Bagalamukhi Diksha
बगलामुखी जयन्ती – 23 अप्रैल 2018, सोमवार (वैशाख शुक्ल अष्टमी)
अभय का वर प्रदान करती है तीव्र बगलामुखी मानस दीक्षा
सद्गुरुदेव ने बगलामुखी दीक्षा को आरम्भ से प्राथमिकता दी है और इसका कारण है कि जीवन की पूर्ण उन्नति, अखण्ड शान्ति और अटूट समृद्धि के लिए बगलामुखी साधना नितान्त आवश्यक है। इस दीक्षा को ग्रहण किए बिना साधना पथ पर साधक की उन्नति में प्रश्नचिन्ह लग जाते हैं, क्योंकि साधना का पथ कायरों के लिए नहीं है। इस आलेख में पढ़िए क्यों प्रत्येक साधक के लिए अनिवार्य है तीव्रतम बगलामुखी मानस दीक्षा, सद्गुरुदेव के शब्दों में।
तीव्रशक्ति बगलामुखी के सम्बन्ध में सद्गुरुदेव ने अपने एक प्रवचन में कहा था –
जीवन का ध्येय वह सब कुछ प्राप्त करना है जो आपके हाथ में नहीं है । वह सब कुछ हस्तगत कर लेना है, जो आपको अखण्ड जीवन देने में सहायक है। यहां पर मैं अखण्ड आनन्द, अखण्ड जीवन शब्दों का प्रयोग कर रहा हूं, एक ऐसा जीवन जो पूर्ण हो, एक ऐसा सुख जो समाप्त नहीं हो। जिन्दगी में ज्यादातर तो यही होता है कि सुख आज तो हैं, पर कल समाप्त हो जाते हैं।
आज शरीर स्वस्थ है, कल बीमार हो सकता है। आज पैसा है, कल समाप्त हो सकता है। यह तो टुकड़ों में जीवन जीने की प्रक्रिया हुई, अखण्ड और सम्पूर्ण जीवन नहीं।
यह खंडित जीवन जो आप सबकी नियति बन गया है, आप को भय से आशंकित करके रखता है। एक अज्ञात डर, एक भय कि कहीं सब कुछ छिन तो नहीं जाएगा, और यह डर जब मैं निखिल शिष्यों की आंखों में देखता हूं, उस क्षण मुझे थोड़ी हताशा अनुभव होती है।
मैं आपकी आंखों में छिपे भय का नाश कर देना चाहता हूं। मैं आपके लिए प्रगति का पथ सुनिश्चित कर देना चाहता हूं और यह क्रिया सम्पन्न करने के लिए मुझे आपका विस्तार करना पड़ेगा। आपको सूर्य की तरह आलोकित करना पड़ेगा। जिससे आपके मन में छिपे भय स्वाहा हो जाएं।
जिन अनिश्चितताओं की आशंकाओं से आप ग्रस्त हैं वे आपको प्रतिपल भयभीत कर रही हैं। भय इस बात का, कि सुख समाप्त तो नहीं हो जाएंगे। भय इस बात का, कि कहीं शत्रु आप पर हावी तो नहीं हो जाएंगे। भय इस बात का, कि कहीं बाधाएं आपको हरा तो नहीं देंगी।
यह भय का भाव आपके जीवन की पूर्णता में सबसे बड़ी बाधा है और भयमुक्त होने के लिए ही तो गुरु और आप जुड़े हैं। जब आप गुरु के शरणागत होते हैं, उस क्षण आपको अभय का वरदान मिलता है, पर समस्या यह है कि गुरु आपको अभय का वर तो दे देंगे, पर यह जो आप जन्म-जन्मों से भयग्रस्त हैं, वह भाव आपको आश्वस्त नहीं होने देता है। आप गुरु के शरणागत तो हो जाते हैं, पर कहीं न कहीं आपके मन में भय का भाव भी रहता है कि कहीं कुछ अनिष्ट तो नहीं हो जाएगा।
इसलिए, यह आवश्यक है कि आप शौर्य और पराक्रम के भाव से ओत-प्रोत हो जाएं, और यह भाव आपके भीतर बिना बगलामुखी साधना किए नहीं आ पाएगा और यह क्रिया बार-बार दुहरानी होगी, क्योंकि शौर्य का भाव जब तक आपके मन को प्रत्येक पल सिंचित नहीं करेगा, तब तक आप में पराक्रम का उदय नहीं होगा।
बाधाएं बादल की तरह होती हैं और भय का भाव आपके मन में मूलतः इन रूपों में अभिव्यक्त होता हैः-
1. पराजय का भय
2. मृत्यु का भय
3. सभा या आम लोगों के बीच बोलने का भय
4. परीक्षा का भय
5. अस्वीकृति का भय
अगर, आपके मन में इनमें से एक भी भाव है, तो कहीं न कहीं आप में आत्मविश्वास का अभाव है। यह जो अभाव का भाव, मन में रहता है, वही जीवन की पूर्णता में सबसे बड़ी बाधा है और इसका पूर्ण समापन बिना बगलामुखी दीक्षा के संभव नहीं है।
