Dialogue with loved ones – January 2021

अपनों से अपनी बात…
प्रिय आत्मन्,
शुभाशीर्वाद, 

तुम हिम्मती हो, साहसी हो, साधक हो, चेतना युक्त प्रज्ञावान व्यक्तित्व हो। २०२० की बाधाओं से संघर्ष कर नववर्ष 2021 में पूरे आत्मविश्वास के साथ प्रवेश कर रहे हो, जो सबसे बड़ी बाधा थी वह शीघ्र ही समाप्त होगी। पुन: चहल-पहल प्रारम्भ होगी, आपका और मेरा प्रत्यक्ष मिलन होगा।

सबसे बड़ी बात है कि इस वर्ष आपने पूर्ण, भक्ति, आस्था और विश्वास के साथ निरन्तर साधनाएं सम्पन्न की। अन्तर्मन में स्थापित गुरु के निर्देशों के अनुसार चलते रहे और यह सबसे बड़ी घाटी पार कर ली।

गुरु और शिष्य का सम्बन्ध संसार में सबसे अद्भुत और निराला है। एक शिष्य गुरु की गोद में आकर शिशुवत हो जाता है। शिष्य अपने उथल-पुथल भरे जीवन में कुछ विराम, कुछ विश्राम चाहता है और वह विराम, विश्राम गुरु रूपी कल्पवृक्ष की छांव में प्राप्त होता है। तब उसके मन में और नई-नई मनोकामनाएं जाग्रत होती है और अपनी मनोकामनाओं को पूर्ण करने के लिये गुरु शक्ति से संचारित होकर आगे बढ़ता है और समस्याएं पीछे छूटती जाती है। यही गुरु और शिष्य का सम्बन्ध है। यही एक दूसरे को प्रेम और शक्ति देने की भावना है। जिससे शिष्य जीवन पथ में कभी भी अपने आपको अकेला अनुभव नहीं करता है। उसे हर समय यह लगता है कि गुरु मेरे साथ है। जब भी आवाज दूंगा गुरु मेरा हाथ थाम लेंगे।

२०२० का वर्ष जीवन यात्रा में परीक्षा काल था और जब भी परीक्षा होती है तो हिम्मत, साहस, सजगता और आशा की निरन्तर आवश्यकता रहती है। इनके बलबूते पर ही हम परीक्षा में सफल होकर और अधिक खरे हो जाते है। जैसे सोने को शुद्ध करने के लिये उसे तपाना ही पड़ता है उसी प्रकार यह तपन यात्रा थी और इस संकटकाल में हम और अधिक मजबूत होकर उभरे है, एक आत्मविश्वास आया है। आपने अपने मानस को दृढ़ बनाये रखा और सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ते रहे।

मैं आज मनुष्य की प्रकृति और उसके विचार के सम्बन्ध में आपसे चर्चा करना चाहता हूं। हर व्यक्ति यह चाहता है कि वह खुशमिजाज हो, खुशियों का अनुभव करे। फिर कई बार लगता है कि इस जीवन में तो बाधाएं-बाधाएं है कैसे खुश रहे? कैसे feel good अनुभव करें?

इसके लिये क्या क्रिया करनी है। मैं समझाता हूं। खुशी अनुभव करनी है, खुश मिजाज रहना है तो सबसे पहले खुद के मिजाज को ही बदलना पड़ेगा। सबसे पहले तुम्हें अपने आपको feel good factor प्रदान करना पड़ेगा। अपने स्वयं के भीतर खुशी के भाव को उत्पन्न करना पड़ेगा। कुछ छोटी-छोटी बातें है जिन्हें अपना लो।

सबसे पहले तो तुम्हें स्वयं को खुशमिजाज होने के लिये, खुशी का इच्छुक होना पड़ेगा। हां तुम्हें स्वयं अपने को खुशी देने के लिये अपने मन को खोलना होगा।

