अपनों से अपनी बात – Mar 15
अपनों से अपनी बात…प्रिय आत्मन्,
शुभाशीर्वाद,
आप सभी साधकों, शिष्यों को बहुत-बहुत आशीर्वाद, आप तो एक के बाद, एक कमाल करते जा रहे हो। सारे शिविर भव्य से भव्यतम् होते जा रहे हैं। अभी महाशिवरात्रि का शिविर प्रयाग राज इलाहबाद में सम्पन्न करेंगे और उसके पश्चात् आनन्द, उल्लास का महापर्व होली, यह एक ऐसा महापर्व है जब हम पूरे वर्ष की दुश्चिन्ताओं को भुलाकर, उन्हें मिटाकर अपने मन, वचन, भाव में नवीन रंग प्रदान करने का प्रयास करते हैं। यही पर्व है जिस दिन हम प्रतीक रूप में होलीका का दहन करते हैं और इस होलीका दहन के द्वारा यह प्रकट करते हैं कि संसार की अग्नि चाहे कितनी ही तीव्र हो जाए चारों और ज्वालाएं हो जाएं लेकिन सत्य रूपी प्रह्लाद हर अग्नि से ओर अधिक मजबूत होकर जीवन्त रहता है।
आप सभी सद्गुरु निखिल के प्रह्लाद रूपी भक्त, साधक, शिष्य हैं और आपको संसार की कोई अग्नि, कोई बाधा, कोई आलोचना रोक नहीं सकती है। मैं विश्वास के साथ कहता हूं कि जिस मार्ग पर आप बढ़ रहे हैं वह सत्य और सिद्धान्त का मार्ग है। आप अपने निखिल सिद्धान्तों पर अडिग-अटल रहें। कोई हिरण्याकश्यप, कोई होलिका आपको विचलित नहीं कर सकती है।
यह होली की रात्रि तांत्रोक्त रात्रि भी है। इस रात्रि को शयन नहीं करना है, जाग्रत होकर तीव्र साधनाएं करनी हैं। सालभर में आपने जो साधनाएं सम्पन्न की हैं और आपने वर्षभर की साधनाओं में जिस-जिस सामग्री का उपयोग कर लिया है उसे होली की अग्नि में समर्पित कर दें। तंत्र की इस रात्रि को विशेष संकल्प लें। सत्य के प्रतीक प्रह्लाद बनने का संकल्प लें। नृसिंह तथा विष्णु रूपी सद्गुरु निखिल हर दृष्टि से आपकी रक्षा करेंगे और बाधाओं से ऊपर उठायेंगे तथा संसार के रोग-शोक-ताप से अवश्य ही मुक्त करेंगे।
यही तो गुरु, ईश्वर और देवताओं का कार्य है। अपने भक्त की, अपने साधक की हर दृष्टि से रक्षा करना और उसे अपने जीवन में चक्रवर्ती बनाना। निखिल मंत्र विज्ञान परिवार का विस्तार तीव्रता से हो रहा है और आप सभी इस महान् विराट् यज्ञ में सहभागी हैं।
अभी पिछले दिनों उड़ीसा में बसंत पंचमी के शुभ अवसर पर झारसुगड़ा गया। उड़ीसा में मुझे भक्ति, संगीत, भावना, पूजा का जो वातावरण मिला वह तो मन को प्रसन्न कर देने वाला था। स्थान-स्थान पर सुन्दर विशाल मन्दिर, हजारों वर्षों से चली आ रही, श्रेष्ठ भक्ति परम्परा। भक्ति प्रिय शांत स्वभाव के श्रेष्ठ लोग, सबसे बड़ी बात तो यह है कि शक्ति साधना में उड़ीसा का विशेष स्थान रहा है। हजारों वर्षों से भक्ति और साधना की परम्परा यहां अक्षुण्ण चली आ रही है।
यह है हमारी वैदिक संस्कृति, सनातन संस्कृति जिससे पूरा भारत एक सूत्र में जुड़ा हुआ है। हमारी संस्कृति पर भी संकट आये थे और एक बार तो ऐसा लगा कि यह संस्कृति खण्ड-खण्ड हो जायेगी तब शंकराचार्य जैसे महापुरुष ने पूरे भारतवर्ष का भ्रमण किया और भारतवर्ष में चारों कोनों, चार स्थानों पर ब्रदीनाथ, द्वारकानाथ, जगन्नाथ और रामेश्वरम् में भारतीय संस्कृति के आधार स्तम्भ पीठों की स्थापना की। यह क्रिया पूरी भारतीय वैदिक संस्कृति को एक सूत्र में जोड़ने की क्रिया थी। आपको यह जानकर हर्ष होगा कि उड़ीसा के साधकों ने गुरु पूर्णिमा हेतु आपको जगन्नाथपुरी का आमन्त्रण भेजा है।
