Dialog with loved ones – November 2019

अपनों से अपनी बात…

प्रिय आत्मन्,

शुभाशीर्वाद,

नवरात्रि और दीपावली का खूब आनन्द आया। आपने भी इस उत्सव को सम्पन्न किया है। यह देव के प्रति, साध्य के प्रति तुम्हारा प्रेम है। ज्ञान के साथ-साथ भक्ति के मार्ग पर निरन्तर गतिशील हो। जीवन का सबसे बड़ा पाठ प्रेम ही है, जो प्रेम में मग्न हो जाता है, वह सबकुछ पा लेता है।

हजारों ख्याहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले।

बहुत निकले मेरे अरमां मगर फिर भी तो कम निकले॥

जीवन के प्रत्येक क्षण को देखो, उसे देखने के लिये तुम्हारे अन्तर्मन का प्रकाश सदैव तुम्हारे पास है। जो कार्य तुमने पिछले वर्ष किये थे उसके फल अब मिलने प्रारम्भ हुए हैं, जैसे पिछले वर्ष पौधा रोपा उसमें फूल अब आने शुरु हुए हैं।

याद रखो अपनी प्रार्थना को प्रतीक्षा के साथ करते रहो। तुम्हें बीज बोने हैं, फूल अपने आप आयेंगे।

यह धैर्य ही साधना का प्राण है। धैर्य ही जीवन की सबसे बड़ी शक्ति है। समय से पूर्व तो कुछ होगा नहीं, विकास को भी समय लगता है। तुम धन्य हो, जो साधना के पथ पर धैर्य से आगे बढ़ रहे हो।

क्या आशा? निराशा? इसके बीच में ही तो मार्ग चल रहा है। जीवन पथ टेढ़ा अवश्य है, तभी तो इसमें पुरूषार्थ को चुनौती है और जीत का आनन्द भी है।

सदैव याद रखना जो चल पड़ा है वह आधा जीत ही गया है। हारता वही है जो चलता ही नहीं है। कहीं हार, कहीं पराजय, कहीं बाधा आई है लेकिन यह तो पृष्ठ भूमि है, इसी में तो जीत पूरी तरह से खिल कर उभरती है।

सुख और शांति की यात्रा पर हम सब चल रहे हैं, अन्तर्मन में गहरी शांति है और यह सबसे बड़ी सम्पदा है। जिनके पास सब कुछ है, लेकिन शांति और आनन्द नहीं है, तो वे समृद्धि में भी दरिद्र हैं।

इसी वास्तविक सम्पदा की यात्रा हम और तुम एक दूसरे के हाथ थामे कर रहे हैं। इस जीवन की सतह पर जो समृद्धि दिख रही है उसकी उपलब्धि पर गर्व मत करना। शांति और आनन्द का धन वास्तविक सम्पदा है। जो तुमसे कोई छीन नहीं सकता, क्योंकि यह किसी का दिया हुआ नहीं है। इसे तो तुमने स्वयं अपने अन्तर्मन से प्राप्त किया है, और जो तुम्हें अपने मन से प्राप्त हुआ है उसे कौन ले सकता है। उसे तो कभी भी नहीं खो सकते हैं।

भीतर ही आनन्द है, भीतर ही शांति है। जीवन का प्रत्येक चरण इस ज्ञान सम्पदा की ओर ही जाए।

तुम अपने कार्य में निरन्तर चिन्ता करते रहते हो, पर जितनी ज्यादा चिन्ता करोगे चिन्तन उतना ही कठिन हो जायेगा। चिन्ता और चिन्तन दो विरोधी दिशाएं हैं। बस तुम्हें इतना करना है कि अपने मन को शांत रखने हेतु जो भी योग्य है उसके प्रति अन्तदृष्टि जाग्रत रखो।

शांत अन्तर्मन से सहज ही कर्तव्य करने में संलग्न हो जाते हैं। कर्म करने में भी आनन्द आने लगता है, और फिर अन्तःकरण से तुम्हें स्वयं अपना पथ और पथ का प्रकाश दोनों ही प्राप्त हो जाते हैं।