प्रतिदिन इस हेतु कई सुअवसर आते है। दिनभर में कई ऐसी घटनाएं घटित होती है जो हमें खुशी देती है। सूर्य का प्रकाश हो, कहीं बाजार जाना हो, दोस्त और रिश्तेदारों से बातचीत है, भूख लगने पर भोजन है, इन सब में भी आप खुशी अनुभव कर सकते है। यदि आपने अपने मन का द्वार ही बंद कर दिया तो खुशी कैसे प्रकट होगी? और खुशी को तो अपने रोम-रोम में व्याप्त करना है। तन में भी खुशी, मन में भी खुशी।

हर कोई चाहता है कि हम हर समय खुश रहे। पर पहले यह तो विचार करो कि सच्ची खुशी क्या है? क्या चीज हमें खुशी प्रदान कर सकती है? इसके लिये आपको अपनी परख शक्ति, विवचेनात्मक शक्ति को ही प्रयोग में लाना पड़ेगा। हर एक के लिये खुशी के मायने अलग हो सकते है लेकिन खुश अनुभव करना आपके ऊपर ही तो निर्भर करता है।

अब कई लोग खुशी के लिये बहुत अधिक लोगों से सम्बन्ध, जान-पहचान, यात्रा, खरीददारी या कोई नशा इत्यादि की लत लगा देते है और सोचते है कि परेशान है बाजार जाकर आते है, परेशान है किसी के यहां जाकर आते है, परेशान है कहीं घूम कर आते है, परेशान है चलो कोई नशा करते है।

अब ये बातें थोड़े समय के लिये कुछ शांति, कुछ खुशी दे सकते है लेकिन जब हम खुशी के लिये इन सब आदतों पर निर्भर होने लग जाते है तो समस्याएं ही समस्याएं।

किसी पर निर्भर होना तो गुलामी हो गई, अब जब निर्भर हो जाते है तो इसका अर्थ है कि खुशी की वह वस्तु, वह अनुभव, वह सम्बन्ध हमारे स्वयं के पास नहीं है, दूसरे के पास है। उसे ले आते है, शायद खुशी मिल जाये? ।

जहां किसी सम्बन्ध, किसी शौक, किसी आदत, किसी व्यवहार के गुलाम हो जाते है तो अपने भीतर खुशी ढूंढ़ नहीं पाते है। हर समय दूसरों से अपने प्रति ऐसे व्यवहार की अपेक्षा रखते है जिससे हम खुश हो।

खुशी किसी दूसरे पर निर्भर नहीं होनी चाहिये। यह तो अपने भीतर से उत्पन्न होने वाला भाव होना चाहिये।

खुशी तो हम सबके भीतर ही है। इसे भीतर से बाहर लाना है। इसे अनुभव करना है। अब इसके लिये क्या करें? जिससे अन्तर्मन प्रसन्न हो सके। हम हर समय खुश-खुश अनुभव करे।

दो-तीन छोटी-छोटी बातें है, इन्हें स्वयं समझें – इस संसार में प्रशंसा सबको अच्छी लगती है, कोई आपकी प्रशंसा करता है तो आपको बहुत अच्छा लगता है। यह ठीक है लेकिन दूसरों की प्रशंसा के भाव को अपने मस्तिष्क में न जाने दे, धन्यवाद के साथ प्रशंसा को स्वीकार करे। एक बात और आज से स्वयं भी दूसरों की प्रशंसा, तारीफ करना अवश्य करे।

जब हम सच्चे मन से दूसरों की प्रशंसा करते है तो हम अपने भीतर खुशी के भाव को सक्रिय कर देते है क्योंकि हमारे मुख से श्रेष्ठ वचन निकला है और वह श्रेष्ठ वचन आन्तरिक भावों के सुगन्धित पुष्प को खोल देता है, उससे हमारे मन में सुगन्ध प्रवाहित होने लगती है और इस क्रिया में हम दूसरों में उनकी बुराई देखने की बजाय अच्छाईयां देखने लगते है। उनकी कमियों को दरकिनार कर उनके गुण और विशेषताएं देखते है। इससे हमारी स्वयं की उमंग, उत्साह और सकारात्मकता में अभिवृद्धि होने लगती है।

