Dialogue with loved ones – January 2022

अपनों से अपनी बात…

मेरे प्रिय आत्मन् शिष्य,

शुभाशीर्वाद, शुभ हो नववर्ष,

सबसे पहले तो तुम यह विचार नहीं करोगे कि तुमने अपने जीवन का समय खो दिया है। पिछले दो वर्षों में हर स्थिति में, हर परिस्थिति में बहादुरी के साथ जो सामना किया है, उसी से तो आज इस मुकाम पर पहुंचे है।

तो याद रखना तुम्हारी जीवन यात्रा बहुत सही दिशा में चल रही है।

माउण्ट ऐवरेस्ट दुनिया की सबसे ऊंची चोटी है और उसकी यात्रा बहुत ही कठिन हैं। कई बार तैयारी करनी पड़ती है और अपने आपको शारीरिक मानसिक रूप से तैयार करना पड़ता है और पूरी यात्रा में दो महीने लगते है। इन दो महिनों में चढ़ाई के तो 21 दिन ही होते है बाकी समय तो 3 दिन चढ़े, 4 दिन विश्राम किया, वातावरण के अनुसार अपने आपको ढाला।

सब पर्वतारोही यात्रा की तैयारी में महीनों, वर्षों बीता देते है, तब जाकर शरीर ऐसे विपरित मौसम को झेलने के लिये तैयार होता है और जब माउण्ट ऐवरेस्ट शिखर पर पहुंच जाते है तो वहां कुछ मिनट ही रुक पाते है क्योंकि मौसम बहुत विपरित होता है। इतने महीनों, वर्षों का परिश्रम और केवल कुछ क्षण ही लक्ष्य पर रह पाये।

बस यही जिन्दगी का सिस्टम है। हम बहुत-बहुत बड़े लक्ष्य अपने जीवन में बनाते है, धन एकत्र करते है, व्यापार के विस्तार का प्रयास करते रहते है जिससे हम अच्छा घर खरीद सके और रिटायरमेन्ट के बाद सुकून की जिन्दगी जी सके।

इतने अधिक कष्टकारी श्रमसाध्य लक्ष्य निर्धारित करते है और उसमें से कुछ सिद्ध भी हो जाते है या पूरे भी हो जाते है लेकिन एक बात याद रखना कि यदि हमने अपने जीवन में नित्य की खुशी इन लक्ष्य प्राप्ति में लगा दी तो हम एक आनन्ददायक पूर्णता देने वाली जिन्दगी से भटक जायेंगे।

सफलता और असफलता तो अस्थायी है। ध्यान है ना पहाड़ की चढ़ाई की तैयारी में सबसे ज्यादा वक्त लेती है। इसलिये हमें यात्रा का आनन्द लेना है, चाहे हम चोटी तक पहुंच सके या नहीं पहुंच सके। खुशी मिलनी चाहिये कि हमने शिखर छूने के लिये आनन्द के साथ प्रयास किया।

सम्पूर्ण खुशी कोई एक लक्ष्य प्राप्त करने से ही नहीं मिलती, यह तो छोटी-छोटी बातों में छुपी है। छोटी-छोटी खुशियों से ही तो हमारा दिन आनन्दमय बनता है और धीरे-धीरे यह आपके स्वभाव का हिस्सा बन जाती है।

मैं नहीं कहता कि आप अपने लक्ष्य पर से अपना ध्यान हटा दो। पर इतना तो करो कि कहीं ऐसा न हो कि लक्ष्य प्राप्ति की दौड़ में रोज-रोज की छोटी-छोटी खुशियां जो आपके चारों ओर बिखरी पड़ी है उन खुशियों को अपने झौले में भरना ही भूल जाये।

खुशी जिन्दगी का कोई लक्ष्य नहीं है, खुशी और प्रसन्नता तो जीवन यात्रा का तरीका है।

इसलिये जीवन का उद्देश्य बहुत ही सरल बना दो। जीवन्त रहना है और जीवन के रोज-रोज के अनुभवों को पूर्णता के साथ अनुभव करना है और उत्साह के साथ और भी नये-नये अनुभवों के लिये अपने आपको जीवन्त रखना है।