पर कई बार साधकों के मन में यह भाव आता है कि बगलामुखी साधना एक उग्र साधना है। यह भाव सही भी है, पर साथ ही आप यह भी समझें कि बगलामुखी साधना सौम्य और तीव्र दोनों स्वरूपों की साधना है।
साधना मार्ग पर सभी साधक हैं। पुरुष और स्त्री नहीं हैं। दोनों इस साधना को सम्पन्न कर सकते हैं। पर, यह साधना आपको परखेगी। इसलिए, यदि आप वासना युक्त हैं तो न्यूनता आप में है अगर, आप इन्द्रियलोलुप हैं, तो आप दोषी हैं। इस साधना में सिद्धि हेतु पूर्ण ब्रह्मचर्य और इन्द्रिय निग्रह अनिवार्य है। जब तक आपका जीवन संयमित नहीं होगा, तब तक बगलामुखी साधना में सिद्धि में संशय रहना निश्चित है।
जीवन में सुख अनिवार्य है, पर उन सुखों का दास बन जाने का भाव सर्वथा गलत है, क्योंकि फिर आप सुखों के मालिक नहीं रहते हैं। यह भय कि कहीं ये सुख मुझसे छिन तो नहीं जाएंगे आपके शौर्य का क्षय कर देते हैं।
साधना का पथ आत्म-उत्थान का मार्ग है, और यह मार्ग कदापि कायरों के लिए नहीं है। इस मार्ग में प्रगति तभी होगी जब आप के अन्तरमन में छिपे भय का सर्वनाश होगा। यह क्रिया आप बगलामुखी साधना के द्वारा सम्पन्न करते हैं।
भय एक भाव है, जिसका संवर्धन आप प्रतिक्षण स्वयं करते हैंं। जैसे-जैसे भय का भाव बढ़ता है, बाधाएं आपको बड़ी लगने लगती हैं और कई बार आप बिना संघर्ष किए ही स्वयं को परास्त घोषित कर देते हैं। संघर्ष, युद्ध जीवित होने के प्रतीक हैं और संघर्ष करने हेतु शक्ति का भाव चाहिए। यह शक्ति का भाव साधक में बगलामुखी साधना के उपरान्त आता है। इस साधना को करने के बाद साधक ना तो हाथ जोड़ता है, ना गिड़गिड़ाता, वरन् जीवन के युद्धों में बाधाओं से भिड़ जाता है और बाधाओं को धराशायी कर देता है। इस साधना को जो साधक सफलता पूर्वक सम्पन्न करते हैं, उनका रोम-रोम चैतन्य हो जाता है और वे ऊर्जा के पुञ्ज बन जाते हैं।
जो साधक कुण्डलिनी जागरण साधना करना चाहते हैं, उनके लिए मां बगलामुखी साधना को सिद्ध करना अत्यन्त आवश्यक है और यह कार्य एक बार करने से नहीं होगा। इसे तो आपको बार-बार करना होगा क्योंकि जब तक आपके मन में बसे विकार दूर नहीं होंगे साधनात्मक प्रगति अर्थात् कुण्डलिनी जागरण का मार्ग आपके लिए उपलब्ध नहीं होगा।
कुण्डलिनी जागरण की अवस्था
कुण्डलिनी जागरण को लेकर, आप सबके मन में कई सारे भ्रम हैं, विद्वानों को भी हैं। कुण्डलिनी को एक सर्पिणी की तरह कहा गया है, जो आपके रीढ़ की हड्डी के मध्य स्थापित है। अगर, ऐसा होता तो कुण्डलिनी को बिजली का झटका देकर उत्तेजित कर सकते थे, पर ऐसा होता नहीं है और यह संभव इसलिए नहीं है, क्योंकि विज्ञान के माध्यम से ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
ज्ञान प्राप्ति से पहले मनुष्य को यह समझना जरूरी है कि ज्ञान क्या है, और मनुष्य को समझने के लिए आनन्द की परतों को अनावृत्त करना जरूरी है। शुरू में ही मैंने कहा था कि जीवन का ध्येय अखण्ड आनन्द की प्राप्ति है और ऐसा आनन्द जो उधार का नहीं हो। आनन्द का तात्त्पर्य है कि हमारा हृदय का पूरा कमल-दल चैतन्य और जाग्रत हो जाए। वह आनन्द आपके नयनों की उत्फुलता में प्रवाहित होता है।
आज तक शास्त्रों ने एक ही बात कही है, अहम् ब्रह्मास्मि द्वितीयो नास्ति। केवल मैं हूं, दूसरा कोई नहीं है। जब मैं अपने आप में, अपने अन्दर उतर जाऊंगा, तब इस ब्रह्माण्ड को इसके पूरे चिन्तन को मैं देख सकूंगा।
