Dialog with Loved ones – September 2017

अपनों से अपनी बात…
प्रिय आत्मन्,
आशीर्वाद,

 

आज गुरु पूर्णिमा का महोत्सव सम्पन्न हुए करीब दो महीने होने जा रहे हैं, पर उसका अमृत प्रवाह आज भी मेरे हृदय को आप्लावित कर रहा है। आप सभी का अपार उत्साह, जोश, गुरु के प्रति प्रेम और श्रद्धा का भावपूर्ण अतिरेक आनन्दमय था। गुरु और शिष्य के प्रेम की सरयू का प्रवाह सभी ओर प्रवाहित हुआ और श्रीराम की नगरी, अयोध्या गुरुमय हो गई, शिष्यमय हो गई। यह आयोजन हमारे निखिल मंत्र विज्ञान परिवार के लिये नींव का पत्थर, आधार स्तम्भ साबित होगा। मुझे विश्‍वास है कि आने वाले शिविर इससे भी अधिक विशाल होंगे।

 

गुरु पूर्णिमा, अयोध्या महोत्सव को देखकर यह लगता है कि शिविरों में जो शिष्य प्रवाह प्रारम्भ हुआ है अब वह रुक नहीं सकता। जब लाखों-लाखों शिष्य, साधक अपने-अपने स्थानों पर पूजा, साधना, योग, ध्यान, यज्ञ सम्पन्न कर रहे हैं और निरन्तर इस ज्ञान ज्योति को आगे प्रसारित कर रहे हैं। बहुत से नये परिवार जुड़ रहे हैं और जुड़ते रहेंगे। यही हमारे सिद्धाश्रम साधक परिवार की विशेषता है, यहां शिष्य और साधक ही सबसे महत्वपूर्ण सदस्य होते हैं और इससे भी अधिक विशेष बात यह है कि – पूरे के पूरे परिवार जुड़ रहे हैं। स्त्री-पुरुष, बालक-बालिकाएं, युवा सब संगठन का भाग बन रहे हैं। यह स्पष्ट हो गया है कि उनके साधना के मार्ग में केवल मंत्र जप या पुरातन पूजा का भाव ही नहीं है, साधना का मूल भाव आत्मोत्थान, स्वयं की उन्नति, स्वयं के विकास के भाव हैं। साधना शरीर और मन दोनों को प्रसन्न रखने की क्रिया है। मैं बार-बार यही बात कहता हूं कि जो आपका कर्म है, वही आपकी साधना है। कर्म की इस साधना द्वारा ज्ञान, धन, सम्पत्ति आदि सब आ जाते हैं। ये कर्म के भाव आपके स्वयं के मन में जाग्रत होने चाहिए, इसके लिये केवल प्रयास नहीं अपितु अपने आपको सन्नद्ध कर देना है।

 

मैं उस शिविर में आप सभी हजारों लोगों को देख रहा था, वास्तव में, मैं आपको निहार रहा था। पीली गुरु चादर ओढ़े हुए आप बड़े ही सुन्दर लग रहे थे। जब मैं गुरु आह्वान, आरती और समर्पण स्तुति के समय आप सबको एकाग्र भाव से गुरु निखिल से जुड़ते हुए देखता हूं तो मेरे मन में यही बात आती है कि सद्गुरु निखिल की इस बगिया में ये सब खिले हुए पुष्प दिखने में तो सुन्दर हैं ही साथ ही अपनी स्वयं की मनमोहक महक से भी भरपूर हैं और ये पुष्प जहां भी जाएंगे सद्गुरु की सुगन्ध को ही प्रवाहित करेंगे।

 

इस शिविर में मुझे नारी शक्ति में अपार उत्साह दिखा जिस लगन और श्रद्धा से वे कार्यशील थीं और मेरे एक-एक शब्द को ग्रहण कर रही थीं वे पल शिविर के सबसे सुन्दरतम पल थे।