आप क्या चाहते हो? अपने जीवन में वृद्धि, तो वृद्धि तो हमेशा कठिन ही होगी। वृद्धि आरामदायक नहीं हो सकती क्योंकि उस स्थान पर आप पहले कभी पहुंचे ही नहीं थे। वृद्धि की इसलिये पहुंचे।

तो इसके लिये परिवर्तन होगा। सृष्टि का नियम परिवर्तन ही है। एक बात है परिवर्तन है इसलिये हम दुःखी होते है हम दुःखी इसलिये होते है कि हम सब बातों को स्थाई करना चाहते है। जबकि स्थाई कुछ होता नहीं है। याद करो, परिवर्तन ही सृष्टि का नियम है।

तुम चमत्कार चाहते हो और मैं कह रहा हूं कि जिन्दगी के प्रत्येक दिन हम एक चमत्कार ही घटित कर रहे है पर हम उस चमत्कार को जानते नहीं इसलिये उसे स्वीकार नहीं कर रहे है।

एक बात जरूरी है, जब तुम अपने आप पर विश्‍वास करोगे। अपने मन, अपने हृदय पर विश्‍वास करोगे तो आपकी जिन्दगी में एक जुनून होगा, एक उद्देश्य होगा, एक ऐसी जादुगरी होगी जिसमें रोज-रोज चमत्कार ही होते रहेंगे।

तुमने कुछ चाहा और वह मिला नहीं तो देखों और चलो और निरन्तर करते रहो। रुक क्यों गये हो? रुक गये तो जो नहीं मिला है वह कैसे मिलेगा?

तुम चाहते हो ना जिन्दगी में रुकावट नहीं आये तो सदैव यह याद करो कि ईश्‍वर की कृपा तुम पर बरस रही है। इसलिये बहुत सरल, सुविधाजनक और हल्के मन से अपना कार्य करते रहो। कार्य करोगे तो कृपा अवश्य आयेगी।

इस बात का विचार ही छोड़ दो कि दूसरे लोग क्या कहेंगे? इस बात का क्या फर्क पड़ता है? कोई फर्क नहीं पड़ता, तुम अपनी धुन के पक्के हो तो अपनी धुन में गतिशील रहो।

आज यह संकल्प लो कि मैंने नहीं रुकने का निश्‍चय किया है। मैं अपने भाव से, अपनी चिन्ताओं से बड़ा हूं। गुरु का ज्ञान रोज मुझे नई-नई प्रेरणा देता ही रहता है। मैं अपने आप पर विश्‍वास करता हूं, अपने अन्तर्मन की सुनता हूं और वास्तविक रूप में एक साहसिक जिन्दगी जी रहा हूं।

स्वीकार करो अपने आपको, अपनी उलझनों को चाहे वे कितनी ही घनी हो। उलझने ही तो सुन्दर होती है। जिन्हें हम अपने प्रयत्नों से सुलझा देते है और उलझने सुलझने के लिये ही होती है।

प्रिय शिष्य यदि जिन्दगी सीधी सरल ही होती तो जिन्दगी में रोमांच, साहसिक कार्य क्यों होते? इसलिये सबसे पहले स्वयं पर विश्‍वास करो, स्वयं को स्वीकार करो और यह निर्णय लो कि जो चीजें मुझे खुश नहीं कर रही है उन्हें में खुशी-खुशी जाने देता हूं। उन्हें भेज दो।

सदैव आभारी रहो, ईश्‍वर के प्रति आभार तुम्हारे लिये हजार-हजार आशीर्वादों का द्वार खोल देता है।

यात्रा का आनन्द लो ना हर समय लक्ष्य के बारे में क्या सोचते रहते हो। आप एकदम पूर्ण है, जैसे भी हो उसमें बहुत अधिक बदलाव की आवश्यकता नहीं है। बस एक सोच को बदल ही दो कि आप अपूर्ण हो, ठीक नहीं हो।

संभव है…, संभव है… संभव है… इस बात पर विश्‍वास करो…।

-नन्द किशोर श्रीमाली

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