Dialog with Loved Ones – January 2018

अपनों से अपनी बात…
प्रिय आत्मन्,
आशीर्वाद,

 

धर्मार्थकाममोक्षाणं शरीरं साधनं यतः।
सर्वकार्येष्वन्तरङ्ग शरीरस्य हि रक्षणम्॥

 

धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष – इन चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति के लिये नीरोगी तथा स्वस्थ शरीर ही मुख्य साधन है। इसलिये अपने शरीर और मन की रक्षा अवश्य करनी चाहिये।

 

आज नववर्ष के शुभअवसर पर मुझे यह बात विशेष रूप से कहनी पड़ रही है कि जीवन का सबसे बड़ा धु्रव सत्य यह शरीर है और इस शरीर में ही हमारे मन, प्राण, सारी इन्द्रियों का वास है। हम धर्म, अर्थ, काम और मुक्ति (मोक्ष) की सारी क्रियाएं इसी शरीर के माध्यम से ही कर सकते है। ईश्‍वर ने अहेतु कृपा कर हमें यह शरीर प्रदान किया कि हम श्रेष्ठ धर्म के अनुसार आचरण करें, हम अपने जीवन में नित्य-नित्य नवीन अर्थ प्राप्त करें। अपने जीवन में नये-नये लक्ष्य बनाएं और इन नये-नये लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये काम अर्थात् क्रिया करते रहें।

 

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि – हमारा आचरण, हमारे अर्थ और हमारी क्रियाएं हमें मुक्ति अर्थात् मोक्ष प्रदान कराने वाली हों। हमारे आचरण से, हर क्रिया से हमें प्रसन्नता प्राप्त हो, ऐसा ही तो हमारे जीवन में भाव होना चाहिए। विचार करें, क्या हमारा जीवन इस प्रकार के भावों से चल रहा है अथवा हम उल्टी दिशा में जा रहे है। क्या हमारी क्रियाएं हमें और अधिक बंधन में डाल रही है? क्या हमने जीवन का अर्थ कुछ वस्तुएं, कुछ स्थान एकत्र करना ही मान लिया है और इन सब के बीच में हम अपने शरीर का मूल धर्म आत्म आनन्द भूल ही गये हैं? इतना तो निश्‍चित है कि स्वस्थ शरीर में स्वस्थ चित्त निवास करता है।

 

केन्द्र बिन्दु हमारा मन है। अब आज आप सब विचार करो कि – इस नये वर्ष में हमें अपने चित्त के अनुसार चलना है अथवा चित्त को अपने अनुसार चलाना है।

 

इसका सबसे अधिक सही उत्तर तुम्हारा मन ही दे सकता है और मन की परिभाषा है जो तुम्हारे चित्त और तुम्हारी बुद्धि को जोड़ता है। वह मन बड़ा ही सूक्ष्म होते हुए भी तुम्हारे भीतर सब ओर से व्याप्त है। इस मन की शक्ति महान् है, इस महाशक्ति के द्वारा तुम अपने आपको ज्ञान मार्ग पर, मुक्ति के मार्ग पर, आनन्द के मार्ग पर गतिशील कर सकते हो।

 

शरीर ही आधारभूत सत्य है और इस शरीर को हम पल-पल देख रहे है, अनुभव कर रहे हैं और यही हमारे पास एक मात्र साधन है। यदि शरीर हमारा स्वस्थ होगा तो हम चारों पुरुषार्थ पूर्णता के साथ सम्पन्न कर सकते हैं और यही हमारे इस जीवन की सार्थकता हो सकती है।

 

अरे! स्वस्थ शरीर तो श्रेष्ठतम उपहार है जो ईश्‍वर ने सबसे बड़ा वरदान दिया है।

 

इस शरीर की क्षमता को बढ़ाने के लिये हमारे चित्त की वृत्तियों पर नियन्त्रण कर हमें मन को उस दिशा में ले जाना पड़ेगा जहां हमारे चित्त और शरीर में एक सांमजस्य बने। मन ऐसा धागा है जो इस चित्त और शरीर को जोड़कर रखता है। यह मनस्वी भाव की क्रिया है। मन बड़ा ही उदार और सहज है, यह हर स्थिति में शांत ही रहता है। हमारा मन कभी भटकता नहीं है, हमारा चित्त भटकता है और यह मन उस चित्त को बार-बार खींच कर लाता है और आपकी बुद्धि से जोड़ देता है।

 

कई बार आपने नववर्ष के प्रारम्भ में बड़े-बड़े संकल्प लिये उसमें से बहुत से संकल्प अधूरे रह गये। मेरे विचार से ये सारे संकल्प अधूरे इसलिये रह गये कि – हमने अपने मन को सुना नहीं, उसकी बात को समझा नहीं और अपनी चित्त प्रवृत्तियों को पचास दिशा में जाने दिया। अपनी चित्त की प्रवृत्तियों का जबरन निरोध नहीं करना है। लेकिन उन्हें सही दिशा देना आवश्यक है। जब आपका चित्त, आपकी बुद्धि के साथ कार्य करेगा तो मन बड़ा प्रसन्न होगा। वह आपको और अधिक क्रियाशील बनायेगा। वह आपको और अधिक आनन्दित बनायेगा। वह मन आपके शरीर को और अधिक स्वस्थ रखेगा।

