सफलता का सरल सिद्धान्त (Simple Principles for Success)

सफलता का सरल सिद्धान्त
पांच बाते अपना लीजिए
आपकी सफलता निश्‍चित है

काम करना और काम में सफल होना इतना मुश्किल नहीं जितना आप सोच रहें, आखिर आप को तो काम तो करना ही है और आप सफल भी होना चाहते है तो ये पंच-सूत्र अपनाइये, देर-सबेर सफलता अवश्य मिलेगी…

शक्ति और क्षमता का उपयोग – निष्ठा


जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता अर्जित करने के लिए कई बातों की आवश्यकता होती है और सफलता को प्राप्त करने के लिए ‘परीक्षा’ वाले दिन या समय से पूर्व लगातार एवं निर्विघ्न, मेहनत की आवयकता होती है। आवश्यक तैयारी में तनिक भी कमी रहने पर भी सफलता कोसों दूर हट जाती है। थोड़ी सी भूल-चूक हो जाने पर मनुष्य के मनोरथ अपूर्ण ही रह जाते हैं। सफलता का मार्ग बड़ा ही कठिन और जटिल है। सफलता अनेकों बातों पर निर्भर करती है। जिनमें कुछ निम्न हैं –

सफलता के लिये ध्येय आवश्यक

संसार में अनेकों कार्यक्रम हैं। मानव की शक्ति, क्षमता एक सीमित और निर्धारित परिधि में रहती है। कोई भी व्यक्ति एक साथ अनेकों लक्ष्य, अनेकों कार्यक्रमों का बोझा नहीं ढो सकता। कोई भी मनुष्य अनेकों दिशाओं में भाग दौड़ नहीं कर सकता। प्रत्येक उस मनुष्य के लिए जो सफलता प्राप्त करना चाहता है उसे एक ही लक्ष्य का चुनाव करना पड़ेगा। उसे ही अपना अभीष्ट ध्येय बनाना पड़ेगा। उसी के अनुसार कार्यक्रमों में लगना पड़ेगा। युद्ध के लम्बे और विस्तृत क्षेत्र में किसी फौजी टुकड़ी का नायक दुश्मन से भिड़ने के लिए मोर्चा बना लेता है, उसी मोर्चे पर जब वह डटकर संघर्ष करता है तो बहुत कुछ सफलता मिल जाती है। यही बात जीवन संग्राम पर भी लागू होती है।

लक्ष्य उस समय निर्धारित हो जाना चाहिए जब आपके सामने कई विकल्प खुले हों और उनमें से आपको कोई एक चुनना हो, उस क्षेत्र का चुनाव कर आगे बढ़ें। लक्ष्य का चुनाव करने में जल्दबाजी न करें, क्योंकि यह आपकी जिंदगी बदल सकता है।

जीवन में एक लक्ष्य, एक ध्येय और एक कार्य का चुनाव सफलता की पहली मांग है। संसार के महान कहे जाने वाले और सामान्य दर्जे के लोगों में एक यही अन्तर रहा है। महान बनने वाले अपने जीवन को एक दिशा में प्रेरित कर उसमें अपने आप को खपा देते हैं। दूसरी ओर सामान्य लोग कभी-इधर, कभी-उधर भटकते रहकर जीवन में कोई महत्वपूर्ण सफलता अर्जित नहीं कर पाते।

जीवन में असफल होने वाले बहुत से लोगों का एक कारण अपने लिए एक निर्दिष्ट दिशा-लक्ष्य का चुनाव न करना भी रहता है। कभी-इधर, कभी-उधर, एक को छोड़कर दूसरे में, दूसरे को छोड़कर तीसरे काम में लगने वाले व्यक्ति किसी में भी सफलता प्राप्त नहीं करते। इसलिए अपने जीवन की एक दिशा निर्धारित कीजिए और सदैव उसी ओर चलते रहिए। कई लोग एक कार्य में बहुत-सा समय बिता कर उसे छोड़ बैठते हैं और फिर दूसरे काम को हाथ में लेते हैं। इस तरह के अधिकांश लोग जीवन में असफलता का ही सामना करते हैं।

