अपनों से अपनी बात – Dec 14

अपनों से अपनी बात…
प्रिय आत्मन्,
शुभाशीर्वाद,

एक पूरा साल बीत रहा है, पूरे साल में जो भी घटनाएं घटित हुई हैं उनमें से कुछ घटनाएं आपकी समझ के अनुसार अच्छी थीं और कुछ घटनाएं बुरी थीं। वे घटनाएं तो बीत गईं लेकिन उनकी यादें आपसे चिपककर बैठने के लिये तैयार हैं। नववर्ष के साथ ही हम इन घटनाओं की याद से अपने आपको मुक्त करना चाहते हैं? तो इस नये वर्ष का स्वागत कैसे करें? नये वर्ष में तीन चीजें आप विशेष रूप से अपने जीवन में लाना चाहते हैं- ये तीन चीजें है – सुख… सुख… और सुख… और जिन तीन चीजों को आप अपने जीवन से हटाना चाहते हैं – वे तीन चीजें हैं – दुःख… दुःख और दुःख।

लेकिन अब मूल प्रश्‍न उठ खड़ा होता है कि सुख और दुःख की परिभाषा क्या है? जब तक इस परिभाषा को नहीं समझेंगे तब तक न तो आप अपने पिछले वर्ष का मूल्यांकन कर पायेंगे और न ही नये वर्ष का दोनों हाथ खोलकर स्वागत कर पायेंगे। यह आवश्यक है कि आपकोजीवन में खुश होना ही चाहिए लेकिन खुशी क्या है, सुख क्या है? इस प्रश्‍न पर विचार करें और पिछले वर्ष को निष्काम भाव से भूल जायें। पिछले वर्ष में आप एक पात्र की भूमिका में थे आपने अपना पिछला पूरा वर्ष ठीक उसी प्रकार जीया जिस प्रकार नाटक में एक कलाकर विभिन्न प्रकार के किरदारों का अभिनय करता है उसी प्रकार आप भी अभिनय कर रहे थे आपने अपनी क्षमता के अनुसार अभिनय सम्पन्न किया लेकिन दूसरों के निर्देशन में जीवन जीया, कार्य किया। दूसरों ने जिस तरह से आपको नचाया, उस तरह से आप नाचे। दूसरों ने आपको पीड़ा दी उससे आप पीड़ित हुए, कुछ अपशब्द बोले, कहीं कोई अपमान हुआ, कहीं शरीर को चोट लगी, कहीं शरीर को कोई व्याधि हुई और आप उसी रंग में रंगे हुए उन यादों का बोझा अपने कंधों पर ढोते हुए नए साल में प्रवेश करने का सोच रहे हैं? यदि बोझ ही आपके साथ रहा तो आने वाले वर्ष में खुशी कैसे आएगी? सुख कैसे आएगा? सबसे पहले आपको अपने पिछले वर्ष की यादों के पुलिंदे में से जो दुःखद पल हैं उन्हें विस्मृत करना पड़ेगा। गलतियों से सीखने का अर्थ उन गलतियों पर रोना रोकर दूसरों को दोष नहीं देना है न ही गलतियों के कारण अपने आपको दोषी ठहराना है। इस दोष भाव से मुक्त होकर नववर्ष की यात्रा प्रारम्भ करनी है।

इसके लिये आवश्यक है कि हम कर्म योग का सिद्धान्त अपना लें। कर्म योग का सिद्धान्त यह कहता है कि इस संसार को छोड़कर भागो मत, इस संसार में रहो, इससे प्रभावित भी मत होओ, इस कर्म योग के सिद्धान्त का प्रयोग आत्म शांति, आत्म सुख, आत्म ज्ञान की प्राप्ति के लिये ही होना चाहिए।

