Dialogue with loved ones – December 2023

अपनों से अपनी बात…

मेरे प्रिय साधकों,

शुभाशीर्वाद,

धर्मादर्थः प्रभवति धर्मात्प्रभवते सुखम्‌‍।
धर्मेण लभते सर्वं धर्मसारमिदं जगत्‌‍॥

    Righteousness brings wealth. Wealth brings happiness. Righteousness brings everything. In fact, the essence of the world is righteousness.

    धर्म धन लाता है, धर्म सुख लाता है, धर्म सब लाता है, वास्तव में संसार का सार धर्म ही है।

    धर्म धन का कारण है, धर्म सुख का कारण है, धर्म सबका कारण है, वास्तव में संसार का सार धर्म ही है।

    वाल्मिकी रामायण में आया ( अरण्यकाण्ड सर्ग 9 श्लोक संख्या 31) यह श्लोक मुझे अत्यन्त प्रिय है। इस श्लोक का मैं बार-बार मंथन करता रहता हूं और जब भी कोई दुविधा या संशय आता है तो इस श्लोक को पूरे भाव के साथ जब मैं दोहराता हूं तो मुझे दुविधा में सही मार्ग मिल जाता है।

    यह श्लोक जीवन का धर्म है। वह सही मार्ग जिस पर चलने से जीवन के चतुर्वर्ग धर्म, अर्थ, काम और मुक्ति साथ-साथ प्राप्त होते रहते है।

    मनुष्य अपने जीवन में मनोकामनाओं का भण्डार भरता रहता है। कुछ लोग इसे तृष्णा कहते है, कुछ लोग इसे लक्ष्य कहते है, कुछ लोग इसे विचार कहते है, कुछ लोग कामना कहते है। इस भण्डार में मनुष्य के व्यक्तित्व को इतना अधिक उलझा दिया है कि वह अपने जीवन में सही मार्ग का चयन ही नहीं कर पाता है। रुक कर सोचिये आप अपनी शक्ति से चल रहे है या कोई और आपको दौड़ा रहा है, भगा रहा है। कई बार तो मैं मनुष्यों के विचार सुन-सुनकर आश्चर्यचकित हो जाता हूं, जब वे कहते है कि मेरे पास समय कम है और काम बहुत है। श्वास खाने की भी फुर्सत नहीं है। काम का इतना अधिक टेन्शन है। मुझे कितना कुछ करना पड़ता है, मैं नहीं करूंगा तो कौन करेगा? सब जिम्मेदारियां मेरे ऊपर है।

    जब मैं इन प्रश्नों को सुनता हूं तो उस समय एक प्रति प्रश्न आप सब से करने का मन करता है कि इन सब में आप कहां हो? आपकी प्राथमिकता क्या है? जब तक आपने अपने जीवन में अपनी प्राथमिकता स्वयं को नहीं बनाते हो। जब आप स्वयं अपने ऊपर विश्वास नहीं करते हो तो आप अपने जीवन में कार्य कैसे पूरे करोगे? यदि आपने अपने स्वयं के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक स्वास्थ्य का ध्यान नहीं रखा तो क्या आप अपने जीवन में अवसाद डिप्रेशन की स्थिति में नहीं चले जाओंगे।

    आप स्वयं इस जगत में केन्द्र बिन्दु हो और केन्द्र बिन्दु के चारों ओर सभी भ्रमण करते है। आपका घर, परिवार, समाज इस सबके लिये आप केन्द्र बिन्दु हो। आपका अस्तित्व होना सबसे प्रमुख है। यदि आप स्वयं अस्तित्व में नहीं हुए तो क्या होगा? ऐसी कल्पना भी आपको भयावह लगती है, पर विचार तो करना ही पड़ेगा।

    मेरे पास नित्य प्रति लोग मिलने आते रहते है और वे अपनी कामनाओं की बात करते है। कोई भी व्यक्तित अपने स्वयं के बारे में बात नहीं करता है। अपने मानसिक और बौद्धिक स्वास्थ्य के बारे में बात नहीं करता। स्वास्थ्य का अर्थ है – आरोग्य। आरोग्य से आप क्या अर्थ समझते है? शरीर हष्ट-पुष्ट तन्दुरूस्त रहे या फिर आपने आरोग्य की यह परिभाषा बना रखी है कि शरीर की लम्बाई, चौड़ाई, नाक-नक्श की सुन्दरता या और कोई मानदण्ड।