 

नवरात्रि का महापर्व आ रहा है। शक्तिपर्व के रूप में आप सभी इसे मनाते हो। यह बहुत ही सुन्दर बात है लेकिन इस पर्व के प्रारम्भ में, मैं आपको अपनी बात स्पष्ट कहना चाहता हूं।

 

यह हमारा सिद्धाश्रम साधक परिवार है, जिसके पचास हजार घरों में निखिल मंत्र विज्ञान पत्रिका पहुंचती है और आगे पचास हजार और घरों में इसी पत्रिका को आप लोग पढ़ाते हैं, तो मोटे-मोटे तौर पर मेरे इस सिद्धाश्रम साधक परिवार रूपी घर में एक लाख परिवार हैं, जिनका आधार ही सद्गुरु निखिल हैं। जिनके घर में नित्य प्रति गुरु पूजन होता है, गुरु मंत्र का जप होता है। एक लाख परिवार इस समग्र चेतना के यज्ञ में जुड़े हुए हैं। इस परिवार को ही मैं अपनी बात स्पष्ट तौर पर कह रहा हूं क्योंकि वास्तव में आप ही मेरे परिवार के सदस्य हैं। आपसे भिन्न मेरा कोई परिवार नहीं है। हम सब एक सूत्र में पिरोये हुए सदस्य हैं।

 

भगवती जगदम्बा की स्तुति में बड़े ही सुन्दर रूप में देवी का वर्णन बुद्धि, निद्रा, क्षुधा, शक्ति, तृष्णा, जाति, लज्जा, श्रद्धा, कांति, लक्ष्मी, वृत्ति, स्मृति, दया, तुष्टि, मातृ, भ्रांति आदि की अधिष्ठात्री के स्वरूप में आता है। ये सारे तत्व शक्ति तत्व कहे गये हैं। स्त्री तत्व कहे गये हैं। मैं एक छोटा सा प्रश्‍न पूछता हूं कि यदि किसी पुरुष में यह तत्व न हो तो वह पुरुष कितना अधूरा होगा? पुरुष वही है कि जो बुद्धि विद्या, शक्ति, लज्जा, श्रद्धा, दया, पुष्टि, तुष्टि से युक्त हो। वास्तव में कहीं कोई भेद किया ही नहीं गया है तो फिर आज के इस वातावरण में इतना भेद क्यों?

 

हम अपने माता-पिता की संतान हैं और हर माता-पिता का यह कर्त्तव्य है कि वह अपनी संतानों की श्रेष्ठता के लिये कार्य करे। जिस राष्ट्र में संतानों में भेद ‘स्त्री और पुरुष’ के रूप में किया जाता है वह राष्ट्र कभी उन्नति नहीं कर सकता है।

 

नवरात्रि पर्व पर आप सभी इस बात पर विचार करें कि – आप अपनी संतानों के लिये क्या कर रहे हैं? और अधिक क्या कर सकते हैं?

 

आप अपनी संतानों को, पुत्र या पुत्री को कितनी ही सम्पत्ति दे दें, कितना ही धन दे दें, वह धन, सम्पति स्थायी नहीं है, वह तो समाप्त होगी ही होगी, वह तो खर्च होगी ही होगी। तो हम अपनी संतानों को क्या प्रदान करें? हम अपनी संतानों को श्रेष्ठ से श्रेष्ठ शिक्षा प्रदान कराएं और उससे भी अधिक उन्हें वैचारिक स्वतंत्रता प्रदान करें। मैं जब बार-बार कहता हूं कि हर व्यक्ति का चिन्तन अलग-अलग होता है, तो उसके पीछे मेरा यही भाव होता है कि तुम कभी अपनी संतान में विभेद मत करना। आपके चाहे दो पुत्र हों, दो पुत्रियां हों, एक पुत्री हो, एक पुत्र हो उन्हें अच्छी से अच्छी शिक्षा प्रदान करवाना और उन्हें यही प्रेरणा देना कि वे आत्मनिर्भर बनें, उन्हें अपने निर्णय लेने देना।

