Dialogue with loved ones – January 2023
अपनों से अपनी बात…
मेरे प्रिय साधकों,
शुभाशीर्वाद,
आप सभी को नववर्ष की बहुत-बहुत शुभकामनाएं। नया वर्ष आया है और आप सभी Happy New Year बोलते हुए बहुत उत्साहित हो रहे है, होना भी चाहिए। जीवन के कालखण्ड में आपके जीवन में एक और नया वर्ष आया है तो इस नववर्ष को खुले हृदय से, खुली बांहों से आकाश की ओर हाथ उठाते हुए अपने आपसे भी बोलें Happy New Year और इसका स्वागत करें। ईश्वर को धन्यवाद दें कि हे ईश्वर! आपकी कृपा से मुझे जीवन में एक और नवीन वर्ष प्राप्त हुआ है।
मैं आपको विशेष नवीनता का आशीर्वाद वर्ष में तीन बार देता हूं, ईस्वी नववर्ष पर, चैत्र नवरात्रि पर और गुरु पूर्णिमा पर। साधक के लिये चैत्र नवरात्रि से और शिष्य के लिये गुरु पूर्णिमा से नववर्ष प्रारम्भ होता है।
नव अर्थात् नवीनता और नवीनता का अर्थ है सृजन। सृजन के लिये आवश्यक है संकल्प। गत वर्ष में भी आपने कुछ संकल्प लिये थे उन पर कार्य भी किया था। कुछ संकल्प पूरे हुए, कुछ रह गये। चिन्ता किस बात की? पुनः संकल्प लेंगे, नवीन संकल्प लेंगे। नवीनता का अर्थ ही है सृजन और सृजन के लिये ही संकल्प लेना है कि हम अपने जीवन को सुसज्जित, सुखमय, प्रसन्नमय बनायें।
निश्चित रूप से आपने अपने जीवन में बहुत सृजन किया है और जीवन में व्यय भी बहुत किया है। लाखों क्षणों का उपयोग भी किया है और लाखों क्षणों को गंवा भी दिया है। अब उसकी चिन्ता मत करो। बस यह सोचों कि सृजन की यह प्रक्रिया आह्लाद और आनन्द के साथ निरन्तर गतिमान होनी चाहिये।
आपने अपने जीवन में बहुत कुछ अर्जित किया, बहुत कुछ खर्च भी किया। दिन-प्रतिदिन बड़े होते गये, घर-परिवार, व्यापार में वृद्धि की, स्वयं निर्माण किया, संतान हुई बड़ी भी हुई, उनकी शिक्षा-दीक्षा के लिये आपने व्यवस्था की, अर्जन भी किया। यही तो सम्पत्ति है।
अब एक बात बताओं। जो सम्पत्ति, जो आयु तुमने खर्च कर दी वह मूल्यवान है या जो सम्पत्ति तुम्हारे पास बची है और कर्म द्वारा जिस ओर अधिक सम्पत्ति का सृजन करोगे वह मूल्यवान है।
अरे भाई जो खर्च हो गया वह पूर्ण हो गया। अब जो सृजन करेंगे वह और अधिक मूल्यवान होगा। जो आयु व्यतीत हो गई है वह आयु तो लौट कर वापिस नहीं आयेगी, जो आयु आने वाली है, वह निश्चित रूप से मूल्यवान है।
इसके लिये अपने शरीर, अपनी बुद्धि और अपने मन की रक्षा करनी है। ये तीनों ही सदैव आपके साथ रहेंगे और ये तीनों ही सबसे अधिक मूल्यवान है। इसमें से एक में भी विचलन आया तो फिर जीवन की धारा बिखर जायेगी। इस हेतु केवल एक ही संकल्प लो कि मैं अपने शरीर, मन और बुद्धि की रक्षा करूंगा।
आप सन्तुष्ट कब होते है जब सृजन करते है। सृजन से नवीनता का संचार होता है। नवीनता का संचार आनन्द देता है और हमारे जीवन को अपनी ही दृष्टि में मूल्यवान भी बना देता है और आपको सबसे पहले अपनी दृष्टि में मूल्यवान बनना है।
