Dialog with loved ones – September 2019

अपनों से अपनी बात…
प्रिय आत्मन्, शुभाशीर्वाद, पूरे भावों के साथ अयोध्या में भगवान श्रीराम की छत्र छाया में दादा गुरुदेव निखिल की महिमामयी उपस्थिति में हमने गुरु पूर्णिमा महोत्सव सम्पन्न किया। गुरु पूर्णिमा केवल एक उत्सव नहीं, मेरी आत्मा का दिवस होता है। इस दिवस पर मुझे मेरे कर्त्तव्यों का स्मरण विशेष रूप से आता है और मैं स्वयं यह मंथन करता हूं कि पूरे वर्ष मैंने अपने शिष्यों के लिये क्या कार्य किये हैं?  मेरे शिष्य किस मार्ग पर गतिशील है और मैं अपने लक्ष्यों को और अधिक उच्च से उच्चतर बनाता जाता हूं।

हर शिष्य के हृदय से भेंट करता हूं। अपने प्रण को याद करता हुआ, अपनी जिम्मेदारी को पूरे आनन्द के साथ धारण करता हूं।

तुम्हारा संकल्प, तुम्हारी मानसिक दृढ़ता, तुम्हारी सोच, तुम्हारे विचार, तुम्हारा उत्साह, तुम्हारे भाव- गुरुमय, राममय, शक्तिमय, समर्पणमय होते जा रहे हैं, यह मैं अपने रक्त कण-कण में अनुभव करता हूं।

मैं चाहता हूं कि तुम अपने जीवन में आने वाले समय में अपने आप को आत्मिक रूप से दृढ़ रखो और जो कुछ भी मन में भरा हुआ है, उसे निकाल दो।

तुम यह जान लो कि तुम्हारे रोने-धोने से तुम्हारा जीवन श्रेष्ठ नहीं हो सकेगा। तुम शोक और उदासी को छोड़कर मेरा हाथ पकड़कर इस संसार में चलो। तुम्हें इस संसार में किसी के प्रति घृणा या द्वेष का भाव नहीं रखना है। इस संसार में रहते हुए ईश्‍वर और गुरु के साथ प्रेम करते हुए, जगत से भी प्रेम करना है। अपने आप से भी प्रेम करना है।

कुछ बातों का तुम विशेष रूप से संकल्प अवश्य लो, विचार करते रहो। यह सब तुम्हारे लिये है – * मेरे अन्दर अनन्त शक्ति का निवास है, और मैं उसे अवश्य प्राप्त करूंगा।

* मेरे गुरु और मैं एक ही हैं। वे मुझ में हैं और मैं उन में हूं। * मैं अपने आपको समर्पित करता हूं, मैं गुरु के प्रति दृढ़ भक्ति रखता हूं।

* मेरे विचारों में अद्भुत शक्ति है। * मैं संकल्प लेता हूं कि मैं सदैव अपने गुरु, लक्ष्य और मंत्र को याद रखूंगा।

* मैं नित्य प्रति जप, प्रार्थना और आत्म विश्‍लेषण अवश्य करूंगा।

* मैं अपने भीतर नम्रता, प्रेम, सेवा, सहनशीलता, सामंजस्य को प्रकट करूंगा, और यह निरन्तर प्रयास करता रहूंगा कि मेरे भीतर से क्रोध, ईर्ष्या, संकीर्णता, दूर हो जाएं।

* मैं अपनी साधना, गुरु और स्वयं के प्रति सत्य निष्ठ रहूंगा।

तुम्हारे ये संकल्प तुम्हें भौतिक और आध्यात्मिक जीवन में उच्चत्तर स्थितियों की ओर अवश्य ले जायेंगे। तुम मेरे शिष्य हो, तो शिष्य रूप में तुम्हें गुरु आज्ञा का पालन निरन्तर करना चाहिए, और मेरी इन बातों को  सदैव याद रखना।

मैं स्पष्ट देख रहा हूं कि तुम्हारे भीतर शक्तियों का विकास हो रहा है। इसका उपयोग सदैव अपने हित के लिये ही करना, समाज हित के लिये करना।