कई लोग काम कुछ करते हैं और उनका मन उलझा रहता है किन्हीं दूसरी बातों में, ऐसे मनुष्य अपने काम को पूरा-पूरा अंजाम नहीं दे पाते। बैठे हैं दुकान पर और मन घूम रहा है पार्क में। काम कर रहे हैं दफ्तर में किन्तु मन उलझा रहता है राजनैतिक दाव-पेंचों में। अतएव उन्हें किसी भी तरफ से सफलता नहीं मिलती। चाहे कितना ही छोटा, सामान्य लक्ष्य क्यों न चुना जाय, मनुष्य यदि अन्त तक उसमें एकाग्र होकर लगा रहेगा तो ही वह सफलता का स्वाद चख सकेगा। किसी भी कार्य को हाथ में लेकर उसे पूरा करने में कोई कसर न रखना ही सफलता का मूलमंत्र है।

शक्ति और क्षमता का उपयोग – निष्ठा

पानी को एक निश्‍चित ताप तक गर्म करने पर ही उससे भाप बनती है- वह भाप जिसकी शक्ति से विशालकाय इंजन धक्का पाकर अपने पथ पर आगे बढ़ता है। यदि भाप अन्य रास्तों से निकल जाये या पानी को कम दर्जे की गर्मी दी जाय जिससे भाप पैदा नहीं हो तो इंजन आगे नहीं बढ़ेगा। जीवन-रूपी इंजन को भी अपने लक्ष्य, उद्देश्य की ओर अग्रसर करने में अपनी सम्पूर्ण शक्तियों को केन्द्रित करना पड़ता है। किसी कार्य की पूर्ति के लिए आवश्यक क्षमता की आवश्यकता है।

 लक्ष्य निर्धारित करने के बाद इस काबिल बनें, कि हम उसे साध सकें, इसके लिए निरंतर ज्ञान और अभ्यास की आवश्यकता होगी, अपने आपको इस काबिल बनाए रखें कि लक्ष्य पाने की दौड़ में आप शामिल रहें, उस दौड़ से बाहर निकलने का कोई जोखिम न लें।

जब तक मनुष्य अपनी सम्पूर्ण शक्ति, क्षमता को अपने लक्ष्य की पूर्ति में नहीं लगाता तब तक सफलता संदिग्ध ही रहती है। अधूरे मन से जी चुराकर बोझा समझकर अपने काम में लगने वाले लोगों को प्रायः असफलता ही मिलती है। किसी काम की इच्छा करने से या लक्ष्य का चुनाव करने से ही काम की पूर्ति नहीं हो जाती। काम के लिए, लक्ष्य के लिए, पूर्ण संकल्प और निष्ठा के साथ प्राणपण से उस लक्ष्य को हासिल करने के लिए जुट जाना होता है तभी सफलता की मंजिल पाई जा सकती है। बिना श्रम और प्रयास के सफलता की आशा करना आकाश के तारे तोड़ने के समान ख्याली पुलाव ही है। अतः अपने लक्ष्य की सिद्धि के लिए, सफलता के लिए अपनी समस्त शक्ति और क्षमता का उपयोग कीजिए। प्राण-प्रण से उसमें जुट जाइए।