नये वर्ष में बहुत कुछ नया अवश्य होगा, प्रतिपल बदलाव का समय है और नयेपन को स्वीकार ‘करना पड़ेगा’ इस भाव के साथ नयेपन को मजबूरी में स्वीकार नहीं करना है बल्कि पूरी ऊर्जा एवं आत्मीयता के साथ नयेपन को खुलकर (दोनों हाथों को फैलाकर) स्वीकार करना है। भले ही पिछले वर्ष कुछ कार्यों में आपकी हार हुई थी और कुछ कार्यों में जीत। जो कुछ आप अपने लिए चाहते थे वह उसके अनुसार घटित नहीं हुआ लेकिन नये वर्ष में इस विचार को अपने मन में रखें कि आने वाले वर्ष में खूब अच्छा और नवीन हमारे साथ अवश्य घटित होगा।
हम सब के भीतर एक जीवन ऊर्जा है और जब हम इस जीवन ऊर्जा को अतिकाम, अतिक्रोध और अतिलोभ जैसे दुर्गुणों के अधीन करवा देते हैं तो यह ऊर्जा क्षीण हो जाती है क्योंकि इन सब कार्यों में ऊर्जा का तेजी से क्षय होता है और नये पल का स्वागत करने के लिये हमारे पास भावना ही नहीं होती, हमारे चिन्तन में यह आ जाता है कि सब कुछ ऐसे ही घटित होगा और आप, हम निराशा के एक गहरे अंधकार में खो जाते हैं। जब हम कर्मयोग अश्‍वमेघ यज्ञ क्रिया की ओर प्रवृत्त हो जाते हैं तो हमारी ऊर्जा और अधिक बढ़ जाती है। जब हम श्रेष्ठ कार्यों की ओर प्रवृत्त होते हैं तो हमारी ऊर्जा निश्‍चित रूप से वृद्धि की ओर अग्रसर होती है।
जिस प्रकार यज्ञ में आहुति के लिये घी डालना पड़ता है और उस घी के प्रभाव से ऊर्जा की लपट और अधिक बढ़ जाती है उसी प्रकार जीवन यज्ञ में भी ज्ञान की आहुति, कर्म की आहुति निरन्तर देनी ही पड़ती है।  यही क्रिया ‘जीवन विजय सिद्धि अश्‍वमेघ यज्ञ विराट् क्रिया’ है।
अंधेरे में रहने वाले प्राणी को धीरे-धीरे अंधेरे से प्रेम हो जाता है। प्रारम्भ में वह अंधकार से निकलना चाहता है लेकिन धीरे-धीरे वह अंधकार का ही इतना आदि हो जाता है कि उसे प्रकाश से डर लगने लग जाता है। यह स्थिति गुलामी की स्थिति है। इस परतंत्रता की स्थिति से निकालकर स्वयं को स्वतंत्रता की ओर ले जाना अंधकार से प्रकाश की ओर की यात्रा है।

असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योर्तिगमय
मृर्त्योमा अमृतगमय, ॐ शांति…

नया वर्ष, नयी ऊर्जा, उमंग, नई शुरुआत, नयी ऊषा का, प्रकाश का स्वरूप है। जिसकी किरणें नारंगी रंग की हैं जिनमें ऊष्णता भी है और प्रकाश भी लेकिन ऐसा प्रकाश है जो आपको उत्साहित करता है। इस अधंकार से प्रकाश की ओर जाने की क्रिया को ही ‘अश्‍वमेघ विराट् क्रिया’ कहा जा सकता है।
एकबार मैंने एक बहुत सुन्दर पंक्ति सुनी –

