अपनों से अपनी बात – Oct 14

अपनों से अपनी बात…
प्रिय आत्मन्,
शुभाशीर्वाद,
नवरात्रि के पावन पर्व और महालक्ष्मी कल्प के शुभ अवसर पर मैं आपको शुभकामनाएं और आशीर्वाद प्रदान करता हूं। यह नवरात्रि और महालक्ष्मी कल्प आपके जीवन में सौभाग्य, सम्पन्नता और शक्ति के नये द्वार खोले और आप अपने जीवन का प्रत्येक क्षण आनन्दपूर्वक जी सकें, यही शुभेच्छा है।
पिछले दिनों वरुण देवता ने भी पूरे भारत वर्ष पर बहुत कृपा की और दुर्भिक्ष, अकाल का जो अंदेशा था वह पूरी तरह से समाप्त हो गया और धरती पुनः आनन्द से भर गई। यह सत्य है कि ‘जल ही जीवन’ है। इस छोटे से वाक्य में जीवन का बहुत बड़ा सिद्धांत छिपा हुआ है। जिस प्रकार पांच तत्व पृथ्वी, अग्नि, आकाश, वायु और जल सृष्टि के संचालन के लिये आवश्यक हैं, उसी प्रकार मनुष्य के जीवन में भी इन पांच तत्वों का सही समायोजन हर समय आवश्यक है। जहां अग्नि का तात्पर्य है – ऊर्जा और आकाश का तात्पर्य है – शून्यता का भाव। भूमि का तात्पर्य है – ठोस धरातल। प्रकाश का तात्पर्य है – चेतना, भविष्य की ओर दृष्टि, ज्ञान और जल का तात्पर्य है – मन में रस भाव।
यह मन का रस भाव ही बाकी चार तत्वों को जोड़े रखता है और इस जगत में मनुष्य ऊर्जा और शक्ति प्राप्त कर अपने जीवन में रस ही निरन्तर प्राप्त करना चाहता है। इसी रस प्राप्ति के स्वरूप को अर्थ कहा गया है।
लोग मुझसे मिलते हैं और कहते हैं कि मैं अपने जीवन में बहुत बड़ा आदमी बनना चाहता हूं। मैं पूछता हूं कि बड़े की परिभाषा क्या है तो तत्काल उत्तर मिलता है कि मैं अपने जीवन में बहुत अधिक धन कमाना चाहता हूं, मैं भी कहता हूं कि धन कमाना चाहिए, धन प्राप्ति के लिये प्रयत्न होना चाहिए, इन प्रयत्नों में सफलता भी मिलनी चाहिए लेकिन इससे भी ज्यादा आवश्यक है कि धन का उपयोग आपके लिये क्या है? जीवन में धनपति बनना चाहते हैं या धन के दास बनना चाहते हैं?
जहां-जहां जाओगे वहां-वहां हजारों-लाखों धन के दास मिल जायेंगे, जिनके लिये धन केवल संग्रह करने की वस्तु है। उनके पास धन का कोई उचित उपयोग, उपभोग का विचार ही नहीं है। यदि आप कोई कार्य कर रहे हैं और उस कार्य का क्या उपयोग है इसकी आपको जानकारी नहीं है तो वह कार्य कैसे सार्थक हो सकता है? कार्य वही सार्थक है, जिसे करने पर आप अपने जीवन में योग प्राप्त कर सकें, उसे बेहतर जी सकें। इसी प्रकार धन का उद्देश्य भी उसका उचित उपभोग और उपयोग ही है।
कुछ अंकों पहले मैंने एक कथा लिखी थी – दर्शनशास्त्र के एक प्रोफेसर ने कुछ चीजों के साथ क्लास में प्रवेश किया। जब क्लास शुरु हुई तो उन्होंने उस सामान में से एक बड़ा सा खाली शीशे का जार लिया और उसमें पत्थर के बड़े-बड़े टुकड़े भरने लगे, फिर उन्होंने छात्रों से पूछा कि ‘क्या जार भर गया है?’ और उत्तर में सभी छात्रों ने कहा ‘हां’।
तब प्रोफेसर ने छोटे-छोटे कंकड़ों से भरा एक बक्सा लिया और उसमें रखे छोटे-छोटे कंकड़ों को जार में भरने लगे, थोड़ा हिलाने पर जार में ये कंकड़ भी बड़े-बड़े पत्थरों के बीच में भर गए। एक बार फिर उन्होंने छात्रों से पूछा कि क्या जार भर गया है? और सभी छात्रों ने इस बार भी हां में उत्तर दिया।
तभी प्रोफेसर ने एक मिट्टी से भरा बक्सा निकाला और उसमें भरी मिट्टी को जार में डालने लगे, मिट्टी ने बची-खुची जगह भी भर दी और एक बार फिर उन्होंने छात्रों से पूछा कि क्या जार भर गया है? और सभी छात्रों ने एक साथ उत्तर दिया कि, ‘हां’, जार भर गया है।
