Dialogue with loved ones – August 2020

अपनों से अपनी बात…

प्रिय आत्मन्,

शुभाशीर्वाद,

गुरु पूर्णिमा के अवसर पर आप सभी ने अपने घरों में पूर्ण भव्यता और आनन्द के साथ गुरु पूजन सम्पन्न किया। आपने मेरी बातों को ध्यान से सुना, मुझे निश्‍चित रूप से आप पर गर्व है। गुरु पूर्णिमा के दिन जो आनन्द का माहौल आपके मन मन्दिर के प्रांगण में स्थापित हुआ है। उसी आनन्द का विस्तार घर-परिवार, समाज और राष्ट्र में करना है।

पहले मैं वर्तमान स्थिति के सम्बन्ध में स्पष्ट कह दूं, हर व्यक्ति में अतिविश्‍लेषण करने की आदत होती है और अन्यथा की आशंकाओं से अपने मन को घेर लेते है। तुम सभी साधक हो तुम्हें चिन्ता नहीं करनी है, कोई समस्या आ भी गई तो पराक्रम से, आत्मशक्ति से, आत्मबल से जीतना है।

गुरु पूर्णिमा पर आपने कुछ आत्म मंथन भी किया होगा। अपने पूर्ववर्ती वर्षों के बारे में विचार किया होगा और आगे के लक्ष्य भी आपने अवश्य बनाये होंगे। मुझे खुशी है कि आप सभी ने अपने लक्ष्य अवश्य बनाये है और लक्ष्य आपको अपने स्वयं के ही बनाने है। किसी दूसरे के विचारों से आप अपने जीवन में सफलता और प्रसन्नता हासिल नहीं कर सकते है। आप यह विचार ही मन में क्यों लाते हो कि मैं जीवन में सफल नहीं हूं? मुझे जीवन में मनचाहा प्राप्त नहीं हुआ है, काश मुझे वह मिल जाता, यह मिल जाता, अब तक मैं वह मुकाम प्राप्त कर लेता। ठहरो! तुम तुलना किससे कर रहे हो?

देखो भाई, यदि हर समय दूसरों से तुलना करते रहे तो तुम्हें व्यर्थ का असंतोष आयेगा। तुम्हें इससे कुछ हासिल नहीं होगा अपितु तुम अपनी ही शक्ति का ह्रास करोगे। किस बात का अफसोस कर रहे हो? क्या तुम्हारे अफसोस करने से परिस्थितियां बदल जायेगी। नहीं, तो फिर अपनी जिन्दगी पर किसी भी प्रकार का अफसोस मत करो। यह ठीक है तुम्हारे आस-पास, किसी के पास ज्यादा है, किसी के पास कम है।

चलो इस संदर्भ में एक कहानी सुनाता हूं। अभी मेरे पास पन्द्रह दिन पहले एक साधक, उम्र करीब 55 साल का फोन आया और बोला कि गुरुदेव बहुत परेशान हूं, कुछ करने का मन ही नहीं करता है। बहुत खाली-खाली अनुभव कर रहा हूं। दुनिया मुझे जितना सफल, सम्पन्न और जीवट शक्ति वाला समझती है, उतना मैं हूं नहीं। सत्य तो यह है कि मैंने जीवन में अब तक कुछ भी हासिल नहीं किया है, बहुत डिप्रेशन आ रहा है।

मैंने कहा कोई बात नहीं, चिन्ता मत कर सब ठीक होगा। पहले तुम एक काम करो, जिस स्कूल में पांचवी क्लॉस में पढ़ते थे, वह रजिस्टर स्कूल से लाना और तुम्हारी कथा में जो 40-50 विद्यार्थी  तुम्हारे साथ पढ़ते थे उन सब के बारे में मालूम करना। वे क्या कर रहे है? उनका काम कैसा चल रहा है? उनके घर-परिवार की सब जानकारी मालूम करना। इधर-उधर फोन करके पूरा पत्ता लगाना और सबके बारे में पूरी जानकारी मिल जाये तब मुझे वापिस फोन करना। मैं तुम्हारी समस्या का निदान बता दूंगा।

ठीक दस दिन बाद उस साधक का फोन आया, एकदम आश्‍चर्यचकित। मैंने पूछा सब ठीक है, उसने कहा गुरुजी एकदम ठीक है। मैंने पूछा कि तुम्हारी पांचवी क्लॉस वाले साथियों के रजिस्टर का क्या हुआ? उसने कहा कि उस रजिस्टर में 48 नाम थे। उनमें से पांच मर गये हैं, छः-सात नशेड़ी निकले जो बात करने लायक ही नहीं है। पांच-सात का पता ही नहीं चला कि अब वो कहां है? चार इतने अधिक गरीब थे कि कुछ कहा नहीं जा सकता और तीन लोग तो बहुत अमीर हो गये है। तीन लोग को फालिज हो गया है और दो को कैंसर है। दो मित्रों का एक्सीडेण्ट में पैर टूट गया था। एक के रीढ़ की हड्डी की चोट के कारण बिस्तर में है। एक ने कहा कि वो अभी तक सैटल नहीं है। दो बार तलाक हो गया है और अब तीसरा विवाह करना चाहता है। एक ने कहा कि अब वह पचपन साल में थोड़ा सैटल हुआ है, अब जीवन की शुरुआत करना चाहता है।

