अपनों से अपनी बात – Aug 2015

अपनों से अपनी बात…
प्रिय आत्मन्,
शुभाशीर्वाद,

 

नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्‍वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै ‘न’ काराय नम: शिवाय॥

 

भगवान शिव का यह पंचाक्षरी स्तोत्र मुझे अत्यंत ही प्रिय है और जब-जब मैं इस स्तोत्र को पढ़ता हूं, स्मरण करता हूं तो मुझे हर बार नये-नये अर्थ अनुभव होते हैं। भगवान शिव शक्ति के साथ हर समय संलग्न हैं, सन्नद्ध हैं और भस्म आदि के आलेपन से आनन्दमग्न रहते हैं। पिछले दिनों मुझे महाकाल उज्जैन जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। कई वर्षों से मेरे जीवन का यह क्रम बन गया है कि वर्ष में एक बार किसी न किसी बहाने से महाकाल के दर्शन अवश्य कर लेता हूं। इस बार शिविर बहाना था। उस दिन दोपहर को भगवान महाकाल का रुद्राक्षों से अभिषेक और श्रृंगार किया गया था और उन रुद्राक्षों को स्पर्श कर स्वयं गले में धारण कर हृदय में, मन में परम प्रसन्नता और परम शांति का अनुभव हुआ।

 

जब-जब मैं महाकाल के दर्शन करता हूं तो मेरे मन में भगवान शिव का विराट स्वरूप उभर जाता है। महाकाल अर्थात् काल को भी अपने वश में रखने वाले वाले, महाकाल जो मृत्यु से अमृत की ओर ले जाने में सर्व समर्थ हैं और यही तो सहज जीवन की, श्रेष्ठ जीवन की यात्रा का नाम है।

 

मृत्यु का अर्थ केवल जीवन समाप्त होना नहीं है। मेरे विचार से मृत्यु का अर्थ ॠण, रोग निर्धनता, अपमान, शक्ति हीनता हैं और जो व्यक्ति परिस्थितियों से, अभाव और बाधाओं से डरता है वह अपने जीवन में कभी विजयी नहीं हो सकता है। जीवन को जीतना है, तो इसके मार्ग में आने वाली समस्याओं, बाधाओं का सामना पूर्णता के साथ करना है। जीवन ऐसे बड़े सफर का नाम है जहां अच्छा, खराब, उबड़-खाबड़, अनेक कंटकों से भरी राह मिलनी अवश्यंभावी है। आपको न चाहते हुए भी इनका सामना करना पड़ेगा। अब आपके सामने दो ही मार्ग हैं, या तो अपने आपको डरपोक, दब्बू बनाकर रो-रोकर काम करें और दूसरा मार्ग है पूर्ण धैर्य और शक्ति के साथ समस्या का सामना करना और अपने जीवन में जीत की प्रबल ज्योति को सदैव प्रज्वलित रखना। यह ज्योति का भाव ही तो आपके लिये पथ प्रदर्शन का कार्य करेगा। इसी को हमारे शास्त्रों ने ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ कहा है।

 

शिव का भस्म से युक्त होना और कभी पूर्ण श्रृंगार के साथ युक्त होना, यह दर्शाता है कि जीवन क्रम में सारी स्थितियां आती रहती हैं, अपने आपको अविचलित रखना बड़ी ही कठिन तपस्या और साधना है। इसीलिये तो गुरु और शिष्य का मिलन होता है, गुरु ही शिष्य के जीवन में ज्ञान स्वरूप ज्योति हैं।

 

