Dialogue with loved ones 

अपनों से अपनी बात…

प्रिय आत्मन्,

शुभाशीर्वाद,

आज की बात एक कथा के माध्यम से स्पष्ट करता हूं। एक बार नेवी में एक स्टीमर पर युवाओं का इन्टरव्यू हो रहा था। कप्तान जो इन्टरव्यू ले रहा था, उसने एक युवक से पूछा कि – यदि सागर के बीच में तूफान में यह जहाज फंस जाए तो तुम क्या करोगे?

युवक ने कहा कि मैं समुद्र में लंगर डाल दूंगा।

कप्तान ने फिर कहा कि – और बड़ा तूफान आ जाये तो क्या करोगे?

तो युवक बोला कि दूसरा लंगर डाल दूंगा।

कप्तान ने फिर पूछा कि – और इससे बड़ा तूफान आ जाये तो क्या करोगे?

तीसरा लंगर डाल दूंगा।

यदि और बड़ा तूफान हो और लोग मरने लग जाये, तब क्या करोगे?

युवक ने आत्मविश्‍वास से कहा कि चौथा लंगर डाल दूगा। पांचवा, छठा, सातवां लंगर डाल दूंगा।

कप्तान ने युवक का हाथ रोका और कहा कि तुम इतने लंगर कहां से लाओगे?

इतने तो लंगर हैं भी नहीं।

युवक ने कहा कि – जहां से आप इतने तूफान ला रहे हैं, वहीं से मैं लंगर भी ले आऊंगा।

तो एक बात जान लो कि यह सब ‘तूफान और लंगर’ व्यर्थ  की आशंकाएं हैं, और इन आशंकाओं के रहते हम हर समय बचाव की मुद्रा में ही रहते हैं।

किसी भी कार्य की सफलता के लिये परिश्रम आवश्यक है, और आने वाली बाधाओं के बारे में सोच कर योजना बनाना आवश्यक है, लेकिन हर स्थिति में आशंका करना व्यर्थ है, क्योंकि केवल आशंका से ही कर्म की हानि होती है।

तुम देखना कि तुम्हारे जीवन में अब तक सारे कार्य सम्पूर्ण हुए हैं, लेकिन जब घबराहट में विवेक खो देते हैं तो कुछ ऐसे कार्य हो जाते हैं जिससे विपत्तियां और बढ़ जाती हैं। संकट के समय धैर्य धारण किया जाए तो संकट कुछ समय बाद स्वयं समाप्त हो जाता है। शांत चित्त से सोचने पर उसका समुचित हल भी मिल जाता है। प्रत्येक मनुष्य कहता अवश्य है कि वह धैर्यवान है, पर वास्तव में धैर्य की परीक्षा तो संकटकाल में ही होती है। देखो, ऐसी कोई समस्या नहीं है जिसका हल न हो।

संकट के समय धैर्य कैसे आये? इसके लिये एक ही उपाय है कि हम किसी शक्ति पर, गुरु पर, परमेश्‍वर पर विश्‍वास रखें। दृढ़ आस्था और विश्‍वास होने से संकट के समय में भी साधक न कोई अनुचित बात सोचता है, न अनुचित बात कहता है।

मैं तो उसे ही धार्मिक कहता हूं जो धैर्यवान है। धैर्य और धर्म साथ-साथ चलते हैं। यदि आप धार्मिक हैं तो हर समय धैर्य को अपने साथ रखो।

धार्मिक ही आध्यात्मिक हो सकता है। अध्यात्म और धर्म एक है और अध्यात्म का आधार है – प्रसन्नता। चित्त में प्रसन्नता जरूरी है, और निरन्तर आस्था और विश्‍वास के बलवती होने पर चित की उदग्विनता शांत होती है और चेहरे पर निरन्तर एक मुस्कान रहती है। इसी को ओज कहा जाता है।

