Dialog with loved ones – June 2019
अपनों से अपनी बात…
प्रिय आत्मन्,
प्रसन्नो भव, आशीर्वाद,
आप और मैं कई बार मिलते है, बार-बार मिलते है, कई बार वार्तालाप होता है और कई बार मौन भी रहते हैं। यह मिलन ही हम दोनों को आन्तरिक प्रसन्नता देता है, यह मिलन की घड़ी ही अपने-आप में सम्पूर्ण होती है। जब कोई विचार, कोई द्वंद्व नहीं होता। विचार और द्वंद रहित होना ही आनन्द और प्रसन्नता का सागर मन में छलकाना है।
इस मन में आनन्द का सागर बार-बार छलके, अमृत से मन लबालब रहे।
नदी का नीर, पोखर का पानी, झील का जल, सागर का सलील, सब एक ही तो है। एक ही तत्व से बने हैं, और उस तत्व का नाम है जल। नदी, पोखर, झील या समुद्र की अपनी तो कोई पहचान नहीं होती है। उनकी पहचान तो जल से ही होती है। किसी में कम जल, किसी में ज्यादा। किसी में रुका हुआ तो, किसी में बहता हुआ। सब एक ही तो है। एक ही तत्व से बने हैं, सब जल बिन्दुओं के संग्रह ही तो है। जल जीवन तत्व को उद्घाटित करता है, इसीलिये कहा गया है – जल ही जीवन है, हमारे शरीर में 70% अंश जल से बना हुआ है, ईश्वर द्वारा प्रदत्त यह जीवन भी जल बिन्दुओं की तरह श्वासों का एक संग्रह है, ईश्वर का उपहार है। जल की तरह हमारे मन में भी निरन्तर और निरन्तर तरंगें उठती रहती हैं। कुछ तरंगों को साहिल अर्थात् किनारा मिल जाता है और मन की कुछ तरंगें बीच में ही टूट जाती है। इन मन की तरंगों में कभी उफान आता है तो कभी उतार, इस मन में ऊपर उठने की क्रिया तो निरन्तर गतिशील होती है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति में यही चाहत होती है कि, मैं अपने जीवन को सार्थक बनाऊं।
देखो, इस जीवन में उफान और उतार दोनों ही चलते रहते हैं। कभी उतार आ जाए तो यह समझना कि अब उफान अवश्य आयेगा, इस जीवन का नियम है कि यहां पर सुख और दुःख, खुशी और गम जोड़े में चलते हैं, बिल्कुल सागर की लहरों में आने वाले और उफान और उतार की तरह।
इसलिये जब उतार आए उस समय तुम हताश, निराश मत होना, क्योंकि उफान थोड़ी ही दूरी पर खड़ा मिलेगा। जीवन में यह जो उफान और उतार का खेल है, इसे ही सांसारिक भाषा में सुख-दुख कहते हैं, पर जब तुम इस खेल में कुछ ज्यादा उलझ जाते हो, उस समय तुम अपने मन के सागर को एक छोटा सा पोखर बना लेते हो, सोचने लगते हो कि, अब नया क्या रखा है जीवन में?
इस सोच के साथ तुम्हारे जीवन में उत्साह कम होने लगता है और तुम्हारे मन का जो सागर है उसमें ना कोई तरंग बचती है ना कोई उमंग, बस वही दिन वही रात, इसे ही मन की थकान कहा गया है।
इसलिये तुम कभी टी.वी का कान उमेठते हो, कभी अपनी चीजों को बार-बार स्पर्श करते हो, कभी नाहक अपने ऊपर गुस्सा करते हो, कभी दूसरों पर गुस्सा करते हो। खीजते हो, चिढ़ते हो और मन ही मन उद्वेलित रहते हो।
अगर मन को पुनः सागर जल की भांति विशाल करना है, जिसमें तरंगे उठे, गति रहे और वह अपनी मौज में बहे तो इसके लिए जरूरी है कि, तुम अपने मन के अंदर छुपी प्रसन्नता को स्पर्श करो, प्रसन्नता के भाव से मन का अभिषेक करो।
तुम सब ने व्यर्थ की चिन्ताएं बहुत ओढ़ रखी है। तुमने उफान-उतार, सुख-दुःख, खुशी-गम जैसे शब्द बार-बार पकड़ रखें हैं। एक विशेष बात यह है कि जिस चीज का पीछा किया जाता है, वह हमेशा आगे भागती रहती है। आप खुशी और सुख की तलाश में भागते रहते हो, भागते रहते हो। सोचो क्या तुम्हें यह जीवन खुशियों का पीछा करने के लिये ही मिला है और कहां है खुशी? किसी चीज में है खुशी? इसकी धारणा तुम आज तक पूर्ण रूप से स्थापित भी नहीं कर पाये हो।
सुनते हैं खुशी भी है जमाने में कोई चीजहम ढूढ़ते फिरते हैं, किधर है कहां है?
सुख की तलाश में कहां जाओगे? तुम्हारे भीतर ही तो एक प्रेम का सागर है, एक प्रेम की नदी है, और उठती तरंगें तुम्हारे मन के प्रत्येक कोने को स्पर्श करना चाहती है। तुमने अपने मन के आनन्द की इस नदी को भुला दिया है, तभी तो किसी अन्य वस्तु का पीछा कर रहे हो।
कहां है आनन्द? बाहर है या भीतर है? लोगों के कहने से और दो चार बाधाएं आने से तुमने यह समझ लिया है कि, अब क्या है इस जीवन में?