गुरु का कार्य अपने शिष्य के मन-मस्तिष्क में शक्ति का संचार करना है। याद रखो कि मनुष्य का यह मन-मस्तिष्क प्रबल शक्तिशाली है। इसे और अधिक शक्ति से युक्त किया जा सकता है क्योंकि मनुष्य अपने भीतर स्थित शक्ति का अत्यंत ही न्यून अंश का प्रयोग कर पाया है और वह अपनी शक्ति के और श्रेष्ठ उपयोग की संभावनाएं अपने भीतर रखता है। इसी तरह मनुष्य का स्वभाव और मन बड़ा ही चंचल होता है, इसकी सहज प्रवृत्ति यही रहती है कि संसार में जो कुछ भी हो, अच्छा हो और उसके लिये सारी स्थितियां अनुकूल बनी रहें। जीवन में सारे यश, कीर्ति और स्थितियां उसे प्राप्त होती रहें लेकिन ऐसा होता नहीं है। सभी व्यक्ति अपने जीवन में बहुत कुछ प्राप्त करना चाहते हैं। सफलता, नाम, पैसा, अधिकार, सत्ता, प्रेम, सौहार्द्र, हर उच्चतम बिन्दु पर पहुंचने की कल्पना हमारे मन मस्तिष्क में बनी रहती है और यदि कहीं हमें यह सब प्राप्त नहीं हो पाता है तो हम अपने अन्दर कष्ट, निराशा और क्षोभ को अनुभव करते हैं। हर बात में अपने आपको दोष देते हैं, अपने आपको तिरस्कृत समझते हैं और अपने जीवन में परिवर्तन के सारे रास्ते बंद कर देते हैं। ऐसी स्थिति में जीवन को केवल सामान्य रूप से जीने का विचार करते हैं, सामान्य सोच के साथ जीवन में चलते रहते हैं और एक प्रकार से मरने के क्रम में अपनी बारी का इंतजार करते रहते हैं।

 

प्रतिक्षण इस बात को सदैव याद रखें कि ईश्‍वर ने हमें अपनी सर्वश्रेष्ठ कृति के रूप में उत्पन्न किया है और हमें अपने जीवन में यह सिद्ध करना है कि हम उस सर्वशक्तिमान ईश्‍वर की श्रेष्ठतम् कृति हैं।

 

सदैव दूसरों का सम्मान और उनसे कुछ सीखने की ललक बनाए रखें। अपने जीवन में जो हम दूसरों को दे रहे हैं वही हमारे पास लौटकर आता है। मनुष्य ही ईश्‍वर की अनमोल कृति है तो इस मनुष्य को ईश्‍वर के गुण-धर्म और आदर्श के साथ चलना है। सदैव अपने कार्य के प्रति लगन रखें, परिणाम के प्रति अति उत्सुकता मत रखिये, इसके कारण दुःख हो सकता है। एक तटस्थ भाव से अपना कार्य करते रहिये। सफलता अवश्य मिलेगी, अपना आंकलन करते समय सदैव सकारात्मक सोच का सहारा लें। यदि वर्तमान में कोई समस्या है तो ऐसा मत सोचिये कि अब कोई समाधान, विकल्प नहीं है। ईश्‍वर ने ऐसी कोई समस्या बनाई ही नहीं है, जिसका समाधान नहीं हो। मनुष्य में यह शक्ति है कि वह प्रत्येक समस्या का हल/समाधान ढू़ंढ सकता है, उसका समाधान प्राप्त कर सकता है।

 

विपरीत समय और अच्छे समय में समानता रखना आवश्यक है कि दोनों में हम अपनी आदर्श सोच बनाये रखें। धैर्य की आवश्यकता केवल विपरीत समय में ही होती है अतैव यह ध्यान रखें की विपरीत समय के निर्णय समय परिस्थितियों और काल के अनुरूप हों क्योंकि प्रेम शाश्‍वत् है वैर का अस्तित्व छोटा होता है। किसी भी परिस्थिति में अपने तन, मन और व्यवहार पर पूर्ण नियंत्रण बनाये रखें क्योंकि यदि घबराहट, जल्दबाजी और नैराश्य को आधार बनाया तो हम आधी जंग संघर्ष से पहले ही हार जाते हैं। समस्याएं आने पर यह अवश्य समझें की अब कोई नई उपलब्धि आपके आस पास है और आपको बाधाओं का डटकर और पूरी ताकत से निराकरण करना है। समस्याएं अपना हल स्वयं लेकर आती हैं, एक दार्शनिक ने यह कहा कि समस्याएं आपको जीत का बड़ा सुख देने आती हैं उनके बिना कभी आप स्वयं को जीता हुआ नहीं समझ पाते।

 

समस्याओं के निराकरण में संकल्प और निरंतर कड़े परिश्रम की आवश्यकता होती है आपको समस्या के समाधान के लिए तुरंत एक कार्य प्रणाली, रूपरेखा बनाकर कार्य करने की आवश्यकता है । उन समस्याओं के लिए जिन पर आपका वश नहीं है उनका दुःख नहीं मनाएं, समस्याओं से घिरने पर कोशिश यह करें कि आप अपनी शक्ति प्रयत्न और प्रयासों से उन पर विजय प्राप्त करें। ज्यादा लोगों को उसमें सहभागी न बनाएं अन्यथा वे आपको और हतोत्साहित कर देंगें। समस्या के समय आप अपने कर्त्तव्य और नियत कार्य योजना पर ही बने रहें और यह विश्‍वास बनाये रखें की ये सब, कुछ नियत समय में पूर्णतः ठीक हो जाएगा।

