अपनों से अपनी बात – February 2016

अपनों से अपनी बात…
प्रिय आत्मन्,
आशीर्वाद,

 

नववर्ष के शुभारम्भ पर आप सबको बहुत-बहुत बधाई और मेरा आशीर्वाद। यह नूतन वर्ष आपके लिये प्रत्येक दृष्टि से मंगलमय हो, आप अपने कार्यों में और अधिक उच्चता प्राप्त करें। घर-परिवार में सुख-शांति, समृद्धि और सहयोग हो। मैं परिवार के सभी बालक-बालिकाओं, सदस्यों को भी यह आशीर्वाद देता हूं कि वे श्रेष्ठ विद्या अध्ययन करें और उनकी विद्या द्वारा उन्हें श्रेष्ठ मार्ग प्राप्त हो। मैं आपको यह भी आशीर्वाद प्रदान करता हूं कि आपका यह वर्ष पूर्ण निरोगमय हो, आप त्रिविध दोष – अधिदैविक, अधिदेहिक और अधिभौतिक तापों से मुक्त हों। अपने शरीर और मन से पूर्ण स्वस्थ रहते हुए उन्नति के पथ पर निरन्तर अग्रसर रहें।

 

सबसे बड़ी शक्ति मानसिक एकाग्रता है, यह सारे देवियों की देवी है, अपने तन-मन में बिखरी हुई शक्तियों का संयोजन करें। उन्हें एकाग्र भाव से अपने कार्य की ओर लगाएं। इस एकाग्र भाव को प्राप्त करने के लिये आत्मबल आवश्यक है और यह बल आपके भीतर से उत्पन्न हो।मैं चाहता हूं कि मेरे सारे शिष्यों में आत्म बल का भाव परम प्रबल हो जिससे वे जीवन में सर्वत्र विजय प्राप्त करें।

 

इस नववर्ष में कुछ बातें विशेष रूप से कहना चाहूंगा। सब जानते हैं कि जीवन में विजय प्राप्त करने के लिये संघर्ष आवश्यक है और संघर्ष का अर्थ आपने यह जान लिया है कि ‘संघर्ष अर्थात् लड़ना है’, मैं कहता हूं कि आपको किसी भी रूप से लड़ना नहीं है, संघर्ष अवश्य करना है लेकिन इस संघर्ष में प्रतिक्रिया का भाव या विरोध का भाव नहीं होना चाहिए। शास्त्रों में कहा गया है कि – काम, क्रोध, लोभ, मोह सबसे बड़े शत्रु हैं और इन्हें समाप्त करना है। मैं भी यही कहता हूं कि – ये तुम्हारे शत्रु हैं, लेकिन तुम्हें इन से लड़ना नहीं है। जीवन के प्रत्येक भाग में प्रत्येक दिन ये चारों तत्व काम, क्रोध, लोभ, मोह तो चलते रहेंगे। इसमें भी मोह में बड़ी ताकत होती है। आपका यह मोह कार्य के प्रति हो, संतान के प्रति हो, धन के प्रति हो, रूप के प्रति हो, किसी व्यक्ति के प्रति हो, गुरु के प्रति हो, ईश्‍वर के प्रति हो, यह मोह तत्व तो अवश्य रहेगा। इस मोह से लड़ना नहीं है। अपनी इस सबसे बड़ी ताकत को उचित दिशा देना है। विचार करना है कि आपका मोह आपको दास बना रहा है अथवा आपका मोह आपको मालिक बना रहा है। अंग्रेजी में मोह को झरीीळेप कहा गया है। इस मोह के बिना तो जीवन बिल्कुल ही सूना हो जाता है। यदि जीवन में थोड़ा लोभ, थोड़ा मोह, थोड़ा काम नहीं रहा तो जीवन कैसा रूखा-सूखा हो जायेगा। अपने इस मोह को अपनी शक्ति समझो और इसे छिन्न-भिन्न मत होने दो। इसे अपने लक्ष्य प्राप्ति में लगा दो। कार्य के प्रति मोह, लक्ष्य के प्रति मोह आपको अपने जीवन में परमानन्द अवश्य प्रदान करेगा।