जब आप अपने अन्दर उतरने की क्रिया शुरू करते हैं, वह क्षण बहुत क्रान्तिकारी होता है। वह क्षण भय-मुक्त होने की क्रिया है, क्योंकि भय और ब्रह्म एक साथ नहीं रह सकते। भय से मुक्त करने की क्रिया बगलामुखी साधना द्वारा सम्पन्न होती है।
यहां एक गूढ़ बात कही जा रही है। इसे ध्यान से समझें। आपके मन में भय, पराजय के भाव से आता है। जब आप बगलामुखी साधना करते हैं, उस समय आप पराजय, द्वन्द्वों, दुःखों, अपमान जनित कष्टों से निवृत्ति पाते हैं, क्योंकि आपके अन्दर ब्रह्म का प्रकाश जगना शुरू हो जाता है।
जैसे अंधेरे में परछाई बड़ी दिखती है और जब सूर्य सिर पर होता है, उस समय छोटी हो जाती है। यह परछाई और कुछ नहीं, आपके मन का भय है।
बगलामुखी साधना आपके अंर्तमन में छिपे भय का नाश करती है और फिर भयमुक्त अवस्था में आपका पहली बार अखण्ड आनंद से साक्षात्कार होता है।
इस अखण्ड आनन्द को ही ब्रह्मानन्द कहते हैं। शास्त्रानुसार ब्रह्मानन्द की विद्या गुरु के पास है।
ब्रह्मानन्दम् परम् सुखदं, केवलं ज्ञानमूर्त्तिम
द्वन्द्वातीतम् गगन सदृशम् तत्त्वमास्यादि लक्ष्यम्
बिना गुरु के ज्ञान नहीं मिलता है और बिना ज्ञान के आत्म ज्ञान नहीं प्राप्त हो सकता है। एक गुरु के कई शिष्य होते हैं, पर सबकी प्रगति अलग-अलग होती है। इसका सिर्फ एक कारण है कि कुछ शिष्य भय-मुक्त होते हैंं। वे क्रिया करने से पूर्व ‘किन्तु-परन्तु’ की विवेचना में अधिक ऊर्जा का व्यय नहीं करते अपितु गुरु के आशीर्वाद को मन में बसाकर कार्यशील हो जाते हैं।
वहीं, दूसरी ओर कई शिष्य संशय और भय में उलझकर बहुमूल्य समय व्यर्थ कर देते हैं। क्रिया तो अनिवार्य है और वह भी समय पर।
इसलिए भयमुक्त होना साधना में प्रगति का प्रथम सोपान है और यह भाव सिर्फ बगलामुखी द्वारा प्राप्त हो सकता है।
Baglamukhi Jayanti – 23 April 2018, Monday (Veishaakh Shukla Ashtami)
Grants Boon of Protection
Intense Baglamukhi Manas Diksha Initiation
SadGurudev has always accorded preference to Baglamukhi Diksha initiation as the Baglamukhi Sadhana is extremely important to achieve complete success, unabated peace and infinite prosperity in human life. The Sadhak cannot continue on the spiritual Sadhana path in absence of this Diksha, because the path of Spiritual Sadhana progress is not for the cowards-timids. Read in SadGurudev’s own words, why this Intense Baglamukhi Diksha Initiation is compulsory for each and every Sadhak.
SadGurudev had described the intense extremely powerful Baglamukhi in His discourse as –
The goal of life is to obtain everything which is not in your hands. It is to capture everything that helps you to lead an eternal perfect life forever. I am using the important words of eternal joy and eternal life to illustrate a life which is complete, supreme and full of totality, full of ever-lasting eternal perfect joy. Generally, in majority of cases, we notice that the happiness of today vanishes the next day.