हमारा दृष्टिकोण और हमारा स्वभाव ही हमें जीवन की ऊंचाईयों तक ले जाता है। केवल योग्यता के कारण हम जीवन  की उच्चताओं को प्राप्त नहीं कर सकते हैं। हमारे दृष्टिकोण से हमारे स्वभाव से ही हम अपनी योग्यता को उचित मार्ग दे सकते हैं।
जब तक जीवन जीने का हमारा नजरिया नहीं बदलेगा तब तक हमारा दृष्टिकोण एकांगी रहेगा और हमारे स्वभाव में कठोरता रहेगी तब तक हमारी लाख योग्यताओं के बावजूद भी हमें सफलता नहीं मिल सकती है।
नया वर्ष आ रहा है, हम अपने विचारों द्वारा अपने दृष्टिकोण को बदलें, अपने विचारों द्वारा स्वभाव को बदलें। योग्यता तो प्रत्येक मनुष्य के भीतर है। अन्तर केवल दृष्टिकोण और स्वभाव का ही है। आप जिस दिन नकारात्मक दृष्टिकोण से सकारात्मक दृष्टिकोण की ओर अपने विचारों की दिशा को बदल देंगे, उसी दिन दो महान् घटनाएं होंगी। पहली यदि किसी कारणवश कोई कार्य सम्पन्न नहीं हुआ तो भी उसकी पीड़ा मन में गहरे तक प्रवेश नहीं कर पायेगी और दूसरी सफलता प्राप्ति से हमारा उत्साह और अधिक बढ़ जायेगा।
केवल महापुरुषों के उदाहरण लेना पर्याप्त नहीं है प्रत्येक व्यक्ति अपने स्वयं का उदाहरण ले, स्वयं के स्वभाव और दृष्टिकोण को जाचें समझे और निराशा के भंवर से स्वयं को बाहर निकाले।
जिस दिन हमारा विचार संयत हो जाता है, उस दिन हम मानसिक क्रिया को नियन्त्रित कर सकते हैं और जब हमारी मानसिक क्रिया, नियन्त्रण में आ जाती है तो हम इस जीवन में किसी भी परिस्थिति का सामना करने में सक्षम हो जाते हैं।
जमीन में रोपा गया, कोई भी बीज एक पौधे या वृक्ष की संभावना लिए हुए ही जमींदोज होता है और उसके संभावित जीवन का श्री गणेश या प्रारम्भ होता है, इस आशा के साथ कि वह भी वृक्ष बन सकेगा। बीज अंकुरित होता है, उगता है और प्रकाश पाकर बढ़ने लगता है। इसी प्रकार आपके मन में उत्पन्न हुआ एक विचार ही कार्यों की श्रृंखला का प्रारम्भ है। सबसे पहले एक विचार मस्तिष्क में जड़ जमाता है बाद में क्रिया कलाप के रूप में वह फलीभूत होता है। एक विचार ही मनुष्य के चरित्र एवं उसके भविष्य के रूप में विकसित होता है प्रत्येक द्वेष भरा, घृणा भरा, विचार गलत शुरुआत देता हैं और इसका परिणाम भी दुःखद होता है। यदि विचार श्रेष्ठ हुआ तो निश्‍चित रूप से कार्य भी अच्छा होगा और कार्य अच्छा होगा तो उसका परिणाम भी निश्‍चित रूप से अच्छा ही होगा।
नववर्ष की यह क्रिया महत्वपूर्ण इसलिये है क्योंकि इसमें आपको अपने विचारों को नवीन रूप से अंकुरित करना है। नवीन विचार से नवीन क्रिया का भाव उत्पन्न होगा और नवीन भाव से नवीन उत्साह प्राप्त होगा। जिस प्रकार आप जीर्ण-क्षीण वस्त्र को त्याग देते हैं उसी प्रकार जीर्ण-क्षीण विचारों को भी त्याग दो और सबसे महत्वपूर्ण कार्य यह करो कि अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन लाओ।
जीवन में विपत्तिकाल तो आते ही रहते हैं यदि आप उन्नति के अभिलाषी हैं तो पांच बातें अवश्य ही त्याग दें – 1. निराशा, 2. दीनता, 3. आलस्य, 4. कटुता और 5. क्रोध। जब ये बातें जीवन से हट जाती हैं तो जीवन में धर्म का सही स्वरूप सामने आ जाता है। इस जीवन में आनन्द की यात्रा प्रारम्भ हो जाती है। इस जीवन में ‘अश्‍वमेघ विराट् क्रिया’ प्रारम्भ हो जाती है।
महाभारत का युद्ध प्रारम्भ होने वाला था और युधिष्ठिर उदास हो गये। उन्होंने अर्जुन से कहा कि – कौरवों के पास यौद्धा अधिक सक्षम और सेना ज्यादा है, हम पांडव इन मामलों मेें कमजोर हैं, हमारी विजय संदिग्ध है। युधिष्ठिर के प्रश्‍न के उत्तर में अर्जुन ने पूरे आत्मविश्‍वास से कहा – ‘कौरवों के पास सब कुछ हो, फिर भी विजय हमारी ही होगी क्योंकि हमारे पास श्रीकृष्ण हैं, धर्म है, सत्य है।’ उस समय तो अर्जुन युधिष्ठर को समझा देते हैं लेकिन कुछ समय बाद स्वयं संशय में आ जाते हैं और तब कृष्ण वचन के रूप में गीता की उत्पत्ति होती है और कृष्ण स्वयं अर्जुन के सारे संशयों को दूर करते हैं।
विपत्ति काल में भी ज्ञान के द्वारा निराशा को, आलस्य को, दीनता को समाप्त किया जा सकता है। विपत्ति काल में भी स्वभाव और दृष्टिकोण द्वारा विचारों में परिवर्तन किया जा सकता है इसी से तो सृजन की क्रिया प्रारम्भ होती है।
अश्‍वमेघ क्रिया क्या है? अश्‍वमेघ क्रिया अपने कर्म, वचन और विचार को लक्ष्य की ओर ले जाने की क्रिया है। अश्‍वमेघ क्रिया जो अपने पास है उसका उपयोग करने की क्रिया है। सीधी और सरल बात है कि इस पूरे संसार को आप सुखी नहीं बना सकते तो इसका यह भी अर्थ है कि पूरे संसार को आप दुःखी भी नहीं बना सकते। आप केवल इतना कर सकते हैं कि आप अपने आप को सुखी या दुःखी बना सकते हैं।