व्यापक दृष्टिकोण – मानसिक पंसद को बड़ा करें –

जीवन में किसी भी कार्य के चुनाव के लिए अपनी रुचि और पसन्द को स्थान देना ठीक है किन्तु फिर भी अनुभव हीनता एवं अज्ञान की स्थिति में मनुष्य की रुचि और पसंद का दायरा बहुत ही सीमित और संकीर्ण रहता है। ऐसी स्थिति में कई मनुष्य जीवन में आने वाले कई सुअवसरों को अपनी रुचि का विषय न समझकर टाल देते हैं। हालांकि दृढ़-निश्‍चयी मनुष्य इन अवसरों से लाभ उठाकर बहुत बड़ी सफलता प्राप्त कर सकते हैं। कई बार ऐसा भी होता है कि अपनी पसंद और इच्छा के कार्य का समय निकल जाता है और मनुष्य केवल लीक (लकीर) ही कूटता रहता है। परिणाम यह होता है कि उन्हें असफलता का ही सामना करना पड़ता है। इसलिए श्रेयार्थी अर्थात् जो श्रेय को प्राप्त करना चाहता है और श्रेय या श्रेयस्कर वह कार्य होता है जो करते समय  ऐसा आभास दे कि इस कार्य में मुझे मजा आ रहा है तब ही उसी कार्य को पूरी ताकत से पूरा करने पर एवं लगातार करने पर अन्ततः सफलता व्यक्ति को अवश्य मिलती है। व्यक्ति को अपनी इच्छा और पसंद के स्वभाव को व्यापक बनाना चाहिए। यदि कोई महत्वपूर्ण कार्य करने का अवसर सामने आये तो उसे छोड़ा नहीं जाय। मुझे यह पसंद नहीं, यह अच्छा नहीं लगता, इसमें मेरी रुचि नहीं आदि मान्यतायें रखना अपने आपको सीमाओं में जकड़ लेना है जो प्रगतिशीलता के लिए अवरोध है। हम कार्य-प्रणाली, इच्छा और पसंद की प्रेरणा पर निर्भर न रहें वरन् कार्य करना हमारा स्वभाव, हमारी आदत में होना चाहिए। पसंद और इच्छा के भरोसे न बैठकर सामने आने वाले कार्य में जुट जाने वाला व्यक्ति ही जीवन में एक-एक करके अनेकों सफलतायें प्राप्त कर सकता है।
थोड़ा खतरा तो उठाएं

अक्सर लोग किसी सम्भावना के पीछे चलने में, सफलता के लिए खतरा उठाने में डरते हैं, झिझकते हैं। लोग सदैव इसी चक्कर में रहते हैं कि बिना खतरा मोल लिए ही कोई सफलता मिल जाय। किन्तु बिना जोखिम उठाये, खतरों से बचने वालों से तो सफलता कोसों दूर ही रहती है। जो लोग जीवन में आने वाले खतरों के बावजूद भी आगे बढ़ते हैं सफलता उन्हीं का स्वागत करती है। जो भावी आशंका, भय से ग्रस्त होकर किसी काम में हाथ ही नहीं डालेंगे, या जो आगे बढ़ने से झिझकते रहेंगे वे कभी सफल नहीं हो पाएंगे।

जब हम अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ते हैं तो कई समस्याएं, बाधाएं, परेशानियां और असफलता हमारे समक्ष आती हैं, ऐसी परिस्थितियों में इन सबका सामना कर आगे बढ़ते रहना चाहिए और इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हम अपने लक्ष्य पर अडिग रहें। भले ही हमें किसी भी परिस्थिति से गुजरना पड़े।

बिना हौसले, हिम्मत और आशंकाओं का सामना किये जीवन संघर्ष में कैसे सफलता मिल सकती है? यदि हिम्मत और साहस के साथ खतरों को लेकर आगे बढ़ने पर भी मनुष्य को असफलता मिल जाय तो वह उससे कहीं अच्छी है जिसमें मनुष्य आशंकाओं से भयभीत होकर हाथ पर हाथ धरे बैठा रहता है। आगे बढ़ने के लिए कदम ही नहीं उठाता। पहली श्रेणी का व्यक्ति आने वाली असफलताओं के बावजूद भी अपने प्रयत्न जारी रखेगा तो एक दिन सफलता स्वयमेव उसके पास चली आयेगी।

आशंकाओं का सामना कीजिए, साहस और हिम्मत से खतरों में भी आगे बढ़िये। जोखिम उठाये बिना जीवन में कोई महत्वपूर्ण सफलता नहीं पाई जा सकती।
काम को खेल समझें

अपने मार्ग पर चलते हुए, अपने कर्म-कार्य में लगे रहते हुए भी खिलाड़ी की भावना अनिवार्य है। काम को खेल समझकर किया जाय। जो व्यक्ति अपने काम का हिसाब-किताब देखकर, उसका बोझा ढोते हुए चलता है वह बीच में ही चकनाचूर हो जाता है। सफलता तक नहीं पहुंच पाता। कदाचित वह सफल भी हो जाय तो उस समय इतना थका हुआ होता है कि सफलता का आनन्द नहीं ले पाता। अत्यन्त व्यस्त रहते हुए भी अपने आनन्द, विश्राम एवं शांति को तिरोहित न होने दिया जाय।