 

इसके लिये सबसे सरल उपाय अपने मन को स्वाधीन बनाना है, उसे स्वतंत्र करना है। आपका सुन्दर निराला प्रेममय मन प्रवृत्तियों के अधीन कहीं दबा पड़ा है। बड़ा ही कमजोर हो गया है, उसे सहलाना है, संवारना है, उसका प्रथम चरण (डींरसश) है – ईश्‍वर ध्यान और ईश्‍वर ध्यान का प्रथम चरण है – पूजा।  पूजा के माध्यम से आप अपनी चित्त वृत्तियों पर नियन्त्रण करने का एक सामर्थ्य प्राप्त करते हैं और अपने आपको कुछ क्षणों के लिये ईश्‍वर और गुरु के समक्ष समर्पित कर देते हैं।

 

पूजा के पश्‍चात् दूसरा चरण(डींरसश) आती है वह चरण साधना कहलाती है। तब आप अपने चित्त को और अधिक एकाग्र करते है और अपनी बुद्धि को भी उसी दिशा में लगा देते हैं। साधना आपके अन्दर आशा का भाव जगाती है, आपके संकल्प को दृढ़ करती है, आपकी हताशा को समाप्त करती है। अपने जीवन में सफलता के लिये आप और अधिक प्रयासरत होते हैं। आपका संकल्प दृढ़ से दृढ़तर होता जाता है और आपको अपने कार्यों में सफलता मिलने लगती है। लेकिन यहीं पर अपने आपको रोक मत देना।

 

साधना से उच्चस्तर (डींरसश) है – ध्यान। ध्यान वह स्टेज है जहां हम मंत्र जप, अपना आसन, अपने आस-पास का वातावरण, सामने रखा विग्रह, सब कुछ भूल जाते हैं और हमारे चित्त में एक विशेष ऊर्जा स्रोत उद्भूत होने लगता है जिसे शास्त्रों ने अमृत या आनन्द कहा है। वह आनन्द का भाव हमें आत्मविभोर कर देता है।

 

ध्यान में हम अपने स्वयं के अस्तित्व को, स्थान को भूल जाते हैं। ये स्थिति कुछ क्षणों की ही होती है, ध्यान घण्टे, दो घण्टे का नहीं होता है। साधना में कुछ क्षणों की स्थिति ध्यान की आती है। उन क्षणों में हमारे भीतर नवीनता का सृजन होता है और हम अपने शरीर के सारे दोषों को समाप्त करने का अमृत आस्वादन प्राप्त करते हैं और हमारा विष निकल जाता है। तब जो विशेष शक्ति प्राप्त होती है, उसे ईश्‍वरीय आशीर्वाद, ईश कृपा कहा गया है, जो हमारे भीतर ही मन रूप में स्थापित है, ध्यान उसका भाव है।

 

प्रयास कर ध्यान नहीं लगाया जा सकता है। जब आप प्रेम से ईश्‍वर की, गुरु की, अपने देव की, अपने इष्ट की साधना करते हैं तो साधना में आप मग्न होकर ध्यान के महासागर में उतर जाते हैं। उन क्षणों में अपने चित्त को विलीन कर देना है।

 

यही क्रिया है, यही भाव है जिसके द्वारा यह शरीर पूर्ण स्वस्थ, निरोगी हो सकता है। हमारे संकल्पों को दृढ़ता प्राप्त हो सकती है और हमें अपने रूखे-सूखे जीवन में नवीनता का, सृजनता का भाव प्राप्त हो जाता है।

 

नियम से पूजा करें, नियम से साधना करें, अपने आपको अपने इष्ट के प्रति अपने गुरु के प्रति समर्पित कर दे। ‘संयमेन मन आचरणः’ संयम से, अपने प्रत्यन से, अपने चित्त और आचरण को नियन्त्रित करें। आपका मन बड़ा ही प्यारा है। प्रेम से भरा है, करुणा से भरपूर है। उसे एकाग्र करिए, स्वयं में आनन्दित रहें, एकाग्र भाव से गुरु ईश्‍वर का चिन्तन करें। नववर्ष पर मंगल आशीर्वाद….

 

सस्नेह
नन्दकिशोर श्रीमाली

Dialog with Loved Ones …

Dear Loved One,

Divine Blessings,

 

Dharmaarthakaamamokhsaanam Shareeram Saadhanam YataH |

Sarvakaaryekshvantaranga Shareerasya Hi Rakshanam ||

 

Dharma-Faith, Artha-Wealth, Kaama-Desires and Moksha-Salvation – The sole medium to achieve these four golden objectives-Purushaarths is a fully healthy and fit body. We should always take care to protect our body and mind.