अश्‍वमेघ क्रिया दुःख से सुख की ओर की यात्रा है। निराशा से आशा की यात्रा है, विषाद से प्रसन्नता की यात्रा है। आत्मग्लानि से आत्म ज्ञान की यात्रा है।
आओ मिलकर अश्‍वमेघ विराट् क्रिया सम्पन्न करें…

सस्नेह आपका अपना
नन्दकिशोर श्रीमाली
Speak with Loved ones….
Dear Loved ones,
Divine Blessings!
 
The year is drawing to an end, which was full of different events. Some of these events were good and others were bad, as per your perspective. Those events have passed away, yet those memories are fully etched in your mind. We wish to detach our mind from these memories, at the onset of the new year. So, how to welcome this new year? You especially  wish to usher in three items in the new year – these  are Happiness … Happiness and Happiness.  And the three items which you wish to remove completely from your life are … sadness… sadness… and sadness.

But now the basic question arises that What is the definition of Happiness and Sadness? We will not be able to properly evaluate the last year, nor will we be able to suitably welcome the new year, until we understand this definition. It is important to have pleasures in life, but what is pleasure, what is happiness? Contemplate about this question, and forget about the results of last year. You were in a particular role last year, and you lived your last year akin to an actor acting various characters in a drama-play. You were performing similar role-plays,  you acted as per your talent and capability, but you lived and functioned as per direction of others. You danced on the tunes of others. Others gave you pain, and you got hurt, got abused, received humiliation somewhere, your body got injured somewhere, acquired some illnesses , and you wish to carry these memories, colored with similar emotions, into the new year? How will you obtain pleasure with this heavy burden? How will you achieve happiness? First you will need to rid yourself from the sad memories of the last year. Learning from mistakes neither means crying over those mistakes and blaming others nor does it mean  blaming yourself for those mistakes. Initiate progress towards the new year only after removing this guilt complex.

To accomplish this, we need to imbibe the philosophy of Karma Yoga. The Karma Yoga philosophy forbids running away from this world, rather it teaches to live in this world without getting influenced by this world. We should practice this Karma Yoga philosophy to obtain peaceful soul, limitless joy and deep understanding of soul.  

There will surely be something novel in the new year, every moment indicates a change,  and we have to  accept this change.  The new change should not be accepted in this choice-less desperation, rather we should welcome this newness and freshness (with spreading both palms) with full energy and earnestness. You might have lost in some ventures and won in others last year. Whatever you wanted, did not happen as per your wishes, but you should note this thought in mind that we will definitely have much delight and novelty in the new year.
All of us have Life-Energy within us, and when we divert this life-energy into negative evil behaviors like too much anger, too much greed and too much pleasures, then this energy level reduces, because it gets rapidly wasted in these actions; and we do not have any passion to welcome the new year, we get a feeling that all this will happen in the same old way; and you get lost in the deep dark hopeless despair. This life-energy enhances when we move towards Karma Yoga Ashwamedh Yagya Kriya. This energy certainly gets augmented when we perform positive actions.
We have to pour ghee in Yagya Aahuti offering and the ghee causes the energy flames to leap higher. Similarly, we need to make Aahutis offerings of  Knowledge and exertion effort Actions in the Life Yagya. This process is the “Jeewan Vijay Siddhi Ashwamedh Yagya Viraat Kriya”.   
A creature living in dark surroundings adjusts and starts loving the darkness. Initially it wants to come out of the dark, but it slowly gets so much adapted to the dark surroundings that it starts fearing the light. This situation is the Slavery condition. The movement from this dependence towards independence is the journey from darkness to light.