मैं तुम्हें बार-बार सलाह नहीं दूंगा। क्या करना है, कैसे करना है, कब करना है, क्यों करना है? इस सम्बन्ध में तुम्हारे अन्तर्मन से जो सलाह आये, जो विचार आये, जो भाव आये उसी को मानकर अपना कर्म करते रहो। मेरी केवल यही सलाह है कि तुम परिपूर्णतः शांत हो जाओ। शांत मन से दिव्य आदेश प्राप्त होगा। शांत मन से जो आदेश प्राप्त होगा वह सदैव अचूक होगा।

केवल विचार से मत जियो, अपनी अन्तरदृष्टि, अपने अन्तर्ज्ञान से जियो। सब कुछ ठीक हो रहा है और सब कुछ अच्छा ही होगा।

एक बात सदैव याद रखना, जीवन तो सदा वर्तमान में है। वह न अतीत में है, न भविष्य में है। जो है वह वर्तमान में है अन्यथा कभी नहीं है। इसलिये कि वर्तमान को जाना जा सकता है। वर्तमान को जिया जा सकता है। तुम विचार से जीना चाहते हो, और विचार की गति कभी अतीत की ओर, कभी भविष्य की ओर होती है। विचार वर्तमान में नहीं रहता, वर्तमान में तो क्रिया रहती है। वर्तमान में जीवन्तता है।

अनुभव अतीत है और अनुभूति वर्तमान है। अनुभव तो हो गया, बीत गया, चला गया क्योंकि अनुभव अतीत है, अनुभूति वर्तमान है। अनुभव विचार है और विचार हमेशा भटकाते हैं। वर्तमान प्रत्यक्ष है, एक अनुभूति है क्योंकि जहां निर्विचार हो वहां आनन्द है।

क्यों भविष्य के बारे में बार-बार विचार किया जाए? क्यों मन में भ्रान्ति उत्पन्न की जाए? जानना है तो वर्तमान को जानना, इस जीवन को जानना। उसे जान लेने से ही अमृतत्व भी जान लिया जाता है।

जीवन शाश्‍वत् है। इसका न आदि है, न अंत है।

तुम्हारा जीवन प्रेम के आकाश में स्वतंत्रता का जीवन बने, यही प्रभु से मेरी कामना है।

नये को सीखो, अपरिचित को परिचित बनाओ। अज्ञात से जान-पहचान करो।

निश्‍चय ही तुम्हें इसके लिये बदलना होगा, पुरानी आदतें टूटेंगी तो उन्हें टूटने दो। स्वयं के बदलाव से भयभीत मत होओ। परिवर्तन सदा शुभ है और जड़ता सदा अशुभ।

और सदैव अतीत की ओर देखना बहुत खतरनाक है क्योंकि इससे भविष्य के सृजन में बाधा पड़ती है। पीछे नहीं है जीवन, जीवन है आगे, और आगे, और आगे।

जहां भी रहो सदा शुभ और सुन्दर को खोजो। सब जगह सुन्दर का वास है, बस देखने वाली आंख हमारे पास हो। जो हम देखते हैं वही तो हम हो जाते हैं। शुभ की ओर ही देखना है, तो शुभ ही शुभ होगा।

बड़ी तुम्हारी जिज्ञासाएं हैं, बड़े तुम्हारे प्रश्‍न हैं। विचारों का गहरा बोझ है। अतीत की स्मृतियां और भविष्य की आशंका, इन सबके बीच तुम्हें सब बोझ उतार कर आत्मज्ञान के मार्ग पर चलना है। अपने हृदय की अतल गहराईयों में उतरना है, जहां शांति, संतोष और प्रेम का वास है।

आगे हम छत्तीसगढ़ में जीवन अमृत आनन्द पान की साधना करेंगे और नववर्ष की पूर्व संध्या पर स्वयं का आत्म अभिषेक सम्पन्न करेंगे।

बस तुम केवल शरीर से नहीं मन से भी मेरे पास आ जाना। मुझे तुम्हारा केवल शरीर नहीं चाहिए, मुझे तुम्हारा मन भी चाहिए। उस मन में विराजमान आत्मा के साथ मेरी आत्मा को संयुक्त करना चाहता हूं।

बस तुम आ जाना।
 

नन्द किशोर श्रीमाली

error: Jai Gurudev!