Today, on the auspicious occasion of New Year, I have to specifically tell you that the greatest realization of life is this body. This body is the abode of all our senses-feelings, mind and soul. We have to use this medium of body to perform all activities to achieve the golden objectives of Faith, Wealth, Desires and Salvation. Lord Almighty blessed us through this body to act in accordance with noble ethics and faith, and regularly obtain new kinds of wealth. We should determine new types of goals in our life and keep performing various activities to achieve these goals.

The most significant fact is that –  our conduct, our wealth and our actions should be tuned to grant us liberation i.e. salvation. The core purpose of our life should be to obtain joy from each action and activity of our life. You should ponder – Is our life flowing towards this prupose, or are we going in the opposite direction? Are our actions tying us up in more bondages-knots? Has our purpose of life reduced to collection of  some things and some places? Has this thinking distracted us from joy, the original purpose of human life.   It is definitely certain that a healthy mind resides in a healthy body.

Our mind is the focal point. Today, all of you have to consider – Do we want to lead our life in the new year according to our senses, or will we rein in our senses?

Only your mind can provide the best answer to this query. Mind is the linking bridge which connects your senses together with your intellect. This mind  is very subtle, but it is spread across within your own self. This mind is highly powerful , and you can tread yourself on the path of knowledge, liberation and joy through this great power of mind.

The existence of body is the basic truth and we can see, feel and experience this body at every moment of our life. This is our sole medium. We can fully accomplish the four golden objectives Purushaarths, only if our body is  healthy. This will enable us to give a meaning to our life.

Hey! The healthy body is the best boon that God has gifted us.

To enhance the capabilities of this body, we will have to control our senses and take them in that direction where both senses and mind resonate together in unison. The mind is the vital thread connecting the senses and body. This is the expression of the mental process. The mind is very generous and comfortable, it remains calm in every type of situation. Our mind never wanders, our senses wanders around and this mind repeatedly reaches out to those senses and combine them with your intellect.

In the past, you have taken great resolutions at the beginning of the new year and many of those resolutions stayed incomplete. In my opinion all of  these resolutions remained incomplete because – We did not listen to our mind, we did not understand its perspective-viewpoint, and we let our senses wonder around in fifty different directions. You do not need to forcibly control the tendencies of your senses. However, it is important to give them the right direction. Your mind will be very glad when your senses partner together with your intellect. It will enhance your capabilities and potential. It will grant you much more joy. This mind will make your body healthier.

The easiest way to achieve this state is to liberate your mind, and to  give it full freedom. Your beautiful unique mind is currently suppressed under various tendencies. It has become very weak, and needs proper care and nourishment. The first stage to accomplish this is – Meditation of the Divine; and the initial step of meditation is – Prayer-Worship. You gain strength to control your senses-tendencies through worship, and you dedicate yourself to God and Guru for a few moments.

The second stage after Prayer-Worship is called  Sadhana. It enables you to concentrate your attention deeper on your senses and molds your intellect also in the same direction. The Sadhana awakens the optimistic feeling of hope inside you, strengthens your resolve, and terminates your frustration. You become more energetic to obtain success. Your firm determination becomes more stronger, and you achieve success in your goals. However, you should not stop yourself at this point.

Dhyaan-meditation is the next higher stage after Sadhana. At this Meditation stage, we forget everything – our mantra chanting, our asana, our surroundings, the deity, everything. We lose within ourselves and a special energy source starts emanating from our mind. Our holy scriptures have termed this as the Joy. This feeling of Joy energizes and pervades our soul.

We lose our own existence in meditation and lose track of time and place.  This golden situation occurs only for a few moments, not hours. Such moments of meditation arise during the Sadhana. New creation is created within our own self during those golden moments, and we taste divine nectar to terminate all our faults and deficiencies. All of our toxicities get  eliminated out. We attain a special divine power, which has been called as the Divine blessings.  This exists within our own inner self, and meditation is its expression.

You cannot achieve Dhyaan-meditation by physical attempts. When you lovingly perform Sadhana  of God, Guru, your deity, then during the depths of Sadhana, you enter the ocean of meditation. You should dissolve your mind and senses completely during those golden moments.

This then is the process, the feeling, through which you can completely cure your body and make it fully healthy. Our resolves become more firm and a divine sense of creation-novelty enters our mundane-rough life.

You should worship in proper routine, perform Sadhana with full discipline, and dedicate yourself to your divine God and Guru. “Sanyamena Mana AacharanaH”  i.e. disciple your senses and conduct with restraint and actions. Your beautiful mind is very lovely. It is full of love and compassion. Concentrate it, remain joyful and meditate on Guru-God with full focus. Divine Blessings for the New Year …..

 

Cordially yours,

Nand Kishore Shrimali

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