Dialog with Loved ones – May 2018

अपनों से अपनी बात…

प्रिय आत्मन्,
आशीर्वाद,

 

गुरु जन्मोत्सव का आप सभी को बहुत-बहुत आशीर्वाद, आपने अपने-अपने स्थानों पर निखिल जन्मोत्सव सम्पन्न किया होगा। यह निखिल उत्सव ही हमारी हृदय क्षमता का आधार है। इसी अमृत कुण्ड से निरन्तर हमें अमृत तत्व प्राप्त होता रहता है।

 

गुरु हमारे मन में स्थापित हैं और मन हमारे शरीर के भीतर रहकर उसे नियंत्रित करता है। इसलिए, गुरु को मन में स्थित रखिए, क्योंकि गुरु आपके मन को सींचते हैं, जिससे आपका मन रसमय, सुगंधमय और ऊर्जामय रहता है। मन में जब गुरु की छवि बस जाती है तब आत्मविश्‍वास और उमंग आपके साथ हो जाते हैं। रास्ता दूर तो हो सकता है, पर कठिन नहीं होता है। इसलिए, गुरु को अपने मन से कभी विलग नहीं होने देना है।

 

शिष्य और साधकों का यह प्रश्‍न मेरे सामने बार-बार उपस्थित होता है। वे कहते हैं कि मैं जीवन में अव्वल बनना चाहता हूं। अपने काम में प्रवृत्त रहना चाहता हूं। इसके लिये प्रयास भी करता हूं लेकिन मुझे सफलता नहीं मिलती, क्या बात है?

 

जानते हो संसार में सबसे बड़ी लक्ष्मी क्या है? जहां से लक्ष्मी की उत्पत्ति होती है, उसका आधार स्तम्भ क्या है? उसका आधार स्तम्भ एक शब्द में बताया जाए तो वह आधार स्तम्भ है – आस्था।

 

जीवन में काया और माया का खेल नित्य चलता रहता है। काया तो शरीर है जिसके द्वारा कार्य किए जाते हैं, और कार्य ही तो माया है। माया की ही तरह उपलब्धियां हमें मोहित करती हैं और मुग्ध भी। एक के बाद एक हम नई उपलब्धियां तय करते हैं और उन्हें प्राप्त करने के लिए काया से संघर्ष करते हैं, पर कई बार संघर्ष भी पूरा नहीं पड़ता है। सफलता आंख मिचौली का खेल खेलती है और शिष्यों और साधकों का मन निराशा के भंवर में उलझ जाता है।

 

ऐसा इसलिए होता है क्योंकि साधकों के मन में आस्था की कमी होती है। आस्था का अर्थ है प्रबल विश्‍वास, और यह विश्‍वास निराशा-जनित नहीं, वरन् आशा की नींव पर आधारित है। आशा, उस आस को कहते हैं जिसे पता है कि कल आज से बेहतर होगा।

 

यह आस्था किस पर रखेंगे आप? आस्था तो आपको अपने मन पर रखनी होगी और इसी मन में गुरु का निवास है। आस्था, विश्‍वास से कई कदम बढ़कर है क्योंकि आस्था दृढ़ है- चट्टान की तरह। आस्था जब मन में बस जाती है, उसके बाद जीवन में आनन्द का प्रवाह शुरू होता है और आभार में हृदय नत-मस्तक हो जाता है।

 

यह आभार का भाव साधक में गुरु के लिए, इष्ट के लिए और स्वयं के लिए भी आ सकता है। सोचिए परिस्थितियां विपरीत होती हैं तो उस क्षण आपके मन में दो भाव आते हैं- मेरे साथ ऐसा क्यों? दूसरा, मेरी गुरु भक्ति में क्या त्रुटि रह गई?