आन्तरिक मुस्कान जब चेहरे पर आती है तो उससे आत्मविश्‍वास, संतोष और उल्लास झलकता है। मेरे विचार से मुस्कुराहट ही सफल और सुखी जीवन की घोषणा है।

हमारे स्वभाव का सबसे आवश्यक अंग हंसी और आनन्द है। इस आनन्द का प्रवाह जब परिवार, समाज में होता है तो सब ओर एक खुशहाली का प्रवाह बहने लगता है। हास्य परम आवश्यक है। हास्य से ही आत्मा में प्राण है, जीवन में प्रसन्नता है।

एक मुस्कान से नीरसता दूर हो सकती है। मुस्कान ही जीवन की ज्योति है।

इसे सहजभाव से ग्रहण करो, इसके लिये प्रयत्न न करना पड़े।

खुशी का स्रोत भीतर ही है। मनुष्य मात्र देह नहीं हैं, वह तो देह में विराजमान ‘आत्म शक्ति पुंज’ है जो हमारे पूरे शरीर का संचालन करती है। इसी शक्ति से मन और बुद्धि दोनों क्रियाशील होते हैं, लेकिन जब बाह्य शक्तियों का उपयोग करते हैं तो धीरे-धीरे हमारी बुद्धि की शक्ति, मन की शक्ति क्षीण हो जाती है और तब व्यर्थ के संकल्प आते हैं, विचार आते हैं और हर समय तनाव रहता है, क्योंकि मन अनियन्त्रित हो गया है।

तुम सब ओर देखो, मनुष्य का मन और बुद्धि कितनी निर्बल हो गई है। सबको क्रोध जल्दी आने लगा है, और इसीलिये छोटी-मोटी बाधाओं से भी परेशान हो जाते हैं। अपने आपको खुशी के साथ जोड़ना है। आवश्यकता इस बात कि है कि अपने भीतर की आत्मिक शक्ति से, शक्ति के स्रोत के साथ निरन्तर और निरन्तर श्रद्धा और विश्‍वास के संयुक्त रहें। हजार किलोमीटर दूर बैठे व्यक्ति से तुम बात कर रहे हो लेकिन अपने भीतर बैठे स्व से बात नहीं कर पा रहे हो। उस स्व से बात करो। वही अच्छे विचारों से तुम्हारे मन को संवार लेगा।

मानव क्यों विशेष है? क्योंकि वह मनन करता है, चिन्तन करता है, विवेक शक्ति ही मानव को दूसरे प्राणियों से पृथक करती है और इस विवेक शक्ति को उद्बुद्ध करने वाला ज्ञान ही है। अखण्ड ज्ञान तो ईश्‍वरीय है लेकिन उस ज्ञान को पाने के लिये मन के चिन्तन को, मनन को एकाग्र करना होगा।

श्रद्धा से ही ज्ञान का दीपक प्रज्वलित होता है। क्योंकि जहां श्रद्धा है वहां तर्क समाप्त हो जाता है। याद रखो, तर्क एक ऐसा चौराहा है जहां साधक भटक जाता है। ईश्‍वरीय शक्ति को श्रद्धा के आंगन में ही अनुभव किया जा सकता है। श्रद्धा की भूमि पर ही तीव्र शक्ति का पौधा पल्लवित होता है।

श्रद्धा से ही सद्चित्त और आनन्द की उपलब्धि होती है। तर्क और बुद्धि वहां श्रद्धा को स्पर्श भी नहीं कर पाते हैं।

याद रहे, हम जिस वस्तु का, विचार का, क्रिया का सेवन करते हैं, जिस परिस्थिति में रहकर चिन्तन, मनन करते हैं, इन्द्रियों द्वारा जो कुछ ग्रहण करते हैं, हम वैसे ही होते चले जाते हैं। इसलिये श्रद्धा के साथ पहले यह प्रार्थना आवश्यक है कि – शरीर, मन और बुद्धि को सदैव शुभता ही प्रदान करें। जीवन का सबसे बड़ा धन श्रद्धा ही है। श्रद्धा ही सहारा है, श्रद्धा ही शक्ति है, श्रद्धा ही ईश्‍वर अनुभूति है, श्रद्धा ही प्रेम है।

नन्द किशोर श्रीमाली

My dear disciple, 

Divine blessings!