आपको यह जानकर गर्व होगा कि भारत को एक सूत्र में पिराने का कार्य किसी राजा, महाराजा ने नहीं किया। यह कार्य ॠषियों द्वारा, गुरुओं द्वारा सम्पन्न किया गया। इसी कारण हमारे यहां अनेकता में एकता का भाव है। गुरु-शिष्य परम्परा, गुरुओं द्वारा प्रदत्त ज्ञान ही हम सब आर्य पुत्रों को जोड़े हुए है।
हर कोई जीवन को आनन्द से जीना चाहता है। अपनी उन्नति चाहता है लेकिन उसके मूल में यह भाव भी होना चाहिए कि मेरे साथ-साथ समाज और राष्ट्र की उन्नति हो। हमारी संस्कृति अक्षुण्ण रहे। वेद मंत्रों की गूंज, पूजा, अर्चना, तीर्थ-भ्रमण, साधना, तपस्या, सामूहिक पूजन, भागवत, रामायण, यज्ञ, रथ यात्रा हमारे भारतीय जीवन के अंग हैं।
इस सम्बन्ध में किये गये उत्सव केवल पारम्परिक उत्सव नहीं हैं कि चलो अब नवरात्रि आ गई है, नौ दिन उत्सव मना लेते हैं, अब रथ यात्रा आ गई है। होली हो अथवा दीपावली, नवरात्रि हो अथवा अक्षय तृतीया ये सारे उत्सव धार्मिक उत्सव के साथ-साथ आध्यात्मिक उत्सव भी हैं। ये केवल देवी-देवताओं के महिमा मण्डन और साज श्रृंगार के पर्व नहीं हैं अपितु महान साधनात्मक क्षण हैं। जिन क्षणों में हम दैवीय शक्ति को अपने भीतर साक्षात अनुभव कर सकते है। इसी से हमें अपने जीवन में गर्व ऐर स्वाभिमान अनुभूत होता है।
आप एक क्रियाशील साधक हैं और अपने जीवन में निरन्तर कार्यशील बने रहना चाहते हैं, अपनी उन्नति चाहते है तो इसका एक सरल सूत्र है। प्रत्येक कार्य के लिये छः अवस्थाएं आती हैं – 1. जानकारी, 2. भाव (आभास), 3. व्यवहार (क्रिया), 4. अनुभव, 5. अनुभूति और 6. आनन्द। ये छः चक्र हैं। जिन्हें जाग्रत करना है। सबसे पहले आपको किसी कार्य के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त होती है, देखते, पढ़ते सुनते हैं तो उस कार्य को करने का भाव उत्पन्न होता है और जब भाव उत्पन्न होता है तो हम उस कार्य को सम्पन्न करते हैं। कार्य की सम्पन्नता से अनुभव आता है अर्थात् फल मिलता है। यह फल कभी हमारे अनुकूल हो सकता है और कभी अनुकूल नहीं भी हो सकता है। लेकिन इतना सत्य है कि कार्य करने से मन में एक पूर्णता की अनुभूति होती है और इस अनुभूति से आनन्द प्राप्त होता है और जब एक बार आनन्द प्राप्त होने लग जाता है तो हम पुनः इस चक्र की यात्रा करते हैं अर्थात् और अधिक जानकारी प्राप्त करने के इच्छुक हो जाते हैं।
इनमें से प्रथम तीन अवस्थाएं – जानकारी, भाव और क्रिया बुद्धि के पक्ष हैं और आगे की तीन अवस्थाएं अनुभव, अनुभूति और आनन्द मन के भाव हैं।
