Dialogue with loved ones – December 2022
अपनों से अपनी बात…
मेरे प्रिय साधकों,
शुभाशीर्वाद,
एक बात तो निश्चित है कि आपमें गुरु प्रेम भरपूर है और आपने गुरु मार्ग में चलने का निश्चय कर दिया है उस पर तीव्र गति से गतिमान हो। छत्तीसगढ़ के शिविर में मैंने यह विशेष बात देखी थी कि किस प्रकार प्रत्येक शिष्य अपने-अपने स्थान पर कार्य कर रहा है और इस बार तो उत्साह अपार था। कोराना का भूत उतर चुका है और आपका उत्साह सौ गुना हो गया है। गुरु शिष्य प्रत्यक्ष मिलन की प्रक्रिया प्रारम्भ हो गई है इसीलिये आप हर महीनें जोधपुर आते है, दिल्ली आते है। तीन दिन तक ऐसा लगता है कि एक छोटा मिनी शिविर हो रहा है। आईये, गुरु के हृदय में और गुरुधाम – आरोग्यधाम में, निखिल कुंज में आपका स्वागत है।
आज मेरी एक बात सुनो, आपके घर में भी बगीचा होगा, उसकी आप देखभाल करते हो। अभी मैं दिल्ली में जा रहा था देखा कि सड़क के किनारे बढ़ने वाले प्रकृति के वरदान पेड़ों को कांट-छांट कर एक रुप दिया जा रहा था। जिससे वे और अधिक अच्छे लगे, लोग कहते है कि Haze बनायें ताकि सारे पौधें अच्छे दिखें। यहां तक की कभी कांट कर जानवर का रूप देते है, कभी और कोई रुप। ये देखकर मुझे मन में एक विचार आया कि यह कांट-छांट की क्रिया क्यों करते है? स्वभाविक रूप से उन्हें बढ़ने क्यों नहीं देते? ईश्वर कहता है कि मैं प्रकृति में तुम्हें वृक्ष प्रदान कर रहा हूं, जिससे वे छाया दे, फल दे, वर्षा का कारण बनें, पक्षियों को आश्रय मिलें और हम मनुष्य ईश्वर की इस लीला में छेड़छाड़ कर अपनी निगाहों से उसे आकार देना चाहते है।
खैर, यह तो पौधों की बात हुई, पेड़ों की बात हुई। घर-परिवार में हम क्या करते है? सबको अपने अनुसार चलाना चाहते है, कांट-छांट करना चाहते है। शायद इसके मूल में आपके मन में शासन की भावना है। कहने को आप कहते है कि मैं अपने बच्चों को व्यवस्थित कर रहा हूं, उन्हें जीवन के कठोर मार्ग पर चलने के लिये तैयार कर रहा हूं। इसलिये आप कांट-छांट करते रहते हो। पर क्या आपने सोचा है कि आप अपने बच्चों की स्वभाविक प्रवृत्ति, स्वभाविक गुणों के विकास को रोकने की कोशिश नहीं कर रहे है? ईश्वर ने प्रत्येक बालक को, प्रत्येक व्यक्ति को स्वभाविक गुण प्रदान किये है। इसी कारण प्रकृति में और मनुष्य जगत में इतनी विविधता है। सोचों यदि भगवान सारे फूल लाल ही बनाता या सफेद ही बनाता तो क्या आपको आनन्द आता? ईश्वर तो जीवन में सारे रंग भरता है। तो फिर हम क्यों अपना शासन चलाना चाहते है?