Today, I am going to explain my point through an anecdote. Once a captain was interviewing a young man for the role of a sailor. The interview went well but the captain had not made up his mind yet. He wanted to gauge the determination, courage of the young man before he selected him for the role of the sailor. An experienced seaman, he knew the water could be choppy at times. 

So, he asked the young man, “If your ship gets stuck in the midst of a storm what would you do?

The young man answered, “I will throw an anchor in the sea to steer my ship to safe waters.”

 The captain was impressed with his answer. Now, he thought to explore his courage some more.  Therefore, he asked, What if a bigger storm threatens you and a sea anchor is not enough! 

The young man said, “ I will throw another sea anchor. The combined force of two anchors will be sufficient to provide stability to the ship amidst the rocky waves.”

The captain agreed with his wisdom. Now, he was inclined to test his tenacity. 

And, he repeated the question, “What if a bigger storm threatened you?”

The young man answered without hesitation.

“I will throw another anchor.”  Not even a single line of worry appeared on his forehead as he answered the question.  

The captain was pleased. He had almost selected him. However, before he announced the news to the young guy, he wants to be 100 per cent sure. 

And he asked again, “Gentleman! What if a really really big storm threatened you and you just couldn’t escape it. What will you do? How will you steer your ship to safety?”

The young man had got the hang of the game by now. He answered, “I will throw as many sea anchors required but I will steer my ship to safety.”

The quick repartee of the young man irritated the captain. In frustration he asked, a ship has only a limited number of sea anchors. You are under the impression that there is an unlimited supply of the sea anchors. 

The young man answered. Thankfully you understand that now. It is true for the storms as well. There are only a limited number of storms and confronting bad weather doesn’t imply that we will be sailing in the rough waters forever. 

This story has a message for all of you who get daunted, scared after experiencing a rough episode in their life. It is just an interlude. All you need to do is it to throw your anchor in the flow of life and remain grounded. 

Anyone who is undergoing a rough patch in your life, you need to throw your anchor in the flow of life to sail smoothly. In simple terms, it means you have to start trusting God who approaches us in the form of Guru. 

As we are having this conversation, I would like to explore the nature of the difficulties in your life. Are you inviting your problems? It may sound difficult to believe but I have seen that you have a tendency to hold on to the unhappy memories all your lives. So much so they form a large chunk of your experience. 

Since you don’t want to commit the same mistakes again you let worries take control of your life, which you shouldn’t but becoming a worry warrior is not the solution. That means when you are facing an unfavourable situation you start viewing it with a magnifying glass and start mistrusting everyone. 

Just like the storms in the story were imaginary most of your anxieties are. However, you overthink about them and gradually they control your attitude to life. Yes, it is important to be critical but being hypercritical where you  judge everyone is not right. If you let your anxieties and worries control you, you will lose your peace of the mind in the process and become suspicious towards everyone.  

Take this moment to do a tiny introspection. You should think if your wishes were fulfilled or not. As you will do this introspection you will realise that God grants all your wishes sooner or later. 

Of course, there will be difficulties and I know you will surmount them with patience and perseverance.   On those few occasions, when you will not be able to overcome challenges, the shortcoming lies in you. You have to understand when you lose patience, you lose your peace of the mind. Your efforts get scattered in various directions due to impatience and you compound your challenges. 

In my interpretation, holding on to patience tightly is the key to success. And, like all good things in life, it should start with yourself. Which means you have to be patient with yourself and not get frustrated if your efforts do not bear fruits.  

I have observed that most of you get impatient in trying circumstances. That means you are short on patience, the virtue of the pious souls. 

. In my opinion, a religious person is a patient person. Such an individual doesn’t get distressed in an unfavourable situation. 

