकर प्रकट हुए थे। धन्वन्तरी का स्वरूप है आरोग्य और आरोग्य का स्वरूप है आन्तरिक मन में प्रसन्नता। तन का आरोग्य और मन का आरोग्य ही अमृत को धारण कर सकता है।

    आप कहते हो कि जीवन में तनाव बहुत है। इसके साथ ही आप अपने जीवन का सदुपयोग भी करना चाहते हे। इस सदुपयोग के लिये कर्म अर्थात्‌‍ क्रिया तो करनी ही पड़ेगी। जीवन की धूप-छांव, बारिश, ओलें से तो बचकर नहीं रह सकते है। बाहर निकल कर अपने शरीर रूपी अस्त्र-शस्त्रों से, अपने ज्ञान रूपी अस्त्र-शस्त्रों से, अपनी बुद्धि रूपी अस्त्र-शास्त्रों से क्रिया तो करनी ही पड़ेगी, कर्म तो करना ही है।

    आप बचना चाहते है तनाव से और तनाव से बचने का श्रेष्ठतम्‌‍ उपाय है अपने मन को कुछ क्षणों के लिये विराम दो, विश्राम दो। अविरल गति से व्यर्थ की भाग -दौड़ करने से क्या हासिल होगा, यह आप ही समझ सकते है लेकिन थकान और तनाव कम से कम दस गुणा अवश्य बढ़ जायेंगे।

    फिर कहता हूं एक ही उपाय है थोड़ा विराम, थोड़ा विश्राम। अपने आपका थोड़ा मंथन करो, अपनी बिखरी हुई शक्तियों को पुनः एकत्र करो और बार-बार मंथन करो लेकिन जीवन में कभी अपने स्वयं पर दुःख प्रकट मत करो।

    अपने स्वयं को हताशा-निराशा के विष में मत धकेलो। मंथन करोगे तो उपाय भी निकलेगा, अमृत भी निकलेगा। अपने मन के वातावरण को बदलों। अपने मन के अमृत कणों को बिखेरों। वातावरण बदल जायेगा, समाधान भी मिल जायेगा।

    हर समय आपके मन में तनाव और उत्साह दोनों साथ-साथ चल रहे है अब बताओं कि आपको किस विचार को प्रधानता देनी है।

    व्यक्ति की शोभा, किसी सुन्दर व्यक्ति की परिभाषा क्या है? शरीर बल, ज्ञान, सुन्दरता, नयन-नक्श, सौन्दर्य?

    यह सब तो उम्र के पड़ाव में ढल जाते है। क्या है जो पूरे जीवन आपके साथ रहता है?

    वह है चरित्रिक बल – करुणा, दया, मित्रता, सरलता, स्वाभिमान जैसे गुण।

    आपने इनके विकास के लिये क्या कदम उठाएं है? इनका विकास करेंगे तो हर स्थिति में प्रसन्न रहेंगे। यह गुण सदैव शक्ति प्रदान करते रहेंगे।

    यदि आप केवल दौड़ रहे है तो एक क्षण के लिये रुक कर विचार अवश्य करें, किसलिये कर रहे है? अपनी सन्तुष्टि के लिये या दूसरों की सन्तुष्टि के लिये? आज तक कोई भी व्यक्ति सभी को सन्तुष्ट नहीं कर पाया है। यहां तक की भगवान राम और श्रीकृष्ण भी नहीं।

    शिष्य के पास गुरु रूपी अमृत भण्डार है। अमृतकोष है थोड़ा गुरु पर भी छोड़ना सीखों, तनाव को पकड़े-पकड़े मत रहो।

    मेरा आशीर्वाद –

ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः। सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु। मा कश्चित्‌‍ दुःख भाग्भवेत्‌‍॥

    शिव, गुरु और शिष्य इस त्रिवेणी का संगम हो जायेगा और संगम में स्नान करोगे तो सब आनन्द ही आनन्द है।

-नन्द किशोर श्रीमाली 

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