 

हमारी सोच ही हमारे कार्य का मार्ग निर्धारित करती है। सोच के बिना कोई कार्य सम्पन्न नहीं हो सकता है और प्रत्येक श्रेष्ठ कार्य के लिये विशेष सोच की आवश्यकता है। सोच और कार्य के समन्वय को ही तो साधना कहा गया है।

 

जब-जब आप साधना करने बैठते हैं तो केवल अपने होठों से उन मंत्रों को न बोलें, उन मंत्रों को अपने मन और मस्तिष्क तक ले जाएं। तब वह मंत्र आपकी प्राणश्‍च चेतना से युक्त हो जाता है और यह मंत्र पूरी शक्ति के साथ आपके रोम-रोम में स्थापित हो जाता है।

 

भगवान शिव सदैव शक्ति के साथ हैं, न तो शिव के बिना शक्ति का अस्तित्व है और न ही शक्ति के बिना शिव का अस्तित्व है। बहुत गहरी बात है, शक्ति से युक्त रहकर निःस्पृह भाव से जीवन का पल-पल आनन्द लेना है।
इसी शक्ति साधना के लिये ही हमारे शिविरों का आयोजन होता है, इसी शक्ति साधना के लिये मंत्र जप किया जाता है,
इसी शक्ति साधना के लिये पूजन किया जाता है, इसी शक्ति साधना के लिये गुरु और शिष्य का मिलन होता है। ईश्‍वर भी तो शक्ति का स्वरूप है, जो इस प्रकृति में हमारे चारों ओर विस्तारित है। इस शक्ति के किन क्षणों को इस शक्ति के किन कणों को हम पकड़ सकते हैं यह आवश्यक है। प्रत्येक कर्म भी शक्ति को अपने भीतर साकार करने के लिये ही तो होता है
आने वाले समय में श्राद्ध पक्ष में अपने पितरेश्‍वरों को श्रद्धांजलि समर्पित करें, उनका नेमैतिक श्राद्ध कर्म पूजन, तर्पण अवश्य सम्पन्न करें। हर स्थिति में उन देवताओं को याद करें, जो आपके जीवन से सीधे जुड़े हुए हैं और पितरों का तो आपके जीवन से सीधा सम्बन्ध है। काल क्रम में उन्हीं का आप अंश हैं। उन देवताओं का अंशदान अपनी साधना द्वारा उन्हें अर्पित करें।

 

जीवन का सबसे बड़ा सुख अर्पण में है और यह अर्पण समर्पण भाव से होना चाहिए। जहां समर्पण का भाव है, वहां आनन्द का अवश्य है अर्थात् पूरे आनन्द के साथ अपने आपको अर्पित कर देना, अपने आपको उस विराट शक्ति के प्रति समर्पित कर देना ही सच्चा श्राद्ध है, सच्ची श्रद्धांजली है।

 

गुरु, देवता, ईश्‍वर आपके समर्पण के अधिकारी हैं, जो भाव आप उन्हें अर्पित करते हैं वे उन भावों को पूर्ण रूप से ग्रहण करते हैं। इसीलिये बार-बार कहा जाता है समर्पण श्रद्धा से युक्त होना चाहिए। गुरु ईश्‍वर आपको कर्त्तव्य करने का कहते हैं, कर्म करने का कहते हैं। यह उनका अधिकार है। वे आपको निरन्तर कर्म मार्ग पर प्रवृत्त करते हैं। इस मार्ग पर चलने की विराट शक्ति प्रदान करते हैं। इसलिये गुरु और ईश्‍वर के प्रति समर्पण पूर्ण होना चाहिए। इसमें कहीं किसी प्रकार की न्यूनता नहीं रखें। गुरु और ईश्‍वर ही प्रदाता हैं। संसार के बाकी सारे सम्बन्ध आपसे कुछ न कुछ लेने वाले हैं।

 