 

जब आप स्वयं किसी के दास बनने को तैयार नहीं हैं, गुरु से आपने यही सीखा है कि स्वतंत्र रहना है, मन से और विचारों से तो फिर यही गुरु का ज्ञान अपनी संतानों को भी दें। वे आत्मनिर्भर बनें, उनकी सोच का तरीका स्वयं का हो और वे अपने जीवन में छोटे-बड़े निर्णय स्वयं लेने में समर्थ हो सकें।

 

किसी भी संतान को यह अच्छा नहीं लगता है कि वे अपने माता-पिता पर भार बनें, वे बिल्कुल नहीं चाहते हैं कि आप उन्हें जीवनभर पालते रहें। जिस प्रकार एक पंछी बड़ा होने पर अपने पंखों के बल पर गगन में उड़ान भरना चाहता है, उसी प्रकार हमारी संतानें भी इतनी समर्थ हों कि वे अपने पंखों के बल पर इस संसार रूपी आकाश में स्वतंत्र उड़ान भर सकें।

 

गुरु से जुड़े हुए हैं तो कुछ रूढ़िवादी विचारों से, परम्परागत विचारों से मुक्त हो जाईये। यह सोचना छोड़ दीजिये कि पुत्री तो पराया धन है, पुत्र अपना है। अरे! पुत्र क्या और पुत्री क्या किसी की भी तुलना आप धन से कैसे कर सकते हो? हमारी संतानें कोई सम्पत्ति थोड़े हैं। हमारे पुत्र-पुत्री तो जीवन्त, जाग्रत व्यक्तित्व हैं। वे सभी इस जीवन रूपी वन में अपना-अपना स्वयं का घौंसला बनाएंगे, वे ही तो इस सृष्टि की सुन्दरता का, नवीनता का स्वरूप है।

 

बड़े आनन्द के साथ अपने परिवार के साथ, नारी शक्ति, स्त्री शक्ति, ज्ञान शक्ति, क्रिया शक्ति, इच्छा शक्ति के इस पर्व नवरात्रि को सम्पन्न करें।

 

शुभाशीर्वाद…
सस्नेह आपका अपना
नन्दकिशोर श्रीमाली
Dialog with Loved Ones …

 

Dear Loved One,

 

Divine Blessings,

 

It has been nearly two months since the Guru Poornima Mahotsava, but the divine joy of that moment is still continuing to exhilarate my heart.

 

The emotional overflow of energy, enthusiasm, love and reverence from all of you rejoiced me. The love of Guru and the disciple towards each other merged together. This pious stream of holy love flowed everywhere, and engulfed Ayodhya, the city of Lord Rama within this divine nectar. This organization built a strong foundation to our Nikhil Mantra Vigyan family. I firmly believe that the upcoming Sadhana-Camps will be even more magnificent.

 

The magnificence of Guru Purnima, the Ayodhya festival indicates that this strong devout flow within the Sadhana Camps will now continue unabated. Millions of disciples and Sadhaks perform worship, Sadhana, Yoga, Meditation and Yagyas at their own locations. They continue to propagate this divine knowledge to others. Many new families continue to join this divine stream., and will continue to do so. This is the main characteristic of our Siddhashram Sadhak family, wherein the disciples and Sadhaks are its most important members. Another important fact is the joining of entire families. All of the family members, menfolk & womenfolk, along with their children are becoming part of our  organization. This gives a clear message that their Sadhana path does not just include meditation or mantra-chanting. The basic root of Sadhana is the self-contemplation, along with elevation and development of the self. Sadhana is the process to grant joy to both body and the mind. I repeatedly stress that whatever you do, that itself is your Sadhana. The Sadhana practice of Karma enables you to obtain knowledge-wisdom, wealth and prosperity. These feelings of Karma should awaken within your own mind. Mere efforts are not sufficient, rather you stay ever-alert to ignite this passion.

