Dialog with loved ones – August 2019

अपनों से अपनी बात…
प्रिय आत्मन्,
शुभाशीर्वाद,
एक कथा है जो मैं बार-बार पढ़ता हूं और हर बार एक नवीन अर्थ निकलता है। आपको भी सुनाता हूं।
एक यात्रा में थका हुआ पथिक एक वृक्ष के नीचे विश्राम करने हेतु बैठा, उसे क्या मालूम था कि यह कल्पवृक्ष है। उसकी इच्छा हुई कि थोड़ा पानी मिल जाये, प्यासा था, आश्‍चर्य की बात पीने के लिये पानी मिल गया। फिर सोने का विचार आया तो तत्काल सोने के लिये सुन्दर शैय्या आ गई। शाम हो गई। चारों ओर निर्जन जंगल को देखा और विचार आया कि कहीं कोई शेर नहीं आ जाये और वास्तव में शेर आ गया और उसे समाप्त कर दिया।
यह हमारा मन भी कल्पतरू के समान ही है। तुम्हारे मन में उठ रही भावनाएं ही शक्ति के रूप में परिवर्तित होती हैं। साधक के मन में पूर्ण विश्‍वास, निर्भयता, आशा और कल्याणकारी भाव ही होने चाहिए। तभी उसे अनन्त वरदान और शक्ति अवश्य ही प्राप्त हो सकती है।
साधना तो सभी करते हैं पर सिद्धि नहीं मिल पाती। सिद्धि का सीधा अर्थ है, लक्ष्य की प्राप्ति, और इस लक्ष्य प्राप्ति में लगन और धुन बहुत ही मूल्यवान है। आखिर हम हैं क्या? इस जीवन पथ के यात्री हैं और हम ऐसी यात्रा पर जा रहे हैं, जिसमें मार्ग बहुत लम्बा और दुरूह लगता है, पर रास्ते में तुम्हें कुछ नया, कुछ अलग, कुछ विशेष दिखाई दे तो तुम बीच रास्ते थोड़े ही उतर जाते हो। रास्ते में मिलने वाली नदियां, रेगिस्तान, झरने आदि सिद्धियों की एक झलक है, और इनसे तुम और अधिक ऊर्जा से ओत-प्रोत हो जाते हो। जब तुम्हें लगता है मेरा मार्ग सही है तो फिर धैर्य के साथ इस पर चलते रहना है।
हर व्यक्ति किसी न किसी रूप से अज्ञानी अवश्य होता है। उस अज्ञान को मिटाना ही तो पूर्ण सिद्धि का मार्ग है, इस हेतु अज्ञान धीरे-धीरे जायेगा पर अपने जीवन में अधैर्य को बिल्कुल स्थान नहीं देना है। इस जीवन यात्रा के मार्ग में मार्गदर्शक अर्थात् मार्गदर्शक गुरु का अनुसरण करने का तुमने निश्‍चय कर लिया है तो निश्‍चित भाव से उनका अनुसरण करो।
बहुत अधिक सोच-विचार क्यों करते हो? अपनी बुद्धि से अपने जीवन में इतना अचड़ा-पचड़ा, कचरा क्यों फैला रहे हो? जहां बुद्धि का प्रवेश साधना में हो जाता है वहां भक्ति कम हो जाती है, और जहां भक्ति कम हो जाती है, वहां प्रगति धीमी हो जाती है।
हर साधक को अपना संकल्प सदैव याद रखना चाहिये। प्रश्‍न यह नहीं है कि तुमने कितनी साधना की है, कितनी बार की है। मूल बात यह है कि क्या तुम्हें अपना संकल्प याद है? जो संकल्प पहले दिन किया था, उस संकल्प को पांच हजारवें दिन भी याद रखो। सिद्धि तो अवश्य ही प्राप्त होगी। क्या प्रगति हो रही है? कैसी प्रगति है? इसका लेखा-जोखा तुम खुद कैसे कर सकते हो? तुमने तो सिद्धियों के क्षेत्र में गुरु कृपा से प्रवेश किया है तो उस मार्ग में कितनी प्रगति हुई है, यह बतलाना गुरु का कार्य है।
तुम्हारा कार्य ‘मंत्र-जप और साधना’ पूर्ण मनोभाव के साथ करना है। मैं देख रहा हूं कि सिद्धियां तुम्हें प्राप्त हो रही हैं। बस अभी भी भीतर ही भीतर भय और असुरक्षा है, इस कारण तुम अशान्त हो जाते हो, क्रोधित हो जाते हो।
