Dialogue with loved ones – April 2022

अपनों से अपनी बात…

मेरे प्रिय आत्मन् शिष्य,

शुभाशीर्वाद,

महाशिवरात्रि का शिविर वाराणसी में भव्यतम् रूप में सम्पन्न हुआ। पूरे भारतवर्ष से साधक आये और बाबा विश्‍वनाथ की नगरी में भ्रमण किया, गंगा स्नान का आनन्द लिया। वाराणसी में सब कुछ भव्य है, सबसे विशेष बात यह है कि यहां काशी के स्वामी है शिव और शिव का अर्थ है शांति। कोलाहल में भी यहां शांति है। हर-हर गंगे, हर-हर महादेव का भाव है।

‘कोलाहल में शांति’ यही सबसे बड़ा प्रश्‍न आप सबके मन में है कि गुरुदेव मेरे मन में इतनी बेचैनी क्यों? मन क्यों बार-बार भटकता है? मन में उथल-पुथल क्यों है?

रुकों, एक क्षण अपने मन को रोकों और अपने मन से विचार करो क्योंकि आप ही अपने बारे में सबसे अधिक श्रेष्ठ सोच सकते है, आप ही अपने ‘स्वार्थ से सवार्थ’ की यात्रा कर सकते हो।

क्या चाहिये जीवन में? सुकून, शांति, आनन्द यही तो जीवन के सुन्दरतम् आभूषण है। जिसने इन तीनों को पा लिया, वह जीवन धन्य हो जाता है।

क्या किया आपने? लक्ष्य था खुश रहना, आबाद रहना। कोई उलझन नहीं हो, पर किसने उलझाया है? क्यों हर समय अपने आपको एक चौराहे पर खड़ा कर देते हो किसी दिशा में जाऊं और कितनी दूर मेरा लक्ष्य है और उस चौराहे पर ठिठके हुए खड़े रह जाते हो। केवल सोचते रहते हो और विडम्बना यह है कि कालचक्र तो चलता रहता है, न किसी के लिये रुका और न कभी रुकेगा।

सबकुछ चाहिये आपको और कुछ छोड़ना भी नहीं चाहते और आपने ही अपने ईद-गिर्द और मन के ईद-गिर्द एक पागल जमात खड़ी कर दी है जो तुम्हें धकेलते है, दौड़ाते है।

आप ने स्वतंत्र होकर कब निर्णय लिया? अरे! भाई उम्र बाधा नहीं है 40 के हो या 60 के एक बार तो अपना स्वयं का निर्णय लेकर चलो तो सही। फिर अपने आप गति आ जायेगी।

इसलिये थोड़ा विश्राम लो, विराम तो जीवन में ला नहीं सकते। ‘विश्राम’ का नाम ‘शिव’ है और ‘शक्ति’ का नाम ‘क्रिया’ है। थोड़ा विश्राम लो और बहुत आनन्द के साथ सोचों, फिर चले चलो, क्रिया करो।

एक बात है, विश्राम अर्थात् शिव, शिव अर्थात् संतोष। गति अर्थात् क्रिया, क्रिया अर्थात् हलचल। अब तुम्हें दोनों को साथ लेकर चलना है। शिव भी चाहिये और शक्ति भी चाहिये। गति भी चाहिये और विश्राम भी चाहिये। विश्राम करोगे तो ओर अधिक गति शक्ति प्राप्त होगी।

एक छोटा सा नियम आप भी जानते हो कि यात्रा में जितना कम बोझ होगा, यात्रा उतनी ही सरल और आनन्द देने वाली होगी।

तो इसके लिये एक सिद्धान्त अपना लो, यात्रा बड़ी सरल हो जायेगी।

Forgive and forgo.

दया करो, क्षमा करो और अवांछित को त्याग दो, भूल जाओं।

अपने मन पर दया करो, अपने शरीर पर दया करो और अपनी गलतियों के लिये अपने आपको क्षमा करो। इसीलिये कहता हूं कि जो बीत गया सो बीत गया उसे भूल जाओं।

पुराना बोझ उतारोंगे तभी तो कुछ नया भार, कुछ नई महत्वकांक्षाएं, कुछ नया कार्य कर सकोगे। बोझ पर बोझ मत लादो। आपको बहुत कुछ भूलना पड़ेगा। बहुत कुछ क्षमा करना पड़ेगा। आगे बढ़ना है ना, पीछे अटके थोड़े ही रह जाना है।

अब दो बातें करनी है – Forgive और forgo के लिये,

सबसे पहले अपने शारीरिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना है। दूसरा अपने मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना है। जो विचार आपको शांति और प्रसन्नता नहीं दे सकते है उन विचारों को हटा दो। वे विचार व्यर्थ का बोझा है, उस बोझ को अपने मन पर क्यों लादे चल रहे हो?

गुरु रूप में मैं कहता हूं कि हे शिष्य!जागरुक हो जाओं, जाग जाओं।

जागने का अर्थ है – अपने आपमें चैतन्य होना, अपने आपको देखना, अपने आपका परीक्षण करना, अपने आपको ढालना और अपने जीवन के संरचनात्मक श्रेष्ठ लक्ष्य बनाना और उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये संकल्पबद्ध होकर क्रियाशील हो जाना।

ईश्‍वर तो बड़ा दयालु है। उसके हाथ सबके लिये खुले है और उसकी कृपा सबके लिये समान है। दिये तो उसने सबको एक दिन में 24 घण्टे ही है, 60 घड़ी ही दी है। अब इन 60 घड़ियों का तुम कैसा उपयोग करते हो यह बात ईश्‍वर ने तुम पर छोड़ दी है। तुम्हें निर्णय करने की स्वतंत्रता दे दी है।

बस थोड़े विश्राम की आवश्यकता है। विश्राम करोगे तो पुराना बोझ हट जायेगा, पुनः तरोताजा हो जाओंगे। गुरु प्रार्थना का भी यही अर्थ है गुरु चरणों में विश्राम।

लक्ष्य आपने बहुत बड़े बनाये है, फिर सोच लो। बहुत धन चाहिये, बहुत सम्मान चाहिये या फिर जीवन में प्रसन्नता और खुशी।

प्रसन्नता और खुशी कहती है कि जब तुम्हारे मन में संतोष का वास होगा तब हम तुम्हारे भीतर स्थायी वास अवश्य ही कर लेंगे और प्रसन्नता का मूल सूत्र है, अपने लिये करो, साथ ही दूसरों के लिये भी करो। अपने भीतर दया का विकास करो। अपने संस्थान, अपने समाज के लिये कुछ करो। थोड़ा करो, पर अवश्य करो, बूंद-बूंद से मन का अमृत घट आनन्द से अवश्य भरेगा।

तो फिर शुरुआत करने के लिये खुशियों को अपने भीतर स्थापित करने के लिये कल का इंतजार क्यों? एक बात याद रखना, जब तुम अपने भय को प्रकट कर देते हो तो उसी क्षण तुम अपनी शक्ति को समाप्त कर देते हो।

सदैव अपनी जीवन यात्रा के प्रति आभारी रहो, यात्रा का आनन्द लो मेरे मित्र, लक्ष्य तो आयेगा ही।

अपने हृदय पर, मन पर विश्‍वास कीजिये, आपकी यह जिन्दगी जुनुन, जादू, चमत्कार और लक्ष्य से भरी हुई हो।

-नन्द किशोर श्रीमाली

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