फिर प्रोफेसर ने छात्रों को समझाया कि ये जार आपके जीवन को दर्शाता है। बड़े-बड़े पत्थर आपके जीवन की जरूरी चीजें हैं – आपका परिवार, आपकी पत्नी, आपका स्वास्थ्य, आपके बच्चे – ऐसी चीजें हैं कि अगर आपकी बाकी सारी चीजें खो भी जाएं और सिर्फ ये चीजें रहें तो भी आपकी जिन्दगी पूर्ण रहेगी।
ये कंकड़, उन वस्तुओं की भांति हैं, जो आपके जीवन के लिये महत्वपूर्ण है – जैसे आपका व्यवसाय, नौकरी, आपका घर इत्यादि। …और ये रेत बाकी सभी छोटी-मोटी चीजों को दर्शाती हैं।
अगर आप जार को पहले से मिट्टी से भर देंगे तो कंकड़ों और पत्थरों के लिए कोई जगह ही नहीं बचेगी। यही आपकी जिन्दगी के साथ होता है। अगर आप अपना सारा समय और ऊर्जा छोटी-छोटी चीजों में लगा देंगे तो आपके पास कभी उन चीजों के लिये समय ही नहीं होगा जो आपके लिए आवश्यक है। उन चीजों पर ध्यान दीजिए जो आपकी खुशी के लिए जरूरी है।
सबसे पहली प्राथमिकता है तो वह है आपका स्वयं का स्वास्थ्य, परिवार, आपके मित्र और आपका कार्य। धन इसीलिये अर्जित किया जाता है कि आप शरीर से स्वस्थ रहें, अपने परिवार, माता-पिता, पत्नी, बच्चों के साथ हिल मिलकर रहें। यदि इस प्राथमिक सुख की ओर आपने ध्यान नहीं दिया तो आप जीवन में कुछ भी श्रेष्ठ हासिल नहीं कर रहे हैं। लक्ष्मी वहीं रहती हैं जहां स्वच्छता हो, शुद्धि हो। मैं कहता हूं कि शरीर और मन दोनों की स्वच्छता आवश्यक है। दोनों स्वच्छ होंगे तो आपके शरीर रूपी देवालय में शौर्य भी रहेगा, ऊर्जा भी रहेगी अर्थात् शक्ति भी रहेगी और इसमें श्रेष्ठ लक्ष्मी का भी निवास होगा।
शरीर की स्वच्छता के साथ-साथ मन की स्वच्छता परम आवश्यक है। पूजा, ध्यान-धारणा, योग-समाधि, उपासना, भजन-कीर्तन, अध्ययन, शास्त्र सारे बने ही इसलिये हैं कि हमारा मन स्वच्छ रहे, मन शुद्ध रहे। शुद्ध मन रूपी निवास में ही लक्ष्मी का निवास स्थाई रूप से हो सकता है। जब-जब जीवन में षड् दोष रूपी आलस्य, प्रमाद, उन्माद, गर्व, ईर्ष्या, द्वैष आते हैं तो यह जानिये कि यह सब अस्वच्छता, गन्दगी का स्वरूप हैं जो आपके जीवन में अलक्ष्मी अर्थात् दरिद्रता के आगमन की पूर्व सूचना दे रहे हैं। इन छः राक्षसों को बार-बार मारना आवश्यक है। इन्हें मारने के लिये असीम ऊर्जा, शौर्य और बल की आवश्यकता है। शक्ति का उपयोग इन छः दुर्गणों को समाप्त करने के लिये करना है। निश्‍चित रूप से इसके लिये आवश्यक है कि हमारा चिन्तन, बुद्धि और विवेक से संचालित हो।
भगवती दुर्गा और भगवती लक्ष्मी के पूजन का सार यही है कि आप अपने मन को स्वस्थ रखें, अपने मन को  भूतकाल की घटनाओं से दुःखी न होने दें और अपने मन को भविष्य की आशंका के चंगुल में भी फंसने नहीं दें। जिस दिन आपने यह क्रिया प्रारम्भ कर दी उसी दिन से आपके जीवन में सौभाग्य का सूर्योदय होगा।
गुरु का सान्निध्य इस मन की हताशा, निराशा को समाप्त करने का सहज, सरल, सुगम उपाय है।
मैं आपको ऊर्जा का आशीर्वाद दे रहा हूं, मैं आपको उत्साह का आशीर्वाद प्रदान कर रहा हूं, मैं आपको उमंग और जोश का आशीर्वाद प्रदान कर रहा हूं। यह चार तत्व – ऊर्जा, उत्साह, उमंग और जोश आपको सदैव और सदैव जीवन्त बनाए रखेंगे।
हर बात में खुशी को देखो और अपने जीवन में संतोष और शांति का खुले हृदय से दोनों हाथ खोलकर स्वागत करो। लक्ष्मी आपसे कभी दूर नहीं रहेगी।
पुनः दीपावली के पावन अवसर पर आपको महालक्ष्मी सिद्धि का आशीर्वाद प्रदान करता हूं।
सस्नेह आपका अपना
नन्दकिशोर श्रीमाली

 

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