निरन्तर कार्य करते रहने से लक्ष्य प्राप्त करना आसान है और उस निरन्तरता को बनाये रखना ज्यादा कठिन और अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। लक्ष्य प्राप्त करने का अर्थ यह नहीं की हमारी जिम्मेदारियां पूर्ण हो गयी, बल्कि अब और बढ़ गयी। क्योंकि अब हमारा लक्ष्य उन जिम्मेदारियों और कर्त्तव्य को निभाना है जो हमें लक्ष्य पूर्ण होने के दौरान मिली हैं, जिससे लक्ष्य की गरिमा को बनाए रखा जा सके। इस हेतु अपने ऊपर काम को सवार नहीं होने दिया जाय वरन् काम के ऊपर सवार रहें। कार्य करना, लक्ष्य की ओर आगे बढ़ना एक स्वभाव बना लिया जाय।

जीवन में इतनी निश्‍चिन्तता रहे कि खाते समय, सोते समय मनोरंजन के समय काम का भूत परेशान न करे। अपने आनन्द, शांति, सन्तोष को बेचकर यदि स्वर्ग का वैभव मिलता हो तो विवेकशील व्यक्ति को उसे अस्वीकार कर देना ही श्रेयस्कर होगा। कार्य को खेल मानकर कीजिए। इससे वह आपकी शक्तियों का शोषक न बनकर उर्वरक खाद का काम देता रहेगा।
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Simple Principles for Success

Adapt these Five principles

To guarantee your success

 

To perform work and to obtain success in work is not as hard as you may think,

After all you have to perform the work,

And you wish to be successful,

Then you should imbibe these five principles,

You will certainly obtain success

 


Many factors are required to succeed in any area of life, continuous constant and uninterrupted hard preparation is mandatory prior to an “examination” to achieve success. A little oversight in preparation can take away success from the grasp. A slight mistake may impact fulfilment of desires. The path to success is very difficult and complex. Success depends on multiple factors, some of which are as follows –

 

A defined goal is mandatory to achieve success

Numerous activities are going on in the world. The power and capacity of a person is  limited within a defined perimeter. Any single person cannot sustain the burden of many goals and multiple programs simultaneously. A person cannot run around in several directions. Every person desirous of success, will have to choose a specific goal. He will have to make it his basic target. He will have to accordingly embark on related activities. In a vast and spread-out war theatre, the leader of a small military unit confronts the enemy by opening a single front, and when he gives a sustained battle on that front, then he definitely achieves success. The same principle applies to the struggles in life.

The targets should be set at the time when many options are open to you and you can deliberately select any one of them; choose the preferred one and move ahead. Do not think rashly while selecting a target, because it may change your life.

The first requirement of success is selection of a specific goal in life, a purpose and a task-assignment in life. This has been the sole differentiator between the great people and the common folk in the world. Those destined to be great, focus their entire energies by driving towards a single direction. On the other hand, the ordinary people, keep on wondering from here to there, and do not achieve any significant success in life.

One reason that many people fail in life is that they do not choose a specific goal or direction for themselves. A person wondering from tasks to task, from first to second, then leaving second for the third one; can never attain success in anything. So define a specific direction for your life, and continue to follow on that direction. Many people spend a lot of time on one task, and then leave it midway to focus on a second one. Hence many people face only failure in life.

Many people do exert their energies on some tasks, but their mind keeps wondering to some other topic; such people cannot attain complete success in their work. For example, sitting at the shop counter, but thinking about a park. Working in a office, but the mind is entangled in political machinations. So they do not obtain success in any task. A goal might be very small and minuscule, but if a person continues to focus on it with full determination till the end, only then will he be able to taste success. The basic formula of success is to do everything possible to accomplish the task in hand.

 

Utilization of Power and Ability – Integrity

The steam gets generated only after heating up water till a particular temperature, the steam which pushes and provides energy to a giant heavy engine to move ahead. If this steam leaks out, or if the water is not heated to the required temperature, then the adequate steam will not get generated, and the engine will not be able to proceed ahead. We also need to concentrate and focus all our energies to reach our desired goal and achieve our aim in this engine of life. The necessary ability is required to accomplish any task.