Asto Ma Sadgamaye, Tamso Ma Jyotirgamaye
Mrityorma Amritgamaye, Om Shanti…

New Year, new energy, enthusiasm, new beginnings, new rays are all forms of the bright light. The light of orange rays, full of warmth and light, is the light which energizes and galvanizes you. This process of transition from darkness to light can be called “Ashwamedh Viraat Kriya”.
Once I heard a very beautiful line –
Only our attitude and our nature takes us to the pinnacles of life. We cannot achieve greatness in life just on the basis of capability We can temper our capabilities with our nature and perspective to chart the correct course for our life.
Our perspective will stay narrow and our nature will remain depraved till we do not alter our outlook towards living the life. Until then, we cannot achieve success inspite of multiple capabilities.
The new year is arriving, we should alter the attitude of our thoughts,  and modify our nature through thoughts. Every human being is full of numerous capabilities. The difference is only in attitude and nature. Two major events will occur the day you shift your thoughts from negative attitude to positive attitude,  First, your mind will not get filled with despair and gloom if you do not achieve success in any endeavor. Secondly, your energy and enthusiasm will increase multifold on achieving success.
It is not sufficient to take examples from great people. Every person should take examples from self, understand  own attitude and nature, and remove oneself from the whirlpool of hopeless despair.
The day we rein in our thoughts, we can control our mental actions, and when we learn to control our mental actions, we become fully capable to face any situation in life.
Any seed sown in ground has potential to grow into a tree or plant, and it germinates with a prospect of  growing into a full, dense tree. The seed sprouts, germinates, and grows after receiving light. Similarly any thought originating in your mind is the initiation of a series of activities. Initially a single thought initiates in a person’s mind, and then it gets translated into multiple actions. A single thought develops as an individual’s character and his forthcoming future. Every ill thought, full of hatred and loath will provide a bad foundation and its result will also be full of sorrow. If the thought is moral, then certainly the actions will also be noble and noble deeds will definitely result in a successful results.
This process of New-Year is important because you have to sprout your thoughts in a new manner. New thoughts will result in new beliefs and new beliefs will lead to new passion and energy. Get rid of your old-narrow thoughts like you purge old clothes, and more significantly, alter your attitude and approach.
Life is full of troubles and problems. If you aspire to success then you should remove  these five entities – 1. Despair  2. Downheartedness   3. Laziness   4. loathing  5. Anger When these five objects are purged from life, then the true sense of Dharma comes into life. The journey to joy starts in life. The “Ashwamedh Viraat Kriya” gets initiated in life.
The Mahabharata war was going to start, and Yudhisthir became sad. He told Arjuna that  – Kauravas have more skilled warriors and they also have a much bigger army. We Pandavas are weaker in this respect, and our victory is uncertain. Arjuna confidently answered .Yudhisthir’s query  that – The Kauravas might have everything, but we will still be victorious, since we have Shree Krishna on our side, we have righteous Dharma and Truth with us. Arjuna counselled  Yudhisthira properly at that moment, but became hesitant  himself later, and then Geeta originated as compilation of Shree-Krishna’s words, and Shree Krishna himself dispelled all of Arjuna’s doubts.
During troubled times, we can utilize Knowledge to eradicate Despair, Laziness and Despondency. Nature and Attitude can be used to alter thoughts during distress, this is the beginning of the creation process.
What is Ashwamedh Kriya? Ashwamedha Kriya is the process to take our Actions, Words and Thoughts towards the goal. It is the method to utilize whatever you have got. The simple and straight fact is that if we cannot make this entire world happy, then we cannot make this entire world unhappy as well. We can only make ourselves happy or sad.
Ashwamedh Kriya is the progression from Sadness towards Happiness, from Despair to Hope, from Sorrow to Pleasure, from a Guilt-ridden-soul to Knowledge of self.
Come, Let us accomplish the Ashwamedh Viraat Kriya together.
 
Cordially yours
Nand Kishore Shrimali
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