 

ये दोनों ही भाव आस्थावान मन में नहीं आ सकते हैं। कहीं न कहीं आपके मन में निष्ठा और श्रद्धा में कमी रह गई है।

 

जीवन के खेल में काया और माया साथ-साथ चलते रहते हैं। माया का जाल ही संसार है, जिसे आप ‘मैं’ और ‘मेरा’ शब्दों द्वारा सम्बोधित करते हैं। माया ने संसार में सबको घेरा हुआ है और इसी कारण से सफलता महत्त्वपूर्ण हो जाती है। इस जीवन में जो भी वान्छनीय है, वह लक्ष्मी द्वारा निर्धारित है और लक्ष्मी उद्यम के साथ-साथ आस्थावान को प्राप्त होती है।

 

आप अगर धनवान बनना चाहें, बलवान बनना चाहें, प्रसिद्धि प्राप्त करना चाहें, विद्या में सफलता प्राप्त करना चाहें, साहित्यकार बनना चाहें, लेखक बनना चाहें, चित्रकार बनना चाहें, कलाकार बनना चाहें, गीतकार बनना चाहें, व्यापारी बनना चाहें और इनमें बहुत ऊपर उठना चाहें तो आपके पास इन सबका आधार आस्था होना परम आवश्यक है। इसी आस्था के दो सहयोगी हैं – विश्‍वास और भक्ति।

 

आस्था के बिना किसी भी क्षेत्र में, किसी भी स्थान पर उन्नति संभव ही नहीं है। आस्था सदैव ऊपर उठाती है, यही प्रगति और विकास का मार्ग है और जब आस्था समाप्त हो जाती है तो उन्नति नीचे की ओर जाने लगती है। टूट कर धराशायी होने लगती है। आस्था ही उन्नति को जीवन्त और जाग्रत रखती है।

 

एक पुष्प खिलता है तो वह आकाश की ओर उठता है, अपनी पूरी ताकत के साथ और जब वह मुरझाता है तो नीचे की ओर गिर जाता है। मनुष्य भी आस्था के साथ जीवित रहता है तो आकाश की ओर उठ खड़ा होता है और जब विश्‍वास, आस्था और भक्ति से जीर्ण-क्षीण हो जाता है तो वह नीचे की ओर गिरकर मिट्टी में मिल जाता है।

 

तो काया और माया की यह यात्रा भी आस्था के साथ ही आनन्द प्रदायक होती है। आस्था में डूबा हुआ व्यक्ति सदैव और सदैव ऊपर आकाश की ओर उम्मीद के साथ, आशा के साथ देखता है, आगे की ओर देखता है। आस्था से भरा हुआ मन ही आनन्दमय मन है, खिला हुआ मन है। जहां आस्था है वहां सुख है, यह आनन्दमय सुख भौतिक वस्तुओं पर आधारित नहीं है। यह आनन्दमय सुख तो केवल और केवल आस्था से ही प्राप्त होता है।

 

सोचो जब आपके चित्त में विषाद आता है, कोई ऐसी घटना घट जाती है जिसके घटने का कोई अनुमान भी नहीं था तो यह हृदय पत्थर की भांति हो जाता है और नीचे की तरफ गिरने लगता है। जब आप विषाद में होते हैं तो ऐसा अनुभव करते हैं कि तुम्हारे हृदय पर हजारों मनों का बोझ पड़ा हुआ है। बोझे से भरे हृदय को भूमि ही खींचती है। वह नीचे जाने के लिये आतुर हो जाता है। अब विचार करो, आनन्द का। यह आनन्द तो सदैव आस्था के साथ रहेगा, आनन्द सदैव विकास के साथ रहता है। आनन्द सदैव उर्ध्वगामी होता है। आनन्द जब आस्था से युक्त होता है तो हमारे विश्‍वास में अभिवृद्धि होती है… आनन्द और आस्था से भरा मन उर्ध्वगामी होता है।

 

आस्था वह अमृत है, जहां स्वयं से परिचय हो जाता है। बहुत सरल बात है, आपको अपने आप से परिचय करना है तो आपके अपने भीतर आस्था का आनन्द सागर लहराना चाहिए। इस आस्था के भाव से ही शक्ति उत्पन्न होती है। हमारे भीतर ओज का भाव उत्पन्न होता है, हम उन्नति के मार्ग पर बढ़ते हैं। हम ईश्‍वर का आभार प्रकट करते है।

 

आस्था के साथ आगे बढ़ते रहिये – गुरु, परमात्मा आपको आनन्द से परिपूर्ण करने के लिये हरक्षण आपके साथ हैं।

 

नन्द किशोर श्रीमाली

Dialog with loved ones …

Dear loved one,

Divine Blessings,

Heartiest blessings to all of you on Guru Janmotsava (Birthday). I am sure that you certainly would have organized Nikhil Janmotsava at your own places. This Nikhil celebration forms the basic foundation of potential capabilities within our hearts. This divine nectar pot continues to provide elixir to us all.