 

I was looking at the multitude of thousands in that Sadhana-camp, rather I was admiring all of you. You looked very beautiful adorned in the Yellow Guru-chadar. When I watch you connecting with Guru Nikhil with full focus during the Guru-Invocation, Guru-Aarti and Dedication-Prayer, I always adore the beauty of all these flowers in the divine garden of SadGuru Nikhil. I am certain that these fragrant flowers will certainly spread the sweet fragrance of SadGuru wherever they go.

 

I noticed tremendous enthusiasm of the women-folk in this Sadhana-camp. They were working with full passion and reverence, and were infusing each and every one of my word. Those were the finest moments during the Sadhana-Camp.

 

The Navraatri Mahaparv is fast approaching. All of you celebrate this as Shakti Parva. This is a very beautiful thought, but I wish to give some advice at the onset of this festival.

 

Ours is the Siddhashram Sadhak family. The Nikhil Mantra Vigyan magazine reaches fifty thousand houses and you spread this magazine to another fifty thousand houses. So One Lac families join together in this Siddhashram Sadhak family under the divine shade of SadGuru Nikhil. All of these families chant Guru Mantra daily, and perform Guru-worship. One lac families are connected to this yagna of divine consciousness. I am repeatedly stressing on the word “family” since in reality, all of you are members of  my family. I do not have any other family. A single thread connects all of us within this family.

 

The prayer to Bhagwati Goddess Jagdamba beautifully invokes the divine forms of intelligence, sleep, hunger, power, desire, caste, shyness, glory, wealth, instinct, memory, kindness, satisfaction, maternal, confusion etc. All of these are the Shakti power elements. They are also termed as the Female elements. Let me ask a simple question – How much incomplete a person will be if he does not have these elements? A man is the one who possesses intellect, knowledge, power, shyness, reverence, compassion, affirmation and satisfaction. Really, there is no difference at all. Then why do we impose such a differentiation in today’s world?

 

We are the children of our parents and every parent has the duty to work for the development and growth of their children. A nation which differentiates between the “girl and boy” children, can never prosper.

 

All of you should contemplate at Navraatri festival –  What are you doing for your children? And what more can you do?

 

Whatever wealth you give to your children, sons or daughters, whatever money you give, that wealth or property is not permanent or stable. It will definitely get finished, it will certainly get spent. Then what should we provide to our children? We should provide the best possible education to our children, and more than that, we should teach them to think independently. When I repeatedly stress that each person’s thinking is different from others, then I mean that you should never discriminate among your offsprings. You may have two sons, two daughters, one daughter or one son. Provide them the best possible education and inspire them to become independent and self-sufficient,  teach them to take their own decisions.

 

When you are not ready to become anyone’s slave yourself, when your Guru has also taught you to develop an independent mind full of independent thoughts, then you should provide this knowledge-wisdom obtained from the Guru to your children. They should become self-sufficient, they should have their own independent way of thinking. They should attain capability to take all kinds of decisions – big or small in their own lives.

 

No child wants to become a burden on their parents. They definitely do not want to stay dependent on you throughout their entire life. Just as a bird wishes to fly in the sky on the strength of its wings, similarly our offsprings should be so capable to take their own independent flight in this world on the strength of their own wings.

 

If you are connected with the Guru, then you should get rid of the conservative views and traditional ideas. Do not think of your daughter as someone else’ wealth and the son as your own. How can you compare a son or daughter with wealth or money? Our children are not our wealth or money. They are a living, active personalities. All of them will build their own nest in this forest of life, they are the beauty of this creation, the nature of the novelty.

 

Accomplish this Navraatri with great joy, with your family, with female power, with knowledge power, with action power and with the power of your will.

 

Divine blessings …

 

Cordially yours,

 

Nand Kishore Shrimali
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