    मनुष्य जीवन में सबसे महत्वपूर्ण है – व्यक्तित्व। किसी भी व्यक्ति की शोभा सोन्दर्यवान होने से नहीं होती है। जीवन में एक सौन्दर्य स्थायी है – वह है , आपके व्यक्तित्व का ओज, आपका Glow शारीरिक दृष्टि से, आप कितने ही सुन्दर हो उम्र के पड़ाव में सब चीजें ढल ही जाती है। यह सृष्टि का नियम है और यह सृष्टि ईश्वर के नियम से चलती है। न तो आप उम्र का बढ़ना रोक सकते है और न ही अपने आपको एक स्थान पर, एक स्थिति में स्थिर कर सकते है।

    क्या है वह जो आपके व्यक्तित्व को विशेष ओज देता है? जिससे आप हर स्थिति में सौन्दर्यवान बनें रहते है। यह है, आपका आन्तरिक व्यक्तित्व और चारित्रिक बल और इसके लिये बहुत सरल कार्य है, जिन्हें आप अपने अन्तर्मन में निरन्तर और निरन्तर भर सकते है।

    क्या आप प्रेम से भरे हुए है? क्या आप स्वाभिमानी है? क्या आपके व्यवहार में सरलता है, क्या आपके हृदय में करुणा और दया का भाव है? क्या आप जगत में मित्रता का भाव रखते है? क्या आपमें ईर्ष्या-द्वेष को हटाने की क्षमता है? क्या आप अपने जीवन को ईश्वर द्वारा दिया गया, श्रेष्ठ वरदान समझते है?

    निश्चित रूप से प्रभु ने ये जीवन वरदान रूप में ही दिया है। इस वरदान रूपी बीज को पुष्प पल्लवित फलयुक्त करना आपका कर्त्तव्य है। जब आप अपनी रक्षा करते है, अपना ध्यान रखते है, अपने मन की भावनाओं को नियन्त्रित रखते है तो आप ईश्वर द्वारा दिये गये जीवन उपहार को सही दिशा की ओर ले जा रहे है।

    क्या आपने कभी अपने स्वयं के भले और स्वयं की खुशी के लिये विचार किया है? नहीं विचार किया है तो आज से ही प्रारम्भ कर दीजिये। तब आप के भीतर अपने आप अमृत का कुण्ड फूट पड़ेगा और आप प्रेम रस से आपूरित हो जायेंगे। तब आपको जीवन की छोटी-मोटी बातों की चिन्ता नहीं सतायेंगी। शारीरिक स्वास्थ्य महत्वपूर्ण है लेकिन उससे भी महत्वपूर्ण है अपना भावनात्मक सन्तुलन बनायें रखना। जीवन में सारी बाधाओं का कारण भावनात्मक सन्तुलन बिगड़ना ही है। जब आप अपने प्रति दयालु हो जायेंगे तो आप आपके भीतर एक सकारात्मक Emotion प्रवाहित होंगे और यह सकारात्मक ईमोशन ही आपको हमेशा पूर्णता और आनन्द का भाव प्रदान कर सकते है।

    जो मैंने प्रारम्भ में धर्म का श्लोक लिखा है वह एक विशेष प्रार्थना है जो आपको अपने आपसे कहनी है कि मैं सदैव सही मार्ग पर गतिशील रहूं। यही ज्ञान है, यही चेतना है, यही भावनात्मक सन्तुलन है। अपना सन्तुलन बनायें रखने की जिम्मेदारी सबसे पहले आपकी ही है।

    गुरु का आशीर्वाद और ईश्वरीय आस्था आपके भावों को बलवति करने हेतु है। यही आत्मभाव, यही ज्ञान योग धर्म का आधार है। अपने आत्मभाव की रक्षा करो…।

    नववर्ष की पूर्व संध्या पर आरोग्यधाम में गुरु और शिष्य का ज्ञान, आत्मभाव, योग एकाकार होगा…, यही ज्ञान योग है…

-नन्द किशोर श्रीमाली 

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