Guru is set-up within our own mind, and our mind controls our body. Therefore, you should continue to embed Guru within your mind, because Guru activates your mind, ensuring that it remains within an enhanced  joyful, peaceful and energized state. Immersion-Implanting of Guru within your mind leads to rise of confidence and excitement. Your path might be a bit lengthy, but it is never a difficult one to transcend. Therefore you should never separate Guru from your mind.

The disciples and Sadhaks always ask me this one question. They wish to attain perfection, and to achieve this goal, they continue to make multiple continuous efforts with high motivation. However, the success continues to elude them, and they want to know the reason for this failure.

Do you know what is the greatest wealth (Lakshmi) in the world? What is the foundation-origin of Lakshmi? If we were to describe the basis of Lakshmi in one word, then that word is – Faith.

Life is a continuous interplay of materialism and illusion. Materialism refers to our physical body, which acts as the primary agent to perform various tasks, and these actions are nothing else but the illusion itself. We continue to get fascinated and enchanted by our illusory achievements. We continuously struggle against our body to achieve these goals, but sometimes we fail in our endeavors. This failure deeply frustrates the disciples and the Sadhaks.

The reason for this despair is lack of Faith in the mind of the Sadhaks. Faith is built upon complete Trust, and Trust, in turn, is founded upon strong principles of  Hope. Hope is the Optimism that tomorrow will certainly be better than today.

Who will you keep faith on? You will need to have faith on your own mind, where Guru resides. Faith is much stronger than Trust, since it is rock-solid. The arrival of faith within the mind initiates a divine flow of  joy into our life, and one bows in gratitude unto the divine spirit.

The  Sadhak may express this gratitude towards his Guru, the Divine deity and even his own self.  Try to remember the moment when you were struggling against obstacles. You only had two thoughts – Why me? And, What my devotion lacked?

Both of these emotions cannot enter into a mind which is full of  faith. Certainly this points to a lack of reverence and belief somewhere.

Both materialism and illusion stay interlocked with each other during this journey of life. This world, which you address using words like “I” and “Mine”, is nothing else but illusion. Everyone is surrounded by Illusion, and thus, it is vitally important to obtain success. All our needs and wishes are controlled and determined by Lakshmi. Only one who combines efforts with faith, gains qualification to beget Lakshmi.

Faith is the primary prerequisite to have, if you wish to reach the pinnacle of success in any field – to become wealthy, become strong, achieve fame, succeed in education, become a writer, painter, artist, poet, businessman or anyone else. Trust and Devotion are two close companions of Faith.

Progress in any field is generally impossible in absence of faith. Faith always elevates, it is the key to growth and development. The reduction in faith encourages the Failure to start showing its ugly face. Faith ensures continuous progression and advancement.

When a flower blossoms, it rises towards the sky, with its full strength. However it falls down upon fading. Similarly a person living with full faith, continues to elevate upwards. However, any adverse impact on faith, trust or devotion makes him bite the dust.

Thus this journey of materialism and illusion is  ever joyful in presence of full faith. Faith drives the person to turn our gaze ahead towards growth,  full of hope and optimism. A mind full of faith is  ever  joyful and blossoming. Faith leads to joy. This joyful happiness cannot be based on any physical object. It can only be attained by faith alone.

Consider, whenever any misfortune strikes,  or any unexpected unforeseen event occurs, our heart freezes to ice. This cold heart descends into a downward journey into a yawning abyss. Our heart always feel overwhelmed, whenever we fall into despair. This infinite burden drives us down, and knocks us out. Now think of joy! The joy always resides in close proximity of faith and growth. Joy always elevates upwards. Joy combined with faith enhances our belief … A heart full of joy and belief always rises upwards.

Faith is that elixir, which enables one to comprehend  one’s own self. It is really very simple. To understand your own self, you should have the nectar of faith within your own self. This faith drives generation of divine energy within us. It enhances our intensity and enables us to progress further on the path of our own growth.  We express gratitude to God.

 

Keep progressing with faith – Guru and God is always with you, to fill you with divine joy.

 

Nand Kishore Shrimali

error: Jai Gurudev!