The body might be healthy today, but tomorrow it may fall sick. You may have wealth today, but tomorrow it might vanish. This is an incomplete process of living, broken into small bits and pieces. This is not a sign of eternal perfect total life.
This fractured life has become the destiny of all of you and it constantly engulfs you with fear. You are always in dread of a fear of the unknown, afraid of losing everything that you possess. I feel a little frustrated when I see such fear within the eyes of Nikhil disciples.
I want to destroy the hidden fear lurking in your eyes. I want to ensure a perfect path of progress for you and I will need to expand your horizons to achieve this. You have to glow like the Sun. We need to evaporate the fear lingering within your mind.
The unknown uncertainties which you dread are frightening you at every second of your life. You fear losing your happiness, getting dominated by enemies or of being tuckered out by the obstacles.
This feeling of fear is the biggest obstacle in the fulfillment of your life. You have connected yourself to the Guru to get riddance from this dread. The Guru blesses you the divine boon of protection. However this horrid sense of fear, stricken within your mind throughout numerous births-deaths, does not let you feel confident. You dive into the protective shield of the Guru, however, your mind constantly dreads unknown dooms
Therefore, it is necessary for you to imbibe the noble spirits of bravery and power. You will not be able to soak up these noble feelings without performing Baglamukhi Sadhana. You will have to repeat this process multiple times because the mental courage will not grow until the spirit of bravery enters into each and every pore of your mind.
The obstacles exist just like clouds. The sense of fear expresses within your mind in following basic forms :
- Fear of defeat
- Fear of death
- Fear of speaking in the assembly of people
- Fear of examination-test
- Fear of rejection
If you mind is full of any of these above fears, then you definitely lack confidence. This deficiency lingering within your own mind, is the biggest obstacle to the fulfillment of life. It is not possible to eradicate this deficiency without Baglamukhi Diksha.
Sometimes Sadhaks feel that Baglamukhi Sadhana is a highly intense powerful fiery Sadhana. This is a correct feeling, but you should understand that Baglamukhi Sadhana can be performed in both fiery and gentle forms.
Everyone is a Sadhak on the spiritual path. There is no differentiation between men and women. Both can accomplish this sadhana. However, this sadhana will evaluate and test you. Lust is a grave deficiency, being sensual makes you guilty. Complete celibacy (Brahmacharya) and sense control is essential for accomplishment of this Sadhana practice. The success in Baglamukhi Sadhana is not granted until you lead a well-balanced, disciplined and restrained life.