साधना का मार्ग भी बिल्कुल ऐसा ही है। साधना का तात्पर्य है – प्रत्येक वह कार्य जिसे हम अपने जीवन में सिद्ध करना चाहते हैं, आज यह बात मैं विशेष रूप से इसलिये लिख रहा हूं कि आने वाले दिनों में बगलामुखी साधना के दो विशेष शक्ति पर्व आ रहे हैं और आपको इन शक्ति पर्वों को जानकर अपने भीतर भाव लाकर साधना की क्रिया करनी है और इससे निश्चित रूप से अनुभव प्राप्त होगा, शक्ति की अनुभूति प्राप्त होगी और आनन्द तो निश्चित रूप से आयेगा ही। एक अद्भुत शक्ति का आपके रोम-रोम में स्थापन होगा।
बगलामुखी साधना प्रत्येक साधक को अवश्य सम्पन्न करनी है। आपको तो केवल भाव की क्रिया और व्यवहार की क्रिया सम्पन्न करनी है। अनुभूति, अनुभव और आनन्द तो गुरु द्वारा प्रदत्त मानसिक तरंगों एवं शक्तिपात से आपको निरन्तर प्राप्त होता रहेगा।
प्रत्येक क्षण का उपयोग कीजिये, उपभोग कीजिये, शक्ति की सार्थकता अपने रोम-रोम को जाग्रत करने में है।
हर समय आनन्दित रहें, यही आशीर्वाद है… सदैव प्रसन्न रहो…।
सस्नेह आपका अपना
नन्दकिशोर श्रीमाली
Speak with loved ones …
Dear Loved Ones,
Divine Blessings,
Choicest Heavenly Blessings to all of you sadhaks and disciples, you have been performing wonders, one after the another.
The magnificence and grandeur of the Sadhana camps has been steadily enhancing. We will soon organize the Maha Shivraatri camp in Allahabad Prayag-Raj, and the joyful and jubilant Holi thereafter, this is a mega-event when we forget the worries and tensions of the entire year, erase them to strive to bring in new novel colors into our mind, words and emotions. We mark this festival with Holika-Dahan, and through Holika-Dahan we exhibit that if the fires of the world become extremely intense, even if these burning flames surround us on all sides, the Prahlaad form of Truth remains ever stronger and active than the surrounding blazes.
All of your are Prahlaad-like devotees, sadhaks and disciples of SadGurudev Nikhil, and any fire, any obstacle, or any criticism can not dare to stop you. I state confidently that the path on which you are progressing, is the path of truth and principle. You should abide firmly and absolutely by the Nikhil principles. Any Hirnyakshyp or any inferno cannot make you deviate from the track.
This Holi night is also the Tantrokt night. You should not sleep on this night, you have to practice Sadhanas with full vigor and energy. Whatever Sadhanas you have accomplished throughout the year, and whatever Sadhana materials you have used in those Sadhanas, you should offer it to the Holi fire. Take special resolution on this Tantra night. Pledge to become a symbol of truth like Prahlaad. The Narsingh and Vishnu form of SadGuru Nikhil will protect you in every manner, will elevate you from the hindrances and grant you freedom from the sickness-sorrow-sadness of this world.