 

इसलिये मैं कहता हूं कि जो भी कार्य करो पूरी जिजिविषा (जीने की चाह, ऊशीळीश ींे ङर्ळींश) के साथ, जोश के साथ जीवन्त भाव से करो। यह जीवन्त भाव भी मोह का ही स्वरूप है इसलिये मोह को गलत मत समझो। तुम्हें कार्य के प्रति मोह होगा, धन के प्रति मोह होगा तभी कार्य में और धन में वृद्धि हो सकती है। जीवन में किसी भी प्रकार का निर्माण हो एक मोह भाव तो आवश्यक है।

 

शिव का शक्ति के प्रति और शक्ति का शिव के प्रति मोह भाव ने ही तो इस सृष्टि का निर्माण किया। ब्रह्मा, विष्णु और महेश में से केवल और केवल महेश के ही संतानें हुई, गणेश और कार्तिकेय हुए, ॠद्धि और सिद्धि उनकी पत्नियां हुई और उनसे शुभ और लाभ पैदा हुए। यह सारा संसार ॠद्धि-सिद्धि, शुभ-लाभ, गणेश-कार्तिकेय का स्वरूप है। जिनका उद्भव शिव और शक्ति के सहयोग से हुआ।

 

जब शक्ति भ्रमित हो जाती है और अति आवेशित हो जाती है तो विनाश की क्रिया, प्रलय की क्रिया प्रारम्भ हो जाती है और ऐसी स्थिति में शिव मोह भाव में शक्ति के नीचे लेट जाते हैं। जब शक्ति शिव को देखती है तो उसका सारा क्रोध प्रलय भाव शांत हो जाता है और पुनः सृजन की क्रिया प्रारम्भ हो जाती है। इसीलिये शिव के अर्द्धनारीश्‍वर स्वरूप में शक्ति उनके वाम भाग में उनके साथ ही स्थित हैं।

 

मेरा विचार है कि अति संघर्ष और अति विनाश का भाव शक्ति का प्रचण्ड स्वरूप है और तुम निरन्तर और निरन्तर अपने काम, क्रोध, लोभ, मोह से लड़ते जाते हो, शक्ति प्रवाह के विरुद्ध होते जाते हो, प्रकृति के विरुद्ध जाते रहते हो इसीलिये जीवन के छोटे-छोटे संघर्षों में थक जाते हो। ये सब काम, क्रोध, लोभ, मोह तुम्हारे साथ-साथ चलने वाले व्यक्ति हैं, समाज है, परिवार है इनसे लड़ने की बजाय इन्हें अपने अधीन कर लो। तुम्हें विजय प्राप्त करनी है तो लड़ कर नहीं, इनको अपने नियन्त्रण में करने से होगी। निरन्तर लड़ते रहने से तो कभी तुम जीत जाओगे और कभी ये विरोधी तत्व जीत जायेंगे। तुम इन्हें शत्रुओं का नाम देते हो, मैं कहता हूं कि ये सब तुम्हारे शत्रु नहीं हैं। तुम अपनी शक्ति व्यर्थ में क्षीण मत करो। केवल और केवल लड़ते रहना ही तुम्हारे जीवन का धर्म नहीं है।

 

आने वाले दिनों में दो महापर्व – महाशिवरात्रि और महोरात्रि – नवरात्रि आ रही हैं। शिवरात्रि तो  07 मार्च 2016 को है और नवरात्रि 08 अप्रैल 2016 से 15 अप्रैल 2016 तक है। इन चालीस पचास दिन में तुम क्या सीखते हो, क्या विचार करते हो और क्या अनुभव करते हो? यह बड़ा ही महत्वपूर्ण है। इसलिये इन चालीस दिनों में जम करके पूरे भाव के साथ साधना अवश्य करना, अभिषेक अवश्य करना क्योंकि जब जीवन में शिव तत्व का विकास होता है, शिव का नियम, शिव का गुण आ जाता है तो शक्ति स्वयं शिव से मिलन करती है। यही रहस्य है कुण्डलिनी शक्ति का। शक्ति तुम्हारे भीतर स्थित है और शिव तुम्हारे सहस्रार में स्थित है। इन दोनों का मिलन निरन्तर और निरन्तर होना चाहिए। अपनी शक्ति को ऊर्ध्वगामी बनाना है, ऊपर की ओर उठाना है। इस बात में ही जीवन के सारे रहस्य निहित हैंै। इस शिव भाव का, इस शक्ति भाव की उपासना का ज्ञान गुरु के मार्ग दर्शन से ही प्राप्त होता है।