Happiness is essential in life, however one should not become a slave of those pleasures. One should not yield away the control-ownership of these pleasures. The fear of losing these pleasures ruins the spirit of bravery.
The path of Sadhana is the path of self-improvement, and this path is not fit for the cowards. You will be able to make progress on this path only after annihilation of your hidden inner fears. Baglamukhi Sadhana is an appropriate process to achieve this state.
You yourself cultivate and grow this feeling of fear. The expansion of fear magnifies the size of the obstacles, and you sometimes concede defeat even without fighting or struggling. A living entity is signified by these fights and battles, and the sense of strength is vitally essential to make a fight. The Sadhak obtains this strength-power through Baglamukhi Sadhana. After successful accomplishment of Baglamukhi Sadhana, the Sadhak neither pleads nor appeals. He gives appropriate battle to the struggles of life, and knocks downs the obstacles. Every cell of the successful Sadhaks energizes and they become a power-store of intense energy.
Mother Goddess Baglamukhi Sadhana is highly necessary for Sadhaks desirous of Kundalini-activation. It is not enough to perform the Sadhana once. You will have to repeat the Sadhana multiple times since the deficiencies and inadequacies within your mind will inhibit progress on the spiritual path of Kundalini activation.
The State of Kundalini Activation
You and numerous scholars have multiple confusions about Kundalini activation. Kundalini is supposed to exist in a serpentine form within your spinal cord. If this were the case then it would have been very easy to activate it by giving it an electric shock. However, it is not possible to do so. True knowledge cannot be obtained through science.
Before attaining knowledge, it is important for a person to understand what knowledge actually is. Similarly, to understand a human, it is necessary to analyze the multiple layers of joy. I have already stated that the purpose of human life is to obtain eternal joy. Such eternal joy cannot be borrowed from anywhere. Joy means achieving a state of full conscience-energization of our entire heart lotus. Such a joy reflects through the eyes.
The scriptures repeat the same thought – “Aham Brahmaasmi Dwiteeyo Naasti“. Only I exist, there isn’t anything else. When I enter my own self, into my own inner space, then I will be able to view this entire universe in its entirety.
The moment, when you start entering your own self, is highly revolutionary. Such a divine moment reflects complete liberation from fear, since both fear and Brahma (Universe) cannot co-exist. The Baglamukhi Sadhana enables this process of riddance from fears.
The following is a very cryptic thought. Try to comprehend it carefully. The sense of fear enters into your mind through the feeling of defeat. The Baglamukhi Sadhana enables you to get riddance from these negative feelings of defeat, losses, pains and humiliations; through growth of Brahma light within your own self.
The shadow magnifies in darkness, and reduces to just a tiny size in the afternoon sun. This shadow is nothing else, but the fears within your own mind.
Baglamukhi Sadhana destroys the inner fears hiding within deep recesses of your mind, and this fear-free state enables you to experience the eternal joy for the first time.
This eternal joy is termed as Brahmaananda. According to the holy scriptures, Guru owns the Brahmaananda knowledge.
Brahmaanandam Param Sukhadam, Kevalam Gyaanamurtim
Dwandaateetam Gagana Sadrisham Tatvaamaasyaadi Lakshyam
Knowledge cannot be attained in absence of the Guru, and Spiritual-wisdom cannot be attained in absence of knowledge. A Guru has many disciples, but all of them progress at their own pace. The only reason for this different pace is that some disciples are free from fear. They do not waste time-energy in over-analysis before performing an activity, rather they get started immediately after receiving blessings from the Guru.
The other disciples waste valuable time-opportunities wrapped within fears and confusions. Action is mandatory and that too at the appropriate time.
Hence, becoming fear-free is the first step towards progress in spiritual Sadhana-path and only Baglamukhi Sadhana can grant this state.