This is the act of Guru, providence and the Gods. Protect the devout, the sadhak in every manner and make him or her all-round victorious in life. The Nikhil Mantra Vigyan is rapidly expanding and all of you are participating in this great grand sacrifice.
I visited Jarasugdha in Orissa on the occasion of Basant Panchami. The atmosphere of devotion, music, spirit and worship in Orissa pleased my mind. Beautiful spacious temples at each place, standing for thousands of years, splendid traditional devotion. Admirable peace-loving devoted people. A major fact is that Orissa has a special place in the Shakti Sadhanas. The tradition of devotion and sadhanas has been continuing here unabated for thousands of years.
This is our Vedic culture, the eternal culture, which binds the whole of India together. Crisis did come to our culture, and once it looked like that this culture will be exterminated; then Masters like Shankaracharya traveled throughout India, and set up foundation points of Indian culture on four corners – Badrinath, , Dwarkanath, Jagannath and Rameswaram. This process was done to tie the entire Indian Vedic culture in one knot. You will be happy to know that the Orissa sadhaks have invited you to Jagannath Puri for Guru Poornima.
You will be proud to know that the task of joining India as a single entity was not performed by any king or emperor. This task was done by Sages and Gurus. Therefore, we have an environment of unity in diversity. The Guru-disciple tradition, the knowledge transfer though Gurus is enjoining all of us Aryaputras together.
Everyone wants to live a life filled with joy. Wishes for self-advancement, one should also consider that the society and the nation should progress likewise along with one’s growth. Our culture should remain intact. The divine echo of Vedic chants, worship, prayers, pilgrimage tours, Sadhana, meditation, penance, collective worship, Bhagwat, Ramayana, Yagya, Rath-yatras are all part and parcels of our Indian life.
The festival celebrated in this context are not just traditional celebrations, that Navraatri has arrived, let us celebrate nine days, now Rath-Yatra has arrived etc. Holi or Diwali, Navraatri or Akshaye Tritiya , all of these are spiritual festivals as well as religious festivals. These are not just the events to decorate, adorn or glorify Gods-Goddesses; rather these are grand spiritual moments. We can realize the divine powers inside ourselves physically in these moments. This leads to self-respect and a sense of pride in our lives.
You are an energetic sadhak and you wish to continue to be ever-active in your life. There is a simple formula to achieve success and development. Each task has six phases –
1. Information,
2. Urge (intuition),
3. Behavior (action),
4. Experience,
5. Feelings and
6. Joy.
These are the six stages of the cycle. These have to be triggered. First, you get information about a task, you read, listen or view about it, then you become eager to accomplish that task, and when we get this motivation; then we accomplish that task. We obtain experience or get fruits of benefit from the accomplishment. These fruits of labor might either be favorable or unfavorable to us. But this is a universal truth that a feeling of completeness comes to our mind after completing a task; and we obtain joy from this feeling. And once we taste this joy, we again re-start in this cycle i.e. we get further interested to gather more and more knowledge about the task.
The first three stages – Information, eagerness and Action are part of practical mind and the further three stages – Experience, Feeling and Joy are part of the emotional mind.
The path of Sadhana is exactly same. Sadhana means – All the work which we wish to accomplish in our life. I am writing this line especially since two special Shakti events of the Baglamukhi Sadhana are drawing close, and you have to perform Sadhana by self-motivation with the knowledge of Shakti-events; and you will definitely get experiences, will certainly obtain sensations of strength and energy ; and the Joy will surely arise. An amazing power will be established in each cell of your body.
Every Sadhak has to definitely perform Baglamukhi Sadhana. You have to perform only the functions of Urge and Actions. The Experience, Feeling-Sensations and Joy will continuously reach you through the mental waves and Shaktipaat from Gurudev.
Please utilize each moment, use it, and the significance of energy lies in imbibing it in each cell of your body.
Be happy all the time, it is a blessing … Always be happy ….
Cordially yours
Nand Kishore Shrimali