 

शिव भाव आदि पुरुष भाव है और शक्ति धारण तत्व भाव है। जब तक धारण शक्ति नहीं आती है तब तक मनुष्य अधूरा है। अपनी इस धारण शक्ति को प्रबल बनाना है। शिव और शक्ति का प्रेम ही ऐसा है कि वे एक दूसरे के बिना रह नहीं सकते हैं और इनके मिलन से सृजन होता है, निर्माण होता है। शिव त्रिकोण ऊर्ध्वमुख है और शक्ति त्रिकोण अधोमुख हैं। इनका मिलन ही परम आनन्द का स्वरूप है।

 

अपने जीवन को एकांकी भाव से मत जीओ। इस जीवन में कुछ झरीीळेप, कुछ शौक, कुछ इच्छाएं, कुछ भावनाएं अपनी-अपनी कल्पना के अनुसार अवश्य बनाएं और अपने इस झरीीळेप को अवश्य पूरा करें।

 

तुम सब मुझसे मिलने आते हो, यह तुम्हारा झरीीळेप है, तुम्हारी खुशी है, तुम्हारा मेरे प्रति आग्रह है, अनुग्रह है। मुझे तुम्हारे इस भाव को जानकर, समझकर तुमसे मिलने में तुमसे अधिक आनन्द आता है। इस आनन्द तत्व को हम सब मिलकर और बढ़ाते रहें, अपने जीवन में निरन्तर और निरन्तर शक्ति का मिलन शिव भाव से होता रहे, अपने प्रत्येक क्षण में क्रिया के साथ-साथ, शांति और संतोष के साथ परम आनन्द का अनुभव करें।

 

यही मेरी शुभकामना है, यही मेरा आशीर्वाद है, सदैव प्रसन्न रहो।
सस्नेह आपका अपना

 

नन्दकिशोर श्रीमाली
Dialog with Loved Ones …
Dear Loved One,
Divine Blessings,

 

Best wishes to each one of you for the New Year and my choicest blessings. May this new year be magnificent for you in all respects, and may you achieve better accomplishments in your work in the new year. Your home and family should be full of peace-joy, prosperity and cooperation. I also bless all the young boys-girls family members to achieve deeper understandings in their studies, and they should obtain excellent achievements through their knowledge.  I also bless you to stay disease-free this year, and pray that you remain free from the tri-flaws – malefic-spiritual, malefic-physical and malefic-material failings. May you continue steadily on the path of progress with a healthy mind and body.

 

The greatest power is the power of mental concentration, it is the goddess of all goddesses, you should combine all the powers scattered throughout your body and mind. Aggregate them and converge them towards accomplishing your work. Will-power is necessary to achieve this convergence and this initiative should rise from within yourself. I desire that the willpower should be the strongest force within my disciples so that they emerge victorious throughout their life.

 

I will like to provide some specific advice in this new year. Everyone knows that struggle is a necessity to obtain success in this life, and you believe that “struggle means fight”. I advise that you do not need to fight in any form, you ought to struggle, but you should avoid any expression of  protest or confrontation in this struggle. The holy scriptures state that  – lust, anger, greed, attachment are the biggest foes and should be terminated. I also say that – these are your enemies, but you do not have to fight them. These four elements of life – lust, anger, greed, attachment will continue every day through all stages of your life. The attachment has the strongest power.  This attachment could be towards  work, children, wealth, beauty, any specific person, Guru, or God; this attachment will persist. You do not need to fight this attachment. You should guide this biggest strength to the proper direction. You need to consider whether this attachment is making you its slave or are you controlling this attachment. This infatuation is also known as “Passion” in the English language. The life becomes completely meaningless in the absence of this affection. If life doesn’t contain any small traces of greed, infatuation or desires; then the life will certainly look like a barren completely deserted. Treat this obsession as your strength and do not let it wither away. Utilize this to pursue your goals. The attachment towards your work, towards your own goals will certainly provide you bliss and joy in life.