If you are wondering how to hold on to patience when life is being unkind to you? 

Obviously, Guru. 

A patient soul trusts his Guru wholeheartedly. He knows that the Guru will take care of his life’s difficulties. He has stowed his anchor in the Guru. Henceforth, when he has to face a difficult situation his actions and words are measured. He knows with the help of his Guru he is going to tide over this difficulty. 

Today, I am going to ask you who would you call a religious person? Someone who reads the scriptures or the person who trusts the Guru and God. Patience stems from trust. When you have this belief that life will take care of you and you will overcome all the challenges you develop infinite patience. Your approach to life changes. 

You start viewing crisis as an opportunity to undertake a journey within. If the opportunities in the outside world appear to be locked down, you will have to take the journey within to unlock them. That’s called exploring the spiritual side.   

If you ask me how do you recognise a spiritual person? Well, the litmus test is happiness. When this happiness touches your face, it lights your confidence  In my opinion, a genuine smile announces the arrival of a spiritual soul. Not the phoney ones which you showcase in the social gatherings but that genuine curve of a smile. When it touches your lips you experience joy and radiate joy.

Experiencing joy is the most important aspect of our nature. I urge all of you to let that joy flow ceaselessly in your life, in your family, in your society. If you wish to embrace spirituality and imbibe the virtues of patience you have to wholeheartedly welcome the joyful mirth in your life. It banishes anxiety and unnecessary worries. 

You can feel the beauty of your soul when you laugh from your heart. If you want to live happily (who doesn’t?) you have to let that joyful laughter flow. It will enliven your heart, your soul.

The source of happiness lies within you. The reason you are not able to access it as your connection has weakened with your inner being. When you start relying on the outside help to solve your worries, your connection weakens with your source of energy. God is willing to help you but first you have to help yourself. Your strength resides in you and you have to channelise your energy in the right direction.  In the face of an adverse situation if you start crying for help from others you will not be able to access your energy. 

तुम सब ओर देखो, मनुष्य का मन और बुद्धि कितनी निर्बल हो गई है। सबको क्रोध जल्दी आने लगा है, और इसीलिये छोटी-मोटी बाधाओं से भी परेशान हो जाते हैं। अपने आपको खुशी के साथ जोड़ना है। आवश्यकता इस बात कि है कि अपने भीतर की आत्मिक शक्ति से, शक्ति के स्रोत के साथ निरन्तर और निरन्तर श्रद्धा और विश्‍वास के संयुक्त रहें। हजार किलोमीटर दूर बैठे व्यक्ति से तुम बात कर रहे हो लेकिन अपने भीतर बैठे स्व से बात नहीं कर पा रहे हो। उस स्व से बात करो। वही अच्छे विचारों से तुम्हारे मन को संवार लेगा।

Today, I witness you are not able to access your inner strength because you don’t have a handle on your emotions. On a societal level, it gets reflected in huge anger management issues. When small difficulties start making you anxious you have to start connecting with your inner strength.  

The keys to accessing your inner strength are faith and conviction. However big a problem is if you think you can overpower it you can. What you mind believes you can achieve it. Of late, I see you have forgotten the fine art of accessing yourself. So, the next time when you are in the midst of a crisis, smile before you respond. It will loosen you and let you access your inner strength.  You should believe in yourself before you believe others. Where faith goes conviction follows and impossible becomes possible. However, difficult a situation is you can overcome it with the energy of love and faith which will lead to happiness. 

Under all circumstances, you have to remember that your thoughts have the power to define your character, your personality. Be careful of what you think of. If you let apprehensions grow stronger, your inner strength will diminish. On the other hand, if you allow positive thoughts to gain precedence in your mind, you will access the energy of your soul. Your faith is your strength. It unlocks the energy of divine in you, which is selfless love. Revel in it when you find it. Treasure it as it is the talisman you have been looking for.

Nand Kishore Shrimali

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