Dialogue with loved ones – February 2024

अपनों से अपनी बात…

मेरे प्रिय आत्मीय,

शुभाशीर्वाद,

    बसन्त पंचमी माघ शुक्ल पंचमी को है और इसी दिन सरस्वती जयन्ती भी है। यह तो ज्ञान और प्रेम का मिलन उत्सव है। जब ज्ञान प्रेम से युक्त होता है, तो जीवन में बसन्त आता है। बसन्त है परिवर्तन का सूचक और ज्ञान भी है जीवन में परिवर्तन का सूचक। बसन्त का अर्थ है नये फूलों का खिलना, नये पत्तों का खिलना, नवीनता का उदय होना और यह पतझड़ के बाद ही होता है। पतझड़ का सीधा अर्थ है जर्जर पुराने का त्याग। यह प्रक्रिया प्रकृति में निरन्तर और निरन्तर चलती आ रही है ओर आगे भी चलती रहेगी। ईश्वर के इस नियम का कोई उल्लंघन कर ही नहीं सकता। इसलिये जो ईश्वर में है वह प्रकृति में है और जो प्रकृति में है वह ईश्वर में है।

    इसके साथ यह भी महत्वपूर्ण है कि परिवर्तन की शोभा ज्ञान से ही पल्लिवत होती है, ज्ञान से ही भावना आती है, विचार आते है, क्रिया होती है। यह सब बहुत सरल सिद्धान्त है।

    लेकिन मनुष्य थोड़ा विचित्र प्राणी है, वह प्रकृति के विरुद्ध जाकर अतिक्रमण का दुस्साहस करता है। वह जीवन में बसन्त तो चाहता है, सरसता तो चाहता है, सौन्दर्य तो चाहता है, सम्मोहन तो चाहता है, प्रेम तो चाहता है लेकिन ज्ञान भाव को, सरस्वती को सदैव अपने साथ संयुक्त नहीं करता।

    एक व्यवहारिक बात कहता हूं, हम खाना खाते है वह 24 घण्टे में शरीर से बाहर निकल जाना चाहिये। जो पोषक तत्व हमारे शरीर को आवश्यक है वह भोजन से ग्रहण कर लिये, ठीक इसी प्र्रकार शरीर में जल का बैलेन्स रखने के लिये हम निरन्तर दिन में कई बार जल ग्रहण करते है। वह जल शरीर में भोजन पचाने से लेकर सफाई तक का कार्य करता है पर जो अतिरिक्त जल है वह 4 घण्टे में निकल जाना चाहिये। अन्यथा शरीर में व्याधि आ जाती है। सबसे महत्वपूर्ण बात जो हम श्वास, हवा भीतर लेते है वह भी कुछ क्षण बाद बाहर निकल जानी चाहिये नहीं तो मृत्यु आ जाती है।

    अब विचार करते है हमारे विचारों के बारे में कहीं किसी मूर्ख ने लिख दिया और कहावत बना दी ‘खाली दिमाग शैतान का घर’ इसलिये दिमाग को भरते रहते है, खाली नहीं रहने देते और भरते क्या है घृणा, क्रोध, ईर्ष्या, असुरक्षा के भाव और इन्हें कई-कई महीने, कई-कई साल रखें रहते है।

    दिमाग भरा हुआ इन्ही सब विचारों से, खाली तो है ही नहीं। ये नकारात्मक विचार ही आपके जीवन में निरन्तर और निरन्तर उत्पात मंचाते है।

    इसका अर्थ हुआ कि मनुष्य अपने दिमाग को खाली करना ही नहीं चाहता, उसे भरे जा रहा है, उसे भरे जा रहा है। अब नकारात्मक विचारों का इतना संग्रह हो गया है कि आपको भूतकाल की पीड़ा सताती है। कभी पछतावा होता है, कभी आगे की असुरक्षा सताती है।

    यह भी आप जानते हो कि हमारे शरीर का सबसे मुख्य अंग मस्तिष्क अर्थात्‌‍ दिमाग ही है। इस दिमाग के कारण ही तो शरीर की सारी क्रियाएं होती है और यह मस्तिष्क ही आज्ञा चक्र का स्थान है।

    बड़ा सुन्दर शब्द है आज्ञा चक्र – वह स्थान जहां से आपके शरीर को आज्ञा प्राप्त होती है, आदेश प्राप्त होता है और सहस्रार वह स्थान है जहां से आपके देह को सरस जीवन्त रखने के लिये अमृत बूंदें निरन्तर प्रवाहित होती है।

    तो शरीर हो गया सेवक, मस्तिष्क का और शरीर को चाहिये श्रेष्ठ आज्ञा, शरीर का चाहिये प्रेम, आनन्द, शांति का अमृत।

    अब क्या करें? ऐसे महत्वपूर्ण स्थान को नकारात्मक विचारों से भरा हुआ रखों, या थोड़ा खाली रखें। यदि नकारात्मक विचार ही भरे रहे तो निश्चित रूप से मानसिक, शारीरिक, भौतिक व्याधियां आपके शरीर में पनपेगी।

    आप चाहते है सगुन्धिम्‌‍ पुष्टिवर्द्धम्‌‍… और भरे हुए है नकारात्मक विचार, उससे अमृत कैसे बूंद-बूंद आयेगा? विषैली बातों से तो विष ही आयेगा और आपकी इच्छाएं, कामनाएं है अमृत आनन्द प्राप्त करने की अनन्त कामनाएं।

    तो करना क्या है? दिमाग को व्यर्थ नहीं भरो। जैसे ही नकारात्मक विचार आये उन्हें भेज दो, बहुत दूर – बहुत दूर और जिससे वे आपको प्रभावित ही नहीं कर सके।

    हमारे शास्त्रों में, पंतजलि योग सूत्र में योग के आठ पद बतायें गये है।

    यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि।

    अन्तिम पद समाधि का अर्थ क्या है?

    विचारों की शून्यता। जब यह विचार शून्यता की स्थिति आती है तब आपकी शक्ति का शिव से मिलन होता है। शक्ति का शिव से मिलन हो गया, आपका जीवन आनन्दप्रद हो जाये। देह पुष्ट हो जायेगी उसमें अपने आप अष्टगंध की सुगन्ध व्याप्त हो जायेगी। जर्जरता नहीं आ सकती, देह की ओज में प्रज्ञा शक्ति, मेघा शक्ति, सरस्वती शक्ति, आपके चेहरे से परिलक्षित होने लग जायेगी और आपका मुख जाज्वलयमान प्रभामण्डल से युक्त अपने आप हो जायेगा।

    करना केवल इतना है कि व्यर्थ के नकारात्मक विचारों को अपने दिमाग में भर कर मत रखों। अपने मन को विचार शून्यता की स्थिति में प्राप्त करने हेतु ज्ञान का अर्जन निरन्तर करते रहे, अपनी मेघा शक्तियों को तीव्र बनाएं।

    बसन्त पर्व आ रहा है, ज्ञान पर्व आ रहा है। विचार तो आपको अपने आज्ञाचक्र से ही करना है। अपने मस्तिष्क को सदैव शांत रखों, उसमें श्रेष्ठ विचारों को स्थापित करो और रोज-रोज नकारात्मक भावों को हटा कर प्रसन्नचित्त रहे।

    बहुत-बहुत आशीर्वाद

 

-नन्द किशोर श्रीमाली 

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