 

Therefore, I state that whatever work you do, you should perform it with full enthusiasm (desire to live), with full passion and energy. This passionate energy is also a form of attachment, so do not think of attachment as an evil. When you are passionate towards your work, when you have a love for wealth, only then will you be able to progress your work and extend your wealth. This sense of fascination is required to build any novelty in life.

 

The Divine attachment of Shiva towards Shakti and of Shakti towards Shiva generated this universe. Mahesh was the only one from the Holy Trinity of Brahma, Vishnu and Mahesh to have progeny, to give birth to Ganesh and Kartikeya, their wives were Riddhi and Siddhi, and Shubh and Labh were born out of that wedlock union. This entire universe is a microcosm of Riddhi-Siddhi, Shubh-Labh and Ganesh-Kartikeya. All of which originated from the merger of Shiva and Shakti.

 

When the Shakti becomes disoriented and gets highly charged, then the process of destruction, of devastation initiates; and Lord Shiva lies down beneath Goddess Shakti in the passionate state. When Mother Shakti views Lord Shiva, then Her entire anger evaporates, and the process of creation restarts. Therefore, Shakti is placed on the left side of Lord Shiva in His Ardhanareeswara form.

 

I think that extreme conflict and extreme destruction are violent forms of Shakti, and you continuously and steadily keep on combating with your desires, anger, greed and attachment; keep fighting the flow of Shakti energy; keep going against the natural flow; so you get tired from the small, minor conflicts of your life. All of these desires, anger, greed and  attachment will walk alongside you, are in the form of society and family, you should control them instead of fighting against them. You need to achieve success, not by overcoming them, but by controlling and mastering them. If you continue to fight, then sometimes you will win and sometimes they will win.You call them as your foes, I state that these are not your enemies. Do not waste your energy in vain. Your life religion is not limited to continue to struggle and fight.

 

In the coming days, two Mahaparvas – Maha Shivaratri and Maharatri – Navraatri are approaching. Shivraatri is on March 7, 2016, and the Navraatri is from April 8, 2016 to April 15, 2016. It is very important and significant that what you learn, what you think, what you experience during these forty-fifty days. So perform Sadhana with full concentration in these forty days, you should certainly perform Abhishek, because when the Shiva element develops in life, when Shiva form and attributes evolve, then Shakti Herself merges with Shiva. This is the secret of the Kundalini power. The power lies within you and your Shiva is located in your Sahastrara. There should be a constant continuous merger and union of them. Raise your Shakti upwards, uplift your energy higher. The entire mystery of life is contained within this fact. Only guidance from Gurudev can provide this knowledge of the Divine expressions of Shiva and Shakti.

 

Shiva Sense is the Masculine expression and Shakti binding is the feminine element expression. A human is incomplete till he achieves holding power. You have to strengthen this sustaining power. The Divine love of Shiva and Shakti is such that they cannot exist in the absence of each-other, and their union leads to the creation, the building of universe. The Shiva triangle is upbound and the Shakti triangle is downbound. Their union is the expression of the ultimate joy.
Do not live your life is solitude. Bring in some passion, some wishes, some desires and some feelings in your life as per your imagination; and certainly fulfill these passions.

 

All of you come to meet me, this is your passion, your happiness, your supplication towards me, and a form of  your graceful requests. I get much more joy than you upon knowing and understanding of these feelings of yours. Let us continue to steadily enhance this joyous element, continue to merge Shiva and Shakti in our lives, and experience jubilant joy with peace and contentment in every action at every moment of life.
These are my wishes, this is my blessing, be happy always.

 

Cordially yours
Nand Kishore Shrimali
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