कालोऽयं विलयं याति भूतगर्ते क्षणे क्षणे।
स्मृतयस्त्वशिष्यन्ते जीवयन्ति मनांसि नः॥
प्रत्येक क्षण अतीत की खाई में गायब हो जाता है, केवल स्मृतियां रह जाती है, और वे सदैव हमारे मन को सजीव रखती हैं।
हम सब क्षण-क्षण जीते है तो आवश्यक है कि वर्तमान क्षण का पूरा आनन्द लिया जाये। वर्तमान में पूर्ण रूप से क्रियाशील हुआ जाये, न कि स्मृतियों के भंवर में ही हम उलझ कर रह जाये।
सृष्टि में सारी क्रियाएं निरन्तर और निरन्तर गतिशील रहेगी। प्रकृति की क्रिया कभी रुकती नहीं क्योंकि प्रकृति को ये ईश्वरीय आदेश है कि इस जगत को निरन्तर गतिशील रखना है।
हम सब प्रकृति के स्वरूप है और यही बात हमें भी अपनानी है… गतिस्त्वं मतिस्त्वं गुरुत्वं शरण्यं, गुरुत्वं शरण्यं…
गुरु आदेश है अपनी मति अर्थात् बुद्धि की धार को सदैव तीक्ष्ण रखों, अपनी क्षमता का विस्तार करते रहो और अपनी गति को गतिशील रखों। न अपने कदमों को रोकना है, न अपनी क्रिया को रोकना है। ठहरना नहीं है, नहीं तो भूतकाल की स्मृतियों को याद कर विचलित हो जाओंगे। भविष्य की चिन्ता कर विचलित हो जाओंगे।
व्यर्थ के इस विचलन को दूर करो। क्रियाशील व्यक्ति कभी विचलित नहीं होता। जीवन में उत्साह तो क्रिया और कर्म से ही आता है। एक बात समझ लो कोई दूसरा तुम्हें उत्साह दे नहीं सकता। कोई दूसरा तुमसे उत्साह छीन नहीं सकता। उत्साह तो तुम्हें अपने भीतर ही निरन्तर उत्पन्न करना है, यही सृजन है।
हमारे भीतर क्या है? हमारे भीतर है भावों का प्रवाह, हमारे भीतर है विचारों का संवेग है, उद्वेग है। सबकुछ हमारे भीतर है और सबसे बड़ी बात है कि प्राण ज्योति के रूप में हमारे भीतर ईश्वर स्थापित है और इस प्राण ज्योति से ईश्वरीय आदेश निरन्तर प्राप्त होते रहते है। हम ही अपनी बुद्धि से कभी आशा से भर जाते है, कभी निराशा में भर जाते है, ठहर जाते है और ठहराव विचलन को ओर अधिक बढ़ा देता है।
पूरा जीवन तो क्षण-क्षण में बंटा हुआ है। जो क्षण तुमने आनन्द से जी लिया, जिस क्षण तुमने क्रिया कर ली वह क्षण तुम्हारा हो गया और जो क्षण तुमने व्यर्थ में खो दिया वह तुम्हारा रहा ही नहीं।
एक बात सदैव याद रखना और उसकी पालना करना, कभी भी अपनी तुलना दूसरों से मत करना। यह तुलना ही आनन्द को मार देती है, सुखों को समाप्त कर देती है।
कभी आप अपने से ऊपर वालों को देखते हो, तो दुःखी हो जाते हो। अपने से नीचे वालों को देखते हो तो कुछ क्षण के लिये सुखी हो जाते हो। पर यह सुख-दुःख तो क्षणिक है ना।
देखना है तो अपने आपको देखों, अपने कार्यों में वृद्धि करने का प्रयास करो और यह कार्य वृद्धि स्वयं के ज्ञान से, स्वयं की चेतना से ही होगी। आपके शांत मन से ही होगी।
बस जो बीत गया जो बीत गया… चरेवेति… चरेवेति… आगे बढ़ो।
सदैव प्रसन्न रहो, Happy New Year…
-नन्द किशोर श्रीमाली
Coming soon…
Nand Kishore Shrimali