यह तो सब जानते है कि अपना काम हम स्वयं करते है और करना भी चाहिये। इसके साथ ही जब हम अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर दूसरों के लिये भी कुछ करते है तो हम भीतर के नकारात्मक भाव से दूर होने लगते है, एक विशेष सन्तुष्टि प्राप्त होती है, स्वयं को अच्छा लगता है। यह खुशी का स्रोत है।

एक और बात,
कर्म तो सभी करते है और कर्म करना ही है, करना ही चाहिये लेकिन कर्म इस भाव से नहीं करे कि देखों में कितना अच्छा हूं इसलिये कर्म कर रहा हूं अपितु कर्म इस भाव से करे कि मुझे यह कार्य कर खुशी हो रही है। जब आप खुश होकर अपना काम करते है तो वह काम भार नहीं लगता और जब भार नहीं लगता है तो कार्य भी सरलता से पूरा हो जाता है।

सबसे महत्वपूर्ण बात,
क्या हम स्वयं को बेहतर बनाये या दूसरों को बेहतर बनाये। निश्चित रूप से आप यही कहोगे कि स्वयं को बेहतर बनाना है तो फिर आज से ही यह क्रिया प्रारम्भ कर दीजिये। यह आपकी जिम्मेदारी है कि स्वयं की भी देखभाल करनी है। अपने मन और आत्मा की उन्नति करनी है। इस शरीर के साथ-साथ आत्मा की प्रसन्नता-सुन्दरता पर भी ध्यान देना है।

अन्तर्मन से, पूरी श्रद्धा से, प्रसन्न मन से किया हुआ कार्य ही स्थायी खुशी लाता है। जब हम स्वयं की सन्तुष्टि के साथ-साथ दूसरों के भले के लिये, घर-परिवार, समाज के भले के लिये स्वयं को और अधिक श्रेष्ठ बनाने का लक्ष्य रखते है तो निश्चित रूप से खुशी अपने आप उत्पन्न हो जाती है।

देखों, समय के साथ-साथ सब वृद्ध होते है, उम्र बढ़ती है, इसकी चिन्ता नहीं करें। यदि मन को जवान रखना है तो स्वयं की भलाई के साथ-साथ दूसरों की भलाई के लिये अपने जीवन में कुछ लक्ष्य बनाये।

अब इसके लिये आपके सामने दो बातें स्पष्ट होनी चाहिये – स्व नियन्त्रण और स्व प्रबंधन। स्व नियन्त्रण – अपने आप पर नियन्त्रण, अपनी बिखरती प्रवृत्तियों पर नियन्त्रण। स्व प्रबंधन अर्थात् अपना स्वयं का मैनेजमेन्ट स्वयं करना।

अब आपा खो देना, लालच में भटक जाना, अहंकार को आने देना, काम को टालते रहना, अपने स्वाभिमान से दूर हो जाना ये सब बातें क्या आपको कभी खुशी दे सकती है? कभी नहीं।

तो स्वयं को सहज रूप से स्वनियन्त्रित स्वयं करना है। अपने शरीर और मन के साथ जबरदस्ती नहीं करे और न ही बाध्य होकर कोई कार्य करना है।

अपने विचारों को अपने शब्दों और अपनी बातचीत से जोड़ना है। जो कहते है, उसे करें और जो करते है उससे प्रेम और सामंजस्य बनाये। इसी से असली शांति और शक्तिशाली स्वभाव प्राप्त होता है।

सत्य, निष्ठा और स्वाभिमान से ही सच्ची खुशी प्राप्त होती है।

स्वयं को योग्य बनाना है, श्रेष्ठ बनाना है और अपने आपको श्रेष्ठ बनाने का अर्थ है अपने आपमें आनन्दित अनुभव करना। खुश रहिये, मन से, आत्मा से यही आपका वास्तविक स्वभाव है।

खुशी-खुशी 2021 का स्वागत करें…

-नन्द किशोर श्रीमाली

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