मैंने बात बीच में रोककर कहा कि तुम्हारा क्या हाल-चाल है? तबीयत कैसी है? वह तपाक से बोला, गुरुजी मैं बिल्कुल ठीक हूं। मुझे एकदम समझ में आ गया है मैं गरीब नहीं हूं, मुझे कोई बीमारी नहीं है, मेरा दिमाग एकदम सही है और मेरे बीबी, बच्चे तो बहुत अच्छे है। सब ठीक चल रहा है। कोई डिप्रेशन नहीं है। अब मैं खूब अच्छे से काम करूंगा।

इस कहानी पर तुम भी विचार करना। क्या दुःख इतना बड़ा है जितना तुम समझ रहे हो या यह दुःख दूसरों से तुलना करने का है। तुम एकांगी तुलना ही क्यों करते हो? कुछ लोग जिन्दगी में तुमसे ज्यादा सफल हो गये है तो होने दो। तुम अपने आपमें ही खुश क्यों नहीं रहते हो?

देखों एक बात कहता हूं, जिसने कल की चिन्ता में आज को गंवा दिया उसका कल कैसे सुधर सकता है? कल तो कल है जो आता ही नहीं है। आता तो आज है और जो तुम्हारे सामने है, तुम्हारे पास है इसको सुधार दो इसमें किसी प्रकार का तनाव मत लाओं। निश्‍चित है कल भी तनाव नहीं आयेगा क्योंकि तुम आज तनाव नहीं कर रहे हो। किसी भी तनाव को जड़ पकड़ने ही नहीं दो, यही तो ध्यान है, साधना है, जीवन की कर्म तपस्या है।

एक और साधक से बात हुई, मैंने कहा आजकल क्या कर रहे हो?

उसने कहा कि कुछ करने को है नहीं इसलिये भजन कर रहा हूं। रोज छः घण्टे भजन करता हूं। आजकल सब आध्यात्मिक किताबें पढ़ रहा हूं। मैंने कहा कमाल के साधक हो तुम!

क्या भजन, ध्यान, पूजन, कीर्तन, खाली समय में करने की क्रिया है अथवा नित्य प्रति मन में प्रफुल्लता, आनन्द लाने की क्रिया है? इसीलिये तो नित्य-नित्य नवीन आनन्द प्राप्त करने और संकट से झुंझने की क्रिया का नाम साधना, आरती, भजन, प्रार्थना है, जिसे नित्य करना ही है।

जब तुम आरती गाते हो और उस समय मैं मंच से तुम्हें कहता हूं कि और जोर से झूम-झूम कर गाओ। पूरी मस्ती के साथ गाओ। यह भूल जाओं कि कोई देख रहा है। बस पूरे ब्रह्माण्ड में तुम अकेले ही बिल्कुल नटराज की भांति नृत्य करो, झूमो, हंसो, गाओ। उस समय जो ऊर्जा उत्पन्न होती है वह तुम्हारे पूरे शरीर में फैलनी चाहिए। आरती के पश्‍चात् जो समर्पण स्तुति ‘अब सौंप दिया सब भार तुम्हारे हाथों में…’ गाते हो, नाचते हो उसका अर्थ अपने उत्सव, आनन्द और अहोभाव् को प्रगट करने के साथ-साथ ऊर्जा को पूरे शरीर में फैला देना है।

नित्य प्रति आनन्द भाव के साथ मंत्रजप करो, साधना करो, हंसो, मुस्कुराओं और अपने शरीर से तनाव, चिन्ता को भगा दो।

आज अच्छा है, कल और भी अच्छा होगा, निश्‍चित रूप से होगा। मेरा आशीर्वाद…।

नन्द किशोर श्रीमाली

Dialogue with loved ones

My dear disciple, 

Divine blessings!

This time we’ve celebrated Guru Poornima in the midst of lockdown from our homes.  Yet, I noted that the quarantine couldn’t diminish your spirit. We celebrated the festival of Guru Poornima with the same  enthusiasm and exuberance like before. 

The technology acted as a bridge and we connected with each other via YouTube. A lot of you did post the happy pictures of your celebration on Nikhil Mantra Vigyan’s  Facebook page. It was a delight to witness your dedication towards your Guru. Also, it indicates your happiness quotient. 