देखों, शासन और अनुशासन में बड़ा अन्तर है। शासन में आप चाहते है कि दूसरा आपकी आज्ञा को स्वीकार करें और उसी के अनुसार चले। जबकि अनुशासन का अर्थ है आप उसे वह अवसर प्रदान करें, जिससे वह स्वयं संयमित और स्वभाविक गुणों से भरपूर व्यक्तित्व बनें।
जब संतान घर में जन्म लेती है तो आप समझते है, मेरा पुत्र है, मेरी पुत्री है। इसे मैं यह बनाऊंगा, वह बनाऊंगा बहुत अच्छा विचार है। पर इसमें धीरे-धीरे आपकी अधिकार की भावना बढ़ती जाती है। यह सोचों संतान आपके घर में आई है तो यह ईश्वर का वरदान है। उस वरदान की रक्षा करना, उससे मोह करना आवश्यक है तो इसके साथ यह भी आवश्यक है कि ईश्वर का यह वरदान स्वभाविक रूप से वृद्धि करे। वह अपने गुणों का विस्तार करे, उसमें व्यर्थ कांट-छांट टोका-टाकी का प्रयत्न नहीं करे।
क्या है, दुनिया में सबको प्यार से समझाया जा सकता है। आपका संतान के प्रति मोह विशेष है लेकिन जब धीरे-धीरे यह मोह – प्रेम आज्ञा में बदल जाता है, हर बात में टोका-टाकी में बदल जाता है तो निश्चित रूप से बालक का मन विद्रोही हो जाता है और विद्रोही मन से क्या होता है? आप जो कहते हो उसका उल्टा करने लग जाता है। आपकी आज्ञा को दरकिनार करना शुरु कर देता है। इसीलिये परिवारों में कलह की स्थिति बन जाती है।
एक बात शांत मन से सोचना ईश्वर ने आपको पति बनाया, पत्नी बनाया, संतान दी, माता-पिता दिये, एक परिवार बनाया बिल्कुल शिव परिवार की तरह। जिसमें शिव भी है, शक्ति भी है, गणेश भी है, कार्तिकेय भी है। सब है तो निश्चित रूप से ईश्वर ने कुछ सोच समझकर आपके परिवार की यह इकाई बनाई है। इस इकाई में ही आपको जीवन जीना है। अब घर परिवार में आप प्रेम और स्नेह की बरसात करे या क्रोध और शासन की धूप खिलाएं, यह आपकी इच्छा है। ईश्वर आपके जीवन क्रम में कोई दखल नहीं करता है। यह आपका प्रयत्न होना चाहिये कि मैं ईश्वर द्वारा प्रदत्त इतने अधिक उपहारों को किस प्रकार से संभालूं और उन्हें विकसित करूं। जिन परिवारों ने आपसी स्नेह, सौहार्द और समभाव का वातावरण होता है, एक दूसरे के बात को ध्यान से सोचने-समझने और ऐडजेस्ट करने की भावना होती है उन परिवारों में अपने आप ईश्वरीय कृपा बरसती है। ईश्वरीय कृपा कहां बरसेगी? जहां प्रेम होगा। प्रेम के वशीभूत सारे देवता है, अवश्य ही आपके आकर्षण में आयेंगे और आपकी सारी प्रार्थनाएं, आपके सारे प्रयत्न अवश्य सफल होंगे।
आपके पास मन है और यह मन इस शरीर में रोम-रोम में स्थापित है और शास्त्र जिसे आत्मा कहते है वह मूल रूप से परमात्मा की ज्योति है निर्माणकर्त्ता ब्रह्म की ज्योति है जो आपके भीतर प्रज्जवलित हो रही है। इस परमात्मा की ज्योति को तुम्हारा शरीर मिला है और इस शरीर के माध्यम से सबसे पहला काम यह करना है कि यह ज्योति निरन्तर प्रज्जवलित रहनी चाहिये। इसे आरोग्य द्वारा हम सुरक्षित रख सकते है। इस ज्योति को कर्म द्वारा तीव्र कर सकते है। जब यह ज्योति तीव्र रहेगी तो आप स्वयं आभावान हो जायेंगे क्योंकि परमात्मा आभा स्वरूप है।
और यदि आपने स्वयं अपने मन पर, शरीर पर निरन्तर अत्याचार किया, उसका ध्यान नहीं रखा तो क्या होगा? तो क्या वह ज्योति पूर्ण रूप से आभावान रह सकती है, बिल्कुल नहीं। यह ज्योति मंद हो गई तो जीवन में तुम्हें निराशा दिखाई देगी और इस निराशा में तुम्हारे मन में बार-बार यह विचार आयेगा कि सांसारिक नियमों के अनुसार मैं सफल नहीं हूं, मैं खुश नहीं हूं।
देखों भाई, आप तो आज से ही प्रसन्न और खुश रहने का प्रयत्न प्रारम्भ कर दीजिये। खुशी में ज्योति है और फिर चाहे जीवन में कितना ही अंधकार पूर्ण मार्ग आ जाये अपनी इस ज्योति को जो मूल रूप से परमात्मा की ज्योति है मार्ग अवश्य मिल जायेगा। जो वर्तमान में प्रसन्न है वह भविष्य में भी प्रसन्न रहेगा।
गुरु का सान्निध्य इसलिये आवश्यक है कि तुम्हारा आत्मप्रकाश मंद नहीं हो, इसलिये गुरु उसमें अपने ज्ञान की धारा प्रवाहित करते रहते है। ज्ञान से ही जीवन में आभा है, प्रकाश है। ज्ञान से ही शक्ति है।
व्यर्थ की कांट-छांट छोड़ों, स्वभाविक रूप से गतिशील रहो, गुरु सदैव आपके साथ है..।
-नन्द किशोर श्रीमाली
Coming soon…
Nand Kishore Shrimali