शक्ति साधना के पर्व नवरात्रि (13 अक्टूबर 2015 से 21 अक्टूबर 2015) में आपके घर में जगदम्बा शक्ति पूजन अवश्य ही होना चाहिए। संसार के सारे काम से महत्वपूर्ण नवरात्रि में शक्ति साधना है। इस कार्य में किसी भी प्रकार का आलस्य नहीं आना चाहिए। मैं भविष्य में उन क्षणों को देखता हूं जब प्रत्येक साधक के घर में नौ दिन का अखण्ड दुर्गा पूजन चल रहा होगा और यह क्रिया अवश्य सम्पन्न होगी।

 

जीवन का सार भगवान श्रीकृष्ण के इस अमृत वाक्य में है कि –

 

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वा सर्वपापेभ्या मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥

 

तुम अपने आपको समर्पित कर दो, मैं तुम्हें मुक्ति का आनन्द अवश्य प्रदान करूंगा।

 

सस्नेह आपका अपना
नन्दकिशोर श्रीमाली

A Dialog with  loved ones …

Dear loved ones,

Divine Blessings,

Nagendraharaye Trilochanaye Bhasmadagaragaye Maheshwaraye |
Nityaye Suddhaye Digambaraye Tasme “Na” Karaye Nama:H Shivaye ||

This Panchaakshari Stotra of Lord Shiva is very dear to me, and
whenever I read this ode,  or  reminisce it,  I experience a new
different meaning each time. Lord Shiva accompanies Divine Shakti
power all the time, is constantly engaged in, and is always full of
divine joy decked with ashes. I had a good fortune to visit Mahakaal
Ujjain some days ago. For past some years of my life, it has become a
routine that I visit Mahakaal at least once every year, on one pretext
or the other.  This time, the Sadhana Camp offered the opportunity.

That afternoon, Lord Mahakaal was anointed and decorated with
Rudraaksh beads, and I felt untimate happiness in my heart and mind, and experienced divine peace, upon touching and wearing those Rudraksh in my neck.

Whenever I view Mahakaal, my mind gets filled with the Divine form of Lord Shiva. Mahakaal i.e. the one who controls even the time, He who is fully capable to take one from death to immortality and this simply is the plain meaning of life, the outstanding journey of life.

Death does not simply mean end of life. I believe that death is a
synonym of debt, disease, poverty, humiliation, powerlessness and an individual who is afraid of circumstances of inferiority, deficiencies and obstacles, he can never be victorious in life. To win in life, one
has to face all the problems and obstacles on the path, with complete
perfection. Life is the name of a great journey where good, bad, rough
and thorny slopes are inevitable. You have to face them even if you do
not wish to. You now have two choices, either labor lamenting with
timidity & submissiveness or the other path is to face the problems
with full patience & strength, keeping the deep flame of victory
always ignited in your life. This sense of light will guide you
throughout your life. This has been termed as “Tamso Ma Jyotirgamaye” in our scriptures.

Adoration of Lord Shiva sometimes with ashes and at other times with full makeup indicates that all types of circumstances do keep coming in life, and the greatest austerity and Sadhana is to continue
unwaveringly, without getting swayed. Thus there is a merger of Guru
and disciple, Guru is the flame of wisdom in the life of disciple.

The Guru’s mission is to transmit the energy into the mind of the disciple. Always remember that the human mind is very strong and powerful. Its power can be enhanced further, because humans  normally utilize only a very minute fraction of their resident inner energy and there are multiple potentials of growing this utilization.
Similarly, the mental tendency of man is ever playful and fickle,
there is an innate desire that whatever occurs in the world, occurs
for his own good; and that all types of situations are ever-favorable
to him. He wishes to continuously obtain fame, glory and favors, but
this is not practically possible. Everyone desires a lot in life. We
constantly strive to reach the pinnacle of success, fame, wealth,
authority, power, love and harmony; and whenever we fail to achieve
them, then we experience suffering, disappointment and indignation
within ourselves. We tend to blame ourselves in everything, degrade
ourselves; and shut all doors of change in our lives. We plan to live
life in plain ordinary fashion, continue in life with basic normal
thoughts and in a way, we keep waiting for our turn to die.

We should always remember that God has conceptualized us as His best creation we have to prove in our life that we are the best creations of the Almighty God.