In these crazy times, the joyful faces of my disciples is a proof of your extraordinary ability to defeat depression in all situations. Now, that happiness has blossomed in your heart, you need to expand it so that it envelops everyone: family, society and the nation. Joy is the definition of our success. 

Therefore,  I will urge all of you to make a conscious decision to pursue joy. When joy springs in your heart success follows. It is never the other way round. You have a habit of postponing happiness till the time you succeed. Whereas, when you become happy, success is yours. I have seen many successful people who are unhappy. Recently, one of the disciples called me. His case is unique.  

He was around 55.   Everything seemed okay with his life yet he felt empty. He confided in me, “Gurudev! The world thinks of me as a strong and successful man, but I feel inadequate. I suffer from chronic doubt and a sense of intellectual fraudulence. I feel that I have not achieved anything substantial in my life.”

To me, his life was perfect. He had a beautiful family, a high-profile job. But, he felt the other way. I had to change his outlook towards life so that he could realise the value of his success. 

So, I asked him to revisit his school days, when he was a student of class V and find out how his classmates have been faring in life. I asked him. “You investigate the whereabouts of your classmates and then report back to me.”

 This disciple called again after a fortnight. This time there was spring in his voice. He was not sad. I asked him, “Did you do your research?”

He replied in affirmative. He added further, “I found out about my friends. Some of them are struggling with finances, a few have domestic issues at home. Then, some have health issues and the rest of them are not reachable.”

 I asked, “What does this imply?”

He said sheepishly, “Gurudev, I am better than all of them. I don’t have a reason to feel sad or demotivated. God has been kind to me. I have a loving wife, obedient children, and a great job. Society respects me. I am earning well. My health is good. Life has been good to me.”

During the pandemic, I have noticed that all of us are over analyzing the situations confronting us.  This means you are worrying needlessly. The year 2020 is different. No one of us could have predicted it. Hence, we have to reset our goals and priorities. 

By over analysing a situation we are doing ourselves more harm than good. We are clouding our reasoning which prevents us from tackling and solving a problem. This situation is difficult but we can win it over with courage and determination. 

True to your habit, I am sure you’ve utilised the occasion of Guru Poornima to reflect back.  You must have tried to assess how much have you attained in your life so far? You would have made a few plans too for the year ahead.  

I would encourage you to set your goals for your life. However, my advice is that these goals should be yours. Totally. They should not be an outcome of envy or comparison. The yardstick of your successes should be yours. You should not try to follow the yardstick of others. If you keep thinking I should have achieved XXX because my best friend or my neighbour has it, you are setting yourself up for depression.Comparing yourself with others will dent your joy and cloud your judgement. You will become bitter and dissatisfied. 

Also, you don’t know the struggles of the other person, their challenges and their pains. You just pick up a piece of their life and compare yourself against it. However, that’s not the whole picture. 

I call such a comparison and out of context comparison. It builds resentment and anger inside you. You start thinking that life has been unkind to you. This is not true. We all have our share of challenges and struggles. Some people bear it with a grin, some whine and the others complain angrily about it. 

However, all of them have to endure it. While it’s true someone would have more than you but many have less than what you have. Counting your blessings and thanking God is the best prayer for anyone. It makes you humble and happy. 

As in the case of my disciple, he had to compare himself with his classmates to appreciate his blessings.  He was lucky to get a grip on the reality quickly. However, most people make it a habit to wallow in self pity. 

Of course, the future is uncertain. Yet, you are not powerless against it. You have an option to influence it, shape it if you make intelligent choices today. 

Your present moment is the gift from God. Use it carefully. Do not procrastinate things for tomorrow. Instead, do them today and remain stress free. When you become proactive you don’t need to worry about your future. It will take care of itself. Proactiveness lives in a positive mindset. A positive attitude will allow you to look at opportunities even in the midst of a crisis. Like this quarantine period is tough. Many have exploited this to move towards spirituality and religiousness, like one of my disciples. 

During one of these phone conversations a disciple told me that he was investing the extra time in this lockdown in singing bhajans and reading spiritual books. His answer astonished me.  

According to me, singing bhajans during prayer time, meditation are not techniques to pass time. Instead, they are the driving force of your life. They are a way of your life. They provide you with optimism and motivation in measured doses. As long as you have both you can tide over all tough situations in life.

 I reiterate a true disciple remains optimistic and perseveres through difficult situations. Your goal is to enjoy every moment of your life. Even, when you sing devotional prayers, you should sing them with fervour. Dance while singing your prayers, without inhibitions, as if no-one is watching you. The positive vibrations you will create during these prayers will energise you and make you happier. Once joy envelops you everything else will fall into place. You should focus on the present moment. The future will shape up on its own. Trust me. My blessings are with you. 

Nand Kishore Shrimali

 

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