तुम्हारी इच्छाशक्ति प्रबल हो रही है, अपनी इस इच्छाशक्ति का प्रयोग अपनी साधना की प्रगति में ही करना। निरन्तर साधना आवश्यक है। तुम अटल भाग्य या प्रारब्ध में कभी विश्‍वास मत करना। तुम अपनी शक्ति से अपने प्रारब्ध को बदल सकते हो। अपने भाग्य को बदल सकते हो।

इस संसार में सबसे अधिक प्रवाह आलोचनाओं का ही होता है। तुम्हें यह ध्यान रखना है कि तुम किसी भी प्रकार की आलोचना को, जो तुम्हारी साधना के प्रति है, व्यक्तित्व के प्रति है, तुम्हारे इष्ट के प्रति है, उन्हें स्वीकार मत करना और किसी भी आलोचना को मन के भीतर तो घुसने ही मत देना। इस हेतु मैं आपसे बहुत दृढ़ता की अपेक्षा रखता हूं।

तुम शिष्य हो और शिष्य सदैव बालक होता है। उसमें सीखने की भावना होती है। उस बालक की तरह पूरे भाव के साथ गुरु मंत्र, श्‍लोक, साधना का उच्चारण करना और साथ ही साथ उनका अर्थ भी समझना। मैं तुम्हें मशीन नहीं, जीवन्त जाग्रत शक्तिमान साधक बनाने की प्रक्रिया कर रहा हूं।

यह जान लो, शक्ति तुम्हारे भीतर है। बस थोड़ा सा आत्म विश्‍वास और अभ्यास चाहिये। निरन्तर अभ्यासरत रहो।

जो तुम्हारा चिन्तन है, जो तुम सोचते हो, तो उस कार्य के बारे में, उस कार्य के फल के बारे में पूरे विश्‍वास के साथ चिन्तन करो। जो तुम सोचोगे वह अवश्य ही घटित होगा।

ईश्‍वरीय ज्योति जो पूर्णत्व का स्वरूप है, उसके दर्शन तुम्हारी आत्मा में अवश्य प्राप्त होंगे। तुम पूरे भावों के साथ निखिल पथ पर बढ़ते चलो।

तुम्हारे भीतर ज्ञान की ज्योति निरन्तर प्रकाशित रहे, इस ज्ञान के प्रकाश में तुम अपना जीवन आलोकित करो। पवित्रता, प्रेम और भक्ति के साथ शक्ति की साधना में तत्पर रहो। शक्ति प्राप्ति का लक्ष्य जीवन में निर्भयता प्राप्त करना है। आने वाले समय में नवरात्रि के नौ दिन पूरी तरह से साधना में संलग्न रहना। तुम्हें अपने भीतर गुरु ज्योति और शक्ति का प्रकाश अवश्य अनुभव होगा। अपने मन की इच्छा शक्ति को दुर्बल मत करना। तुम जो अनावश्यक भय को अपने मन में बिठा देते हो उस कारण साधना से प्राप्त ‘इच्छा शक्ति’ पूर्ण रूप से गतिशील नहीं हो पाती।

तुम जैसे भी हो, जो भी हो, जो भी कार्य कर रहे हो, जिस क्षेत्र में भी हो, पूर्ण आत्मविश्‍वास के साथ, इच्छा शक्ति के साथ भय रहित होकर कार्य करते रहो। अपने मन में किसी भी प्रकार का दबाव मत रखो। गुरु के सामने बिल्कुल स्पष्ट रहो, अपने मन के कपाट पूरी तरह से खोल दो। तुम्हें अपनी स्वयं की अन्तर्ज्योति और इष्ट का सान्निध्य अवश्य प्राप्त होगा।

तुम्हारे और मेरे लिये यह प्रसन्नता की बात है कि हम निखिल मंत्र विज्ञान की दसवीं वर्षगांठ इस महीने मना रहे हैं। इन दस वर्षों में ‘तुम्हारा और मेरा’ जो मिलन हुआ है, वह मिलन आध्यात्मिक प्रगति का दिशा सूचक है। इसी मार्ग पर हम निरन्तर चलने के लिये कृत संकल्प हो रहे हैं।

जीवन में ज्ञान की ज्योति सदैव प्रकाशित रहे, आपको अपने कर्मों का फल इसी जीवन में शीघ्र प्राप्त हो, तुम्हारे प्रयत्न सफल हों, तुम्हारी कामनाएं पूर्ण हों, आध्यात्मिक दिव्यता से परिपूर्ण हों…।

नन्द किशोर श्रीमाली

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