We should always respect others and have a constant urge to learn something from them. Whatever we give to others in this life, it returns back to us. The humanity is the best creation of God, and therefore, a person should lead life with the virtues, morals and values of God. Always be passionate to your work, do not have excessive curiosity towards the results, as this may lead to suffering. Continue working objectively. You will definitely obtain success, and you should always think positively during analysis and assessments. If you currently have a problem, then do not worry that solution is not possible. God has not created any such obstacle, which does not have a solution. It is within man’s reach to resolve each and every problem, and thereby obtain solutions.

It is important to retain similar balance in good and bad times, and we should maintain ideal model thinking in both types of conditions.
Patience is required only during adverse times, so you should ensure
to make decisions consistent with the current circumstances and
situations;  since love is eternal but hatred has a small timespan.
You should have full control over your body, mind and behavior in all
kinds of circumstances, because if we get nervous, hasty or despair,
then we already lose half the battle before even start of the
conflict.  When problems arrive, you should understand that you have a new quality within you and you should face these obstacles with full
strength and confidence.  All obstacles come with their own solutions,
a philosopher has once remarked that the obstacles increase the joy of victory, you can never comprehend or relish victory without them.

Resolution of problems require strong willpower and continuous hard work, you need to immediately create a working plan, a basic framework to address the problem. Do not feel sad while confronted with issues beyond your control, your endeavor while surrounded with obstacles
should be to conquer them with your energy, strength and efforts.  Do not run to multiple people for solutions, otherwise they will discourage you more.  Stay concentrated on your duties and work-plan, and maintain confidence that everything will be resolved in its own
stipulated time.

Our thoughts drive the plan of our work. No task can be accomplished without proper thinking and special thinking is required for each and every exceptional task. This  coordination of thoughts and practice is called Sadhana.

Whenever you sit down to meditate in Sadhana, do not just let mantras emanate out of your lips, rather take these mantras to your mind and intellect. Then these mantras merge with your inner Praanasch Chetna energy, and these mantras get set up with full force in each atom of your body.

Lord Shiva is always with the Divine Shakti power, neither the divine
Shakti power can exist without Lord Shiva, nor can Lord Shiva exist
without  the divine Shakti power. It is a very deep philosophy, the
joy of life can only be realized by living life with full energetic
power through an objective detached attitude.

Our Sadhana shivir camps are organized to practice this Shakti
Sadhana, we chant mantras to achieve the same Shakti Sadhana, worship is performed to attain the same Shakti Sadhana, and the merger of Guru and disciple also takes place to realize the same Shakti Sadhana.  God is the manifestation of the Shakti energy, which is spread all across around us in nature.  It is important to comprehend which particles of this power we can hold together.  Every Karma task takes place to realize this Shakti power within ourselves.

We should offer homage to our Pitreshwaron ancestors during the coming Shraadh paksha, and we should perform memorial service, worship and offer libations to them properly following all rites and rituals. We should always remember the Gods related to our life, and our ancestors have a direct connection with our life.  You are a tiny portion of them in these current times.  Offer libations to these Gods through your Sadhanas.

Cession is one of the greatest pleasures of life and this cession
should be through complete dedication.  Joy is always ever present
wherever there is dedication, i.e dedicating yourself with full joy,
offering yourself to the Divinity, is the true tribute, the true
homage.

Guru, Gods, Almighty own your dedication, They always assume whatever you offer and express to Them. Therefore, it is repeatedly stated to offer with Total Dedication.  Guru and God always enjoin you to perform your duties, your tasks. It is their right. They continuously motivate you tread the path of action and tasks.  They provide you immense power to walk on this route. So you should have absolute devotion and dedication towards Guru and God.  There should not be any deficiency in this. Guru and God are the only sustainer and ever-provider. The rest of the worldly relations exist only to take something from you.

You should certainly perform Jagdamba Shakti poojan in your home during the Shakti Sadhana Navratri festival (October 13, 2015 to October 21,2015). The Shakti Sadhana during Navratri is the most important task in the world. There should not be any laziness in this task. I visualize the moments in future when the nine-day continuous Durga worship is occurring in the home of each and every sadhak, and I am certain that this will be done.

The essence of life is in this immortal quote of Lord Krishna –
Sarvdharmanparityajaye Maamekam Sharnam Vajra |
Aham Tvaa Sarvpaapebhya Mokshyishyaami Maa Shucha:H ||
You surrender  yourself, I will certainly grant the joy of liberation.

Cordially yours
Nand Kishore Shrimali

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