After setting up the goal, we should develop our capabilities to achieve this; this will require a continuous knowledge and practice; develop your abilities so that you remain worthy to participate in the race to achieve the target, do not take any risk which pushes you out of this race.

Until a person exerts his entire strength and ability towards achievement of his aims, the probability of his success remains questionable. Working half-heartedly, treating the work as a big burden, only results in failure. We don’t accomplish anything only by desiring for a task or solely by choosing a particular target. We need to exert all our energies and capabilities with firm determination and full focus to complete the task, to achieve the aims. To desire favourable results without any labour or exertions is a day-dream akin to plucking out  the stars. Therefore, utilize your entire strength and ability to obtain success, to accomplishment your goals. Take a vow to proceed ahead with full exertions.

 

Comprehensive perspective – Enlarge your Mental Approach –

It is acceptable to consider your interests and wishes while selecting any opportunity in life, but ignorance and inexperience severely limits and narrows down the list of such opportunities. In such situations, many people ignore lots of golden opportunities due to lack of interest. However,  persons with firm determination and will-power can make extensive use of these opportunities to reach remarkable levels of success. It also happens that a person wastes opportunities by just waiting for a favourable time or moment literally. As a result they only get failure at the end. Therefore, anyone desiring excellence, or desiring excellent opportunities, should mentally motivate self into enjoying the task at hand; only then by performing the task with full exertions, continuously , will he definitely achieve success. A person should expand the scope of his interests and wishes. He should not let any golden or significant opportunity slip him by. Assumptions like “I do not like it, it does not look good, I am not interested in it” etc. are strict limitations which inhibit progress and development. We should not be dependent on the motivation of the work-process, desire or wishes; rather accomplishing tasks should be a basic part of our nature and attitude. A person who indulges in the task ahead, instead of worrying about his interests or desires; will always attain accomplishments one after the another.

 

Take some Risk at least –

Often people are afraid, are hesitant to follow a possibility, or to take some risk for success. People always desire to achieve complete success without taking any risk. But the success does not come near anyone who is afraid of  or averse to face any danger or risk. People who proceed ahead in the face of dangerous risk, are the ones greeted by success. Those who hesitate or do not commit to anything,  due to fear of future dangers or risky circumstances, will never be able to succeed.

When we proceed ahead on our path to our goals, then multiple problems, obstacles, worries and failures come our way; we should face these circumstances and continue to progress ahead, fully concentrated on our target goal. Even if we have to go through any adverse situation.

How can we achieve success in various struggles of life without any strength or courage to face any fear? A failure obtained on the path of courage and strength is much better than sitting in inaction due to fears of future. Does not even take a single step ahead due to fear. The first person will continue to forge ahead despite failures; and will definitely attain success one day.

Face your fears, Forge ahead in the dangers with courage and fortitude. One cannot achieve any significant success in life without taking any risk.

 

Consider Work as a Game –

It is imperative to bear a sportsman spirit while treading on one’s path, while engrossed in one’s tasks and assignments. We should treat work as a game. A person who thinks of work as a burden, will certainly get engulfed by its weight midway. He will not be able to achieve success. Even if he achieves success, he will get so tired and exhausted, that he will not be able to enjoy the fruits of his success. We should not sacrifice our fun, relaxation and peace, while immersed in hard work.

It is much easier to achieve our aims by working continuously; and it is very difficult and important to maintain that continuity. Achievement of aims does not mean that our responsibilities have been diminished, rather they have now gotten increased. Now we have to execute those responsibilities and duties which we have now received after achievement of our goal; to maintain the dignity and sanctity of the goal. We should not let the work ride us; rather we should be able to control our work. Our attitude and nature should have a basic deposition to perform tasks, to move ahead towards our goals.

We should have enough confidence in our life that the ghost of work does not bother us while eating, sleeping or relaxing. Even if a person is offered the splendour of heaven by trading his joy, peace or contentment; it is better for a rational person to reject such a trade. Treat work as a game. Thus it will complement your vigour instead of preying on your energies.

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