Dialogue with loved ones – December 2021

अपनों से अपनी बात…

मेरे प्रिय आत्मन् शिष्य,

शुभाशीर्वाद,

उद्यमं साहसं धैर्यं विद्यां बुद्धिः पराक्रमः।
षडेते यत्र वर्तन्ते तत्र दैव सहायकृत॥

परिश्रम, साहस, धैर्य, ज्ञान, विवेक, पराक्रम इन छः गुणों के आधार पर ही तुम अपने जीवन को गति दे सकते हो। जहां ये छः गुण रहते हैं – उस मनुष्य को देवता भी अवश्य ही सहयोग प्रदान करते हैं।

इन छः गुणों का मूल स्रोत है – विचार।

विचार तो निरन्तर और निरन्तर चलते ही रहते है। एक मन है और लाख विचार, फिर उन विचारों के ऊपर आ गये है दूसरों के विचार, बड़ी-बड़ी बातें, जीवन मूल्य, जीवन सिद्धान्त, जीवन आदर्श की बड़ी-बड़ी बातें।

इन सिद्धान्तों, बड़ी-बड़ी परिभाषाओं, बड़े-बड़े प्रेरणादायक आख्यानों पर आपका मन उलझ कर रह जाता है। क्या करूं, किस सिद्धान्त पर चलूं? क्या मेरे मन में जो विचार उभर रहे है वे सही है

हिमालय से सैकड़ों धाराएं निकलती है, क्या किसी धारा ने यह पूछा कि – मैं किस दिशा में जाऊं? क्या कभी कोई नदी ये पूछती है कि – मेरे बहने का क्या मार्ग होना चाहिये? क्या कभी किसी नदी ने यह कहा है कि – मेरा मार्ग बिल्कुल सपाट, सीधा और सरल होना चाहिये। वह तो निकल पड़ती है अपना स्वयं का मार्ग बनाते हुए। कहीं मैदान आया, कहीं पठार आया, कहीं जंगल आया, कहीं और बाधा आई पर वह चली पड़ी तो चलती ही रही।

यह नदी क्या है? जल प्रवाह है और यह जल प्रवाह शक्ति को प्रकट करता है और जब शक्ति चल पड़ती है तो वह किसी को नहीं पूछती कि मेरा मार्ग क्या होना चाहिये? मेरा सिद्धान्त क्या होना चाहिये? बस मुझे दौड़ना है, वेग से बहना है, रुकना नहीं है चाहे कैसा भी मौसम आ जाये, कोई भी बाधा आ जाये, मुझे गतिशील रहना है।

ऐसा ही विचार जब आपका हो जाता है तो बड़ी-बड़ी परिभाषाएं बेमानी लगती है, तब क्यों आपने कुछ परिभाषाओं के बीच में अपने जीवन को जकड़ कर रखा है?

अपने स्वतंत्रता के भाव को सदैव रखिये।

गुरु का कार्य अपने शिष्य को स्वतंत्र बनाना है। स्वतंत्र और स्वच्छन्दता में बड़ा ही अन्तर है। स्वच्छन्द तो सब मर्यादाओें को तोड़ देता है लेकिन स्वतंत्र व्यक्तित्व इस संसार में निरन्तर मर्यादाओं के साथ गतिशील और क्रियाशील रहता है।

एक मेरी बात को ध्यान से समझना, तुम अपनी जिन्दगी को सौ अध्याय की किताब समझो और इस किताब की कहानी भी बड़ी विचित्र है, तुम्हारी जिन्दगी की किताब की तरह।

इसमें कोई अध्याय पूरा होता है, जिसकी शुरुआत से अन्त तक सबकुछ अच्छा-अच्छा होता है। जैसा तुम सोचते हो, उस तरह से खुशनुमा शुरुआत होती है और खुशनुमा अन्त Happy Ending भी होता है।

जिन्दगी का कोई अध्याय जल्दी ही खत्म हो जाता है, कोई देर से खत्म होता है।

इसी जिन्दगी का कोई अध्याय अधूरा ही खत्म हो जाता है। जिसके लिये हम तैयार नहीं थे, सोचा ही नहीं था कि यह अधूरा रह जायेगा।

और तो और हम अपनी जिन्दगी में अपने कर्मफल को भी नियन्त्रित नहीं कर सकते है।

जिन्दगी की इस किताब में यह भी नहीं कह सकते कि कौन हमें कब तक प्रेम करता रहेगा। कौन हमारी जिन्दगी से कब हट जायेगा, कब बिछुड़ जायेगा?

ये सारे जिन्दगी के अध्याय है, Lesson है जो एक के बाद एक आते रहते है और कौन सा अध्याय कब घटित होगा कुछ मालूम नहीं।

पर एक बात है, जिन्दगी इतनी कड़वी नहीं है, जिन्दगी के सारे अध्याय इतने कटु नहीं है। इस जिन्दगी से एक बात अच्छी तरह से समझ सकते है कि हमारे लिये वो क्षण महत्वपूर्ण है, जिसमें आनन्द की वर्षा हो। यह अनुभूति ही जीवन का सौन्दर्य है, आनन्द है।

एक बात कहूं, अपने अनुभव से नहीं कह रहा हूं, अपने विचार से कह रहा हूं, यह जिन्दगी एक नदी है कभी भी एक ढर्रे पर, एक राह पर नहीं चलती है। बदलाव ही सृष्टि का नियम है, जीवन का नियम है, शाश्‍वत् नियम है।

जिन्दगी में सबसे बड़ी स्वतंत्रता यह है कि जीवन एक सीधे-सादे, सपाट रास्ते पर चलता ही नहीं है। इसलिये जीवन को स्वतंत्र कहा गया है। आप अपनी जिन्दगी में कभी भी स्वतंत्रता का अनुभव कर सकते है, यही तो सबसे बड़ी स्वतंत्रता है।

इसके लिये मैं कोई ज्ञान आपको देने नहीं आया हूं। बस इतना कहता हूं कि अपने मन की किताब को बंद मत रखों। उसे खोलते रहो, नये-नये अध्याय आयेंगे। कुछ पूरे होंगे, कुछ अधूरे रहेंगे।

याद है ना पतझड़ के बाद जो फूल गिर जाते है वे ही बीज बनकर नये पौधे बनते है, नई जिन्दगी बनती है। फिर नये पुष्प लगते है, फिर बहार आती है।

आवश्यक है स्व सम्मोहन, आवश्यक है स्व वशीत्व और करने चले हो दूसरे को सम्मोहित, दूसरे को प्रभावित, दूसरे को वशीकरण, करो अपने मन को सम्मोहित, अपने मन को आनन्दित। इस मन में, इस कुण्डलिनी में, इस शक्ति में सुगन्ध है, प्रवाह है, आनन्द है और यह आनन्द तब ही है जब तुम अपने विचारों की रक्षा करते हुए, अपने विचारों से गतिशील होते हो।

तुम्हारा मन आनन्द का सृजन कर रहा है, तो वह मन प्रेम से बहता रहेगा निरन्तर गतिशील रहेगा।

क्षण में आनन्द लेना है और उस क्षण को मन के कोनों में सजा देना है। धीरे-धीरे मन में आनन्द के क्षणों का भण्डार हो जायेगा, फिर काहे की चिन्ता, जीवन में जो आयेगा जो देखा जायेगा।

अरे! जीवन अज्ञात है इसीलिये तो जीने का मजा है।

-नन्द किशोर श्रीमाली

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