तुम्हें गरीबी से डर लगता है, मृत्यु से डर लगता है, नौकरी छूट जाने के भय से घबराहट होती है। अनेक बातों से भयभीत होते हो। भीतर ही भीतर अशांत रहते हो। फिर भी सुखी रहना चाहते हो। देखो अज्ञान से भय का जन्म होता है। भय जीवन को नष्ट कर देता है। भय हमें चिन्ता और चिन्तन को मजबूर करता है। भय से हमारी दृष्टि दोष पूर्ण हो जाती है।
मन में झुंझलाहट और क्रोध साधनात्मक प्रगति में बाधक है इसलिये भीतर के क्रोध और झुंझलाहट को तुम्हें स्वयं हटाना है। तुम अपने तन-मन को एक लय में कर दो, यह गुरु का आह्वान है। सब अच्छा हो जायेगा।
जिस साधना के पथ पर तुम चल रहे हो, उसमें हार मानने से काम नहीं चलेगा। तुम्हें थकने की स्वतंत्रता है, पर हार मानने की स्वतंत्रता नहीं है। तुम्हें याद है ना जब अंधेरा सबसे अधिक घना होता है, उसके बाद ही भोर की पहली किरण आती है। अभी तुम्हारे लिये गुरु मंत्र आवश्यक है, देव मंत्र आवश्यक है, उसे बार-बार मत बदलो। देखों दो सौ फीट खोदने से जल प्राप्त होता है, एक-एक फीट दो सौ जगह भी खोद दिया तो केवल गड्ढ़े ही होंगे, ये गड्ढ़े निराशा के प्रतीक हैं क्योंकि साधनात्मक प्रगति को लेकर तुम चिन्ता बहुत करते हो।
अपनी साधनात्मक उन्नति के लिये तुमने गुरु का हाथ थामा है तो गुरु तुम्हें अवश्य ही हाथ पकड़ कर लक्ष्य तक ले जायेंगे। बस तुमने अपने सिर पर चिन्ताओं की जो गठरी संभाल कर रखी हुई है उसे गुरु को दे दो। केवल यह कहने से काम थोड़े ही चलेगा ‘‘अब सौंप दिया सब भार तुम्हारे हाथों में’’। तुम्हें आन्तरिक मन से पूर्णता के साथ समर्पण करना है। समर्पण में बड़ी शक्ति है, समर्पण में प्रेम है, प्रेम जीवन की बंजर जमीन को उर्वर बना सकता है। प्रेम तो आत्मा की अन्तरः भावना है। जिस स्थिति में आत्मा सभी तनाव से मुक्त हो जाती है। प्रेम की अवस्था में आत्मा बोझ और श्रम को अपने से अलग हटा देती है। तब कोई चिन्ता का अस्तित्व ही नहीं रहता।
सदैव याद रखो कि मैं ईश्‍वर का, ब्रह्म का अंश हूं और इसे इसी जीवन में व्यवस्थित करना है। तुम जो प्रार्थना करते हो, जप करते हो, उस समय केवल अपने इष्ट का रूप ही तुम्हारे मन में रहना चाहिये। प्रार्थना का अर्थ ही है कि जिससे प्रार्थना की जाए उसकी ओर ध्यान लगा रहे। जप किया जाता है, आध्यात्मिक शक्ति को जगाने के लिये और प्रार्थना उसी शक्ति को किसी विशेष और अभीष्ट इच्छापूर्ति में लगाने के लिये होती है। इसलिये जप एकाग्रता और ध्यान के पश्‍चात् प्रार्थना करो।
अपनी ओर से पूरा परिश्रम करो। यदि कार्य सिद्धि न भी हो तो भी प्रयत्न तो करना ही पड़ेगा। मानसिक सन्तुलन रखकर सफलता और विफलता की परवाह किये बिना प्रयत्न करते रहना। यह जीवन ईश्‍वर ने कार्य करने के लिये ही प्रदान किया है। सफलता तो अवश्य प्राप्त होगी। आखिर ईश्‍वर हमसे रुष्ट थोड़े ही हैं। हमारा जप, ध्यान, प्रार्थना उसी के प्रति समर्पित है।
बहुत नजदीक आ गए हो तुम सिद्धियों के, क्योंकि तुमने दीक्षा के साथ रक्षा भी पाई है। सिद्धियां चाहते हो न, तो खुद को माध्यम बनाओ। तुम्हें याद रखना है कि शक्ति तुम्हारे माध्यम से प्रकट होगी। उस ज्वाला को संभालने के लिए तुम्हें गुरु की शक्ति चाहिए।
बस सौंप दो तुम स्वयं को, मंत्र जप साधना तो तुम्हें स्वयं ही करनी है।
सदैव तुम्हारा, आशीर्वाद… नन्द किशोर श्रीमाली
In conversation with my disciples