सोचते हो कि दुनिया ने सारे जुल्म तुम्हारे ऊपर ही ढाए हैं। इस कारण अपने आपको बहुत रुखा-सूखा अनुभव कर रहे हो।
तुम्हारे जीवन में हजारों मोड़ आते हैं और हर मोड़ पर कुछ निर्णय लेना पड़ता है। तुमने जिस समय जो निर्णय लिया था, वह यदि निर्णय अपने मन से लिया था तो उसका परिणाम सदैव ही अच्छा रहेगा। तुम्हें अपनी जिन्दगी में किसी भी बात का पछतावा नहीं होना चाहिए, और क्यों करें पछतावा? तुम जो वर्तमान में हो उसी रुप में तो सर्वश्रेष्ठ हो। तुमने अपने जीवन को अपने हाथों से संवारा है। बस तुम अपने जीवन से प्रेम करते रहो।
अब इस प्रेम के लिये अपने भीतर के सागर को मन के सारे कोनो से स्पर्श कराना पड़ेगा, उसे विचारों का प्रवाह देना पड़ेगा। तुम्हें ही उसमें प्रसन्नता का ज्वार उत्पन्न करना पड़ेगा।
यह जीवन हमें खुशियों का हाथ थाम कर साथ चलने के लिए मिला है। इसलिए उन खुशियों को हमें अपने अंदर ढूंढना पड़ेगा। हमारे भीतर प्रसन्नता की नदी है, जब तक उस गंगाजल में हम डुबकी नहीं लगाएंगे, उससे अपने मन का अभिषेक नहीं करेंगे, तब तक हमारा मन प्रसन्न नहीं होगा।
मेरी बात ध्यान से सुनना और समझना, प्रसन्नता प्राप्त करना और प्रसन्न होना बहुत ही भिन्न-भिन्न विषय है।
यदि तुम प्रसन्नता की तलाश करने जाओगे तो मृग तृष्णा की तरह प्रसन्नता आगे-आगे बढ़ती जायेगी। इसलिये तुम रुक कर विश्राम भाव के साथ, विराम भाव के साथ, गुरु भाव के साथ यह विचार अवश्य करो कि – प्रसन्नता कहां है? क्या प्रसन्नता बाहर है, अथवा प्रसन्नता भीतर है? प्रसन्नता भीतर है, भीतर है…
तुम यदि जीवन में शान्ति चाहते हो तो आनन्द भाव में डूब जाओ। हर पल को जियो। हर पल जियो। मैं तुम्हें आनन्द से लबालब भरने के लिए आतुर हूं।नन्द किशोर श्रीमाली
Dialog with Loved Ones…
Dear loved one,
May you stay happy!
We both yearn to meet with each other because we love to be in each other’s company. n those meetings, conversations occur but a meaningful silence is equally precious. Both communicate the feelings we have for each other and help us become whole and joyful.
Joy is the inner state of the soul and to attain it we have to erase conflicts arising in our minds. Like ripples in a peaceful ocean, thoughts have an uncanny ability to disturb our inner peace and joy. The challenge before us is to maintain our equanimity and the state of joy which ebbs and flows with the flow of our thoughts.
To understand how joy works within us, it is helpful to understand the mechanism of water. Earth has life because it has water. Without water, life will not thrive. Just the way water pools in different water bodies or flows unhindered in our life joy ebbs and flows in response to our thoughts. Some days we feel happy and buoyant and on others we are sad. Yet, there is an innate desire in all of us to become successful which has been equated with attaining joy.
In our pursuit of success, we miss the bigger picture, which is pursuing joy. Such is the nature of success it eludes. It betrays us when we expect it the most and it happens when we just don’t expect it at all. Success can take us by surprise! Pursuing it wholeheartedly is a good idea but losing joy in the bargain is not such a happy thought!
Happiness and sadness move in circles. They are fraternal twins. Whenever despair engulfs you, you need to remember that happiness will be just hiding behind the shadows. When we focus too much on happiness we miss the beat, the pulse of change, which is after all not such a good idea because you lose perspective and start thinking ‘why me?”
Like the waves of tide joys and sorrows often related to success touches us. Maintaining our nonchalance is the only way out. However, when we let the wave of negative thoughts shadow our inner joy we miss the bigger picture and wonder if life has lost its meaning and perspective for us, which is not true in most cases.
Yet, the negative flow of thoughts has a tendency to rob you of your joy and energy. You suddenly start feeling sad and the pent-up anger escapes out in multiple ways. At times you’ll start clinging to your possessions and you may get antsy for no specific reason.
In my view, our sadness is linked to our nonacceptance of failures. As joy recedes in your heart, you start feeling unhappy and start chasing it, which takes you to a wild-goose chase. By the time we realize happiness can’t be bought or grabbed it is quite late and we’ve lost precious years pursuing it. Finally, we have to find happiness in our heart because that’s where it is. Right within us. It is called the tranquility.
Therefore, the quest for happiness can never happen externally. It is called love. A few troubles should not ruffle your inner peace and joy. Problems are just like roadblocks. They are nothing more than a bend. It is important to go with the flow. Keep focusing on your happiness in all circumstances. Joy will follow.
The beauty of life is to live totally. Therefore, we have to find the methods which will help us get in sync with happiness lying deep within us. This will not happen as long as you chase happiness. The moment you drop the chase and become at peace with yourself, you have attained joy. The key to joy lies in living every moment to the fullest. I am there to guide you on your path to joy. Go ahead and take the first step.