My dear disciple,

I am going to tell you my favourite story. I often read it and each time I discover new meaning in it.

There was a traveller. He was tired and he decided to sleep under a tree. Little did he know that tree was a wish-fulfilling tree, known as Kalpataru, which had the ability to fulfil anything anyone wishes for. The traveller was exhausted and he wished for a glass of cold water. The tree fulfilled his desire immediately. As soon as his thirst was quenched, he wanted to get some rest and longed for a soft bed.

The tree fulfilled his desire and the traveller sat down on the bed to get some rest. Since it was dark and he was in a forest, he got afraid and thought, what if a tiger attacked him now? Fulfilling his desire there was a ferocious tiger looming at him.

In this story, the wish-fulfilling tree is symbolic of our sub-conscious mind, which has the power to translate into reality our hopes and fears, our dreams and despair.

As a Guru, I have to unleash the power of your mind which you will achieve through disciplined spiritual practice or sadhana. On this path, your allies are hope, faith and courage. They will constantly guide you towards siddhi or success if you pursue it with passion.

I need to tell you that success or siddhi comes to only those disciples who are passionate about their sadhana and are willing to invest their energy with 100 per cent dedication towards their goal.

Since you are a sadhak, you need to have a defined goal before yourself. You cannot wander aimlessly and get mesmerised by the initial success and abruptly end or change the course of your spiritual practice, which I am afraid you often do.

If you let the initial success of sadhana enamour you or derail you, you will not progress on the path of the spiritual practice. To do that you have to tirelessly work towards your goal, which starts with defining it. With patience and perseverance, I am sure you will accomplish the goal you have set out for yourself in the path of spiritual discipline, but you need to dispel ignorance from your life.

For a long while, you have believed that it is bliss. This is not true because it is the root cause of darkness in your life.

As I am your Guru, it is my duty to banish ignorance from your life. Your task is to follow me. I will lead you into the path of knowledge where you will be able to access your true self.

Until you banish ignorance from your life, success in spiritual discipline or siddhi will continue to elude you.

Now, if I have to evaluate what is coming in the way of your spiritual progress, I would list overthinking at the top. Reasoning is a useful trait. It is helpful in carrying out mundane affairs of life, but sadhana is an entirely different realm. You need to pursue it with passion, dedication and should have complete devotion to your Guru. When you allow your devotion to get influenced by your reasoning, as a disciple, your progress will slow down because you start comparing your progress with others. Comparison is not healthy for spiritual growth. Everyone has a different trajectory to follow and a different goal.

Therefore, I would like you to revise the goal you had set out for yourself as a sadhak. Keeping a record of the number of times you have performed sadhana will not help, but if you don’t lose track of the goal, the objective that had inspired you to choose the path of disciplined spiritual practice you are on the right path. And, success will come to you.

As far as evaluating your progress on the path of spiritual discipline is concerned, you cannot do it for yourself. You have entered the realm of siddhi by the grace of the Guru and let the Guru determine at which stage of the success are you?

Your task is to chant mantras and perform sadhanas with complete devotion. I can see you are achieving progress in spiritual practice but there are still elements of insecurities and fears in your heart, which erupt in anger at times. Your fears are your obstacles. The constant fears that loom large in your mind are death and poverty. You have insecurities like losing the source of livelihood. These fears constantly dent your confidence and disturb your internal peace.

When you let these fears cloud your thinking and you start suffering from the overthinking syndrome, which manifests in anger and depression. Both are roadblocks on the path of spiritual progress.

To overcome your fears and insecurities, you have to learn to align your body and soul and then everything will fall in place. And, don’t forget to be patient with yourself.

I know you will get exhausted, but you don’t have the liberty to lose your conviction and faith because on the spiritual path you will face difficulties, but as the dawn dispels the darkness of the night, similarly the success or siddhi will reward your hard work and patience.

But, before that, you have the challenge to hold on to your hope. Have faith in your Guru and yourself and persist in your efforts. When you pursue your goal with patience, the success will be yours.

Getting impatient in pursuing your spiritual discipline will not deliver result to you.  I see that you want results too quickly. Therefore, you start on a spiritual endeavour and then leave it halfway and then move on to another sadhana. Obviously, the result will be uncertain for such sadhaks.

Like, we need to dig 200 feet to get water from the well, similarly, you have to put the concentrated effort in the single direction to attain success.

Always remember, you have been initiated by the Guru. I have taken you in my loving care and guidance and I will lead you to the path of success in spirituality. However, you will have to surrender your fears, shortcomings, anxieties and insecurities to me. We will have to build an unshakeable bond of trust so that I can plant you with the right thoughts, which will germinate in the right action and lead you to success.

Since you view surrender with fear., I have to tell you that only it is not weakness. Rather,  it is the culmination of love and respect in your Guru and where love exists doubts and fears vanish.

In all situations, you must remember you are an expression of the divine and through you resonates the goodness of the God. Whether you are chanting a mantra or performing your sadhana, your focus should be on the form of God in whom you have trust.

A prayer without focus is a half-hearted attempt. It will not deliver the result. When you chant the mantra with complete focus you are able to awaken the spiritual energy lying dormant within you. As your energy gets awakened, you need to channelise it to fulfil your wishes. Therefore, I recommend ending your chanting sessions with prayers to fulfil your desires.

There is no shying away from hard work. The winds of fortune may not be in your favour but you will have to give your best. The success may elude but eventually, it will be yours.

When you learn to do your work with equanimity and are not affected by the outcome you have reached the stage of Karma yoga. For you,  work has become a form of worship and your efforts will be blessed with success sooner or later.

You are very close to attaining siddhis because I have initiated you into my fold and taken ownership of your life’s path. If you want success, in your spiritual practice, start delving within you. In you lies the reservoir of energy. You only need to channelise it. Nothing is difficult or impossible for you, once you make up your mind. I am there to lead you to the right path.

You will have to surrender yourself to me. And, of course, chant your mantra, perform your sadhana without fail. The rest will follow.

Always yours,

Blessings,

Nand Kishore Shrimali

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